प्यार का तोहफा तेरा
by MastramLegends©
All the characters in this story are 18 years or older.
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उस रात हम दोनों पंजाब केसरी में पढ़ तहे थे. उसमें एक समाचार था जिसमें हरियाणा के एक व्यक्ति के उसकी सास के साथ शारीरिक सम्बन्ध थे. ये खबर का खुलासा तब हुआ जब उनके एक पडोसी ने उन दोनों को दिन में बाहर लंच खाते देख लिया जब दोनों थोडा रोमांटिक मुद्रा में थे. उसने फिर उनका पीछा किया और उनके बेडरूम की खिड़की से अनादर के क्रिया कलाप कि रिकॉर्डिंग की.
उसी दिन mid-day में Ask-Diana में किसी ने सवाल भी पूछा था कि उन्हें अपनी सासू माँ से आकर्षण है और वो क्या करें. जवाब में Diana ने लिखा था कि बहुत सारे मर्द अपनी सास के बारे में ऐसा सोचते हैं.
बात तो सच थी. कम से कम मेरे बारे में. मेरी सास अगर आज तैयार हों तो मैं एक मिनट की देरी किये बिना उनको पूरा जवाब दूंगा.
इसी बीच मेरी पत्नी अनीता का सवाल मुझे चौका ही गया, "गगन डार्लिंग! तुम भी मेरी माँ के बारे में ऐसा कुछ सोचते हो क्या?"
"अरे नहीं तो", मैंने जैसे घबराते हुए जवाब दिया मानों मेरी चोरी पकडी गयी हो.
अनीता मंद मंद मुस्करा रही हो जैसे वो साफ़ पढ़ रही हो कि मैं मन मने क्या सोच रहा हूँ.
मेरी सास जयंती बहुत खूबसूरत थीं. वो उनीस साल की थीं जब उन्होंने अनीता को जन्म दिया. उन्होंने हमेशा अपना ख़याल ठीक से रखा. जिसकी वज़ह से साठ साल की उम्र में भी बहुत ही दिखती हैं. वो मेरी पत्नी से समझो बस एक साइज़ कि ज्यादा बड़ी होंगी. पर उनकी चुन्चिया बड़ी एवं सुडौल हैं. और उनकी गांड गोल और मुलायम है. मुझे इस लिए पता है क्योंकि पिछले हफ्ते जब हम मेट्रो से घर लौट रहे थे तो मेट्रो में खचाखच भीड़ थी. इसकी वज़ह से वो और मैं बहुत सट के खड़े थे. और उनकी गांड को मैं बिलकुल महसूस कर सकता था. मेरा लंड पेंट के अन्दर एकदम टाइट हो रखा था और उनकी गांड की दरार में मानो फंसा हुआ था. मैं तो बस बहाना कर रहा था कि जैसे मुझे कुछ पता ही नहीं है और अपने फ़ोन पर कुछ पढ़ रहा था. पर मन ही मन मैंने उनकी गांड को अपने लंड वाले एरिया में बहुत फील किया और बड़ा मज़ा लिया. मेरी सास बहुत खुश मिजाज़ औरत हैं. और मुझे ऐसा लगता है उन्होंने भी इस अचानक बिना योजना के मजे को अच्छे से महसूस किया होगा.
जयंती को आँखे बड़ी सुन्दर हैं. पता नहीं जब भी मैं उनमें देखता हूँ ऐसा लगता है कि आँखों मुझसे कुछ सवाल कर रही हैं. मानों ये बोल रही हैं कि, "मुझे मालूम है कि तुम मुझे देख कर क्या सोच रहे हो. अरे आगे कब बढोगे?"
और गगन ने कई बात लगभग कोशिश कर ही डाली थी पर उसकी हिम्मत आखिरी समय पर जवाब दे जाती थी.
