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योनि का दीपक (The Lamp of Vagina)

by Leeladhar©

(प्रिय पाठको, इस बार एक बिल्कुल नए मिजाज की कहानी लेकर हाजिर हूँ। आज की युवा पीढ़ी बहुत फास्ट और बिंदास है। उसमें टैलेंट है, सामर्थ्य है,और भविष्य का कोई भय या फिक्र भी नहीं है। इसी युवा पीढ़ी की एक लड़की (अब श्रीमती) ने अपने बेलौस स्वभाव में जो कर डाला यह उसी की गाथा है। मुझसे कई पाठक-पाठिकाएँ अपनी आपबीती पर कहानी लिखने के लिए अनुरोध करती रहती हैं। उन्हें लिखना संभव नहीं हो पाता। लेकिन यह घटना असाधारण थी इसलिए इसे लिखना जरूरी लगा। इस पाठिका ने मेरी कहानी 'शालू की गुदाई' पढ़कर अपनी आपबीती मुझे भेजी थी। घटना घटे ज्यादा दिन नहीं हुए। पिछले के पिछले, यानी 2016 की दीवाली की बात है। - लीलाधर)

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योनि का दीपक (भाग -1)

बड़ा प्यारा है वो। जब वह 'मांगता' है तो खुद को रोकना सचमुच मुश्किल हो जाता है। ऐसे प्यार से, ऐसा मासूम बनकर मांगता है कि दिल उमड़ आता है उसपर। लालची या फरेबी तो बिल्कुल नहीं लगता। मन करता है लुटा दूँ खुद को उसपर। ऐसा भी खुद को बचाकर क्या रखना। सभी तो इंजॉय कर रहे हैं। मेरी कितनी सहेलियां कइयों से 'लिवा' चुकी हैं, मैं ही क्यों वंचित रहूँ। सहेलियाँ मुझे बढ़ावा भी देती हैं। कहती हैं कैसा सुंदर है तेरा बॉयफ्रेंड। करवा ले न उसके साथ। कहीं छोड़ कर चला गया तो हाथ मलती रह जाओगी।

दोस्तों की बातों, और सबसे बड़ी मेरे बॉयफ्रेंड की बार-बार मनुहार, का असर रहा होगा कि इस बार दिवाली में मैंने उससे कह दिया, इस बार तुम्हें दिवाली में कुछ खास गिफ्ट करूंगी, तैयार रहो। उसने पूछा कि क्या गिफ्ट करूंगी तो मैंने कहा, कि ऐसी चीज जो मैंने उसे कभी नहीं दी। अब वह बेचारा समझ रहा है कि मैं उसे 'दूंगी'। लेकिन मैं सोच रही हूँ कि कुछ ऐसा करूं कि उसको 'फाइनल' चीज देने से बच जाऊं और वह खुशी से गदगद भी हो जाए।

मैंने लीलाधर जी की एक कहानी पढ़ी थी - शालू की गुदाई। मुझे उसमें गुदना गुदवाने का सीन बड़ा अच्छा लगा था। मैंने लीलाधर जी से पूछा भी था कि वह टैटू आर्टिस्ट रॉबर्ट दिल्ली में कहाँ रहता है। पर उन्होंने मुझे कुछ खास नहीं बताया। तब मैंने अपने से तलाश किया। एक मिला। अभी नया ही काम शुरू किया था, मगर हाथ में सफाई थी। जवान बंदा था, मुझे थोड़ा डर लगा कि कहीं यह मुझे एक्सप्लॉयट न करे। पर सोचा मामला भी तो 'वयस्क' का है। अगर कुछ इसने करना चाहा तो देख लूंगी। देखने में खूबसूरत भी था।

