Category: Incest/Taboo Stories

नेहा का परिवार 05

by SEEMASINGH©

नेहा का परिवार

लेखिका:सीमा

कहानी के सारे पात्र कहानी विवरण के समय अट्ठारह साल के या उसके ऊपर हैं।

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यह कहानी नेहा के किशोरावस्था से परिपक्व होने की सुनहरी दास्तान है।

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दोस्तों, मैं तो बस बड़े मामाजी,दुसरे परिवार के सदस्यों और नेहा के प्यार का विस्तृत वर्णन ही कर रहीं हूं। उन्हें किस किस तरह तरह की रति-क्रिया से सुख मिलता है उस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं है। आशा है कि पाठकगण भी उनकी निजी काम-इच्छाओं का आदर करेंगे और बुरा नहीं मानेगें।

सीमा

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Tags : Incest, Grandfather, Granddaughter, Father, Daughter, Lesbian, Sister/Sister, BIL/SIL, M/S, Watersports

Chapter 5

******************१२*********************

मैंने अपने शयन-कक्ष सुइट में पहुच कर जल्दी से बैग में कुछ कपड़े, जूते, अन्त्वस्त्र डाल लिए. मैं केवल लम्बी टी शर्ट पहन कर बिस्तर में रज़ाई के अंदर घुस गयी.

मुझे सारी रात ठीक से नींद नहीं आयी. मैं बिस्तर में उलट-पलट कर सोने के कोशिश कर रही थी, घड़ी में बारह बजे थे.मेरे शयन-कक्ष के दरवाज़े खोल कर अंजू भाभी जल्दी से मेरे बिस्तर में कूद कर रज़ाई में घुस कर मेरे से लिपट गयीं. अंजू भाभी ने सिर्फ एक झीना सा रेशम का साया पहना हुआ था.

"अंजू भाभी, आप को तो सुबह जाने की तय्यारी करनी थी," मैं भी अंजू भाभी के साथ ज़ोर से लिपट गयी.

अंजू भाभी ने मुझे पलट कर पीठ पर सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर लेट गयीं. उन्होंने ने मेरे होठों पर अपने गरम कोमल होंठ रख कर धीरे से फुसफुसाईं,"मेरी प्यारी और अत्यंत सुंदर नन्दरानी, तुम्हे प्यार से विदा किये बिना तो मैं नहीं जा सकती थी."

अंजू भाभी ने अपने जीभ से मेरे होंठों को खोलकर मेरे मूंह में अपनी जीभ डाल कर मेरे मसूड़ों को प्यार से सहलाया.उनका मीठा थूक मेरे मूंह में बह रहा था. मैंने भी अपनी जीभ उनकी जीभ से भिड़ा दी.

अंजू भाभी ने मेरी टीशर्ट ऊपर कर मेरे फड़कते हुए मोटे पर अभी भी पूर्ण तरह से अविकसित स्तनों को उज्जागर कर दिया। उनका हाथ मेरे दोनों उरोजों को बारी बारी से लगा। मेरी सिसकारी भाभी के मुंह में समा गयी। उन्होंने मेरा एक स्तन अपने हाथ से मसलना शुरू कर दिया औए अपनी जीभ ज़ोर से मेरे मुंह में घुसेड़ने लगीं।

मेरी चूत मेरे रस से भर गयी और मेरा रस चूत से बहार निकल कर मेरी जांघों को भिगोना लगा।

अंजू भाभी के काफी लम्बे चुम्बन से मेरी सांस कामोन्माद से रुक-रुक कर आ रही थी. अंजू भाभी ने अंत में मुझे मुक्त कर दिया. मैंने भाभी की मीठी लार निगल कर नटखटपने से कहा, "आज क्या बात है, अप्सरा से भी सुंदर मेरी भाभी इस वक़्त नरेश भैया से नहीं चुद रहीं?" मैंने अपनी छोटी सी किशोर-उम्र में पहली बार अश्लील शब्द का उपयोग किया.

