Category: Romance Stories

ट्रेन छूट जाती तो...

by pranaykatha©

मैं एक कंपनी में मैनेजर का जॉब करता हूँ। कंपनी के क्लाएंट अलग-अलग राज्यों में बिखरे हुए हैं। ऐसे ही एक क्लाएंट के प्लांट पर मुझे व्हिजीट के लिए जाना था। मैं अक्सर ट्रेन से ही सफर करता हूँ। बीचवाले स्टेशन पर ट्रेन कुछ देर रुकने वाली थी। रात का समय था। मुझे कुछ खाने की इच्छा हुई। तो मैं अपना सामान कूपे में ही छोडकर नीचे उतरा और प्लैटफार्म पर टहलने लगा। सामने ही मुझे एक चाय और पकोडे का स्टाल दिखाई दिया। मैंने वहां जाकर एक कप चाय और एक प्लेट पकोडे आर्डर किए।

पकोडेवाले ने कहा, "साहब, पकोडे तो ठंडे हो गए हैं। आप चाय पीजीए, तब तक मैं गरम पकोडों का इंतजाम करता हूँ।"

"अरे नहीं, रहने दो। मेरी ट्रेन छूट जाएगी। मुझे ठंडे ही पकोडे दे दो।" मैंने ट्रेन की तरफ देखते हुए कहा।

"आप चिंता मत कीजीए साहब। ट्रेन छूटने से पहले आपको गरम पकोडे मिल जाएंगे। हमारा तो रोज का काम है। यह ट्रेन अभी नहीं हिलेगी। मैं पूरे विश्वास से बोल रहा हूँ ना। दिनभर में सैंकडों ट्रेन देख लेता हूँ। कौनसी कब आएगी, कब जाएगी, कितनी देर रुकेगी, सब जानता हूँ।" पकोडे तलते हुए वह बकबक किए जा रहा था। मैंने उसे चाय और पकोडों के पैसे दे दिए। चाय पीते हुए मैं उसकी बकबक सुनता रहा। वह अभी कडाई में पकोडे छोड ही रहा था, की ट्रेन का हार्न बज गया।

"देखो भैया, मैंने कहा था ना ट्रेन छूट जाएगी। आप मुझे ठंडे ही पकोडे दे दो।" मैंने उनसे बिनती की।

"अरे नहीं साहब। यह ट्रेन आपको डरा रही है। और दस मिनट तो यह अपनी जगह से हिलेगी भी नही। पाँच मिनट में पकोडे तैयार हो जाएंगे।" वह मान ही नही रहा था। ट्रेन और पकोडों के बीच में मेरा सैंडवीच हो रहा था। अगले ही पल ट्रेन ने अपनी जगह छोड दी। तो मैंने भी आधा कप चाय और पकोडे खाने की मनीशा वहीं छोड दी। दौडता-भागता जैसे-तैसे मैं अपने डिब्बे तक पहुँचा। एक छलाँग लगाकर मैंने चलती ट्रेन में प्रवेश कर लिया।

ट्रेन के दरवाजे पर खडे-खडे मैं उस पकोडेवाले को देख रहा था। उसके पकोडे अभी तक कडाई में ही तैर रहे थे। भूख और गुस्से से मैं काँप रहा था। तभी मेरे कानों पर किसी लडकी की आवाज आई।

"हेल्प... हेल्प... मेरी ट्रेन छूट जाएगी। मेरी मदद करो।" चिल्लाते हुए एक लडकी भाग रही थी। जैसे ही मेरी नजर उसपर पडी, मैं मंत्रमुग्ध होकर देखता ही रह गया। क्या गजब की लडकी थी। साँवला रंग, बडी-बडी आँखें, चमकते हुए मुलायम गाल, पिंक शेडवाली लिपस्टीक लगे आकर्षक होंठ, लंबे बिखरे बाल... उफ्!! उसने व्ही नेकलाईन वाली सफेद टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहनी थी। दौडते हुए उसके बडे-बडे मम्मे उसकी टी-शर्ट से बाहर निकलने की कोशीश कर रहे थे। एक हाथ में बैग लेकर वह दूसरा हाथ मेरी ही तरफ घूमा रही थी। वह हाथ उपर उठने की वजह से उसका टाईट टी-शर्ट भी उपर की ओर खिसक गया था। जिससे मुझे उसके पेट का दर्शन भी होने लगा।