गगन को पता था उसकी पत्नी अनीता और सासु मन जयंती माँ बेटी कम और सहेलियां ज्यादा है. अनीता ने अपनी माँ को गगन और उसके बीच में क्या क्या हो रहा है लगातार बता के रखा था. उसके अफेयर कि शुरुआत से ले कर उनकी पहली पहली चुदाई कि बात और यहाँ तक कि गगन कि नंगी फोटो भी उन्हें दिखाई थी. उसकी माँ को पता था मैं चूत चूसना बड़ा पसंद है. मुझे पता
मेरी पत्नी अनीता बड़ी कि कामुक स्त्री थी. पर एक बच्चा हो जाने के बाद उसकी सेक्स कि इच्छा काफी कम हो गयी थी. मेरे लिए सेक्स के बिना रहना बहुत मुश्कील था. पर मैं अनीता के साथ कभी भी बेवफाई नहीं कर सकता था. मैं देखने में हैण्डसम हूँ और कसरत कर के शरीर को फिट रखता हूँ. दफतर में कुछ लड़कियों ने कई बात हिंट दिया पर मैं अनीता से बेहद प्यार करता हूँ तो बात बिलकुल आगे नहीं बढाई.
एक दिन अनीता ने मुझसे बोल ही दिया, "गगन, तुम्हें अगर सेक्स कि जरूरत हो तो तुम मेरी माँ कि मदद ले सकते हो".
"जब तुम मुझे उपलब्ध हो तो मैं ऐसा क्यों करूंगा डार्लिंग!" मैंने जवाब दिया.
"यही तो समस्या है. मैं तुम्हें उपलब्ध नहीं हूँ. मुझे मालूम है जितना तुम्हारे शरीर कि जरूरतें हैं वो मैं पूरा नहीं कर पा रही हूँ. इधर उधर मुंह मारने से बेहतर रहेगा तुम ऐसी जगह जाओ जो मुझे पता हो. और वहां जाने से मुझे किसी प्रकार का स्ट्रेस भी न हो". अनीता ने बड़े ही दुःख भरे स्वर में अपने विचार व्यक्त किये.
"पर मैंने तुमसे शादी कि थी तुम्हारी माँ से नहीं"
"हाँ, पर मुझे पता है महीने में दो बार तुम्हारे लिए काफी नहीं है. सच पूछो तो ये नाइंसाफी है तुम्हारे साथ. और साथ में मेरी मम्मी को भी थोडा प्यार मिलेगा जो वो पापा के जाने के बाद से मिस करती हैं"
मन ही मन मैं बड़ा खुश हो रहा था. सासु माँ के संग ऐसा करने के ख़याल से ही मेरा लंड पन्ट में एकदम टाइट हो रखा था.
"तुम एकदम पागल हो"
ऐसा कहते हुए मैंने अनीता के होठों पर होंठ रख कर उसे एन चुम्बन दिया. और तेजी से बाथरूम में घुस कर जल्दी से सडका मारा जिससे खड़े हुए लंड को थोडा करार आया.
इस बात को एक सप्ताह गुजर गया. मैं नहाते समय अपनी सास जयंती देवी के गदरीले बदन कि कल्पना करता और हस्तमैथुन करता. अनीता कि बातों से जो आरजू दिल में जाग गयी थी अब वो थोडा थोडा निराशा में बदल रही थी. शायद अनीता उस समय थोडा दुखी हो और अपना दुःख कम करने के लिए ऐसा कह रही हो. पर मैंने अनीता से इस बारे में कुछ भी कहाँ नहीं.
वो शनिवार का दिन था, मैं दस बजे के आस पास उठा. अनीता चाय ले कर आई.
"सारा इंतज़ाम हो गया है आज का. मैं बच्चे को ले कर माल जा रही हूँ शौपिंग करने"
"क्या मतलब" मैंने पूछा.
"वो दिन आ गया है जब तुम मेरी माँ के साथ ......"
"क्या?... क्या मतलब.?...." मैंने नर्वस होने का ढोंग करते हुए बोला.