अंजू भाभी खिलखिला कर हंसी और मुझे जोर से चूमने के बाद बोलीं, "मेरी छोटी सी, गुड़िया जैसी प्यारी नन्द. आपके भैया मेरी चूत और गांड दोनों मारने के बाद सो गएँ हैं. मैंने उनसे तुम्हारे बारे में पूछ लिया है. तुम्हारे भैया ने सन्देश भेजा है की जब तुम्हारा मन चाहे वो अत्यंत खुशी से तुम्हारी चुदाई के लए तैयार हैं. मैं तुम्हे यह अकेले में बताना चाहती थी. तुम बस हमें फ़ोन कर देना. तुम्हारे भैया और मैं कुछ भी बहाना बना कर तुम्हे अपने पास बुला लेंगे."

मेरी चूत बिलकुल गीली हो गयी. मैंने भाभी को प्यार से चूमा, "अंजू भाभी, क्या मैं आपकी ताज़ी चुदी हुई चूत और गांड देख सकती हूँ?" मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं अब कामेच्छा से इतनी प्रभावित हो चुकी थी कि अब मुझे भाभी से इस तरह की बातें करते हुए कोई शर्म नहीं आ रही थी.

भाभी ने हंसते हुए अपना साया ऊपर किया और दोनों घुटने मेरे सिर के दोनों तरफ रख कर अपनी घने घुंघराले झांटों से भरी सुगन्धित चूत को मेरे मूंह के ठीक ऊपर रख दिया. भाभी ने अपने हाथों से अपनी यौनी के फ़लकों को खोल कर मेरे सामने अपनी चूत का गुलाबी प्रवेश-मार्ग मेरे सामने कर दिया, "नेहा, यदी चाहो तो अपनी जीभ से अपने भैया के वीर्य का स्वाद चख सकती हो."

भाभी की चूत की नैसर्गिक सुगंध से मेरे होश गुम हो गए.

मेरी जीभ अपनी मर्ज़ी से भाभी की चूत के प्रवेश को धीरे से चाटने लगी. मुझे भाभी की चूत से तेज़, तीखा-मीठा स्वाद मिला. भाभी ने नीचे की तरफ ज़ोर लगाया मानो पखाना करना करना चाहतीं हों. उनकी खुशबू भरी चूत से धीरे-धीरे सफ़ेद, चिपचिपा लसदार पदार्थ बह कर मेरी जीभ पर ढलक गया. मैंने जल्दी से अपना मूंह बंद कर लिया. मेरे नरेश भैया का वीर्य, भाभी के रति-रस से मिलकर विचित्र पर मदहोश करने वाले स्वाद से मेरा मूंह भर गया.

भाभी बोलीं, "नेहा मैं तुम्हरे भैया के वीर्य के स्वाद की दासी बन चुकी हूँ. मैं कोशिश करती हूँ शायद मेरी गांड में से भी थोड़ा सा निकल जाये."

इससे पहले कि मैं कुछ भी बोल पाऊँ भाभी कि कोमल हल्की-भूरी गांड का छोटा सा छेद मेरे खुले मूंह पर था. भाभी ने अपने दोनों नाज़ुक छोटे-छोटे हाथों से अपने भारी, मुलायम, गुदाज़ नितिम्बों को फैला दिया. भाभी बड़ी सी सांस भर कर ज़ोर से अपनी गांड का छेद खोलने की कोशिश करने लगीं. उनकी गांड का छल्ला धीरे-धीरे खुलने लगा. मुझे उनके गांड के भीतर की सुगंध से मदहोशी होने लगी. कुछ देर में ही भैया का लसलसा वीर्य की एक छोटी सी धार भाभी की गांड से बह कर मेरे मूंह में गिर पडी. इस बार भैया के वीर्य में भाभी की गांड का स्वाद शामिल था. मैंने लोभी की तरह भैया का वीर्य सटक लिया.

