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उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन!

by iloveall©

उत्तेजना साहस और रोमांच के वो दिन!

जीवन की भूलभुलैया में कुछ ऐसे लम्हे आते हैं।

जिन को हम कितना ही चाहें फिर भी न कभी भूल पाते हैं।।

जब मानिनियोँ का मन लाखों मिन्नत मन्नत नहीं मानता है।

तब कभी कभी कोई बिरला रख जान हथेली ठानता है।।

कमसिन कातिल कामिनियाँ भी होती कुर्बां कुर्बानी पर।

न्यौछावर कर देती वह सब कुछ ऐसी वीरल जवानी पर।

राहों में मिले चलते चलते हमराही हमारे आज हैं वह।

जिनको ना कभी देखा भी था देखो हम बिस्तर आज हैं वह।।

वह क्या दिन थे! आज भी उन दिनोंकी याद आते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह खूबसूरत वादियां, वह दिलचश्प नज़ारे, वह जीवन और मौत की टक्कर, वह तनाव भरे दिन और रातें, वह उन्मादक बाहें, वह टेढ़ी निगाहें, वह गर्म आहें, वह दुर्गम राहें और वह बदन से बदन के मिलन की चाहें!!

यह कहानी सिर्फ मनोरंजन के आशय से लिखी गयी है। इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कुछ भी लेना देना नहीं है और यह कहानी किसी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान या समाज की ना तो सच्चाई दर्शाता है और ना ही यह कहानी उन पर कोई समीक्षा या टिपण्णी करने के आशय से लिखी गयी है।

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सुनील एक सम्मानित और देश विदेश में काफी प्रसिद्ध राजकीय पत्रकार थे। देश की राजकीय घटना पर उनकी अच्छी खासी पकड़ मानी जाती थी। वह ख़ास तौर पर देश की सुरक्षा सम्बंधित घटनाओं पर लेख लिखते थे। देश की सुरक्षा सेवाओं से जुड़े हुए लोगो में उनका काफी उठना बैठना होता था।

उन दिनों सुनील करीब ४० साल के थे और उनकी पत्नी सुनीता करीब ३५ की होगी। सुनील और उनकी पत्नी सुनीता उनकी एक संतान के साथ एक आर्मी हाउसिंग कॉलोनी में किराए के मकान में रहने के लिए आये थे। उनका अपना घर नजदीक की ही कॉलोनी में ही निर्माणरत था।

सुनील की बीबी सुनीता करीब ३५ की होते हुए भी २५ साल की ही दिखती थी। खान पान पर कडा नियत्रण और नियमित व्यायाम और योग के कारण उसने अपना आकार एकदम चुस्त रखा था। सुनीता का चेहरा वयस्क लगता ही नहीं था। उसके स्तन परिपक्व होते हुए भी तने और कसे हुए थे। उसके स्तन ३४ + और स्तन सी कप साइज के थे।

व्यवहार और विचार में आधुनिक होते हुए भी सुनीता के मन पर कौटुम्बिक परम्परा का काफी प्रभाव था। कई बार जब ख़ास प्रसंग पर वह राजस्थानी लिबास में सुसज्जित होकर निकलती थी तो उसकी जवानी और रूप देख कर कई दिल टूट जाते थे। राजस्थानी चुनरी, चोली और घाघरे में वह ऐसे जँचती थी की दूसरों की तो बात ही क्या, स्त्रियां भी सुनीता को ताकने से बाज ना आती थीं। सुनीता को ऐसे सजने पर कई मर्दों की मर्दानगी फूल जाती थी और कईयों की तो बहने भी लग जाती थी।

सुनीता के खानदान राजपूती परम्परा से प्रभावित था। कहते हैं की हल्दीघाटी की लड़ाई में सुनीता के दादा पर दादा हँसते हँसते लड़ते हुए शहीद हो गए थे। सुनीता के पिता भी कुछ ऐसी ही भावना रखते थे और अपनी बेटी को कई बार राजपूती शान की कहानियां सुनाते थे। उनका कहना था की असली राजपूत एहसान करने वाले पर अपना तन और मन कुर्बान कर देता है, पर अपने शत्रु को वह बख्शता नहीं है। उन्होंने दो बड़ी लड़ाइयां लड़ी और घायल भी हुए। पर उन्हें एक अफ़सोस रहा की वह रिटायर होने से पहले अपनी जान कोई भी लड़ाई में देश के लिए बलिदान नहीं कर पाए।