"हेल्प... प्लीज हेल्प!!" वह जोर-जोर से चिल्ला रही थी। मैं उसकी मदद करना तो चाहता था। मगर क्या करुँ, कैसे करुँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैंने चिल्लाकर उसे कहा, "अपना बैग फेंको।" उसने भी बिना कुछ सोचे-समझे वह बैग मेरी ओर फेंक दिया। मैंने अपनी जान पर खेल कर उसका बैग पकड लिया और अंदर ढकेल दिया। फिर मैंने एक हाथ से दरवाजे का डंडा पकडा और बाहर की तरफ झुकता हुआ दूसरा हाथ उसकी दिशा में फैलाया।

बैग का वजन निकल जाने की वजह से वह और तेज दौड सकती थी। उसने चंद कदमों में ही मेरा हाथ थाम लिया। मैंने कसकर उसका हाथ पकडा और उसे अपनी तरफ खींच लिया। ट्रेन की गति अचानक बढ गई। लेकीन उसने सही वक्त पर छलाँग लगाई थी। ट्रेन के दरवाजे से अंदर घुसते ही उसका पूरा वजन मेरे शरीर पर आ गया। जिस वजह से हम दोनो वहीं नीचे फ्लोर पर गिर गए।

"हे भगवान। तूने बचा लिया। थँक्यू व्हेरी मच जी। आपकी वजह से ही मैं ट्रेन में चढ सकी। आप अंदाजा नहीं लगा सकते आपने मुझपर कितना बडा एहसान किया है। यह ट्रेन छूट जाती तो मैं क्या करती। मेरी तो जान ही निकल गयी थी। अरे... सॉरी सॉरी, आप तो गिर गए। यह सब मेरी वजह से हुआ है। आप ठीक तो हैं? आपको कहीं चोंट-वोट तो नहीं आई?" वह रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। ट्रेन से ज्यादा स्पीड में उसकी जुबान चल रही थी।

"जी, अबतक तो ठीक हूँ। मगर आप ऐसे ही मेरे उपर पडी रही तो थोडी देर के बाद शायद ठीक ना रह सकूंगा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा। वैसे मुझे उसके आकर्षक शरीर के नीचे पडे रहने में कोई आपत्ती नहीं थी। उल्टा मैं उसके जादूभरे स्पर्श का आनंद ही उठा रहा था। मगर डिब्बे में और भी लोग थे और किसीने हमें देख लिया तो अच्छा नहीं होता।

"सॉरी सॉरी, मैं भी कितनी बुद्धू हूँ।" मेरे शरीर से अपना भार हटाते हुए उसने कहा। "मुझे अभी तक विश्वास नही हो रहा है की मैं ट्रेन के अंदर हूँ। आप का बहोत बहोत शुक्रीया!!"

"बस बस, इतनी भी बडी बात नही थी।" मैंने शरमाते हुए कहा। "मैं भी कुछ ही पल पहले चढा था। चलिए, आपके कूप तक यह बैग पहुँचा देता हूँ।"

"मेरा कूप? मेरे पास तो टिकट भी नहीं है।" उसने उदास चेहरे से कहा।

"क्या? तुम बिना टिकट ट्रेन में चढ गई?" मैंने आश्चर्य से पूछा।

"मैं कहां चढी... आपने ही चढा लिया।" उसके चेहरे पर अचानक मुस्कान दिखने लगी।

"क्या मतलब? मैंने तो बस तुम्हारी मदद की। तुम ही ट्रेन के पीछे भाग रही थी।" मैंने गुस्से से कहा। "अगर मुझे पता होता की तुम्हारे पास टिकट नहीं है तो... तो..."

"तो क्या?" मेरे हाथों से अपना बैग लेते हुए वह बोली, " तो क्या मुझे अंदर नहीं आने देते? अब क्या मुझे नीचे ढकेल देनेवाले हो?"