अंजू भाभी की गांड का छल्ला मेरे मुंह के ऊपर खुल-बंद हो रहा था। उनकी गांड के अंदर की गुलाबी परत जब भाभी जोर लगा कर अपनी गांड खोलती थीं तो मुझे दिखने लगती थी। मेरे बिना सोचे समझे और किये मेरी जीभ स्वतः मेरे मुंह से निकल भाभी की गांड के फूले छल्ले को चूमने लगी अंजू भाभी की सितकारी निकल गयी, "आह, नेहा, तुमने ...... आह, .... नेहा फिर से मेरी गांड को अपनी जीभ से चाटो।"

मैं गर्व से फूल गयी। मेरी जीभ ने अंजू भाभी को आनंद दिया इस बात से मैं उत्तेजित हो गयी। मैंने दोनों हाथों से भाभी के फूले बड़े मुलायम चौड़े चूतड़ पकड़ कर उनकी गांड को अपने मुंह के पास खींच लिया। मेरी जीभ ने उनके गांड के छिद्र को चाटना शुरू कर दिया।

अंजू भाभी की सिस्कारियां अब ऊंची होने लगीं।

मैंने उनकी फड़कती हुई गांड के छेड़ में अपनी जीभ की नोक अंदर डालने कोशिश शुरू कर दी। मेरी महनत का मुझे शीघ्र ही इनाम मिल गया। भाभी ने कराह कर अपनी गांड को ज़ोर लगा कर खोलनी की कोशिश की और मेरी तैयार जीभ उनकी गांड के अंदर समा गयी। मुझे उनकी गांड की मादक सुगंध तो पहले ही लुभा गयी थी अब उनकी गांड के अंदर का विचित्र स्वाद भी मुझे लुभाने लगा।

भाभी ने अपनी गांड धीरे धीरे मेरी जीभ के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया।

उनकी हर सिसकारी मुझे प्रोत्साहन दे रही थी। थोड़ी देर में अंजू भाभी करह आकर घुटी घुटी आवाज़ में बोलीं, "नेहा अब मेरी चूत चाटो। मुझे अपने मीठे मुंह से चूस कर झाड़ दो।"

भाभी के आदेश ने मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। भाभी ने अपने चूतड़ हिला कर अपनी गीले घुंघराले रेशमी झांटों से ढकी योनी को मेरे मुंह के ऊपर सटा दिया। मैंने नादानी में उनकी सुगन्धित प्यारी चूत को अपने मुंह में भर कर कस कर चूम लिया। भाभी के गले से धीमी सी चीख निकल पड़ी। पहले तो मुझे लगा कि मैंने अपनी प्यारी सुंदर भाभी की चूत को चोट पहुंचा दी थी। पर जल्दी ही भाभी ने धीरे से कहा, " नेहा, तुम तो बहुत अच्छी चूत चूस रही हो। और ज़ोर से मेरी चूत चूसो। मेरी छूट को काट खाओ।

मैंने हिम्मत कर उनके मोटे, मुलायम ढीले लटके हुए गुलाबी भगोष्ठों को अपने मुंह में भर पहले तो धीरे धीरे से चूसा फिर भाभी की सिस्कारियां सुन कर मेरा साहस बड़ गया और मैंने भाभी के दोनों मोटे मुलायम भागोश्थों को अपने होंठों में दबा कर ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया।

अंजू भाभी की सिस्कारियां अब कराहट में बदल गयीं, "आह .. ने .. एहा ...ऐसे ही चूसो। और ज़ोर से नेहा। और ज़ोर चूस कर दर्द करो।मैं जल्दी से झड़ने वाली हूँ।"

अंजू भाभी की गांड का छल्ला मेरे मुंह के ऊपर खुल-बंद हो रहा था। उनकी गांड के अंदर की गुलाबी परत जब भाभी जोर लगा कर अपनी गांड खोलती थीं तो मुझे दिखने लगती थी। मेरे बिना सोचे समझे और किये मेरी जीभ स्वतः मेरे मुंह से निकल भाभी की गांड के फूले छल्ले को चूमने लगी अंजू भाभी की सितकारी निकल गयी, "आह, नेहा, तुमने ...... आह, .... नेहा फिर से मेरी गांड को अपनी जीभ से चाटो।"

मैं गर्व से फूल गयी। मेरी जीभ ने अंजू भाभी को आनंद दिया इस बात से मैं उत्तेजित हो गयी। मैंने दोनों हाथों से भाभी के फूले बड़े मुलायम चौड़े चूतड़ पकड़ कर उनकी गांड को अपने मुंह के पास खींच लिया। मेरी जीभ ने उनके गांड के छिद्र को चाटना शुरू कर दिया।