सुनीता की कमर का घुमाव और उसकी गाँड़ इतनी चुस्त और लचीली थी की चाहे कोई भी पोशाक क्यों ना पहनी हो वह गजब की सेक्सी लगती थी। उस कॉलोनी के ब्लॉक में उनके आते ही सुनील की बीबी सुनीता के आशिकों की जैसे झड़ी लग गयी थी। दूध वाले से लेकर अखबार वाला। सब्जी वाले से लेकर हमारी कॉलोनी के जवान बूढ़े बच्चे सब उसके दीवाने थे।

स्कूल और कॉलेज में सुनीता एक अच्छी खासी खिलाड़ी थी। वह लम्बी कूद, दौड़ इत्यादि खेल प्रतियोगिता में अव्वल रहती थी। इसके कारण उसका बदन गठीला और चुस्त था। उन दिनों भी वह हर सुबह चड्डी पहन कर उनकी छत पर व्यायाम करती रहती थी। जब वह व्यायाम करती थी तो कई बार उनके सामने रहते एक आर्मी अफसर कर्नल जसवंत सिंह को सुनीता को चोरी चोरी ताकते हुए सुनीता के पति सुनील ने देख लिया था। हालांकि सुनील को कर्नल जसवंत सिंह से मिलने का मौक़ा नहीं मिला था, सुनील ने कर्नल साहब की तस्वीर अखबारों में देखि थी और उन के बारेमें काफी पढ़ा था। कर्नल जसवंत सिंह जैसे सुप्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति को अपनी बीबी को ताकते हुए देख कर सुनील मन ही मन मुस्करा देता था। कर्नल साहब के घर की एक खिड़की से सुनील के घर की छत साफ़ दिखती थी।

चूँकि मर्द लोग हमेशा सुनीता को घूरते रहते थे तो सुनील हमेशा अपनी बीबी सुनीता से चुटकी लेता रहता था। उसे छेड़ता रहता था की कहीं वह किसी छैल छबीले के चक्कर में फँस ना जाये।

सुनीता भी अपने पति सुनील को यह कह कर शरारत से हँस कर उलाहना देती रहती की, "अरे डार्लिंग अगर तुम्हें ऐसा लगता है की दूसरे लोग तुम्हारी बीबी से ताक झाँक करते हैं तो तुम अपनी बीबी को या ताक झाँक करने वालों को रोकते क्यों नहीं? यदि कहीं किसी छैल छबीले ने तुम्हारी बीबी को फाँस लिया तो फिर तुम तो हाथ मलते ही रह जाओगे। फिर मुझे यह ना कहना की अरे यह क्या हो गया? जिसकी बीबी खूबसूरत हो ना, तो उस पर नजर रखनी चाहिए।"

ऐसे ही उनकी नोंक झोंक चलती रहती थी। सुनील सुनीता की बातों को हँस कर टाल देता था। उसे सुनीता से कोई शिकायत नहीं थी। उसे अपनी बीबी पर खुदसे भी ज्यादा भरोसा था। सुनील और सुनीता एक ही कॉलेज में पढ़े थे। कॉलेज में भी सुनीता पर कई लड़के मरते थे, यह बात सुनील भाली भाँती जानता था। पर कभी सुनीता ने उनमें से किसी को भी अपने करीब फटकने नहीं दिया था।

बल्कि सुनीता से जब कॉलेज में ही सुनील की मुलाक़ात हुई और धीरे धीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गयी और शादी भी पक्की हो गयी तब भी सुनीता सुनील को आगे बढ़ने का कोई मौक़ा नहीं देती थी। उनमें चुम्माचाटी तो चलती थी पर सुनीता सुनील को वहीँ रोक देती थी।

सुनीता एक प्राथमिक स्कूल में अंग्रेजी शिक्षक की नौकरी करती थी। और वहाँ भी स्कूल के प्रिंसिपल से लेकर सब उसके दीवाने थे।