मैंने उसे अपनी जरूरत बताई। बॉयफ्रेंड को सेक्स का मजा तो देना चाहती हूं मगर फ**** से बचना भी चाहती हूं। और यह मुझे दीवाली में गिफ्ट करना है। मैंने सोचा था कि दोनों स्तनों पर ही दीवाली से ताल्लुक रखता कोई संदेश टैटू करवाऊंगी। इस तरह मेरा ब्वायफ्रेंड मेरे स्तन देख लेगा और उनसे कुछ खेल भी लेगा। लेकिन उस टैटू कलाकार का आइडिया इससे ज्यादा साहसी था। साहसी क्या, दुस्साहसी था। मैं संकोच में पड़ गई कि इतनी दूर पहली बार में ही जाना उचित होगा? भद्दा नहीं लगेगा? मैं कर पाऊंगी? लेकिन उसने मुझे आश्वस्त किया कि वल्गर नहीं लगेगा, कलात्मक ही होगा। हैप्पी दिवाली का विश - सिर्फ छातियों तक ही क्यों? इससे तो वह धोखा खाया-सा महसूस करेगा। उसे लगेगा तुमने ऊपर ऊपर ही निपटा दिया। अगर गिफ्ट का मजा गाढ़ा बनाना चाहती हो तो और आगे जाओ। सचमुच, मुझे भी लगा जहाँ वह पूरे संभोग की उम्मीद कर रहा है वहाँ केवल स्तनों तक ही सीमित रहने से बहुत फीका हो जाएगा। लेकिन टैटू कलाकार का आइडिया केवल जांघें खोलने तक का नहीं था, भगों को भी नंगा रखने का था। यह बहुत ही डेयरिंग था। पुसी भी दिखानी पड़ेगी। मैं कुछ देर ठिठकी, फिर बिंदास होकर उसका आइडिया कबूल कर लिया।

उसने मुझे दिवाली के ही दिन सुबह-सुबह आने को कहा। बोला कि मैं उसकी पहली ग्राहक हूंगी। (बाद में पता चला उस दिन मैं उसकी अकेली ही ग्राहक थी।) उसने मुझे बार-बार आश्वस्त किया कि मुझे निराश नहीं होना पड़ेगा।

मैं दीवाली की सुबह बिल्कुल साफ-सुथरी, अंदर से सेंटेड होकर उसके पास पहुंची। उसने मुझे अंदर के बालों को मूड़ने से मना किया था। बोला था, बालों की ड्रैसिंग उसी दिन करेंगे। उसने मुझे बता ही दिया था मुझे उसके सामने बिल्कुल खुलकर, और अपने को बिल्कुल खोलकर बैठना पड़ेगा। उसके निर्देशानुसार मैं घाघरा पहन कर पहुंची थी।

पहुँची तो वह तैयार था। बाहर ही खड़ा इंतजार कर रहा था। नहाया-धोया, एकदम फ्रेश! मुझसे हाथ मिलाया और गुड मॉर्निंग बोला। पुरुष के नजर की यही तारीफ औरत को कमजोर कर देती है। अच्छा कोलोन वगैरह लगाकर महक रहा था। क्यों न हो, एक सुंदर लड़की की पुसी के दीदार का दुर्लभ मौका मिल रहा था। मैंने मुस्कुराकर उसके गुड मॉर्निंग का जवाब दिया।

अंदर जाकर उसने कुछ सामान्य बातें पूछीं जिन्हें करने का उसने मुझे पहले ही निर्देश दे दिया था। उसने मुझे तौलिया दिया और घाघरा उतारने देने को कहा | मैंने सोचा था शुरू में पैंटी पहने रहूंगी लेकिन उसने कहा कि बाद में पैंटी उतारते समय टैटू खराब हो जाएगी। मुझेखुदपर ताज्जुब हो रहा था कि कहाँ तो इतनी रूढ़िवादी हूँ कि ब्वायफ्रेंड को अभी तक स्तन भी देखने नहीं दिए, कहाँ यह मैं इस अनजान के सामने पूरी तरह नंगी हो रही हूँ। लेकिन मैं बिंदास थी। करना है तो करना है, बस!

लेकिन पैंटी उतारने के बाद ऐसी शरम आने लगी कि रोएँ खड़े हो गए। लीलाधर जी ने शालू की इस स्थिति के बारे में कुछ बताया नहीं था। मैंने सोचा था लीलाधर की कहानी की तरह मुझे वह गद्देदार मजेदार कुर्सी पर बिठाएगा। पर उसने मुझे टेबल पर चढ़कर पंजों पर 'चुक्को-मुक्को' बैठने का निर्देश दिया। छी, कितना बुरा लग रहा था जैसे इन्डियन टॉयलेट पर पॉटी करने के लिए बैठी हूँ। बैठने पर तौलिया इस तरह उठ गया था कि नीचे सबकुछ खुल गया था। सोच रही थी, मैं ये क्या कर रही हूँ।