"अरे तुम कोई बच्चे नहीं हो. बाकी कैसे करना है...क्या करना है...आप देखो समझो. बस ये समझ लो कि अपनी माँ तुम्हें दे रही हूँ तोहफे में. तो मुझे कोई बढियां सा तोहफा दिलाना"
"ओह...जरूर जरूर" मैं बस इतना ही बोल पाया.
"थोडा आराम से गगन... मुझे पता है कि तुम झूठ बोल रहे थे. जिस तरह से तुम उन्हें देखते हो ..उन्हें भी पता है और मुझे भी पता है कि तुम्हारे इरादे क्या हैं...पिछले हफ्ते जब वो टेबल से प्लेट्स उठा रहें थीं, तुम उनके ब्लाउज के अन्दर झाँक रहे थे. उस दिन मेट्रो में तुम अपना हथियार उनकी पिछाडी पर रगड रगड कर मज़े ले रहे थे."
मैं शर्मा गया. मेरी कान लाल हो उठे.
"अरे शरमाओ मत मेरे राजा. मेरी माँ को भी तुम्हारी ये करतूतें अच्छी लगती हैं. मुझे मालूम है."
अनीता की ये बात सुन कर मन को आराम मिला.
"और सुनो. उन्हें ढंग से करना. दो तीन बार उनका हो जाए ठीक से इस बात का ख़याल रहे. लास्ट टाइम उनकी डेट पर जो बंदा था वो दारु पी के बिना कुछ किये हो सो गया था.
"जरूर" मैंने आश्वासन दिया.
अनीता ने मुझे किस किया और माल के लिए निकल पडीं. जाती हुई कार के जाने की आवाज मुझे कभी इतनी अच्छी नहीं लगी थी.
और अब इंतज़ार था आती हुई कार की आवाज़ का.
ठीक बारह बजे मेरी सासु माँ जयंती देवी का आगमन हुआ. वो थोडा सा नर्वस थीं. मैं उन्हें नीचे के कमरे में ले गया. हम दोनों कि साँसें थोडा तेज चल रहे थीं.
"सो, अब आगे का क्या ख़याल है?" जयंती देवी ने पूछा.
"हाँ, थोडा अजीब सा तो लग रहा है. इस घड़ी का मैं कब से इंतज़ार किया है. और आज ये घड़ी मेरे सामने आ खडी है तो समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें" मैंने लगभग हकलाते हुए बोला.
"इंतज़ार तो मैंने भी बहुत किया है" वो बोलीं.
"पर मुझे पता है कि मैं क्या करूंगा. पहले मैं आप को जी भर के देखूँगा. फिर मैं आप को बांहों में भर लूँगा. फिर धीरे धीरे आपके कपडे उतारूंगा. और फिर उसके आगे जो होना है वो होगा."
"हाँ मैंने तुम्हें आँखों से मेरे कपडे उतारते कई बार देखा है." जयंती देवी शर्माते हुए बोलीं.
"ओह तो आपको पता चल जाता था?" मैंने पूछा.
"हम औरते हैं. हमारा सिक्स्थ सेंस इतना अच्छा होता है कि हम सब भांप लेते हैं." जयंती देवी बोलीं.
"चलो अच्छा है, अब मुझे कुछ छुपाने कि जरूरत नहीं है आपसे". मैंने बोला.
"हाँ और मुझे आप कहने कि भी जरूरत नहीं हैं. इस एक्सरसाइज के बाद हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन्ने वाले हैं."
हम दोनों एक दुसरे कि तरफ आँखों में ऑंखें डाले एक दुसरे की और बढे और बांहों में समां गए. मैंने उनके अधरों को अपने अधरों के बीच में ले लिया. और अपने हाथों से उनकी पीठ और गांड को सहलाने और दबाने लगा.