अंजू भाभी की सिस्कारियां अब ऊंची होने लगीं।

मैंने उनकी फड़कती हुई गांड के छेड़ में अपनी जीभ की नोक अंदर डालने कोशिश शुरू कर दी। मेरी महनत का मुझे शीघ्र ही इनाम मिल गया। भाभी ने कराह कर अपनी गांड को ज़ोर लगा कर खोलनी की कोशिश की और मेरी तैयार जीभ उनकी गांड के अंदर समा गयी। मुझे उनकी गांड की मादक सुगंध तो पहले ही लुभा गयी थी अब उनकी गांड के अंदर का विचित्र स्वाद भी मुझे लुभाने लगा।

भाभी ने अपनी गांड धीरे धीरे मेरी जीभ के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया।

उनकी हर सिसकारी मुझे प्रोत्साहन दे रही थी। थोड़ी देर में अंजू भाभी करह आकर घुटी घुटी आवाज़ में बोलीं, "नेहा अब मेरी चूत चाटो। मुझे अपने मीठे मुंह से चूस कर झाड़ दो।"

भाभी के आदेश ने मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। भाभी ने अपने चूतड़ हिला कर अपनी गीले घुंघराले रेशमी झांटों से ढकी योनी को मेरे मुंह के ऊपर सटा दिया। मैंने नादानी में उनकी सुगन्धित प्यारी चूत को अपने मुंह में भर कर कस कर चूम लिया। भाभी के गले से धीमी सी चीख निकल पड़ी। पहले तो मुझे लगा कि मैंने अपनी प्यारी सुंदर भाभी की चूत को चोट पहुंचा दी थी। पर जल्दी ही भाभी ने धीरे से कहा, " नेहा, तुम तो बहुत अच्छी चूत चूस रही हो। और ज़ोर से मेरी चूत चूसो। मेरी छूट को काट खाओ।

मैंने हिम्मत कर उनके मोटे, मुलायम ढीले लटके हुए गुलाबी भगोष्ठों को अपने मुंह में भर पहले तो धीरे धीरे से चूसा फिर भाभी की सिस्कारियां सुन कर मेरा साहस बड़ गया और मैंने भाभी के दोनों मोटे मुलायम भागोश्थों को अपने होंठों में दबा कर ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया।

अंजू भाभी की सिस्कारियां अब कराहट में बदल गयीं, "आह .. ने .. एहा ...ऐसे ही चूसो। और ज़ोर से नेहा। और ज़ोर चूस कर दर्द करो।मैं जल्दी से झड़ने वाली हूँ।"

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मैं अब भाभी की वासना की आग में शामिल हो गयी। मैंने अपनी पहले एक उंगली उनकी गांड में डाली फिर उनकी कसी हुई गांड में एक और उंगली डाल दी। मैं उसी समय उनके भगोष्ठों को अपने दांतों में हलके से भींच कर अपने मुंह के अंदर खींचने लगी।

अंजू भाभी का सारा शरीर कांपने लगा। उनकी ऊंची चीख कमरे में गूँज उठी। उन्होंने अपने गांड मेरी उंगलीयों पर और अपनी चूत मेरे मुंह पर कास कर दबा दी। मेरी सांस भाभी के भारी चूतडों के नीचे दबकर घुट रही थी। पर भाभी का तड़पता शरीर चरमोत्कर्ष के लिए उत्सुक था। उनकी चूत ने अचानक मेरे मुंह में मीठा रस की मानो नाली खोल दी। मेरा मुंह भाभी के रति-रस से बार बार भर गया। मैंने जल्दी जल्दी उसे पीने लगी पर फिर भी भाभी की चूत से झड़ते रस ने मेरे मुंह को पूरा भिगो दिया।

भाभी का कम्पित शरीर बड़ी देर में संतुलित हुआ। उन्होंने लपक कर पलती ली और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया, "नेहा, ऐसे तो मैं किसी और स्त्री के चूसने से कभी भी नहीं आयी। तुम्हारे मीठे मुंह में तो जादू है। अब मुझे अपनी सुंदर ननद का एहसान चुकाना होगा।"

