Category: Incest/Taboo Stories

नेहा का परिवार 03

by SEEMASINGH©

नेहा का परिवार

लेखिका:सीमा

कहानी के सारे पात्र कहानी विवरण के समय अट्ठारह साल के या उसके ऊपर हैं।

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यह कहानी नेहा के किशोरावस्था से परिपक्व होने की सुनहरी दास्तान है।

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दोस्तों, मैं तो बस बड़े मामाजी,दुसरे परिवार के सदस्यों और नेहा के प्यार का विस्तृत वर्णन ही कर रहीं हूं। उन्हें किस किस तरह तरह की रति-क्रिया से सुख मिलता है उस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं है। आशा है कि पाठकगण भी उनकी निजी काम-इच्छाओं का आदर करेंगे और बुरा नहीं मानेगें।

सीमा

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Tags : Incest, Grandfather, Granddaughter, Father, Daughter, Lesbian, Sister/Sister, BIL/SIL, M/S, Watersports

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***********५**************

अब मेरा ध्यान अंदर कमरे कि कमरे में हो रही भैया-भाभी कि चुदाई पर फिर से लग गया. भाभी का रोना अब बहुत कम हो गया था.

"नीलू,बस अब पूरा लंड अंदर है. मैं धीरे-धीरे तुम्हारी चूत मरना शुरू करूंगा." भैया की आवाज़ में बहुत सा प्यार छुपा हुआ था.

नीलम भाभी सिर्फ सिसकती रहीं पर भैया के मज़बूत चौड़े हृष्ट-पुष्ट नितम्ब ऊपर-नीचे होने लगें. मुझे बीच-बीच में भैया का थोडा सा लंड दिखाई पडा. उनके लंड की मोटाई देख कर मेरे दिल की धड़कन मानो कुछ क्षणों के लिए रुक गयी.

मनू भैया ने अपने अविश्वसनीय मोटे लंड से नीलम भाभी की चूत की चुदाई करनी शुरू कर दी. भैया के मज़बूत चौड़े नितम्ब धीमें-धीमें ऊपर नीचे होने लगे. भैया ने अपने शक्तीशाली कमर और कूल्हों की मसल्स की मदद से अपना महाकाय लंड नीलम भाभी की चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया.

नीलम भाभी अब बिलकुल नहीं रो रहीं थीं पर उनकी सिसकियाँ रुक-रुक कर उनकी कामुकता की हालत बता रहीं थीं.

मेरे अपरिचित प्रेमी ने मेरी भगांकुर को फिर से मीठी यातना देनी शुरू कर दी. उसकी दोनों हाथ मेरे उरोज़ों को और मेरी चूत को बिना रुके उत्तेजित करते रहे.

मनू भैया अब भाभी को और भी ज़ोर से चोद रहे थे. उनका लंड भाभी की चूत में बढ़ती हुई तेज़ी के साथ रेल के पिस्टन की तरह अंदर-बाहर जा रहा था. नीलम भाभी की सिस्कारियां उनकी काम-वासना की तरह ऊंची होती जा रहीं थीं, "आह..ऊई..मनू-अब बहुत अच्छा लग रहा है.मेरी चूत में तुम्हारा मोटा लंड अब बहुत कम दर्द कर रहा है. मुझे चोदो प्लीज़....मेरी चूत मारो...आँ..आँ. ...अम्म..मनू..ऊ.आह."

मनू भैया के चूतड़, इंजन के तरह, अब और भी तेज़ी से ऊपर-नीचे हो रहे थे.

मेरी चूत की हालत भी बहुत खराब थी. मैं दूसरी बार झरने वाली थी. मेरे शरीर की एंथन आने वाले कामोन्माद से मुझे और भी परेशान करने लगी.

अचानक भाभी की सिसकारी चीख में बदल गयी पर इस चीख में दर्द की कोई भावना नहीं थी.