"मैं क्यों तुम्हे ढकेलूँगा? वह तो टीसी का काम है। वही तुम्हे नीचे उतार देंगे।"

"हाँ, मगर वह तो अगले स्टेशन तक यहाँ नहीं आएंगे। क्या मैं तब तक आपके साथ रुक सकती हूँ?" उसने 'हूँ' कहते हुए अपने पिंक लिप्स ऐसे घुमाए की मैं चाहते हुए भी उसे 'ना' न कह सका। उल्टा उसके हाथों से उसका बैग लेकर सीधा अपने कूप की तरफ चल पडा।

मेरे अलावा वहाँ और कोई यात्री था भी नही। मैंने सोचा, चलो कुछ देर सफर अच्छा कट जाएगा। उस लडकी का बैग साईड में रखकर मैं अपने बर्थपर बैठ गया। मेरे सामने वाली बर्थ खाली होते हुए भी वह मेरे बगल में आकर बैठ गई।

"आपने आज मेरी बहुत मदद की है। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते, यह ट्रेन छूट जाती तो मेरा क्या होता। आपने अपनी जान पर खेल कर मुझे और मेरे सामान को ट्रेन में घुसने दिया। और अगले स्टेशन पर जब टीसी आएगा, तो मुझे विश्वास है की आप ही मुझे बचा लेंगे।" वह बिना रुके बोले जा रही थी। उसका कान्फीडंस देखकर मैं हैरान रह गया।

"यह क्या बात हुई? मैं आपको टीसी से कैसे बचा सकता हूँ? और क्यों बचाऊँ? मैं तो आपका नाम भी नहीं जानता।" मुझे अब इस लडकी पर कुछ-कुछ शक होने लगा था। मैं थोडा उससे दूर खिसक गया। लेकीन वह और मेरी तरफ खिसकी और कहने लगी -

"नाम में क्या रखा है जी? इंसान की असली पहचान तो उसके काम से होती है।"

"अच्छा? तो क्या मैं जान सकता हूँ आप काम क्या करती है?"

"जी, जरूर जान सकते हैं। लेकीन अभी नहीं। मेरा काम खुद बोलता है। आपको जल्द ही पता चल जाएगा। और एक बार पता चल गया, तो आप जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे - मुझे भी और मेरे काम को भी।" मेरे कंधे पर अपना हाथ रखते हुए उसने कहा।

"अच्छा? मुझे आपका कान्फीडंस बहुत पसंद आया। आप बहुत स्मार्ट हो।" उसके शरीर का स्पर्श और खुशबू मुझपर हावी हो रहे थे।

"थैंक्स! स्मार्ट तो मैं हूँ ही। और फास्ट भी बहुत हूँ। अपने काम में विलंब मुझे बिलकुल पसंद नहीं।" ऐसा कहते हुए उसने अपना हाथ मेरे इस कंधे से उस कंधे पर हटाया और मेरी गर्दन अपनी ओर घुमा ली। मुझे उसकी आँखों में कुछ अजीब भाव दिखाई दे रहे थे। हमारे चेहरों में अब कोई अंतर नहीं बचा था। उसकी गर्म साँसे सीधी मेरे चेहरे से टकरा रही थी। उसकी गहरी आँखें, उसके मुलायम गाल, और उसके गुलाबी होंट मुझे बेचैन कर रहे थे। मैं उसके होंटों को चूमने की कल्पना ही कर रहा था, मगर उससे पहले उसी ने मेरे होटों पर हमला बोल दिया।

मैंने आजतक अपनी बीवी को छोडकर किसी लडकी को हाथ भी नहीं लगाया था। और आज अचानक इस चलती ट्रेन में यह अंजान लडकी सीधा मुझे किस् कर रही थी। मैं कुछ रिस्पांस देने की भी हालत में नही था। उसने खुद ही दोनो हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और मेरे होटों को जोरों से चूसने लगी। चूसते-चूसते उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरे होंट चाँटने लगी। उसकी गर्म साँसें और जीभ के गीले स्पर्श से मैं उत्तेजित हो उठा। उत्तेजना में जैसे ही मेरे होंट अलग हो गए, उसने झट से अपनी जीभ मेरे मूँह में घुसा दी।