जयंती देवी के भारी चुंचियां मेरी छाती से मानों पिस रहें थी. वो अपने हाथों को मेरे जीन्स के ऊपर से सहला कर मेरे जवान हथियार का जायजा ले रहें थीं. मैं उनके पीछे जा कर अपना खड़ा लंड उनकी चूतड़ों के दरार में फंसा कर अपने दोनों हाथों से उनकी चुन्चिया दबाने लगा. मैंने उनका कुरता उतार दिया. और उनकी गोरी गोरी मांसल चुंचियों को उनकी काले रंग कि ब्रा से आज़ाद कर दिया.
मैंने एक एक कर के उसकी चुंचियां मुंह लगा कर चूसना शुरू कर दीं. मेरे दोनों हाथो उनकी गांड महसूस कर रहे थे. फिर मैं अपना मुंह नीचे ले जा आकर उनकी नाभि में अपनी जीभ दाल कर जैसे उसे चोदने सा लगा. ये करते हुए मैंने नाडा ढीला कर के उसका पजामा उतार दिया. और उनकी पैंटी को नीचे खींच कर अपना मुंह उनकी चूत के ऊपर टिका दिया. जयंती देवी बेहद गर्म हो चुकी थीं. वो पीछे पड़े दीवान पर बैठ गयीं और पैर हिला कर अपनी पैंटी को एक तरफ फर्श पर फेंक दिया. मेरे मुंह उनकी चूत के भगनाशे को मुंह में ले कर चाट रहा था. उन्होंने अपनी टाँगे फैला के चौडी कर दीं ताकि मैं मुंह से उनकी चूत की चुदाई कर सकूं.
मैंने अपनी जीभ उनके चूत में डाल कर मुख्चोदन प्रक्रिया शुरू कर दी. उन्हें शायद जीवन में पहली बार मुंह से चूत कि चुदाई का अवसर मिला रहा था.
"आह्ह ...आह....म्म्म ....." आनंदातिरेक में बडबडा रहीं थीं.
उनकी चूत मेरी जीभ कि प्रक्रिया से मस्त गीली हो चुकी थी. और मेरे लंड से भी थोडा थोडा पानी निकल रहा था. मैं उठा और मेरे मोटा और खड़ा लंड उनकी चूत के मुहाने पर टिकाया.
हम दोनों एक दुसरे को नज़रों से नज़रें मिला कर मुस्करा रहे थे.
"तो हो जाए फिर" मैंने मानों उनकी इजाज़त मांगी.
उन्होंने मुस्कराते हुए सर से हामी भर दी.
मैं कमर से एक हलके से झटके से लंड का सुपाडा उनकी चूत में पेल दिया. और होठों से होठों का रसपान करने लगा. उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी गांड के ऊपर लगा के जैसे प्रेशर देने लगीं. चूत में लंड पूरा कब घुसा और कब मैं पूरी रफ़्तार से उन्हें छोड़ने लगा पता ही नहीं चला. चूत गीली थी. जब लंड अन्दर बाहर होता था, फच फच कि आवाज आती थी. उन्होंने अपनी कमर उठा उठा कर चुदवाना चालू कर दिया. मैं समझ गया कि अब वो झडने वाली है. उनके हाथों की पकड़ मेरी गांड पर और तेज हो गयी. मेरे लंड के सुपाडे पर गरम लावा सा बहता हुआ महसूस हुआ. और वो झड़ गयी.
मैंने अपना लंड निकाल लिया. जयंती देवी ने धन्यवाद स्वरुप उठ कर मेरा लंड अपने मुंह में ले कर चूसने लगीं. मैं धीरे धीरे इनकी गांड सहलाने लगा. फिर अपनी दो उँगलियाँ उनकी चुदी हुई चूत में डाल कर हिलाने लगा. थोड़े समय में ही जयंती दूसरी चुदाई सेशन के लिए तैयार हो गयीं.
मैं इस बार नीचे लेट गया और और वो मेरे ऊपर लेट कर आनंद लेने लगीं. मैंने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर भिड़ाया और जयंती ने एक ही धक्के में पूरा का पूरा ले लिया. थोड़ी ही देर में वो भकभक मुझे छोड़ने लगीं. उनकी बड़ी बड़ी चुंचियां मेरे सीने पर छलक रहीं थीं. मैं उनसे खेल लेता. और मेरे लंड को उनकी चूत के अन्दर बाहर होता देख लेता. बीच बीच में उनकी गांड दबा कर आनंद प्राप्त कर लेता.
