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नेहा का परिवार 10

by SEEMASINGH©

नेहा का परिवार

लेखिका:सीमा

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CHAPTER 10

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मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे।

मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे।

मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया।

मेरे कमउम्र कमसिन मनोवृत्ती ने अब तक मुझे इतना तो सिखा दिया था कि बड़े मामा की तरह एक अल्पव्यस्क लड़की के कोमल हाथों से स्पर्श मात्र से ही उनका लंड उत्तेजित हो सकता था। इस लिए मेरे मूंह से उनके सुपाड़े की मीठी यातना तो और भी कामयाबी लायेगी।

मैं चाचू के लंड को एक बार फिर से लोहे के खम्बे जैसे सख्त करने के लिए उत्सुक हो उठी थी।

सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड अब पूरा अपने पहले वाले धड़कते हुए भीमकाय आकार का हो चुका था। मेरे मूंह के कोने उनके विशाल सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए पूरे फैले हुए थे और मुझे अब थोडा दर्द होने लगा था।

मैंने जैसे ही अपना मूंह उनके लंड से ऊपर उठाया मेरे मूंह में लार ने उनके लंड को स्नान करवा दिया।

"नेहा, क्या आपकी चूत चुदवाने के लिए तैयार है?" मुझे पता था कि सुरेश चाचा मुझे छेड़ रहे थे। अब तक वो चाहते तो मुझे धकेल कर मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। चाचू मेरे मूंह से चुदाई की प्रार्थना सुनना चाहते थे।

"चाचू, मेरी चूत तो अब बहुत गीली है। मुझे आपके लंड से अपनी चूत चुदाई का बहुत मन कर रहा है," मैंने थोड़ा इठला कर कहा।

चाचू ने अपने हिमालय की चोटी के सामान आकाश की तरफ उठे भीमकाय लिंग की ताराग इशारा कर के कहा, "नेहा बेटी, यदि आपको चुदना है तो थोड़ी महनत भी करनी होगी। इस बार आप खुद अपनी चूत मेरे लंड से मारिये।"

सुरेश चाचा मेरे सम्भोग ज्ञान को बड़ाने का भी प्रयास कर रहे थे।

"चाचू, यदि आपको मेरा ऊपर से आपका लंड लेना अच्छा नहीं लगे तो आप मुझे सिखायेंगे?" मैंने अपनी दोनों मादक गुदाज़ भरी भरी जांघें सुरेश चाचा के कूल्हों के दोनों तरफ रख कर खड़ी हो गयी।

"नेहा बेटी, जब आपके चूत झड़ना चाहेगी तो उसे अपने आप समझ आ जाएगा कि उसे मेरे लंड के साथ क्या करना चाहिए," सुरेश चाचा हलके से मुस्कराए।

सुरेश चाचा ने मेरी कोई भी मदद करने की कोशिश नहीं की। मैंने उनके भारी हथोड़े जैसे कंद को स्थिर कर अपनी नाज़ुक, रतिरस से भरी चूत की मखमली दरार को उनके अविश्वसनीय मोटे सुपाड़े के ऊपर लगा कर अपने चूतड़ों को नीचे दबाने लगी।

जैसे ही चाचू का विशाल सुपाड़ा मेरे चूत के द्वार को फैला कर चीरता हुआ हस अंदर प्रविष्ट हुआ तो मेरी ना चाहते हुए भी दर्द से भरी चीत्कार मेरे मूंह से उबल पड़ी। मेरी चूत सुरेश चाचा के मोटे लंड के ओप्पेर बुरी तरह से फँस कर मानो अटक गयी थी।

मैंने थोड़ी देर रुक कर अपनी साँसों को काबू में करने की कोशिश की। सुरेश चाचा ने मेरी हिलती फड़कती चूचियों को अपने हाथों में भर कर धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया। मैंने एक बड़ी सांस भर कर नीच की तरफ जोर लगाया और धीरे धीरे मेरी छूट की कोमल दीवारें फैलने लगीं और चाचू का मोटा विशाल लंड मेरी छूट में इंच इंच करके घुसने लगा।