वैसे तो सुनील की प्यारी बीबी सुनीता काफी शर्मीली थी, पर चुदाई के समय बिस्तर में एकदम शेरनी की तरह गरम हो जाती थी और जब वह मूड़ में होती थी तो गजब की चुदाई करवाती थी। सुनीता की पतली कमर सुनील की टांगों के बिच स्थापित जनाब को हमेशा वक्त बे वक्त खड़ा कर देती थी। अगर समय होता और मौक़ा मिलता तो सुनील सुनीता को वहीँ पकड़ कर चोद देता। पर समय गुजरते उनकी चुदाई कुछ ठंडी पड़ने लगी क्यूंकि सुनीता स्कूल में और घर के कामों में व्यस्त रहने लगी और सुनील उसके व्यावसायिक कामों में।

सुनील और सुनीता कई बार बिस्तर में पड़े पड़े उनकी शादी के कुछ सालों तक की घमासान चुदाई के दिनों को याद करते रहते थे। सोचते थे कुछ ऐसा हो जाए की वह दिन फिर आ जाएँ। उनका कई बार मन करता की वह कहीं थोड़े दिन के लिए ही सही, छुट्टी लें और सब रिश्ते दारी से दूर कहीं जंगलों में, पहाड़ियों में झरनों के किनारे कुछ दिन गुजारें, जिससे वह उनकी बैटरियां चार्ज कर पाएं और अपनी जवानी के दिनों का मजा फिर से उठाने लगें, फिर वही चुदाई करें और खूब मौज मनाएं।

चूँकि दोनों पति पत्नी मिलनसार स्वभाव के थे इसलिए सोचते थे की अगर कहीं कोई उनके ही समवयस्क ग्रुप के साथ में जाने का मौक़ा मिले तो और भी मजा आये। सुनीता के स्कूल में छुट्टियां होने के बावजूद सुनील अत्याधिक व्यस्तता के चलते कोई कार्यक्रम बन नहीं पा रहा था। सुनीता को मूवीज और घूमने का काफी शौक था पर यहाँ भी सुनील गुनेहगार ही साबित होता था। इस के कारण सुनीता अपने पति सुनील से काफी नाराज रहती थी।

सुनील को अपनी पत्नी को खुले में छेड़ने में बड़ा मजा आता था। अगर वह कहीं बाहर जाते तो सुनील सुनीता को खुले में छेड़ने का मौक़ा नहीं चुकता था। कई बार वह उसे सिनेमा हाल में या फिर रेस्तोरां में छेड़ता रहता था। दूसरे लोग जब देखते और आँखे फिरा लेते तो उसे बड़ी उत्तेजना होती थी। सुनीता भी कई बार नाराज होती तो कई बार उसका साथ देती।

नए घर में आने के कुछ ही दिनों में सुनीता को करीब पड़ोस की सब महिलाएं भी जानने लगीं क्यूंकि एक तो वह एकदम सरल और मधुर स्वभाव की थी। दूसरे उसे किसी से भी जान पहचान करने में समय नहीं लगता था। सब्जी लेते हुए, आते जाते पड़ोसियों के साथ वह आसानी से हेलो, हाय से शुरू कर कई बार अच्छी खासी बातें कर लेती थीं।

घर में सुनील जब अपने कमरे में बैठकर कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा होता था तो अक्सर उसे खिड़की में से सामने के फ्लैट में रहने वाले कर्नल साहब और उनकी पत्नी दिखाई देते थे। उनकी एक बेटी थोड़ी बड़ी थी और उनदिनों कॉलेज जाया करती थी।

कर्नल साहब और सुनील की पहेली बार जान पहचान कुछ अजीबो गरीब तरीके से हुई। एकदिन सुनील कुछ जल्दी में घर आया तो उसने अपनी कार कर्नल साहब के गेराज के सामने खड़ी कर दी थी। शायद सुनील को जल्दी टॉयलेट जाना था। घर में आने के बाद वह भूल गया की उसे अपनी गाडी हटानी चाहिए थी। अचानक सुनील के घर के दरवाजे की घंटी बजी। उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो कर्नल जसवंत सिंह को बड़े ही गुस्से में पाया। आते ही वह सुनील को देख कर गरज पड़े, "श्रीमान, आप अपनी कार को ठीक तरह से क्यों नहीं पार्क पर सकते?"

सुनील ने उनको बड़े सम्मान से बैठने के लिए कहा तो बोल पड़े, " मुझे बैठना नहीं है। आप को समझना चाहिए की कई बार कोई जल्दी में होता ही तो कितनी दिक्कत होती है..."