वह मेरी खुली टांगों के बीच कुर्सी लगाकर बैठ गया। तौलिया यूँ भी नामभर को था, उसको भी हटाकर उसने मेरी पुसी का ठीक से मुआयना किया। पेंसिल लेकर उसने दोनों जांघों पर बीच से बराबर दूरी रखते हुए निशान लगाए। कुछ निशान उसने भग-होठों के दोनों तरफ भी उसने लगाए। फिर उसने एक दूसरी पैंसिल लेकर लिखना शुरू किया। पैंसिल की नोक चलने पर जांघ में गुदगुदी होने लगी। कुछ देर तक उस गुदगुदी के मारे स्थिर नहीं रह पाई। कुछ देर की प्रैक्टिस के बाद ही उसके लिखने लायक स्थिर हो पाई। जब वह मेरी बाईं जांघ पर लिख रहा था उस वक्त मैंने यथासंभव योनि होठों को और दाईं जांघ को तौलिये से ढँक लिया था। बाईं जांघ पर लिखने के बाद उसने मेरी दाई जांघ पर एक दूसरा शब्द लिखा। लिखने के बाद उसने मुझे आइना थमाया।बड़े अक्षरों में एक जाँघ पर 'शुभ' और दूसरी पर 'दीपावली' लिखा था - 'शुभ दीपावली'। बड़ी कलात्मक लिखाई थी। मानना पड़ेगा कि स्त्री की खुली योनि को देखते हुए भी कोई कलाकार होशो-हवास सलामत रखकर सुंदर लिखाई को अंजाम दे सकता है। लेकिन दोनों शब्दों के बीच योनि होठों और बालों की गहरी कालिमा तो अच्छी नहीं लग रही थी। मैंने कहा, इतना तो पैंटी पहनकर भी दिखाया जा सकता है? पुसी दिखेगी तो संदेश गंदा लगेगा, दीपावली की शुभता और पवित्रता का एहसास चला जाएगा।

लेकिन अभी उसका काम समाप्त नहीं हुआ था। उसने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। कई कलाकार एक बार तय कर लें तो टोका-टोकी पसंद नहीं करते। मैंने अभी तक अपनी पुसी पर तौलिये का कोना दबा रखा था। उसने उसे मेरे हाथों को हटा दिया और मेरी कमर से तौलिया खींच लिया। मैं ऊपर टी-शर्ट में लेकिन नीचे पूरी तरह नंगी थी और वह मेरी भगों में सीधे देख रहा था। गुदा का छिद्र भी उसे साफ दिख रहा होगा। मैं तो शरम से मर ही गई थी। कुछ देर तक उसने उसका अच्छे से मुआयना किया। उसके बाद उसने उस्तरा उठाया और पेड़ू के बालों को धीरे-धीरे मूंड़ना शुरू किया। बाहर से अंदर होटों की ओर। रेजर से बालों के कटने की किर-किर आवाज अजीब और उत्तेजक लग रही थी। मूड़ते हुए क्रमशः होठों की ओर बढ़ते हुए उसने होठों के बाहर बाहर लगभग एक अंगुल चौड़ाई में बाल छोड़ दिए। होठों के किनारे-किनारे पौन इंच तक घने काले बालों का बॉर्डरऔर उसके बाद सफाचट गोरा मैदान। जैसे गेट के किनारों पर किसी ने घास की सजावट करके छोड़ दिया हो।

बैठे-बैठे मेरे पाँव थकने लगे थे और होठों व योनि में इन गतिविधियों से गीलापन आने लगा था। निश्चित ही उसे उसकी गंध मिलने लगी होगी। इसलिए मैं कुछ देर रुकने का समय चाहती थी।

वह उठा और बाथरुम चला गया। लगभग 5 मिनट बिताकर निकला। मुझे लग गया कि उतनी देर में वह बाथरूम में हाथ से अपनी उत्तेजना शांत करके आया है। उसके चेहरे पर लाली थी। फिर भी मुझे उसपर गुस्सा नहीं आया, बल्कि उल्टे मुझे अच्छा लगा।