मैं अब हांफ रही थी। मेरी संकरी कमसिन चूत चाचू के मोटे लंड के ऊपर फंसी बिलबिला रही थी। मेरे दांत मेरे होंठ पर कसे हुए थे।

सुरेश चाचा मेरी बिगड़ती हालत को देख कर हलके हलके मुस्करा रहे थे। मैंने अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने लगी। मैंने सोचा इससे शायद मेरी चूत थोड़ी ढीली हो जाए। मैंने नीचे सर झुका कर देखा कि अभी तो सुरेश चाचा की सिर्फ तीन चार इन्चें ही मेरी चूत के अंदर थीं।

सुरेश चाचा की हल्की सिसकारी ने मुझे अपनी तरकीब की सफलता से प्रभावित कर दिया। मैंने फिर से नीचे जोर लगाया और मेरी गीली चूत अचानक उनके चिकने लंड पर फिसल गयी। उनके विशाल लंड की कुछ इंचे मेरी छूट को चुद कर फैलाती हुई उसके अंदर दाखिल हो गयीं। मेरी दर्द भरी सिसकारी को चाचू ने बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया।

मैं अब ज़ोर ज़ोर से सांस ले रही थी। मेरे होंठों के ऊपर पसीने की बूंदे इकट्ठा हो गयीं थीं।

सुरेश चाचा ज़ोर र से मेरे उरोज़ों को मसल रहे थे। मैंने बिना अपनी चूत की परवाह किये दिल मज़बूत कर के निश्चय कर लिया। मैंने अपने दोनों हाथ सुरेश चाचा की भरी बालों से भरी तोंद बार जमा कर अपने घुटने बिस्तर से ऊपर उठा लिए। मेरा पूरा वज़न अब चाचू के लंड पर टिका हुआ था। मेरी चूत सरसरा कर एक दर्दनाक धक्के में सुरेश चाचा के भीमकाय लंड की जड़ पर जा कर ही रुकी।

मेरी दर्द से भरी चीख कमरे में गूँज उठी।

सुरेश चाचा ने तरस खा कर मुझे बाँहों में भर कर बिस्तर पर बैठ गए। उन्होंने धीरे धीरे मुझे अपने लंड को मेरी छूट में हिलाना शुरू कर दिया। उनके होंठ मेरे सख्त संवेदनशील निप्पलों को चूसने लगे।

मैंने अपने हाथ उनके सर के पीछे कस कर जकड़ लिए।

मेरी चूत सुरेश चाचा की मदद से उनके मोटे लंड के ऊपर अब थोड़ी आसानी से आगे पीछे हिलने लगी।

सुरेश चाचा एक बार फिर से लेट गए। अब मैं अपने घुटनों पर वज़न दाल कर अपनी चूत को ऊपर नीचे कर सुरेश चाचा के वृहत्काय लंड से अपनी चूत मरवाने लगी।

सुरेश चाचा मेरी चूचियों को अब बेदार्दी से मसल रहे थे। मैने ज़ोंर की सिसकारी लेते हुए अपने चूतड़ को हिल हिल कर चाचू के लंड की कम से कम चार पांच इंचों से अपनी चूत का मर्दन खुद ही करने लगी।

उनका मोटे लंड की जड़ हर बार मेरे अतिपुरित भाग-शिश्न को कस कर दबा रही थी। मुझे पता ही नहीं चला पर मैं अब अपनी गांड पूरे दम लगा कर अपनी चूत चाचू के लंड पर मार रही थी।

मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठी। मेरे शरीर में एक बार फिर से मीठे दर्द भरी एंथन जाग उठी। मैंने सुरेश चाचा के लंड और भी ज़ोर और तेज़ी से अपनी चूत के अंदर डाल रही थी।