आगे वह कुछ बोलने वाले ही थे की सुनील की पत्नी सुनीता जो कुछ ही समय पहले बाथरूम से निकली ही थी, चाय बना कर रसोई से चाय का प्याला लेकर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई। सुनीता के बाल घने, गीले और बिखरे हुए थे और उनको सुनीता ने तौलिये में ढक कर लपेट रखा था।

ब्लाउज गीला होने के कारण सुनीता की छाती पर उसके फुले हुए स्तन कुछ ज्यादा ही उभरे हुए लग रहे थे। सुनीता का चेहरे की लालिमा देखते ही बनती थी। सुनीता को इस हाल में देखते ही कर्नल साहब की बोलती बंद हो गयी। सुनीता ने आगे बढ़कर कर्नल साहब के सामने ही झुक कर मेज पर जैसे ही चाय का कप रखा तो सुनील ने देखा की कर्नल साहब की आँखें सुनीता के वक्षों के बिच का अंतराल देखते ही फ़टी की फटी रह गयीं।

सुनीता ने चाय का कप रखकर बड़े ही सम्मान से कर्नल साहब को नमस्ते किया और बोली, "आप ज्योतिजी के हस्बैंड हैं ना? बहुत अच्छीं हैं ज्योतिजी।"

सुनीता की मीठी आवाज सुनते ही कर्नल साहब की सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। वह कुछ बोल नहीं पाए तब सुनीता ने कहा, "सर, आप कुछ कह रहे थे न?"

जसवंत सिंघजी का गुस्सा सुनीता की सूरत और शब्दों को सुनकर हवा हो गया था। वह झिझकते हुए बड़बड़ाने लगे, "नहीं, कोई ख़ास बात नहीं, हमें कहीं जाना था तो मैं (सुनीलकी और इशारा करते हुए बोले) श्रीमान से आपकी गाडी की चाभी मांगने आया था। आपकी गाडी थोड़ी हटानी थी।"

सुनीता समझ गयी की जरूर उसके पति सुनील ने कार को कर्नल साहब की कार के सामने पार्क कर दिया होगा। वह एकदम से हँस दी और बोली, "साहब, मेरे पति की और से मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ। वह हैं ही ऐसे। उन्हें अपने काम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं। व्यावहारिक वस्तुओं का तो उन्हें कुछ ध्यान ही नहीं रहता। हड़बड़ाहट मैं शायद उन्होंने अपनी कार आपकी कार के सामने रख दी होगी। आप प्लीज बैठिये और चाय पीजिये।" फिर सुनीता ने मेरी और घूम कर मुझे उलाहना देते हुए कहा, "आप को ध्यान रखना चाहिए। जाइये और अपनी कार हटाइये।"

फिर कर्नल साहब की और मीठी नजर से देखते हुए बोली, "माफ़ कीजिये। आगे से यह ध्यान रखेंगे। पर आप प्लीज चाय पीजिये और (मेज पर रखे कुछ नास्ते की चीजों की और इशारा करते हुए बोली) और कुछ लीजिये ना प्लीज?"

सुनील हड़बड़ाहट में ही उठे और अपनी कार की चाभी ले कर भाग कर अपनी कार हटाने के लिए सीढ़ियों की और निचे उतरने के लिए भागे। सुनीता ठीक कर्नल साहब के सामने एक कुर्सी खिसका कर थोड़ा सा कर्नल साहब की और झुक कर बैठ गयी और उन्हें अपनी और ताकते हुए देख कर थोड़ी शर्मायी।

शायद सुनीता कहना चाह रही थी की "सर आप क्या देख रहे हैं?" पर झिझकती हुई बोली, "सर! आप क्या सोच रहे हैं? चाय पीजिये ना? ठंडी हो जायेगी।" सुनीता को पता नहीं था उसे कर्नल साहब के ठीक सामने उस हाल में बैठा हुआ देख कर कर्नल साहब कितने गरम हो रहे थे।