उतनी देर में मेरी भी 'गर्मी' कम हो गई थी। उसने फिर काम शुरु किया।

अब उसने कैंची से बालों को धीरे-धीरे कुतरना शुरु किया। उन्हें इच्छित लंबाई तक लाने के बाद ब्रश से कटे बालों को झाड़ दिया। अभी तक मुझे उसकी डिजाइन का कुछ खास आइडिया नहीं था। इतना जरूर मालूम था वहाँ कोई तस्वीर बनाने वाला है। मुझे काफी गुदगुदी हो रही थी। उसने मुझे स्थिर रहने को कहा नहीं तो तस्वीर बिगड़ जाएगी। मैं जिस तरह बैठी थी, मेरे योनि के होठों की फाँक उसकी नाक की सीध में खड़ी थी -- ऊपर क्लिट से संकरे कोण से शुरू होकर होंठों के बीच कुछ दूर तक समान अंतर के बाद नीचे फैलते हुए चूतड़ों की फाँक।

उसने फाँक के दोनों तरफ जाँघों पर आधे-आधे दीपक की आउटलाइन खींची। अब मुझे समझ में आ गया वह क्या बना रहा है। सस्पेंस को बनाए रखते हुए उसने सुनहले रंग में कूची डुबोई और फाँक के किनारे किनारे बालों को रंगना शुरू किया। बालों पर हल्के हल्के ब्रश चलाते हुए उसने उन्हें इस तरह रंगा कि कुछ बाल काले रहें, कुछ सुनहरे।

मैं मुस्कुरा रही थी। मुझे गुदगुदी के साथ-साथ उत्तेजना हो रही थी। योनि का गीलापन इतना बढ़ गया था कि होंठों के बीच लसलसा तार बन जा रहा था। उसने जब वहाँ तौलिया दबाकर सुखाया तो मेरे गीलेपन का खुला इकरार हो गया। मैं सोच रही थी मेरे इतने दिन से प्रेम की प्यास में पड़ा हुआ बॉयफ्रेंड जिसे देख तक नहीं पाया है, उसे यह नामुराद खुलकर देख रहा है। देख ही नहीं, उसे छू और सहला भी रहा है। मन में ख्याल आया कि अगर यह उसे चूम ले, चाट भी ले तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी। भगों में जिस तरह गुदगुदी और सनसनी हो रही थी उसमें कभी-कभी लगता था, काश यह हिम्मत करके ऐसा कर ही दे। मैं उसे हल्का-फुल्का डाँटकर छोड़ दूंगी और उसे करने दूंगी। लेकिन यह बंदा कुछ ज्यादा ही शरीफ था। शायद कलाकार का अपना मिजाज था कि जब वह रच रहा होता है तो हर लोभ-लालच से दूर होता है।

बालों को रंगने के बाद उसने उन्हें फूँक फूँक कर सुखाया। अब उसने ब्रश लेकर आउटलाइन के अंदर रंग भरना शुरू किया। उसकी कूची पुसी में ऊपर से नीचे घूमते हुए नीचे जाकर कभी कभी गुदा के छेद को भी छू जाती थी। बालों की उस छुअन से इतनी सुरसुरी होती थी कि मुझे उसे बीच-बीच में रुकने के लिए कहना पड़ता था। आख़िरकार उसने योनि होठों की विभाजक रेखा के निचले हिस्से में दोनों चूतड़ों पर आधे-आधे दीपक बना दिए। जांघों को पूरी तरह फैलाए रखने में मेरी कमर और पांव बुरी तरह दुख गए थे।

चित्र पूरा करके उसने मुझे आइना पकड़ा दिया।

वाह - एक बहुत ही सुंदर कल्पना साकार हो रही थी। आइने में मैं देख रही थी - एक एक जांघ पर 'शुभ' और 'दीपावली' लिखी थी और दोनों शब्दों के बीच जांघों के जोड़ में दीपक जल रहा था। योनि के हल्के खुले होठों के अंदर की लाली दिए की लौ के बीच की लाली बन गई थी और होंठों के किनारों पर के बाल लौ के बाहरी पीले-भूरे रंग। बालों में लगा सुनहरा रंग ऐसा लग रहा था मानो दिये की लौ से सुनहरी आभा बिखर रही हो।

उसने शुभ दीपावली की रेखाओं को रंगों से मोटा और गाढ़ा करके काम समाप्त कर दिया। कुछ देर यों ही बैठने के लिए कहा ताकि रंग अच्छे सूख जाएँ। उसने ब्लोअर से हवा भी लगा दी।