मुझे अब तक समझ आ गयी थी कि मैं अब झड़ने वाले हूँ।

सुरेश चाचा ने मेरे दोनों चूचियों को और भी कस के दबाना और मसलना शुरू कर दिया।

"चाचू, आः ... ऊउन्न्न्न ... आअह्ह्ह्ह्ह ... आअर्र्र्र्र्ग्ग्ग्ग्ग्ग मैं झड़ने वाली .. आआह्ह्ह ...चा ...चू ...ऒऒओ।" मैं सुरेश चाचा के लंड के ऊपर नीचे होते हुए चीखी।

सुरेश चाचे ने बिजली की तेज़ी से उठ कर मुझे अपनी बाँहों में भर कर चोदने से रोक लिया। मैं बिलकुल व्याकुल हो उठी और फुसफुसाई, "चाचू, प्लीज़ मैं आने वाले थी।"

सुरेश चाचा ने मेरे विनती करते होंठों पर अपने मर्दाने मोटे होंठों गो लगा कर उन्हें चूसने लगे।

मेरा रति-स्खलन जो कुछ ही क्षण दूर था वो अब तक शांत हो गया। सुरेश चाचा ने प्यार भरी कुटिलता से कहा, "नेहा बेटा, यदि मैं आपको झड़ने देता तो आप ऊपर से पूरा दिल लगा कर चुदाई थोड़े ही कर पातीं। अभी तो मेरे लंड को आपकी चूत से और भी मेहनत करवानी है। आखिर उसे आज रात आपकी कसी हुई गांड का सेवन भी तो करना है।"

मेरा सीने की धड़कन अपनी गांड मरवाने के दर्द भरे ख्याल से डर कर और भी तेज़ हो गयी। पर मेरी जलती धधकती चूत अब मेरे डर के ऊपर हावी हो गयी। मैंने एक बार फिर से अपनी चूत से चाचू के लंड को मारने लगी। दस मिनटों में मैं एक बार फिर से झड़ने के लिए तैयार थी लेकिन चाचू ने फिर से मुझे कगार के पास से वापस पीछे खींच लिया। मेरी वासना की सिस्कारियां उनके लंड को और भी बलवान बना रही थी।

मैं अब कामाग्नि में जल कर सुबक रही थी, "चाचू, मुझे झाड़ दीजिये। प्लीज़ मेरी चूत को चोद कर झाड़ दीजिये।"

मैंने पागलों की तरह अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने की कोशिश करने लगी। सुरेश चाचा बड़ी निर्ममता से अपनी कमसिन भतीजी को तरसा और तड़पा कर खुद अपनी वासना को भड़का रहे थे।

आखिर कर मेरी सुबकते हुए कामानंद को तलाशते लाल चेहरे को देख कर चाचू ने तरस खाया उन्होंने एक झटके से पलती मार कर मुझे अपने विशाल भारे भरकम शरीर के नीचे दबा कर मेरे सुबकते होंठों पर अपने होंठ चिपका दिए। उन्होंने मेरे दोनों होंठों को अपने मूंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। चाचू ने अपना भीमकाय लंड पूरा बाहर निकाल कर एक विध्वंसक धकीसे जड़ तक मेरी चूत में ठूँस दिया। मेरी घुटी घुटी चीख उनके मूंह में समा गयी।

सुरेश चाचा ने पांच बार अपना विशाल लंड सुपाड़े तक मेरी चूत से निकाल कर निर्मम अमानवीय प्रहार से मेरी चूत में जड़ तक ठूंसा। मेरी हर भयंकर धक्के से दर्द चीखी पर अखिरीर बार मेरी चीख बिना रुके ऊंची हो गयी।

मैं अचानक झड़ने लगी। मैं दर्द और वासना के अनोखे मिश्रण से घबरा कर बिलबिला उठी और चाचा से कस कर चिपक गयी। सुरेश चाचा ने मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरी भारी मादक जांघें अपने शक्तिशाली बाँहों में उठा कर मेरी चूत को लम्बे धक्कों से चोदने लगे।