मैं नहीं जानता की उसी वक्त ट्रेन की धडधड बढ रही थी या मेरे सीने में धडकन तेज हो गयी थी। उसके रसीले होंट और जीभ चूसते हुए मैंने अपने दोनों हाथ उसके आकर्षक शरीर पर फेरने शुरु कर दिए। उसके बालों से होकर कंधों पर और फिर उसकी पीठ से होकर उसके कमर तक मेरे हाथ पहुँच गए। उसका टी-शर्ट पहले ही कमर से उपर उठ गया था। उसके नंगे पेट का स्पर्श होते ही मेरे शरीर में बिजली दौड पडी। मैंने अपने हाथों की उंगलियाँ उसके पेट पर घुमाते हुए उसकी नाभी ढूँढ ली। जैसे ही मेरी उँगली उसकी नाभी में घुस गई, उसके मुँह से 'आह्' निकल गई और हमारा चुंबन टूट गया।

अपना चेहरा मेरे चेहरे से हटाकर वह मेरी आँखों में झाँकने लगी। मुझे तो उसकी आँखों में बस वासना ही वासना दिखाई दे रही थी। शायद मेरी आँखें भी हवस से भर गई थी। मैं उसके सुंदर चेहरे को आँखों में समाते हुए अपने हाथ उपर उठाने लगा। उसके टी-शर्ट के अंदर से ही मेरे हाथों ने उसकी छाती तक का सफर तय कर लिया। ब्रा के उपर से ही मैं उसके स्तन दबाने लगा। टी-शर्ट के व्ही-नेकलाईन से मेरी उंगलियाँ बाहर आने लगी। वह आँखें बंद किए मेरे हाथों का हमला झेलने लगी।

बिना आँखें खोले उसने मेरी गर्दन को अपनी तरफ झुकाया। एक हाथ से मेरा चेहरा अपनी छाती पर लाते हुए उसने दूसरे हाथ से ब्रा का कप नीचे से उठाया। अब उसका साँवले रंग का स्तन मेरे सामने लटक रहा था। उसे देख कर मुझे पके हुए आम की याद आ गई। उस आम को चूसने के लिए मैं बेताब हो उठा। उस स्तन के शिखर पर भूरे रंग का बडा अरोला और बीचोबीच एक मोती जैसा निप्पल साफ दिख रहा था।

यह नजारा देखने के बाद खुद पर काबू पाना मुश्कील ही नहीं नामुमकीन था। मैंने बिलकुल समय न गँवाते हुए उस मोतीपर हमला बोल दिया। जितना हो सके अपना मूँह खोल कर मैंने वह आम दबोच लिया। अपनी जीभ उस मोती के इर्दगिर्द घुमाने लगा। बीच-बीच में अपने दातों से वह मोती काँट भी लेता था। मेरे हमले से उसका हाल बुरा हो गया था। वह मुँह से "आह्... आह्... ओह्... ओह्... हायेऽऽऽ उफ्... ऊं... ऊं...." ऐसी आवाजे निकाल रही थी। अपने एक हाथ से मेरा सिर अपनी छाती पर दबा रही थी और दूसरे हाथ से अपना स्तन मेरे मूँह में भर रही थी।

मैं सबकुछ भूल-भालकर उसका मांसल स्तन चूस रहा था, उसकी मुलायम त्वचा चाँट रहा था, और उसके तने हुए चूचुक चबा रहा था। उसके आम जैसे स्तन का स्वाद कुछ अजीब सा था। थोडा मीठा थोडा खट्टा। मैंने पोर्न फिल्मों में सैंकडों औरतों के स्तन देख रखे थे। लेकीन मेरी बीवी के अलावा किसी और के स्तन का स्वाद तो छोडीए, मैंने किसी के स्तन कपडों के उपर से छूए भी नहीं थे। माखन जैसे स्वाद वाले वह मम्मे मुझे जीवन का परमोच्च आनंद दे रहे थे। पता नहीं कितनी देर मैं उसे चूसे जा रहा था और वह मेरे बालों में हाथ फेरे जा रही थी।