मैं उसे पैसे देने लगी तो उसने पैसे लेने से मना कर दिया। बोला कि पहले जिस काम के लिए टैटू बनवाया है वह काम कर लूँ। पसंद आया तभी पैसे लेगा। "ऐसे ग्राहक रोज रोज नहीं मिलते इसलिए खास मन से काम किया हूँ। आपके और ब्वायफ्रेंड को पसंद आएगा तो उसे अपनी कला की सफलता मानूंगा।" मुझे अजीब लगा पर उसकी इच्छा देखते हुए बात मान ली। शायद वह देखना चाहता था कि बवायफ्रेंड को दिखाने के बाद मेरी क्या गत हुई। चुदी या नहीं। या शायद वह पैसे के अलावा मुझसे कुछ 'एक्स्ट्रा' पाना चहता था। जो हो, बंदा भला था, काम के दौरान उसने किसी प्रकार की कोई गलत हरकत नहीं की थी, इसलिए मैं भी उसके प्रति कुछ उदार होने को तैयार हो गई। (वैसे इच्छा तो मेरी भी होने लगी थी।)

ब्वायफ्रेंड से मिलने जाते समय मन में शंकाओं-चिंताओं-रोमांचों के जितने पटाखे फूट रहे थे, वे इससे पहले की किसी भी दीवाली से ज्यादा थे। क्या होगा, कैसे दिखाऊंगी उसको, शुरुआत ही कैसे करूंगी। क्या सोचेगा वो? मुझे सस्ती या चालू तो नहीं समझ लेगा? हाय राम, क्या मैं सचमुच उसके सामने टांगें खोलूंगी? मगर अभी उस कलाकार के सामने अपने को मैं कैसे नंगी दिखा सकी? मैं सही दिमाग में तो हूँ न? पागल तो नहीं हूँ?

मैं गाड़ी में ठीक से बैठी भी नहीं कि रंग न उखड़ जाएँ हालाँकि उसने मुझे आश्वस्त किया था कि बैठने से या कपड़ों की रगड़ से या पानी लगने से चित्र नहीं छूटेगा।मिटाने के लिए खास द्रव से धोना पड़ेगा। उसके लिए मुझे उसके पास आना होगा। मगर मन कहाँ मानता है। मैं कार सी सीट पर चूतड़ को आधा उठाए ही बैठी थी।

(अपनी प्रतिक्रिया happy123soul@yahoo.comपर जरूर भेजें)

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योनि का दीपक (भाग -2)



वह बाहर ही मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने चलने से पहले फोन कर दिया था, "आ रही हूँ। लेकिन मेरे पास वक्त बहुत कम है। तुरंत लौट जाऊंगी।" ऐसा मैने अपना भाव बनाए रखने के लिए और अपनी सुरक्षा के लिहाज से भी किया था। अगर सिचुएशन से बाहर निकलना पड़े तो आसानी हो।

मुझे देखते ही वह खिल पड़ा था। गाड़ी रुकते ही उसने मेरा दरवाजा खोला और तुरंत पूछकर ड्राइवर को पैसे दिए और बड़े मान से अपने कमरे में ले गया। बोला, "आज दीवाली के दिन मेरे घर लक्ष्मी आई है।" वह एक पूजा की थाली लेकर आया और मेरे कपाल पर तिलक लगाकर मेरी आरती उतारने लगा।

"अरे ये क्या नाटक कर रहे हो?" पर उसने मेरा मुँह बंद कर दिया, "मुझे अच्छा लगता है।"

उसने थाली में से लेकर मुझपर फूल की पंखुलड़ियाँ छींटीं। "मैं देवी लक्ष्मी की पूजा कर रहा हूँ।"

मुझे बड़ी हँसी आ रही थी। "तुम एकदम पागल हो। मालूम होता कि मुझे इतना बनाओगे तो नहीं आती।"

पूजा समाप्त करके थाली रखी और मेरे दोनों कंधे पकड़कर बोला, "देवी आज कुछ खास आशीर्वाद देनेवाली हैं ना?"

"हूँ..." मैंने गला खँखारा। "देवी का आशीर्वाद पाने के लिए कंधे नहीं, चरण पकड़ने चाहिए, स्टुपिड!"

वह झट मेरे सामने फर्श पर बैठ गया। मेरे पैर पकड़ने लगा तो मैंने रोक दिया। उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया, "तुम्हारा कल्याण हो वत्स!"