कर्नल साहब को ध्यान आया की उनकी नजरें सुनीता के बड़े बड़े खूबसूरत स्तन मंडल के बिच वाली खाई से हटने का नाम नहीं ले रहे थी। सुनीता का उलाहना सुनकर कर्नल साहब ने अपनी नजर सुनीता के ऊपर से हटायीं और कमरे के चारों और देखने लगे। क्या बोले वह समझ नहीं आया तो वह थोड़ी सी खिसियानी शक्ल बना कर बोले, "सुनीताजी आप का घर आपने बड़ी ही सुन्दर तरीके से सजाया है। लगता है आप भी ज्योति की तरह ही सफाई पसंद हैं।"

कर्नल साहब की बात सुन कर सुनीता हँस पड़ी और बोली, "नहीं जी, ऐसी कोई बात नहीं। बस थोड़ा घर ठीक ठाक रखना मुझे अच्छा लगता है। पर भला ज्योतिजी तो बड़ी ही होनहार हैं। उनसे बातें करतें हैं तो वक्त कहाँ चल जाता है पता ही नहीं लगता। हम जब कल मार्किट में मिले थे तो ज्योति जी कह रही थीं... "

और फिर सुनीता की जबान बे लगाम शुरू हो गयी और कर्नल साहब उसकी हाँ में हाँ मिलाते बिना रोक टोक किये सुनते ही गए। वह भूल गए की उनको कहीं जाना था और उनकी पत्नी निचे कार के पास उन का इंतजार कर रही थी। जाहिर है उनको सुनीता की बातों में कोई ख़ास दिलचश्पी नहीं थी। पर बात करते करते सुनीता के हाथों की मुद्राएँ , बार बार सुनीता की गालों पर लटक जाती जुल्फ को हटाने की प्यारी कवायद, आँखों को मटकाने का तरिका, सुनीता की अंगभंगिमा और उसके बदन की कामुकता ने उनका मन हर लिया था।

जब सुनील अपनी कार हटा कर वापस आये तो कर्नल साहब की तंद्रा टूटी और सुनीता की जबान रुकी।

सुनील ने देखा की सुनीता ने कर्नल साहब को अपनी चबड चबड में फाँस लिया था तो वह बोले, "अरे जानू, कर्नल साहब जल्दी में हैं। उनको कहीं जाना है।"

फिर कर्नल साहब की और मुड़कर सुनील ने कहा, "माफ़ कीजिये। आप को मेरी वजह से परेशानी झेलनी पड़ी।"

अपनी पत्नी सुनीता की और देखते हुए बोले, "डार्लिंग अब बस भी करो। कर्नल साहब को बाहर जाना है और ज्योतिजी उनका निचे इंतजार कर रहीं है।"

सुनील कर्नल साहब की और मुड़ कर बोले, "सुनीता जैसे ही कोई उसकी बातों में थड़ी सी भी दिलचश्पी दिखाता है तो शुरू हो जाती है और फिर रुकने का नाम नहीं लेती। लगता है उसने आप को बहुत बोर कर दिया।"

कर्नल साहब अब एकदम बदल चुके थे। उन्होंने चाय का कप उठाया और बोले, "नहीं जी ऐसी कोई बात नहीं। वह बड़ी प्यारी बातें करती हैं।" सुनील की और अपना एक हाथ आगे करते हुए बोले, "मैं कर्नल जसवंत सिंह हूँ।"

फिर वह सुनीता की और घूमकर बोले, "और हाँ ज्योति मेरी पत्नी है। वह आपकी बड़ी तारीफ़ कर रही थी।"

सुनील ने भी अपना हाथ आगे कर अपना परिचय देते हुए कहा, "मैं सुनील मडगाँव कर हूँ। मैं एक साधारण सा पत्रकार हूँ। आप मुझे सुनील कह कर ही बुलाइये। और यह मेरी पत्नी सुनीता है, जिनके बारे में तो आप जान ही चुके हैं।" सुनील ने हलके कटाक्ष के अंदाज से कहा।

सुनील ने जैसे ही अपनी पहचान दी तो कर्नल साहब उछल पड़े और बोले, "अरे भाई साहब! क्या आप वही श्रीमान सुनील मडगाँव कर हैं जिनकी कलम से हमारी मिनिस्ट्री भी डरती है?"