ट्रेन के रुकने की आवाज और प्लैटफार्म से आ रही अलग-अलग आवाजों ने मुझे नींद से जगा दिया। मैं अपनी आँखें मलते हुए खिडकी से बाहर देख रहा था। सुबह का उजाला देख कर मैं चौंक गया। पता नही मैं कितनी देर सो रहा था। मुझे हल्का सा सिरदर्द भी महसूस हो रहा था। धीरे-धीरे नींद खुलने लगी तब मुझे उस लडकी की याद आ गई। मैं झट से उठा और पूरे डिब्बे में घूमकर उसे ढूँढने लगा। मगर वह कहीं भी दिखाई नहीं दे रही थी। मैंने टॉइलेट तक में भी झाँक कर देख लिया।

वह कौन थी, कहाँ से आई थी, क्यों आई थी, कहाँ जा रही थी, मुझे कुछ भी नहीं पता था। उसने मुझे अपना नाम तक नहीं बताया था। और न ही मुझसे मेरा नाम-पता पूछा। "नाम में क्या रखा है जी? इंसान की असली पहचान तो उसके काम से होती है।" उसके शब्द मेरे कानों में घूम रहे थे। मैं सोचते हुए वापस अपनी सीट तक पहुँचा ही था की ट्रेन चल पडी। मैं खिडकी से बाहर प्लाटफार्म पर उसे ढूँढने की नाकाम कोशीश करता रहा। उसका वह अचानक से ट्रेन में घुस जाना, बिना माँगे अपने रसीले होंटों से चुंबन का स्वर्गीय आनंद दिलाना, अपने हाथों से मुझे खुद का स्तनपान करवाना, सब एक हसीन सपने की तरह याद आ रहा था। उसके मुलायम स्तन का वह खट्टा-मीठा स्वाद...

उस खट्टे-मीठे स्वाद से मुझे कुछ और ही याद आया। रात से मैंने कुछ खाया नही था। उस पकोडेवाले की वजह से मेरी ट्रेन छूटते-छूटते बच गई थी। नींद से उठने के बाद मुझे और जोर से भूख का एहसास होने लगा। यह स्टेशन भी अब पीछे छूट रहा था। शायद मेरी सैक में कुछ बिस्कुट वगैरा मिल जाए इस आशा से मैंने बर्थ के नीचे झाँका। मगर मेरी सैक तो अपनी जगह पर नहीं थी। रात को मैंने मेरा पैसों का पर्स, मोबाईल और सब सामान उस सैक में ही रखा था। पीछले स्टेशन पर कुछ छुट्टे रुपीए लेकर मैं चाय पीने उतरा था। बाकी सब सामान और पैसे जो सैक में रखे थे, सैक के साथ गायब थे।

मैं हडबडा गया और इधर-उधर देखने लगा। मैं जहाँ बैठा था उसी सीट पर दूसरे कोने में एक प्लास्टीक की थैली रखी थी। मैंने वहाँ जाकर थैली खोली। थैली के अंदर रखी चीज ने मेरे होश उडा दिए। मैं धप् से नीचे बैठ गया। उस थैली में एक प्लेट पकोडे थे। और उसके साथ खट्टी हरी मिर्चियाँ।

"मेरा काम खुद बोलता है। आपको जल्द ही पता चल जाएगा। और एक बार पता चल गया, तो आप जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे - मुझे भी और मेरे काम को भी।" उस लडकी की बातें मुझे याद आ रही थी। ट्रेन स्टेशन से आगे निकल ही रही थी की मैंने फिरसे वही आवाज सुनी - "हेल्प... हेल्प... मेरी ट्रेन छूट जाएगी। मेरी मदद करो।" मगर इस बार वही लडकी सामनेवाली ट्रेन के पीछे भाग रही थी। उसके हाथ में एक बैग था और उसकी पीठ पर एक सैक। जी हाँ, मेरीवाली सैक!!

- 'प्रणयकथा'कार मॅन्डी

Written by: pranaykatha

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