वह मेरा मुँह देखता रह गया। बस इतना ही? मुझे उसपर दया आने लगी, लेकिन कुछ देर तड़पाने का मजा लेना चाहती थी।

"और भी देवियों से आशीर्वाद लिया?"

"किसी से नहीं, तुम पहली हो।"

"और दूसरी?"

"कोई नहीं, तुम्हीं आखिरी भी रहोगी.... अगर..."

"अगर?"

"पूरे मन से आशीर्वाद दोगी।"

"हूँ... देखती हूँ तुम उतने बुद्धू नहीं हो!" कहते हुए मैंने अपना एक पैर उठाकर उसके एक कंधे पर रख दिया। मेरा घाघरा जमीन पर पड़े दूसरे पैर से थोड़ा ऊपर उठ गया। वह पैर के उस नंगे हिस्से को देखने लगा।

"क्या आशीर्वाद चाहिए, बोलो?"

उसने सिर उठाकर मुझे देखा और बोला, "तुम। तुम खुद एक पूरी की पूरी आशीर्वाद हो।"

"बहुत चापलूस हो। कुछ ज्यादा नहीं मांग रहे हो?"

"तुमने वादा किया था।" वह फिर मेरे उस घाघरे से बाहर निकले पैर को देखने लगा। मैंने पैर के बालों की वैक्सिंग करा रखी थी। उंगलियों में नई नाखूनपॉलिश लगाई थी।

"मैंने सिर्फ दीवाली विश करने का वादा किया था, और कुछ नहीं।" कहते हुए मैंने दूसरा पैर उठाकर उसके दूसरे कंधे पर रख दिया।

उसके चेहरे पर निराशा सी आई। मुझे क्रूरता में आनंद आ रहा था। मैंने घाघरा को थोड़ा ऊपर खींचा।

"ठीक है, तो वही विश कर दो।" वह मेरा खेल कुछ-कुछ समझने लगा। कोई लड़की यूँ ही उसके कंधों पर दोनों पाँव नहीं रख देगी। उस स्थिति में वैसा करने से मेरा पूरा पेड़ू उसके चेहरे के सामने आ गया था, भले ही वह अभी घाघरे के अंदर था।

मैंने कहा, "अब समय हो गया। मुझे जाना है।"

उसने मेरे दोनों पैर पकड़ लिए। बचने के लिए मैंने घाघरे को पकड़ा तो घाघरा खिसककर घुटनों तक उठ गया। उसे अंदर मेरी नंगी जांघों की निचली सतह दिखने लगी होगी। मैं सहारा पाने का अभिनय करते हुए पीछे झुक गई।

"कहाँ जाओगी?" मेरा पैर कन्धों पर लिए ही वह उठ गया। और जो होना था वही हुआ। मैं बिस्तर पर पीठ के बल गिर गई, घाघरा सरककर मेरे पेट पर आ गया। यह सब एक क्षण में हो गया। मेरे दोनों टखने उसकी हथेलियों में थे और वह उन्हें फैलाए कमरे की जगमगाती रोशनी में उनके बीच में देख रहा था।

"माय गॉड!" वह आँखें फाड़े देखता रह गया। "ये क्या है?"

मैंने हिम्मत करके बोल दिया - "शुभ दीपावली, डार्लिंग!"

"मगर...!"

"क्या?"

"कुछ नहीं!" कहकर उसने गोता लगाया और सीधे बीच में दीपक को लौ पर मुँह लगा दिया। मैं उछल पड़ी। इसके पहले कि मैं उसे ऊपर खींच पाती उसने दनादन वहाँ पर दो-तीन चुम्बन और दाग दिए - चुस-चुस-चुस...

मैंने कहा, "अरे, मुझे भी विश करो।"

"शुभ दीपावली!" उसने हड़बड़ाकर कहा और ऊपर आकर मेरे होंठों पर आकर वह चूमने लगा। रंग और योनि की मिली-जुली गंध जो नई और उत्तेजक थी। मैंने उसके चुम्बनों का जवाब दिया।

"बहुत सुंदर है, बहुत ही सुंदर। लेकिन..."

"लेकिन क्या?"