"मैं झड़ने वाली हूँ, मनू.मेरी चूत को फाड़ दो.मुझे चोदो. आँ..आँ..अ..आ..मैं आ गयी.ई...ई..ई..ई," नीलम की लम्बी चीख उनके कौमार्य-भंग के पहले कामोन्माद [ओर्गाज़म] की घोषणा कर रही थी.

मेरा चरम-आनन्द भी भाभी के साथ मेरे शरीर को यंत्रणा दे रहा था पर बेचारी भाभी की तरह मैं चीखना चाहती थी पर मैंने अपने होंठ दातों से दबा लिए.

अगले एक घंटे कमरे में भैया ने नीलम भाभी की चूत का,अपने वृहत्काय मोटे लंड से, बेदर्दी से लतमर्दन किया. भाभी कम से कम पांच बार झड़ चुकीं थीं.

बाहर मेरे अपरिचित प्रेमी ने मेरी चूत, भागान्कुर और चूचियों को मीठी यातना दे-दे कर मुझे सात बार झाड़ दिया था .

भैया का लंड अब भाभी की चूत, जो अब उनके स्खलित रति-जल से लबालब भर गयी थी, चपक-चपक की आवाज़ के साथ बिजली की तेज़ी से भाभी की चूत का मर्दन कर रहा था. भाभी की चुदाई अब इतनी भयंकर हो चली थी कि एसा लगता था कि भैया एक हिंसक मनुष्य बन गए थे और भाभी की चूत का विनाश ही उनका उद्देश्य था. पर भाभी सिस्कारियों के बीच में उनको और ज़ोर से उनकी चूत 'फाड़ने' का प्रोत्साहन दे रहीं थीं.

जब भाभी अंदर कमरे में भैया के मूसल लंड से चुदवा कर छठवीं बार झड़ीं, मैं बाहर अपने अनजान प्रेमी से अपने चूत मसलवा कर आठवीं बार झड़ रही थी.

भैया ने अपने लंड को भीषण शक्ति से भाभी की चूत में अंदर बाहर डाल कर एक जंगली जानवर कि तरह गुर्रा कर अपने लंड को भाभी की प्यासी चूत में खोल दिया. भैया का लंड भाभी कि चूत में स्खलित हो रहा था और मैं बाहर अनजान पुरुष की उँगलियों पर मचल-मचल कर झड़ रही थी.

भैया भाभी के ऊपर निढाल हो कर परस गए. भाभी ने भैया अपनी दोनों बाँहों में और भी ज़ोर से जक्कड़ लिया. भाभी मातृक-प्रेम के साथ भैया की पीठ और सिर प्यार से सहला रही थीं. कामलिप्सा की संतुष्टी के बाद दोनों एक दुसरे को अनुराग भरे चुम्बन दे रहें थे.

मैं अब बिलकुल थकान से निढाल हो चली थी.मेरे बहुतबार झड़ने की थकान मेरे अजनबी प्रेमी को भी महसूस हुई. मुझे उसकी पकड़ ढीली महसूस हुई और मैंने अपने आपको उसकी बाँहों से मुक्त कर लिया. मैं जैसे ही दूर जाने के लिए चली उस आदमी ने मुझे पकड़ने की कोशिश की पर उसके हाथ में सिर्फ मेरी शॉल ही आ पाई.

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मैंने पीछे बिना देखे भाग कर बाहर खुले लॉन में चली गयी. मैंने वहां रुक कर पीछे मुड़कर देखा. वो विशाल शरीर का आदमी अभी भी अँधेरे में खड़ा था. उसने मेरी शॉल प्यार से दीवार पर तह मार कर डाल दी.

मैं भरी साँसों से भरी अपने कमरे की तरफ दौड़ पड़ी. कमरे में पहुँच आकर मैं बिस्तर में निढाल हो कर लेट गयी. मुझे करीब आधा घंटा लगा अपनी सांस काबू में लाने के लिए.