उन्होंने ने अपना साया अतार कर फैंक दिया।

इससे पहले कि मैं समझ पाती अंजू भाभी फिर से पलट कर मेरे ऊपर लेट गयी। उन्होंने मेरी भरी गुदाज़ जांघों को मोड़ कर पूरा फैला दिया। मेरी गीली चूत पूरी खुल कर भाभी के सामने थी। मेरी टीशर्ट मेरे पेट के ऊपर इकठ्ठी हो गयी थी।

उनके मोटी मादक जांघों ने मेरे चेहरे को कस कर जकड़ कर एक बार फिर से मेरे मुंह के ऊपर अपनी मीठी रस भरी चूत को लगा दिया।

भाभी ने मेरी चूत को जोर से चूम कर अपनी जीभ से मेरे संकरी चूत के दरार को चाटने लगीं। एक रात में मेरी चूत दूसरी बार चूस रही थी।

मेरी सिसकारी भाभी की चूत के अंदर दफ़न हो गयी। मैंने भी ज़ोरों से भाभी की चूत के ऊपर अपने जीभ, होंठ और दांतों से आक्रमण कर दिया।

भाभी ने मेरी चूत को अपनी जीभ से चाट कर मेरे भग-शिश्न को रगड़ने लगीं। मेरी गांड स्वतः उनके मुंह के ऊपर मेरी चूत को दबाने लगीं।

मैंने भाभी का मोटा, तनतनाया हुआ भाग-शिश्न अपने मुंह में ले कर चूसते हुए अपने दो उंगलियाँ उनकी कोमल छूट में घुसेड़ दीं।

मैंने अपनी उँगलियों से भाभी की चूत मारते हुए उनके क्लिटोरिस को बेदर्दी सी चूसना, रगड़ना और कभी कभी हलके से काटना शुरू कर दिया।

भाभी मेरी चूत चाटते हुए मेरी तरह सिस्कारिया भर रहीं थी।

भाभी अपनी एक उंगली से मेरी गांड के छिद्र को सहलाने लगीं। मैं बिदक कर अपने चूतड़ बिस्तर से ऊपर उठा कर उनके मुंह में अपनी चूत घुसाने की कोशिश करने लगी।

मुझे पता नहीं कितनी देर तक हम ननद-भाभी एक दुसरे के साथ सैम-लैंगिक प्यार में डूबे रहे। अचानक मेरी चूत में ज़ोर से जलन होने लगी। मैं समझ गयी कि मैं अब जल्दी झड़ने वाली हूँ। मैंने भाभी के भाग-शिश्न को फिर से अपने होंठों से खींचना उमेठना शुरू कर उनकी चूत को अपनी उंगलियाँ से तेज़ी से मारने लगी।

भाभी और मैं लगभग एक साथ झड़ने लगीं। मारी चूत से मानों कि रस का झड़ना फुट उठा। भाभी की चूत ने एक बार फिर से इतना रस मेरे मुंह में निकाला कि मैं मुश्किल से बिना व्यर्थ किये पी पायी।

हम दोनों बहुत देर तक एक दुसरे की जांघों के बीच अपना मुंह दबा कर हांफती हुई साँसों को काबू में करने का प्रयास कर रहीं थीं।

आखिकार थकी हुई सी भाभी पलटीं और मुझे बाँहों में लेकर अनेकों बार चूमने लगीं। मैंने भी भाभी के चुम्बनों का जवाब अपने चुम्बनों से देना प्रारंभ कर दिया।

कुछ देर बाद भाभी मेरे ऊपर से फिसल कर मेरे साथ लेट गयीं और मेरे होंठों पर अनेकों चुम्बन दिए.

कुछ देर बाद मैंने भाभी के साथ हुए सैम-लैंगिक अगम्यागमन को नज़रंदाज़ करने के लिए शरारत से भाभी के दोनों निप्पलों को कास कर दबा दिया और नटखटपन से बोली, "अब तो मुझे भैया से चुवाना ही पड़ेगा. उनका ताज़ा मीठा-नमकीन वीर्य तो मुझे हमेशा के लिए याद रहेगा."