"इसे बनाया कैसे?" लेकिन मेरे जवाब का इंतजार किए बिना फिर से मुझे चूमने लगा। चूमते चूमते वह 'कमाल का है, 'अद्भुत', 'फैन्टास्टिक' वगैरह कर रहा था। मैं भी उसके भार के नीचे दबी उसके चुम्बनों का जवाब दे रही थी।

वह मेरी टॉप पेट पर से ऊपर खिसकाने लगा| मैंने उसे रोका। वह टॉप के अंदर हाथ घुसाकर मेरी छातियाँ सहलाने लगा।

मर्द का यह जोर और आवेग मुझे अच्छा लग रहा था लेकिन लगा कि ऐसे उसको बढ़ने दिया तो चुद ही जाऊंगी। मैंने रोका, "देवी से ऐसे जबरदस्ती करते हैं क्या? रुको।"

जवाब में वह मेरे पेड़ू पर अपना पेड़ू रगड़ने लगा। योनि होंठों पर उसके पैजामे के नीचे सख्त लिंग का दबाव महसूस होने लगा।

"रुको" मैंने उसे जोर लगाकर ठेला। "आज के दिन कोई जबरदस्ती नहीं! कहाँ तो मुझपर फूल छिड़कना, और कहाँ यह जबरदस्ती?"

वह रुक गया। मैंने हँसकर उसकी ठोड़ी पकड़ी और नाटकीय आवाज में कहा, "वत्स, आज तो देवी तुम्हें स्वयं आशीर्वाद दे रही हैं। हड़बड़ी क्यों करते हो?"

मैंने उसे बिस्तर से दूर कुर्सी पर बैठने को कहा। वह बेमन से वह जाकर कुर्सी पर बैठ गया।

मैंने अपनी टॉप का किनारा पकड़ा और सिर के ऊपर खींच लिया। अंदर मैने समीज पहनी थी। सुबह पैंटीहीन रहने की विवशता देखते हुएआज मैंने ब्रा भी नहीं पहनी थी। ऐसे में चुद जाने का खतरा जबरदस्त था। मैंने कमान अपने हाथ में ही रखने के लिए कहा, "वहीं बैठे रहना। नहीं तो चली जाऊंगी।"

वह बोला, "खुशी की बात में भी धमकी क्यों देती हो?"

मैंने अपनी समीज उतार दी। मेरे नंगे स्तन देखकर वह दीवाना हो गया और उठकर मेरे पास आ गया। मैंने किसी तरह उसे ठेला। सचमुच यहीं पर छोड़कर घर चले जाने की धमकी दी। अब इतना शरीफ तो वह था ही कि बलात्कार नहीं करता। मिन्नतें करने लगा, एक बार, बस एक बार छूने दो। मैंने दया दिखाई तो उसने न केवल छूआ बल्कि सहलाया भी। इसके बाद स्वाभाविक था कि वह चूमने की भी जिद करता। मैने "बस इससे ज्यादा नहीं" करते करते उसे अच्छा खासा चूमने और चूस भी लेने दिया। मैं समझ रही थी थी कि उसे सीमा के अंदर रखकर खुद को सम्हाले रखना है नहीं तो अपनी उत्तेजना के आगे मैं खुद मजबूर हो जाऊंगी।

स्तनों को छोड़ा तो मेरे फिर से मेरे भगों पर लपक गया। एक बार वहाँ का स्वाद ले चुका था। मैं वहाँ पर उत्तेजित होने से बचना चाहती थी हालाँकि उत्सुक भी थी क्योंकि सारी तैयारी तो मैंने उसी में की थी। वह जांघों पर लिखी 'शुभ' और 'दीपावली' को छोड़कर बीच में दीपक को ही देखे जा रहा था। उसने भगोष्ठों के किनारे-किनारे बालों के तटबंध में उंगली फिराई और फिर बीच कुंड में उंगली डुबो दी। उसने उसमें उंगली चलाई और निकालकर मुँह में चूस लिया। देखकर ही मेरी योनि मेढक की तरह फुदकने लगी। अब अगर इसने फिर से उसमें मुँह लगाया तो मैं तो गई। वह चाटने के लिए झुका तो मैंने जांघें बंद कर लीं। मेरे अंदर से द्रव की लहर-सी उठकर होंठों के बीच छलछला गई। मैं आँखें मूंदकर बदन में हो रही आनंददायी सिहरन को महसूस करने लगी। वह मंत्रमुग्ध मुझे देख रहा था। बोला, "ये क्या था, तुम क्लाइमेक्स कर रही थी क्या?"