मेरा पहला चरम आनंद अभी पूरे चड़ाव पर था कि सुरेश चाचा की अस्थी-पंजर हिला देने वाले धक्कों भरी चुदाई ने मेरी तड़पती हुई छूट को फिर से झाड़ दिया।

मैं अब अनर्गल बकने लगी, " चाचू चोदिये ... और ज़ोर ... से ...आह और दर्द कीजिय ... मैं फिर ... आअन्न्न्नग ...मेरी चू ... आआह।"

सुरेश चाचा ने बिना धीमे हुए हचक हचक कर जानलेवा धक्कों से मेरी चूत को चोद कर मुझे पागल कर दिया।

मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं।

सुरेश चाचा के भारी भरकम बालों से भरे चूतड़ बिजली की रफ़्तार से ऊपर नीचे हो रहे थे। उनकी जांघें मेरे चूतडों से इतने ज़ोर से टकरा रहीं थी की हर तक्कड़ कमरे में झापड़ जैसी आवाज़ पैदा कर रही थी।

सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते फुदकाए उरोज़ों को अपनी मुट्ठियों में जकड़ कर मसलने लगे। मेरे शरीर में ना जाने कितने तूफ़ान उठे हुए थे। मेरा दीमाग कभी चाचू की निर्मम चुदाई के दर्द से बिलखता था तो कभी उसी दर्दीली चुदाई के असीम काम-आनंद की बाड़ में डूबने लगता।

सुरेश चाचा ने मुझे और भी ज़ोरों से चोदना शुरू कर दिया। उनके गले से गुर्घुराहत की आवाजों ने मुझे उनके स्खलन की चेतावनी दे दी।

सुरेश चाचा ने हुंकार भर कर अपना मूसल लंड मेरी चूत में पूरा दबा आकर मेरे ऊपर गिर पड़े। उन्होंने अपना खुला मूंह मेरे हाँफते हुए मूंह पर चिपका दिया।

उनका लंड मेरी चूत के बिलकुल अंदर थिरक कर गाड़ा गरम बच्चे पैदा करने की क्षमता भरे लंड के शहद की फुहारें मेरे अविकसित गर्भ को नहलाने लगीं।

मैं तो चाचा की भयंकर चुदाई से इतनी थक गयी थी कि पहले की तरह शिथिल हो कर आँखें बंद कर करीब बेहोशी के आलम से निढाल हो गयी।

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मैं हाँफते हुए सुरेश चाचा की बाँहों में समां गयी हम दोनों के शरीर पसीने सा तर थे। सुरेश चकाह के माथे, और चेहरे पर पसीने की बूंदे इकट्ठे हो कर उनकी नाक के ऊपर बह चलीं। मैंने प्यार से उनकी नाक की नोक पर लटकी पसीने की बूँद को जीभ से चाट लिया, "सुरेश चाचा आप अपने विकराल लंड से कितने बलशाली धक्कों से मुझे चोदते हैं। आप मेरी तो जान ही निकाल देते हैं।"

सुरेश चाचा ने मुझे कस कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "नेहा बेटी, पर आपको चुदने का आनंद भी तो तभी आता है। मर्द को अपनी प्रियतमा की चूत मारते हुए उसकी सिस्कारियां और चीखें न सुनाई दें तो उस बेचारे को तो पता ही नहीं लगेगा कि उसे चुदाई से मजा भी आ रहा है या नहीं।"

मैं उनके पसीने से गीले बदन के ऊपर चढ़ कर लेट गयी, "ऊँ ..ऊँ .चाचू ये तो बड़ी अच्छी मिसाल निकाली है आपने सिर्फ बेचारी लड़कियों को भीषण अंदाज़ से चोदने के लिए।"

मैंने अपना मूंह सुरेश चाचा की पसीने से लथपथ कांख में दबा कर उसे अपनी जीभ से चाटने लगी। उनके चुदाई की मेहनत से निकले पसीने में मुझे उनकी मर्दानगी की सुगंद्ग मेरे नथुनों को अभिभूत कर रही थी।