मेरी भाभी ने मेरा चेहरा हाथों में ले कर धीरे से बोलीं,"नेहा, तुम्हारी स्वार्गिक सौन्दर्य के लए तो भगवान् भी लालची बन जायेंगे. नेहा, तुम्हें शायद पता न हो पर इस घर में सारे पुरुष तुम्हे प्यार से चोदने से पीछे नहीं हटेंगें. कभी तुमने अपने पापा को ध्यान से देखा है. उनके जैसा पुरुष तो किसी भी स्त्री का संयम भंग कर सकता है. मुझे तो पता नहीं कि तुम कैसे एक घर में रह कर भी उनसे चदवा कर उनकी दीवानी नहीं बन गयीं. मैं तो अबतक अपना कौमार्य उनको सम्पर्पित कर देती."

अब मैं बिलकुल शर्म से तड़प उठी. ममेरे भई से चुदवाने की अश्लील बात एक तरफ थी पर अपने प्यारे पापा के साथ...[ऊफ पापा के साथ कौटुम्बिक-व्यभिचार...भगवान् नहीं..नहीं]... मेरा दिमाग पागल हो गया.

"भाभी प्लीज़ आप ऐसे नहीं बोलिए. मुझे बहुत शर्म और परेशानी हो रही है,"

भाभी ने प्यार से मुझे पकड़ के एक लम्बा सा चुम्बन दिया और मुझसे विदा ली, "नेहा, तुम कल बाबूजी [बड़े मामा] के साथ मछली पकड़ने जा रही हो। यह अच्छा मौक़ा है अपने बड़े मामा से अपनी कुंवारी चूत फड़वाने का। उन्हें पटाने में तुम्हें ज़्यादा मेहनत भी नहीं करनी होगी।"

मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। क्या अंजू भाभी को शक हो गया था की मेरे और बड़े मामा के बीच में कुछ चल रहा था?

मैंने बड़ी बहादुरी से अपना डर छुपा कर मुस्करा कर बोली, "भाभी, आप को कैसे पता की बड़े मामा को पटाने में कम मेहनत लगेगी? क्या अपने ससुरजी के साथ भी चुदाई की हुई है?"

मैंने देखा की कुछ क्षणों के लिए अंजू भाभी भाभी सकपका गयीं। पर वो मुझे बहुत परिपक्व थीं। उन्होंने संभल कर बात सम्भाल ली, "अरे, मेरी छोटी सी नन्द रानी तो बड़ी तड़ाके से बोलना सीख गयी है।"

उन्होंने झुक कर मेरी नाक की नोक को प्यार से काट कर मेरे खिलखिला कर हँसते हुए मुंह को उतने प्यार से ही चूम लिया, " नेहा, मुझे बेटी पैदा करने का सौभाग्य हुआ तो मैं प्रार्थना करूंगी की वो तुम्हारे जितनी प्यारी और सुंदर हो।" उन्होंने मेरे मुंह पर से अपने मीठे होंठ लगा कर चूम लिया। मैं उनके प्यार से अभिभूत हो गयी।

अंजू भाभी ने मुझे मुक्त किया और द्वार की तरफ चल दीं। पर अंजू भाभी भी अंजू भाभी थीं। उन्होंने दरवाज़े के पास मुड़ कर मुझे मुस्करा कर देखा और मीठी सी आवाज़ में बोलीं, "नेहा, तुम्हारे बड़े मामा मेरे ससुर हैं और मैं उनके बेटे की अर्धांग्नी हूँ। मुझे अपने ससुर जी के सोचने के तरीके के बारे में काफी-कुछ पता है। सो मेरी बात भूलना नहीं। यदि बड़े मामा तुम्हारे इशारों को ना समझें तो तुम्हारे नरेश भैया तो तैयार हैं हीं।"

मेरा मन तो हुआ कि मैं अंजू भाभी को वापिस बुला कर सब बता दूं। हो सकता है की वो मुझे कुछ बड़े मामा से चुदवाने में मदद करने की कोई सलाह देदें। पर फिर मुझे तुरंत विचार आया कि बड़े मामा भी तो इस प्रसंग में शामिल हैं और उनकी आज्ञा के मुझे किसी को भी बताने का अधिकार नहीं है।

मैं इस उहापोह में पड़ी रही पर कुछ ही देर में मैंने अपने मस्तिष्क को समझा दिया। आखिरकार मैं निद्रादेवी की गोद में गिरकर गहरी नींद में शांति से सो गयी.