============ दूसरा अध्याय ==========

मेरी तरुण उम्र में कभी भी मुझे इस तरह स्थिति के होने का कोई पूर्वानुमान या सँभालने का अनुभव नहीं था. मैंने कभी भी कोई ऐसा काम नहीं किया था जिसे मुझे अपने मम्मी-पापा से छुपाना पड़े. ऊपर से मेरे दिल में अब डर बैठ गया था कि क्या पता यह आदमी मुझे ब्लैक्मेल करने की कोशिश करे.

पर मेरी अपेक्षा के खिलाफ उससे भी बड़े डर ने मेरे मस्तिष्क पर नियंत्रण कर लिया, जिससे मेरा दिल बिलकुल बेचैन हो गया, कि वो मुझे कभी भी दुबारा न मिले. मैंने उसकी शक्ल भी नहीं देखी.

मैंने हिम्मत कर के फिर से बंगले की तरफ चल पड़ी. मेरा दिल हथोड़े की तरह मेरे छाती में धड़क रहा था. मैं धीरे-धीरे फिर से संकरे गलियारे में प्रविष्ट हो गयी. मेरी शॉल अभ्हे भी दीवार पर लटक रही थी. वो आदमी मुझे नहीं नज़र आया. मेरी सांस ज़ोर-ज़ोर से चल रही थी. मैंने खिड़की से कमरे के अंदर देखा. मनू भैया नीलम भाभी कि पीछे से चुदाई कर रहे थे. मुझे मालूम था इसे 'डॉगी' या 'घोड़ी' की रीति में चुदाई करना कहते हैं.

मेरा मन भैया-भाभी की चुदाई देखने के लिए तड़प रहा था पर मेरा डर मेरी मनोकामना से ज्यादा बलवान निकला.

मैं अपनी शॉल लेकर चुपचाप धीरे से बाहर आ गयी.

जैसे ही मैं गलियारे से बाहर आकर लॉन में जाने के लिए मुड़ी, मैं अँधेरे में खड़े लम्बे-चौड़े आदमी को देख कर डर के मारे स्तंभित हो कर बिलकुल स्थिर घड़ी हो गयी.

मेरी सांस रुक कर गले में अटक गयी. मेरे दीमाग ने काम करना बंद कर दिया. अब मुझे पता चला के शिकार का जानवर कैसे महसूस करता है जब शिकारी उसके बचने सब रस्ते बंद कर देता है.

मैं डरी हुई पर शांती से खड़ी रही. वो विशालकाय मर्द धीरे-धीरे मेरी तरफ आया. जब उसका चेहरा थोड़ी सी रोशनी में आया तो मेरी जान ही निकल गयी. उस आदमी की शक्ल देख कर मेरा दीमाग चकरा गया. मुझे ज़ोर से चक्कर आने लगे. मैं घास पर गिरने ही वाले थी कि उस आदमी ने मुझे अपनी बाँहों में संभाल लिया.

मुझे थोड़ी देर बाद होश आया,और मेरी चीख निकलने वाले थी पर उस महाकाय विशाल शरीर के मालिक व्यक्ती ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मैं थोड़ी देर कुनमुनायी पर मेरा मूंह स्वाभिक रूप में अपने आप ही से खुल गया और उस मेरे बड़े मामा की जीभ मेरे मूंह में प्रविष्ट हो गयी. मैंने अपनी दोनों बाहें बड़े मामा के गले के इर्द-गिर्द डाल दीं. उन्होंने ने अपने जीभ से अंदर से मेरा सारा मूंह का अन्वेषण कर लिया. मेरी सांस फिरसे तेज़ हो गयी.

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बड़े मामा ने मुझे घास पर खड़ा कर दिया. मैं गुस्से से बोली, "बड़े मामा, आप को पता था कि वो लड़की मैं थी."

बड़े मामा ने मुस्करा कर सिर हिलाया, "नेहा बेटी, तुम्हारी सुंदरता और प्यार ने मुझे बिलकुल निस्सहाय कर दिया. मनू की खिड़की के पास तुम्हे देख कर मुझसे और बर्दाश्त नहीं हुआ."