"नेहा बेटी, अभी तो हमें आपकी गांड भे तो मारनी है," सुरेश चाचा प्यार से मेरे माथे पे पसीने की वजह से चिपके बालों को उठा कर मेरे कान के पीछे करने लगे।

"आँआँ। चाचू आप और बड़े मामा तो बस सिर्फ मुझे दर्द करने की बातें ही सोचते हैं।" मेरा अविकसित कमसिन शरीर चाचू के विकराल लंड से अपनी गांड फटवाने के विचार से सिंहर गया पर चाचा की मेरी गांड की चुदाई की इच्छा ने मुझे उत्तेजित भी कर दिया।

"नेहा बेटी, जब हमने आपकी चूत में अपना लंड पूरा डालने की मेहनत कर रहे थे तो आप बहुत चीखी चिल्लायीं कि - धीरे डालिए, धीरे डालिए- पर जब आपको आनंद आने लगा तो फिर आप हमें और भी ज़ोर से चूत मारने का आदेश दे रहीं थी।" मैं सुरेश चाचा की मेरी पतली दर्द भरी आवाज़ की बहुत खराब नकल पर हंसी आ गयी।

मैंने चाचू की नाक की नोक को दाँतों से कस कर काटने का नाटक किया, "चाचू, ये ही तो मुझे समझ नहीं आता, कि कभी हमारा मस्तिष्क कुछ कहता है और हमारा शरीर कुछ और चाहता है। शायद ये सब हमें बड़ा होने के बाद ही पता चलेगा।"

सुरेश चाचा ने मुझे प्यार से कस कर चूमा, "नेहा बेटी, बड़े मामा और हम दोनों का प्यार पहले पिता वाला हित है उसके बाद ही मतदों वाला प्यार आपके ऊपर न्यौछावर करते हैं। हमें आपके शरीर को अच्छी लगने वाली सम्भोग की हर क्रिया आपके साथ करना अच्छा लगता है।"

"तब भी आपको हमें दर्द से चिख्वाने में भी तो मजा आता है।" मैंने इठला कर सुरेश चाचा के काले चुचुक को ज़ोर चूस कर दाँतों से काट लिया। उनकी हलके से सिसकारी निकल पड़ी।

सुरेश चाचा ने मेरी नाक को चुटकी में भर कर चूंत लिया, "देखा, अभी आपने हमें प्यार से दर्द किया जो हमे बहुत ही अच्छा लगता है। नेहा बिटिया रति-क्रिया, सम्भोग, समागम या चुदाई में जो कुछ भी दोनों भागीदार करना चाहे और दोनों को अच्छा लगे वो सही है। कम-उतेजना में दर्द भी सह्वंसा का एक रूप बन जाता है।"

सुरेश चाचा बड़े मामा की तरह मुझे लड़की से स्त्री में परिवर्तित होने की शिक्षा दे रहे थे।

मैंने मुस्करा कर चाकू के होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मैंने फिर प्यार से उनका सारा मरदाने चेहरे को अपने रसीले होंठों के चुम्बनों से भर दिया। मैंने अपनी जीभ से उनके दोनों कानों में घुसा कर चाटने के बाद अपनी लार से गीला कर दिया। फिर धीरे से उनके लोल्कियों [इअर-लोब्स ] को पहले चूस अफिर दाँतों से हलके हलके मसला। चाचू के हाथ मेरी गुदाज़ पसीने से तर पीठ को सहला रहे थे।

उनके हाथों मेरे दोनों गुदाज़ फूले चूतड़ों को कस कर मसलने लगे।

मैंने अदा से मुस्कुराते हुए उनकी नाक को सब तरफ से चूमा। मैंने अपनी जीभ की नोक से उनके नथुनों को सहला कर धीरे से उनके नथुनों के अंदर डाल दी। मेरे नन्हे हाथों ने चाकू का चेहरा कस कर पकड़ लिया। मेरी जीभ बारी बारी से उनके दोनों नथुनों को एक तरह से चोद रही थी।