***************१३******************

सुबह मैंने जल्दी से नहाने के बाद अपने बालों को खुला छोड़ दिया. मैंने सफ़ेद कॉटन की ब्रा और जांघिया चुनकर हलके गुलाबी रंग का कुरता और सफ़ेद सलवार पहनी. उसके ऊपर मैंने सफ़ेद झीनी सी चुन्नी गले पर लपेट ली. दुपट्टे के नीचे मेरे बड़े उरोज़ और भी उभरे हुए प्रतीत होते थे. मैंने अपने गोरे छोटे-छोटे पैरों पर हलके भूरे मुलायम चमड़े की फ्लैट हील की रोमन सैंडल डाल ली.

नौकर ने मेरा बैग बड़े मामा की मर्सिडीज़ ४x४ में रख दिया. मुझे पता था की इस गाड़ी में भी हमारे परिवार की दसियों गाड़ियों की तरह काले शीशे का एकांत या प्राइवेसी विभाजन था.

बाहर सब लोग नरेश भैया और अंजू भाभी को विदा करने के लिए इकट्ठा थे. नरेश भैया ने मुझे दूर से देखकर तेज़ी से मेरी तरफ आये और अपने बाँहों में भर लिया. भैया ने मुझे दोनों गालों पर चूमा और मेरे कान में धीरे से फुसफुसाए, "नेहा, भाभी ने मुझे सब समझा दिया है. मैं तुम्हारे फोने का बेसब्री से इंतज़ार करूंगा." मैं शर्मा कर उनसे लिपट गयी.

अंजू भाभी भी नज़दीक आ कर मुझसे गले मिली और मेरे चुपके से मेरे नितिम्बों को दबा दिया.

भैया-भाभी के जाने के बाद बड़े मामा और मैं भी रवाना हो गए. पीछे हमारा परिवार एक दुसरे को गोल्फ में हराने की बातें में व्यस्त हो गया.

"नेहा बेटा, आप बहुत ही सुंदर लग रही हो," बड़े मामा की प्रशंसा ने मुझे शर्म से लाल कर दिया.

बड़े मामा ने खाकी पतलून, आसमानी रंग की कमीज़ और गहरे नीले रंग का [नेवी ब्लू]कोट पहना था. वृहत्काय बड़े मामा अत्यंत हैंडसम और सुन्दर लग रहे थे.

"बड़े मामा आप ने ड्राईवर को क्यों नहीं लिया? हमें रास्ते में भी आपके साथ समय मिल जाता." मैंने शर्मा कर बड़े मामा के साथ किसी पत्नी जैसे अंदाज़ शिकायत की.

बड़े मामा खूब ज़ोर से हंसें, "नेहा बेटा. आप भूल गए ड्राईवर होता तो वो भी बंगले में ही रहता. आप फ़िक्र नहीं करो, हम वहां पहुच कर आपकी सारी शिकायत मिटा देंगें."

मैंने शर्म से अपना सिर झुका लिया. मैं अपने अक्षत-यौन को नष्ट करने के लिए कितनी बेशर्मी से बड़े मामा के साथ समरक्त-रतिसंयोग के लए उत्सुक थी.

बड़े मामा ने प्यार से मेरे खुले बालों को सहलाया.

बड़े मामा ने मुझे सारे रास्ते अपने मज़ाकों से हंसा-हंसा के मेरे पेट में दर्द कर दिया. हमने रास्ते में एक ढाबे में रुक कर नाश्ता किया. बड़े मामा को पता था कि मुझे सड़क के साथ के ढाबों में खाना खाना बहुत पसंद था. मुझे आलू के परांठे, अचार, अंडे के भुजिया किसी पांच सितारा होटल के खाने से भी अच्छी लगे. बड़े मामा मुझे लालचपने से खाते हुए पिताव्रत प्यारभरी आँखों से देखते रहे.

मैंने उनकी आँखों में भरे प्यार को अस्सानी से महसूस किया और उनका ध्यान बटाने के लिए बोली, "बड़े मामा, प्लीज़ थोडा खाइए ना. बेचारे ढाबे वाला समझेगा कि आपको उसका खाना अच्छा नहीं लगा."