मैं उठकर बैठ गई। "अब चलती हूँ।" मुझे अपनी वैल्यू बनाए रखनी थी। वह मेरा प्रेमी था।


"लेकिन..." उसका सवाल फिर उपस्थित हो गया। चेहरे पर वही शिकन। "ये दीया वहाँ आया कैसे? तुम तो खुद नहीं बना सकती।"

"नहीं।"

"किसी से बनवाया है।"

"हाँ। एक टैटू कलाकार से।"

"तो तुमने उसे अपना सब कुछ दिखाया? बल्कि उसे..." उसके अंदर दबी अधिकार भावना अब उभर रही थी।

"ये तुम्हें अब याद आया?"

वह चुप रहा। कैसे बोलता कि उस समय मजा लेने की जल्दी थी।

"मुझे तो कभी छूने तक नहीं दिया। और अचानक से एक बाहरी आदमी के सामने सब कुछ?"

"यह सब मैंने तुम्हारे लिए किया।"

"मगर ये तो गलत है।"

"मैं ऐसी ही हूँ। और शादी के बाद भी ऐसी ही रहूंगी।"

बोलते ही मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा आया। ये शादी की बात क्यों मुँह से निकली।

"आई थी ये सोचकर कि आज तुमको ग्रेट तोहफा दूंगी। यूनीक और डेयरिंग। लेकिन तुम भी दूसरे लड़कों की तरह ही निकले। इतनी मुश्किल से यह पेंटिंग बनवाई। और तुम..." बोलते मेरी आँखें लरज गईं। मैंने अपनी समीज पहनने के लिए उठा ली।

उसने मेरे हाथों में समीज पकड़ ली। "तो वह ग्रेट तोहफा दे दो ना। मैं कब से इंतजार कर रहा हूँ।"

"मेरा जो मन था वह मैंने अपनी मर्जी से दिया। कोई परवाह नहीं की। अब और नहीं। छोड़ो।" मैंने उसके हाथों से खींचकर समीज पहन ली।

उसने मेरा टॉप अपने कब्जे में ले लिया। "प्लीज, मान जाओ। मैं सॉरी बोल रहा हूँ ना।"

"मेरा टॉप दो।"

"प्लीज..."

"कोई फायदा नहीं।" समीज में मेरे स्तन ढँक चुके थे और मैं एक हद तक सुरक्षित थी।

उसने मुझे आलिंगन में लेने की कोशिश की।

"तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे?"

"नो नो, आय लव यू। मुझे माफ कर दो!"

मैं गुस्से से खड़ी हो गई। "तुमने मुझे क्या समझ रखा है? रण्डी? Just give me the cloth."

वह डर गया। मैंने उसके हाथ से टॉप ले लिया। टॉप पहनी, घाघरा ठीक किया, जूते पहने और चलने को हुई।

"जस्ट एक मिनट रूक जाओ। मेरी बात सुनो।"

"बोलो।"

"कोई और तुम्हें अंदर के हिस्से तक देखे तो बुरा लगना स्वाभाविक है। तुम यूँ ही आतीं तो मुझे अच्छा लगता।"

"अभी तो हमारे बीच कुछ हुआ नहीं, और तुम इतना पजेसिव हो रहे हो? उधर उस कलाकार ने मुझे गलत इरादे से छुआ तक नहीं। तुम जो और और बातें सोच रहे हो, वह तो बहुत दूर की बात है। मुझे सफाई नहीं देनी पर तुम्हारा भ्रम दूर करने के लिए बोल रही हूँ।"

वह कुछ आश्वस्त सा हुआ। बोला, "देखो मैं तुम्हें खो नहीं सकता। आय लव यू।"

मेरे अंदर आग की तेज लपट-सी उठी। मैंने कहा, "मैं जा रही हूँ। उसी कलाकार के पास। इस बार जो तुमसे नहीं कराया वह कराने। टु गेट प्रॉपर्ली फक्ड। उसके बाद भी तुम्हारा मन होगा तो बोलना आय लव यू।"

वह आँखें फाड़े मुझे देखता रह गया। मैं बाय कहकर निकल पड़ी।

(अपनी प्रतिक्रिया happy123soul@yahoo.comपर जरूर भेजें)

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