सुनील ने कर्नल साहब का नाम एक सुप्रतिष्ठित और अति सम्मानित आर्मी अफसर के रूप में सुन रखा था। सुनील ने हँस कर कर्नल साहब से कहा, "कर्नल साहब आप क्या बात कर रहे हैं? आप कोई कम हैं क्या? मैं समझता हूँ आप जैसा शायद ही कोई सम्मानित आर्मी अफसर होगा। आप हमारे देश के गौरव हैं। और जहां तक मेरी बात है, तो आप देख रहे हैं। मेरी बीबी मुझे कैसे डाँट रही है? अरे भाई मेरी बीबी भी मुझसे डरती नहीं है। मिनिस्ट्री तो बहुत दूर की बात है।"

सुनील की बात सुनकर सब जोर से हँस पड़े। चाय पीते ही मन ना करते हुए भी कर्नल साहब उठ खड़े हुए और बोले, "आप दोनों, प्लीज हमारे घर जरूर आइये। ज्योति को और मुझे भी बहुत अच्छा लगेगा।"

कर्नल साहब बाहर से कठोर पर अंदर से काफी मुलायम और संवेदनशील मिज़ाज के थे। यह बात को नकारा नहीं जा सकता की सुनीता को देखते ही कर्नल साहब उसकी और आकर्षित हुए थे। सुनीता का व्यक्तित्व था ही कुछ ऐसा। उपरसे कर्नल साहब का रंगीन मिजाज़। सुनीता के कमसिन और खूब सूरत बदन के अलावा उसकी सादगी और मिठास कर्नल साहब के दिल को छू गयी थी। अपने कार्य काल में उनकी जान पहचान कई अति खूबसूरत स्त्रियों से हुई थी। आर्मी अफसर की पत्नियाँ , बेटियाँ, उनकी रिश्तेदार और कई सामाजिक प्रसंगों में उनके मित्र और साथीदार महिलाओं से उनकी मुलाक़ात और जान पहचान अक्सर होती थी।

जसवंत सिंह (कर्नल साहब) के अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व, सुदृढ़ शरीर, ऊँचे ओहदे और मीठे स्वभाव के कारण उनको कभी किसी सुन्दर और वांछनीय स्त्री के पीछे पड़ने की जरुरत नहीं पड़ी। अक्सर कई बला की सुन्दर स्त्रियां पार्टियों में उनको अपने शरीर की आग बुझाने के लिए इशारा कर देती थीं। जसवंत सिंह ने शुरुआत के दिनों में, शादी से पहले कई युवतियों का कौमार्य भंग किया था और कईयों की तन की भूख शांत की थी। उनमें से कई तो शादी होने के बाद भी अपने पति से छुपकर कर्नल साहब से चुदवाने के लिए लालायित रहतीं थीं और मौक़ा मिलने पर चुदवाती भी थीं।

कर्नल साहब के साथ जो स्त्री एक बार सोती थी, उसके लिए कर्नल साहब को भुल जाना नामुमकिन सा होता था। आर्मी परिवार में और खास कर स्त्रियों में चोरी छुपी यह आम अफवाह थी की एक बार किसी औरत ने अगर जसवंत सिंह का संग कर लिया (स्पष्ट भाषा में कहे तो अगर किसी औरत को कर्नल साहब से चुदवा ने का मौक़ा मिल गया) तो वह कर्नल साहब के लण्ड के बारेमें ही सोचती रहती थी।

चुदवाने की बात छोड़िये, अगर किसी औरत को कर्नल साहब से बात भी करने का मौक़ा मिल जाए तो ऐसा कम ही होता था की वह उनकी दीवानी ना हो। कर्नल साहब की बातें सरल और मीठी होती थीं। वह महिलाओं के प्रति बड़ी ही शालीनता से पेश आते थे। उनकी बातों में सरलता, मिठास के साथ साथ जोश, उमंग और अपने देश के प्रति मर मिटने की भावना साफ़ प्रतीत होती थी। साथ में शरारत, मशखरापन और हाजिर जवाबी के लिए वह ख़ास जाने जाते थे।