मेरा दीमाग गुस्से से और इस नयी स्थिती से ठीक से सोच नहीं पा रहा था. मैं बड़े मामा की तरफ कमर कर खड़ी हो गयी. इस से पहले मैं कुछ बोल पाऊँ,बड़े मामा ने मुझे फिर से अपनी बाँहों में जकड़. उनके दोनों हाथों ने मेरे दोनों बड़े-बड़े उरोजों को ढक लिया. बड़े मामा ने धीरे-धीरे मेरे उरोजों को सहलाना शुरू कर दिया.

मेरी चूत में पानी भर गया. मेरा दिमाग ने बड़े मामा के हाथों के जादू के प्रभाव में नियंत्रण खो दिया. मेरी सोच-समझने की क्षमता पूरी तरह से समाप्त हो गयी. रही सही कसर बड़े मामा ने मेरे दोनों उरोज़ों को अपने बड़े-बड़े हाथों में दबा कर मुझे अपनी विशाल शरीर से भींच कर पूरी कर दी. मेरी साँसों में तूफान आ गया. बड़े मामा अपनी भरी पर प्यार भरी आवाज़ में बोले, "नेहा बेटा, यदि तुम्हें मनू की खिड़की के सामने पता होता कि वो आदमी मैं था तो फिर सब ठीक था? फिर तुम्हे यह सब स्वीकार होता?"

बड़े मामा के तर्क ने मुझे लाजवाब कर दिया और मैं अवाक रह गयी. बड़े मामा ने मुझे बचपन से अब की तरुणावस्था तक हमेशा अपनी बच्ची की तरह से प्यार किया था.

मैंने बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को अभिव्यक्त कर पाई, "बड़े मामा, मैं तो आपकी बेटी की तरह... आपकी अकेली बहन की बेटी,....भांजी हूँ."

बड़े मामा ने मेरे बालों पर प्यार से चुम्बन दिया, उनके हाथ मेरे चूचियों पर और भी कस गए,"नेहा बेटा, मैं तुम्हारे अप्सरा जैसे स्वरुप से मुग्ध सम्पूर्ण रूप से विमोह में हूँ. यदि तुम चाहो तो इसे बुद्धिलोप कह सकती हो. अब मैं तुम्हरी चूत का ख्याल अपने दिमाग से नहीं निकाल सकता. मुझे तुम्हे चोदे बिना चैन नहीं पडेगा."

मेरी सांस रुक-रुक आ रही थी. मेरे मस्तिष्क में विपरीत विचार मुझे दोनो तरफ खींच रहे थे.

"बड़े मामा, प्लीज़, मुझे थोडा समय दीजिये.मैं अभी बहुत उलझन में हूँ." मेरी आवाज़ से स्पष्ट था कि मैं रोने वाली थी.

बड़े मामा का, जो हमेशा से मेरे पिता तुल्य थे,पितृवत् प्यार उनकी मेरे ऊपर कामलिप्सा से बहुत बलवान था. उन्होंने मुझे अपने बाँहों में उठा कर अपने गले से लगा लिया.मैं उनके गले को अपनी बाँहों से ज़क्कड़ किया और जोर से रोने लगी. मैं सुबक-सुबक कर रो रही थी. बड़े मामा ने मुझे अपने से िचपका कर मेरे कमरे की तरफ चल पड़े.

कमरे में उन्होंने मुझे धीरे और प्यार से बिस्तर पर लिटा दिया. मैं अभी भी ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी. बड़े मामा भी बिस्तर में मेरे साथ लेट गए. मैंने उनकी तरफ पलट कर उन्हें अपनी बाँहों में भर उनसे लिपट गयी.

मैं बहुत देर तक रोती रही. बड़े मामा प्यार से मेरे बालों को सहलाते रहे. आखिर कर मैंने रोना बंद किया.

बड़े मामा ने मुझे सीधा लिटा कर अपना सिर अपने हाथ पर टिका कर प्यार से एकटक मेरे आंसू से मलिन चेहरे को देख रहे थे.