सुरेश चाचा की सांस भारी हो गयी और मेरी जीभ के ऊपर गरम भाप की तरह लग रही थी।

जब मुझे लगा कि मैंने सुरेश चाचा के कामाकर्षक चेहरे को खूब प्यार लिया है तो मैं धीरे अपनी जीभ से उनकी मोटी गर्दन को चाट कर उनकी घने बालों से ढकी छाती को चिड़ाने लगी।

सुरेश चाचा के हाथ उनकी उत्तेजना को मेरे चूतड़ों को मसल कर मुझे उत्साहित करने लगे।

मैंने उनके दोनों चुचुकों को चूमा और चूसा। मैंने उनकी भरी तोंद को सब तरफ प्यार से चूमा और चाटा।

मैं सुरेश चाचा की गहरी नाभि को अपनी जीभ कुरेदने लगी। सुरेश चकाह एन अपने शक्तिशाली बुझाओं से मेरे चूतड़ों को पकड़ कर उन्हें अपने सीने की तरफ खींच लिया। मेरे घुटने उनके सीने के दोनों तरफ थे।

मेरा प्यासा मूंह अपने लक्ष्य की ओर धीरे धीरे पहुँच रहा था।

मेरी गुलाबी कोमल जीभ ने चाचू के पसीने से तर जंघाओं को चाट कर और भी गीला कर दिया।

सुरेश चाचा का दान्वियकार लंड थरकने लगा। मेरे नन्हे हाथ उसके विशाल स्थूलता के सामने और भी छोटे लग रहे थे।

मेरे मूंह चाचू के लंड को पास पा कर लार से भर गया।

उनके भारी लंड को को उठा कर मैंने उसे सीधा खड़ा कर उसके मोटे वृहत सुपाड़े को अपने गरम मूंह में छुपा लिया। सुरेश चाचा ने अपने बड़े शक्तिशाली हाथों से मेरे फूले गुदाज़ चूतड़ों को मसल कर चौड़ा दिया। उससे मेरी गुलाबी चूत और नन्ही सी गुदा उनकी आँखों के सामने पूरी तरह खुली हो कर उन्हें आनंदायक दृश्य पेश कर रही होंगीं। मेरी चूत पर हलके रेशमी मुश्किल से दिखने वाले रोम मेरे रस से भीग कर मानों गायब हो गए।

सुरेश चाचा का विशाल लंड मेरे हाथों और मूंह के प्यार से तेज़ी से कठोड़ता की तरफ बड़ने लगा। मेरे दोनों हाथों की उंगलियाँ उनके विकराल स्तम्भ को पूरी तरह घेरने के लिये अकुशल थीं। उनके दानवीय लंड की मोटाई देख कर मुझे बड़े मामा का लंड और भी विशाल लगने लगा।

सुरेश चाचा ने अपनी मध्यम उंगली मेरी चूत के संकरे द्वार के अंदर डाल दी। उनकी लम्बी उंगली ने मेरे अविकसित र्गर्भाशय की ग्रीवा को सहलाना शुरू कर दिया। मुझे अपने गर्भाशय के हिलने से एक विचित्र सा दर्द और जलन सी होती थी।

मैं सिसक उठी और नासमझी में अपने दाँतों को चाचू के लंड पर कस लिया। चाचू की सिसकारी निकल पड़ी । उन्हें ज़रूर दर्द हुआ होगा पर उस दरद के प्रभाव से उनका लंड एक क्षण में ही लोहे की मोटी छड़ की तरह तन्ना उठा।

मेरे नन्हे मूंह के कोने उनके सेब जैसे सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए इतने फ़ैल रहे थे कि मुझे थोड़ी पीड़ा होने लगी।