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सालों पहले की बात है। कर्नल साहब की शादी भी तो ऐसे ही हुई थी। एक समारोह में युवा कर्नल की जब ज्योति से पहली बार मुलाक़ात हुई तो उनमें ज्यादा बात नहीं हो पायी थी। किसी पारस्परिक दोस्त ने उनका एक दूसरे से परिचय करवाया और बस। पर उनकी आंखें जरूर मिलीं। और आँखें मिलते ही आग तो दोनों ही तरफ से लगी। कर्नल साहब को ज्योति पहली नजर में ही भा गयी थी। ज्योति की आँखों में छिपी चंचलता और शौखपन जसवंत सिंह के दिल को भेद कर पार गयी थी। ज्योति के बदन को देखकर उनपर जैसे बिजली ही गिर गयी थी। कई दिन बीत गए पर उन दोनों की दूसरी मुलाक़ात नहीं हुई।

जसवंत सिंह की नजरें जहां भी आर्मी वालों का समारोह या प्रोग्राम होता था, ज्योति को ढूंढती रहती थीं। ज्योति का भी वही हाल था।

ज्योति के नाक नक्श, चाल, वेशभूषा, बदन का आकार और उसका अल्हड़पन ने उन्हें पहेली ही मुलाक़ात में ही विचलित कर दिया। ज्योति ने भी तो कप्तान जसवंत सिंह (उस समय वह कप्तान जसवंत सिंह के नाम से जाने जाते थे) के बारे में काफी सुन रखा था।

जसवंत सिंह से ज्योति की दूसरी बार मुलाक़ात आर्मी क्लब के एक सांस्कृतिक समारोह के दौरान हुई। दोनों में परस्पर आकर्षण तो था ही। जसवंत सिंह ने ज्योति के पापा, जो की एक निवृत्त आर्मी अफसर थे, उनके निचे काफी समय तक काम किया था, उनके बारे में पूछने के बहाने वह ज्योति के पास पहुंचे। कुछ बातचीत हुई, कुछ और जान पहचान हुई, कुछ शोखियाँ, कुछ शरारत हुई, नजरों से नजरें मिली और आग दावानल बन गयी।

ज्योति जसवंत सिंह की पहले से ही दीवानी तो थी ही। बिच के कुछ हफ्ते जसवंत सिंह को ना मिलने के कारण ज्योति इतनी बेचैन और परेशान हो गयी थी की उस बार ज्योति ने तय किया की वह हाथ में आये मौके को नहीं गँवायेगी। बिना सोचे समझे ही सारी लाज शर्म को ताक पर रख कर डांस करते हुए वह जसवंत सिंह के गले लग गयी और बेतकल्लुफ और बेझिझक जसवंत सिंह के कानों में बोली, "मैं आज रात आपसे चुदवाना चाहती हूँ। क्या आप मुझे चोदोगे?"

जसवंत सिंह स्तंभित हो कर ज्योति की और अचम्भे से देखन लगे तो ज्योति ने कहा, "मैं नशे में नहीं हूँ। मैं आपको कई हफ़्तों से देख रही हूँ। मैंने आपके बारे में काफी सूना भी है। मेरे पापा आपके बड़े प्रशंषक हैं। आज का मेरा यह फैसला मैंने कोई भावावेश में नहीं लिया है। मैंने तय किया था की मैं आपसे चुदवा कर ही अपना कौमार्य भंग करुँगी। मैं पिछले कई हफ़्तों से आपसे ऐसे ही मौके पर मिलने के लिए तलाश रही ही।"

ज्योति की इतनी स्पष्ट और बेबाक ख्वाहिश ने जसवंत सिंह को कुछ भी बोल ने का मौक़ा नहीं दिया। वह ज्योति की इतनी गंभीर बात को ठुकरा ना सके। कप्तान जसवंत सिंह ने ने वहीँ क्लब में ही एक कमरा बुक किया। पार्टी खत्म होने के बाद ज्योति अपने माता और पिताजी से कुछ बहाना करके सबसे नजरें बचा कर जसवंत सिंह के कमरे में चुपचाप चली गयी। ज्योति की ऐसी हिम्मत देख कर जसवंत सिंह हैरान रह गए।

उस रात जसवंत सिंह ने जब ज्योति को पहली बार नग्न अवस्था में देखा तो उसे देखते ही रह गए। ज्योति की अंग भंगिमा देख कर उन्हें ऐसा लगा जैसे जगत के विश्वकर्मा ने अपनी सबसे ज्यादा खूबसूरत कला के नमूने को इस धरती पर भेजा हो। ज्योति के खुले, काले, घने बाल उसके कूल्हे तक पहुँच रहे थे। ज्योति का सुआकार नाक, उसके रसीले होँठ, उसके सुबह की लालिमा के सामान गुलाबी गाल उसके ऊपर लटकी हुई एक जुल्फ और लम्बी गर्दन ज्योति की जवानी को पूरा निखार दे रही थी।