उनकी प्यार भरी आँखों में अपनी आँखे डालने के बाद मेरे चेहरे पर मुस्कराहट अपने आप आ गयी. मुझे अब पता चला कि मेरे बेतहाँ रोने से मेरी नाक भी बह रही थी.

बड़े मामा ने मेरी सूजी हुई आँखों को प्यार से चूमा. फिर उन्होंने मेरे पूरे मलिन चेहरे को अपने होठों और जीभ से बड़े प्यार से साफ़ कर दिया.

बड़े मामा ने अपनी जीभ से मेरी सुंदर नाक चूम और चाट कर साफ़ की. फिर उन्होंने अपनी झीभ की नोंक मेरी दोनों नथुनों के अंदर बारी-बारी से डाल कर मेरे नथुनों को साफ़ कर दिया. मैं अब खिलखिला कर हंस रही थी.

बड़े मामा ने मुझे अपनी बाँहों में भर कर धीरे-धीरे मेरे बालों को सहला कर सुला दिया. मुझे तो बहुत बाद में पता चला. बड़े मामा, जब मैं सो गयी, तो काफी देर तक मुझे सोते हुए देखते रहे. उनको मेरी गहरी नींद में मेरी ज़ोर की साँसें और मृदु खर्राटें सुन कर आत्मिक प्रसन्नता मिली.

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=========तीसरा अध्याय ===

मैं सुबह देर से ऊठी. मेरा मन बिस्तर से निकलने का नहीं हुआ. मैं जगी हुई बिस्तर में लेटी रही. करीब नौ बजे होंगे जब अंजू भाभी मेरे कमरे में मुस्कुराती हुईं दाखिल हुईं. वो अभी भी रात के गाउन में थीं. उन्हें देख कर मेरा चेहरा खिल ऊठा.

"नेहा, अभी तक बिस्तर में हो? क्या मुझे निमंत्रण दे रही हो? यदी चाहो तो मैं तुम्हारे जैसे प्यारी सुंदर नन्द को बहुत प्यार कर सकती हूँ. पर मेरा विचार है कि तुम्हे एक औरत की चूत नहीं एक बड़े मर्द का विशाल लंड चाहियें," अंजू भाभी ने हमेशा कि तरह अश्लील भाषा में मज़ाक करने शुरू कर दिए.

अंजू भाभी जल्दी से मेरे साथ बिस्तर में घुस गयीं. उन्होंने गाऊन के नीचे कोई ब्रा और जांघिया नहीं पहन रखा था.

अंजू भाभी ने मुझे अपने बाँहों में भर लिया. उन्होंने फिर बहुत प्यार से मेरे मूंह का चुम्बन लिया. अंजू भाभी भी अभी-अभी बिस्तर से निकली थीं और उन्होंने सुबह-सवेरे की कोई सफाई नहीं की थी. उनके मूंह में, मेरे मूंह के जैसे, रात के सोने बाद का मीठी सुगंध और मीठा स्वाद था.

"नेहा, क्या तुमने मनू को नीलम कि चुदाई करते हुई देखा?" अंजू भाभी सर्वज्ञ मालूम होतीं थीं.

मैंने शर्म से भरे लाल चेहरे से मनू भैया और नीलम भाभी के पहली चुदाई का विस्तृत रूप से वर्णन दिया. मैंने बड़े मामा से मिलने का कोई संकेत नहीं दिया. अंजू भाभी ने मुझे न जाने कितनी बार मुझे होठों पर चुम्बन दिया.

"नेहा, क्या तुम्हारा दिल नहीं करता, एक मूसल जैसे बड़े लंड से चुदवाने का?" अंजू भाभी हमेशा से मेरे साथ अश्लील, सम्भोग की बातें करती थीं.

मेरे चेहरे पर रात की बात याद आते ही शायद थोड़ी सी उदासी छा गयी थी. मैंने धीरे से सिर हिला कर हांमी भर दी.

"नेहा, जब तुम चाहो मुझे बता देना. मैं तुम्हारे नरेश भैया से तुम्हारी चुदाई का इंतज़ाम करवा दूंगीं."