सुरेश चाचा की उंगली मेरी चूत की कोमल सुरंग के द्वार के भीतर एक अत्यंत संवेदनशील स्थल धूंड कर उसे रगड़ने लगी। उस से मेरी सिसकारी फुट पड़ीं। मौका देख कर सुरेश चाचा ने अपनी तर्जनी को मोड़ कर मेरी गुदा द्वार के तंग छिद्र के ऊपर लगा कर दबाने लगे।

मैंने बड़ी मुश्किल से उनके विशाल लंड अपने मूंह में रख कर उसे चूस पा रही थी। मेरी जीभ ने लेकिन उनके मूत्र-छिद्र को धूंड कर उसे परेशान करने लगी।

हम दोनों अब वासना के ज्वर से धधक रहे थे। मुझे पता था कि जब तक सुरेश चाचा मेरी गांड मारने के लिए तैयार नहीं होंगे मैं कितना भी उत्तेजित हो जाऊं वो मेरे धैर्य की परीक्षा लेंगे।

सुरेश चाचू की मोटी लम्बी उंगली धीरे धीरे मेरे गुदा द्वार को खोल कर मेरे मलाशय में प्रविष्ट हो गयी। मेरी गांड का छेद हलके हलके से जलने लगा। सुरेश चाचा ने जड़ तक अपनी उंगली मेरे मलाशय में डाल कर उसे भीतर ही दबा कर गोल गोल घुमाने लगे। मेरे मलाशय की कोमल दीवारों से एक विचित्र सा संवेदन उठने लगा।

उनकी उंगली ने मेरे मलाशय में पहले से ही इकट्ठे 'मेहमानों' को हिला हिला कर मुझे और भी उत्तेजित कर दिया। मैं सिसक उठी।

"चाचू, क्या आप मेरी छूट को नहीं झाड़ेंगे?" मैं वासना से लिप्त आवाज़ में होल से बुदबुदाई।

"नहीं, मेरी सुंदर बिटिया।आज तो हम आपकी गांड मार कर आपको झाड़ेंगे।" सुरेश चाचा ने बड़े मर्दानगी भरे अधिकार से मुझे और भी उत्तेजित कर दिया।

चाचे ने अपनी उंगली से मेरी गांड को चोदने लगे। मेरी गांड के छल्ले की जलन धीरे धीरे कम हो कर बिल गायब हो गयी। मेरी गांड अब चाचू की उंगली की और उठ रही थी। चाचू मेरे भग-शिश्न को चूसते हुए अब तेज़ी से मेरी गांड में अपनी उंगली अंदर बाहर कर रहे थे।

मैं उनके दो तरफ़ा आनंद के प्रभाव से झूम उठी। मेरी गांड में अब अनद की झड़ी चल उठी। मेरा हृदय अचानक अपने गांड में चाचू के उंगली से भी मोटा और लम्बा हथियार की अपेक्षा से मचल उठा।

सुरेश चाचा ने अपनी उंगली मेरी गांड से निकाल कर उसे कस कर अपने मूंह में डाल कर चूस लिया। सुरेश चाचू ने मुझे पेट और घुटनों पर लिटा कर मेरी गांड-हरण के लिए तैयार कर दिया।

चाचू ने अपना विकराल लंड मेरी चोट में डाल कर उसे मेरे रति-रस से लिप कर लिया।

मेरी गांड उनकी चुसाई से फड़क रही थी। मैंने अपना निचला होंठ अपने दांतों तले दबा लिया।

सुरेश चाचा ने मुझे पेट के बल लिटा कर मेरे चूतड़ हवा में ऊपर उठा कर मेरा सर नीचे झुका दिया। मैंने अपना सर अपने आड़े मुड़े बाजुओं पर रख कर अपनी गांड में सुरेश चाचा के विकराल लंड के दर्द भरे आक्रमण के लिए तैयार होने की कोशिश करने के लिए सांस थाम ली।

सुरेश चाचा ने अपने विशाल हाथों से मेरे दोनो चूतड़ों को मसला और फिर कस कर दबाने लगे। मेरा शरीर मेरी दर्द भरी गांड की चुदाई की प्रतीक्षा से सुलगने लगा। मेरे शरीर में हलके से कम्पन मेरी कमर की मांसपेशियों में हल्की सी लहर सी पैदा कर देते थे।