वो बिलकुल गांड हिला हिला कर जैसे घोड़े कि सवारी कर रही थी. मैंने अपनी एक उंगली को उनके चूत के रस से गीला कर के उनकी गांड में डाल दिया.
"ऊओह्हह्ह....सीईईईई..... नटखट कही के"
चूत में घुसा हुआ लंड और गांड में फंसी उंगली का आनंद जयंती के सहनशक्ति के बाहर हो रहा था और वो फिर जोरों से झड कर बिस्तर पर जा गिरीं.
मैंने जयंती को उल्टा कर के उनकी गांड सहलाने लगा. थोड़ी देर में जब उनकी सांस में सांस आयी, तो मैंने उनकी गांड उठा कर उनको कुतिया बना दिया. और थोडा थूंक अपने लंड पर लगा कर लंड को उनके गांड के छेद पर टिकाया.
"ऊओह....आज तक किसी ने मेरी गांड नहीं मारी दामाद जी." जयंती देवी बोलीं
"पहली बार का मज़ा ले लो", मैं बोला.
"इतना लंबा और मोटा लंड है तुम्हारा मेरी तो गांड ही न फट जाए कहीं" वो चिंता कर रहीं थीं.
मैंने सोचा बातचीत में समय न जाया किया जाए. मैंने थोडा और थूंक लगा कर उनकी गांड के चीड को और चिकना बनाया और एक छोटे से धक्के से सुपाडा अन्दंर धकेल दिया.
"उईई ... मैं मर गयी...."
मैंने उनकी एक न सुनते हुए दो उंगलियां उनकी चूत में पेल दी और धीरे धीरे उँगलियों से चूत में पेलने लगा. जैसे ही उनको मज़ा आने लगा,
मैंने आव देखा न ताव, पूरा का पूरा लौंडा उनकी मोटी गांड में घुसेड मारा.
"आह....सीसीईईई....."
मैंने अब धीरे धीरे उनकी गांड चोदना शुरू कर दिया. जयंती को भी बड़ा मज़ा आ रहा था. उँगलियों से उनकी चूत कि चुदाई बड़े जोरों से हो रही थी और मोटे लंड से उनकी गांड कि सेवा. थोड़ी ही देर में मेरे लंड के अन्दर बड़ी जोर का तनाव महसूस हुआ और मैंने अपना खूब सारा माल उनकी गांड में छोड़ दिया. जयंती भी मेरी उँगलियों के ऊपर झड गयीं. ये उनका तीसरी बार था.
"सारी जिन्दगी आज तक किसी ने मुझे इतना आनंद नहीं दिया, अब मैं समझी कि अनीता ने क्यों मेरी मर्जी के खिलाफ तुमसे शादी की." जयन्ती बोलीं.
"मुझे बड़ी ख़ुशी है कि आपको ख़ुशी मिली सासू माँ." मैंने बोला.
थोड़े देर के आराम के बाद, उन्होंने अपने कपडे पहने. एक बार मुझे फिर से किस किया. और चली गयीं.
मैं बिस्तर पर लेट गया. कब नींद आई नहीं चला. फ़ोन की घंटी से अचानक नींद खुली. अनीता की आवाज ने मुझे जगाया
"क्या चल रहा है जानेमन"
मुझे उस समय अहसास हुआ कि मैं उसे कह सकता हूँ कि मैं उसकी माँ चोद रहा था. पर मैं बस मुस्करा कर रह गया.
जीवन के इस नए अध्याय का रस बड़ा ही मीठा था. और अच्छी बात ये थी इसके कई सारे पन्ने अभी भी बाकी हैं जिन्हें मैं धीरे धीरे पढना चाहूंगा.