लम्बी गर्दन, छाती पर सख्ती से सर ऊंचा कर खड़े और फुले हुए उसके स्तन मंडल जिसकी चोटी पर फूली हुई गुलाबी निप्पलेँ ऐसे कड़ी खड़ी थीं जैसे वह जसवंत सिंह को कह रही थीं, "आओ और मुझे मसल कर, दबा कर, चूस कर अपनी और मेरी बरसों की प्यास बुझाओ।"

पतली कमर पर बिलकुल केंद्र बिंदु में स्थित गहरी ढूंटी जिसके निचे थोड़ा सा उभरा हुआ पेट और जाँघ को मिलाने वाला भाग उरुसंधि, नशीली साफ़ गुलाबी चूत के निचे गोरी सुआकार जाँघें और पीछे की और लम्बे बदन पर ज़रा से उभरे हुए कूल्हे देख कर जसवंत सिंह, जिन्होंने पहले कई खूब सूरत स्त्रियों को भली भाँती नंगा देखा था, उनके मुंह से भी आह निकल गयी।

ज्योति भी जब कप्तान जसवंत सिंह के सख्त नग्न बदन से रूबरू हुई तो उसे अपनी पसंद पर गर्व हुआ। जसवंत सिंह के बाजुओं के फुले हुए डोले, उनका मरदाना घने बालों से आच्छादित चौड़ा सीना और सीने की सख्त माँस पेशियाँ, उनके काँधों का आकार, उनकी चौड़ी छाती के तले उनकी छोटी सी कमर और सबसे अचम्भा और विस्मयाकुल पैदा करने वाला उनका लंबा, मोटा, छड़ के सामान खड़ा हुआ लण्ड को देख कर ज्योति की सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। ज्योति ने जो कप्तान जसवंत सिंह के बारे में सूना था उससे कहीं ज्यादा उसने पाया।

जसवंत सिंह का लण्ड देख कर ज्योति समझ नहीं पायी की कोई भी औरत कैसे ऐसे कड़े, मोटे, लम्बे और खड़े लण्ड को अपनी छोटी सी चूत में डाल पाएगी? कुछ अरसे तक चुदवाने के बाद तो शायद यह संभव हो सके, पर ज्योति का तो यह पहला मौक़ा था। जसवंत सिंह ने ज्योति को अपने लण्ड को ध्यान से ताकतें हुए देखा तो समझ गए की उनके लण्ड की लम्बाई और मोटाई देख कर ज्योति परेशान महसूस कर रही थी। जसवंत सिंह के लिए अपने साथी की ऐसी प्रतिक्रया कोई पहली बार नहीं थी।

उन्होंने ज्योति को अपनी बाँहों में लिया और उसे पलग पर हलके से बिठाकर कर ज्योति के सर को अपने हाथों में पकड़ कर उसके होँठों पर अपने होँठ रख दिए। ज्योति को जैसे स्वर्ग का सुख मिल गया। उसने अपने होँठ खोल दिए और जसवंत सिंह की जीभ अपने मुंह में चूस ली। काफी अरसे तक दोनों एक दूसरे की जीभ चूसते रहे और एक दूसरे की लार आपने मुंह में डाल कर उसका आस्वादन करते रहे।

साथ साथ में जसवंत सिंह अपने हाथों से ज्योति के दोनों स्तनों को सहलाते और दबाते रहे। उसकी निप्पलोँ को अपनी उँगलियों के बिच कभी दबाते तो कभी ऐसी तीखी चूँटी भरते की ज्योति दर्द और उन्माद से कराह उठती। काफी देर तक चुम्बन करने के बाद हाथों को निवृत्ति देकर जसवंत सिंह ने ज्योति की दोनों चूँचियों पर अपने होँठ चिपका दिए। अब वह ज्योति की निप्पलोँ को अपने दांतो से काटते रहे जो की ज्योति को पागल करने के लिए पर्याप्त था। ज्योति मारे उन्माद के कराहती रही। ज्योति के दोनों स्तन दो उन्नत टीलों के सामान प्रतित होते थे।

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