नेहा के आखें बहर निकल पड़ीं, "भाभी, क्या कह रही हो? भैया और मैं एक दुसरे को चोदेंगें?"

अंजू भाभी ने प्यार से मेरी नाक के ऊपर चुम्बन दिया,"बहन-भाई, यह सब बकवास है. यह पिछड़े हुए दकियानूसी रुकावटें है प्यार के रास्ते मैं. यदि मैं अपने सिर्फ अपने भाई से ही शादी करना चाहती तो यह समाज मुझे रोक सकता था? नहीं. मैं और मेरे भैया दूर कहीं जा कर अपनी गृहस्थी बसा लेते. जैसे मैंने पहले बोला, नेहा, समाज के प्रतिबन्ध केवल बेवकूफ लोगों के लिये होतें हैं."

अंजू भाभी ने मेरी पूरे नाक अपने मूंह में लेकर बड़े प्यार से उसे चूसा. फिर अपनी जीभ मेरे दोनों नथुनों में डाल कर अपने थूक से मेरी नाक भर दी. मैं खिलखिला कर हंस रही थी.

"नेहा, सच में. जब तुम तैयार हो मुझे बता देना. तुम्हारे नरेश भैया अपने को खुशकिस्मत समझेंगें यदि तुम उनसे अपनी चूत मरवाने का निर्णय करोगी." अंजू भाभी ने मुझे प्यार से चूमा और नाश्ते के लिए तैयार होने के लिये कह कर खुद तैयार होने के लिए अपने बंगले की तरफ चल दीं.

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मैं नहा-धो कर तैयार हो गयी. मैंने एक हलके नीले रंग का कुरता और सफ़ेद सलवार पहनी. मैंने कुरते के नीचे ब्रा नहीं पहनी क्योंकी मेरी चूचियां बड़े मामा से कल रात मसलवाने के बाद अभी भी दर्द कर रहीं थीं. मैंने चुन्नी लेने की की ज़रुरत भी नहीं समझी. नाश्ते के लिए जाते वक़्त जब मैं लम्बे गलियारे में थी तो किसीने मुझे पीछे से पकड़ कर नज़दीक के कमरे में खींच लिया. अब मुझे समझने मे कुछ ही क्षण लगे की ऐसा तो सिर्फ एक व्यक्ती ही कर सकते थे. और वास्तव में मेरे बड़े मामा ही ने मुझे खींच कर खाली कमरे मे अंदर ले गये. मेरी साँसे तेज़-तेज़ चलने लगी. मामाजी ने मेरी दोनों उरोज़ों को अपने बड़े-बड़े हाथों से ढक लिया. मैंने अपने शरीर को उनके बदन पर ढीला छोड़ दिया. मेरे पितातुल्य बड़े मामा ने मेरे दोनों उरोज़ों को पहले धीरे-धीरे सहला कर फिर काफी जोर से मसलना शुरू कर दिया. हम दोनों ने अब तक एक भी शब्द नहीं बोला था. मेरी तरुण अवयस्क शरीर मे वासना की आग फिर से भड़क उठी. मेरी आँखें कामंगना के उद्वेग से अपने आप बंद हो गयीं. मेरी सांस अब बहुत ज़ोर से चल रही थी. बड़े मामा ने कुरते के ऊपर से ही मेरे दोनों उरोज़ों की घुन्दीयाँ अपने अंगूठे और पहली उंगली के बीच मे दबा कर उनको उमेठने लगे. मेरे मूंह से अविराम सिस्कारियां निकालने लगीं.

बड़े मामा का एक हाथ मेरी चूची को अविराम मसलता रहा. उनका दूसरा हाथ मेरे कुरते को ऊपर खींचने लगा. उन्होंने मेरे कुरते को पेट तक उठा कर मेरे मुलायम गुदाज़ उभरे हुए पेट की कोमल खाल पर अपने हाथ फिराने लगे. उनका हाथ धीरे-धीरे मेरी सलवार के नाड़े तक पहुच गया. मेरा हृदय अब रेल के इंजन की तरह धक-धक रहा था. मैं वासना के ज्वार मे भी डर रही थी की कोई हम दोनो को इस अवस्था मे पकड़ ना ले. मेरे मुंह से बड़े मामा को रोकने के लिए शब्द निकल कर ही नहीं दिये.