बड़े मामा ने धीरे से कहा,"नेहा बेटा, काश तुम मेरी बेटी होतीं. तुम्हारे जैसी बेटी पाने के लिए मैं दुनिया का हर धन त्याग देता." जबसे मुझे याद है मेरे जन्म के बाद वो इस बात को कई बार कह चुके थे.

जब मनू भैया सिर्फ एक साल के थे तभी बड़ी मामी का देहांत हो गया था. उन्नीस साल तक मामा ने अपनी अर्धांग्नी की क्षति का दर्द सीने में छुपा कर अपने दोनों बेटों के लिए पूरा समय दे दिया.

मैंने अपना छोटा सा हाथ बड़े मामा के बड़े मज़बूत हाथ पर रखा, "बड़े मामा, आप मेरे पित-तुल्य हैं. मैं आपकी बेटी के तरह ही तो हूँ. इसका मतलब है कि आप मुझे अपनी बेटी नहीं समझते?"

बड़े मामा ने मेरा छोटा सा हाथ अपने बड़े हाथ में लेकर प्यार से अपने होंठों से चूम कर बोले, "आइ ऍम सॉरी,बेटा. मैं बुड़ापे में थोडा बुद्धू हो चला हूँ. तुम तो मेरी बेटी ही नहीं हमारे पूरे खानदान के अकेली अनमोल हीरा बेटी हो."

बड़े मामा सही कह रहे थे. मैं अपने पूरे परिवार में इकलौती बेटी थी. छोटे मामा और बुआ के कोई भी बच्चा नहीं था. बड़े मामा कभी दूसरी शादी का विचार भी मन में नहीं लाये थे. मेरे मम्मी पापा ने पता नहीं क्यों दूसरे बच्चे के लए प्रयास नहीं किया. मुझे हमेशा छोटे बहन-भाई ना होने का अहसास होता रहता था.

मैंने बड़े मामा का ध्यान इस दर्द भरी स्थिती से हटाने के लिए कृत्रिम रूप से इठला कर बोली, "बड़े मामा आप अभी बूढ़े नहीं हो सकते. अभी तो आपको अपनी बेटी जैसी भांजी का कौमर्यभंग करने के बाद ज़ोर से चुदाई करनी है."

बड़े मामा अपनी भारी आवाज़ में ज़ोर से हंस पड़े, "नेहा बेटा, बंगले में पहुच कर आपकी चूत और गांड की आज शामत आ जायेगी. मेरा लंड आपकी चूत और गांड बार बार चोद कर उनकी धज्जीयां उड़ा देगा." बड़े मामा ने अश्लील बातों से मुझे रोमांचित कर दिया.

बड़े मामा और मैं दो घंटे की यात्रा में कभी पिता-बेटी की तरह बात करते तो कभी अत्यंत अश्लील और वासनामयी वक्रोक्ती से एक दूसरे की कामंग्नी को और भी भड़का देते थे.

"मामाजी यदि किसी ने सुरेश अंकल या नम्रता आंटी से पूछ लिया तो क्या होगा?" मुझे बड़े मामा की इज्ज़त की बहुत फिक्र थी.

"नेहा बेटा, मैंने सुरेश को बताया कि मैं एक बहुत खूबसूरत, अत्यंत विशेष नवयुवक स्त्री को परिवार की परिधी से दूर मिलने के लए आ रहा हूँ. दोनों ने समझ लिया कि ये विशेष स्त्री हो सकता है कि एक बार के बाद मुझसे मिलना न चाहे. मुझे झूठ नहीं बोलना पड़ा पर पूरी बात भी नहीं बतानी पडी."

"ओहो, मुझे आपके ऊपर तरस आ रहा है बड़े मामा. कहाँ तो आपकी कहानी की विशेष नवयुवती और कहाँ आपकी लड़कों जैसी नटखट भांजी." मुझे बड़े मामा को चिड़ाने में मज़ा आ रहा था.

बड़े मामा ने जोरकर हंस कर मेरी ओर प्यार से देखा.

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CONTD.

Written by: SEEMASINGH

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