बड़े मामा ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और मेरी सलवार एक लहर मे मेरी टखनों के इर्द-गिर्द इकट्ठी हो गयी. मामाजी ने मेरे सफ़ेद झान्घिये के अंदर अपना हाथ डाल दिया. मैं शरीर मे एक बिजले सी कौंध गयी. मामाजी की उँगलियों ने मेरे घुंघराले झांटों से खेलने लगीं. मेरी दिल की धड़कन अब मेरे छाती को फाड़ने लगी. मेरी सांस अब रुक-रुक कर आ रही थी. मामाजी ने अपनी उँगलियों से मेरी चूत के भगोष्ठ को भाग कर मेरी चूत के मूंह पर अपनी उंगली रख दी. उनकी उंगली ने धीरे से मेरे बिलकुल गीली चूत के अंदर जाने का प्रयास किया.मैं दर्द और घबराहट से छटपटा उट्ठी.मामाजी ने अपनी उंगली को हटा कर मेरे भागान्कुर को सहलाने लगे. मेरा शरीर फिर से ढीला होकर मामाजी के शरीर पर ढलक गया. मामाजी ने कल रात की तरह मेरे चूत की घुंडी को अपनी उंगली से सहलाना शुरू कर दिया. मेरी चूत मे से लबालब रतिरस बहने लगा. मामाजी ने एक हाथ से मेरी चूची को मसला और दुसरे हाथ से मेरी भग-शिश्न को कस कर मसलना शुरू कर दिया. मेरे तरुणावस्था की नासमझ उम्र मे मेरी वासना की कोई सीमा नहीं थी. मैं अपने चरम-आनन्द की प्रतीक्षा और कामना से और भी उत्तेजित हो गयी. बड़े मामा के अनुभवी हाथों और उँगलियों ने मुझे कुछ ही देर मे पूर्ण यौन-आनन्द के द्वार पर पहुंचा दिया. मेरी चूत का पानी मेरी झंगों पर दौड़ रहा था. मेरी कामुकता अब चरम सीमा तक पहुँच चुकी थी. मेरे कुल्हे अब अबने-आप आगे-पीछे होने लगे. मेरी हलक से एक छोटी सी चीख निकल पडी. मेरे बड़े मामा ने मेरी चूत को अपने हाथों के जादू से मेरे आनन्द की पराकाष्ठा को मेरे शरीर मे एक तूफ़ान की तरह समाविष्ट कर दिया. मेरी चूत मे से एक तीखा दर्द उट्ठा और मेरी दोनों उरोज़ों मे समा गया. मुझे लगा जैसे मेरी पेट मे कोई तेज़ ऐंठन है जो बाहर निकलना चाह रही है.

अचानक मेरा शरीर बिलकुल ढीला पड़ गया. मेरे घुटने मेरा वज़न उठाने के लिए अयोग्य हो गये. मेरे कामोन्माद के स्खलन ने मुझे बहुत क्षीण सा बना दिया. मामजी ने मुझे अपनी बाँहों मे लपेटे रखा. जब मुझे थोडा सा होश आया तो उन्होंने बिना कुछ बोले मुझे अपनी बाँहों से मुक्त कर कमरे से बाहर चले गये.

मैं बहुत देर तक अपनी उलझन भरी अवस्था मे अर्धनग्न खाली कमरे मे खड़ी रही. फिर मैंने धीरे-धीरे थके ढंग से अपनी सलवार ऊपर खींच कर नाड़ा बांधा. मैं थोड़ी देर चुपचाप अकेले खड़ी रही. फिर मैं तेज़-तेज़ क़दमों से डाइनिंग-रूम की तरफ चल पडी.

Written by: SEEMASINGH

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