यह सब सुरेश चाचा की कामाग्नि में घी का काम कर रही थी। उन्होंने आखिरकार मेरे चूतड़ों को फैला कर मेरे नन्हे से गुदाद्वार को चौड़ा करने का असफल प्रयास किया। मैंने अपना निचला होंठ अपने दाँतों टेल कस कर दबा लिया। सुरेश चाचू ने अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी दर्द और वासना की अदभुत मिलीजुली आकांक्षा से फड़कती गांड के छिद्र के ऊपर रख कर उसे दबाना शुरू कर दिया। सुरेश चाचा को मेरी नन्ही सी गांड का प्रवेश द्वार और अपने विकराल भीमकाय लंड की असंगती से कोई भी मेरे लिए सहानभूति हृदय में उठी हो तो उन्होंने उसे दर्शित नहीं किया।

चाचू ने मेरी कमर को कस कर अपने शक्तिशाली हाथों से पकड़ कर मुझे छोटे निरीह जानवर की तरह बिस्तर पर दबोचक कर जकड़ लिया। सुरेश चाचा ने अपने भारीभरकम शरीर की ताकत का प्रयोग कर अपने लंड को अविरत दवाब लगा कर मेरी गांड के छेद का निष्फल प्रतिरोध के समर्पण की प्रतीक्षा से कर रहे थे। मुझे लगा कि सुरेश चाचा यदि चाहते तो एक झटके में मेरी गांड के कोमल निसहाय का मर्दन कर सकते थे।

चाचू के लिए मेरी गांड और मेरी अंदर की अविक्सित स्त्री का समर्पण मिल कर एक उत्तेजक प्रतिरोध बन गए थे।

अचानक बिना किसी घोषणा के मेरा मलद्वार का छिद्र जो अब तक एक बड़ी बंद मुठी को बहर रोकने में सफल रहा था, उसने सुरेश चाचा के वज्र सामान कठोड़ उदंड स्थूल लंड के सुपाड़े के सामने समर्पण कर अपने अस्त्र नीचे दाल दिए।

सुरेश चाचा का वृहत सुपाड़ा मेरी कमसिन अपरिपक्व एक दिन पहले तक अक्षत गांड में एक झटके से अंदर समा गया।

मेरी गांड चुदाई के दर्द को बिना चीखे चिल्लाये सहन करने की सारी तैय्यारियाँ व्यर्थ चली गयीं। मेरे गले से दर्द से भरी चीख उबल कर सारे कमरे में गूँज उठी।

मेरी चीख मानो सुरेश चाचा के लिये उनके विशाल लंड की विजय की तुरही थी।

सुरेश चाचा ने जैसे ही मेरी चीख का उत्कर्ष अवरोह की तरफ बड़ा एक भीषण निर्मम धक्के से अपने विकराल लंड की दो तीन इन्चें मेरे मलाशय में घुसेड़ दीं। मेरी दर्द से भरी चीखों ने सुरेश चाचा के हर भयंकर निर्मम धक्के का स्वागत सा किया।

"चाचू, मैं मर गयी ... मेरी ... ई ... ई ... गा ...आ ... आ ... आंड ... आः बहु ...आः दर्द ... चा ...आआआ ..." मैं बिबिला कर मचल रही थी पर मेरी स्तिथी एक निरीह बछड़े की तरह थी जो एक विकराल शेर के पंजों और दाँतों के बीच फंस चुका था।

सुरेश चाचा ने शक्तिशाली विश्वस्त मर्दाने धक्कों से अपना लंड मेरी तड़पती, बिलखती गांड में पूरा का पूरा अंदर डाल दिया। मेरे आँखों में दर्द भरे आंसू थे। मैं तड़प कर बिलबिला रही थी पर मेरे मचलने और तड़पने से मेरी गांड स्वतः चाचू के लंड के इर्द-गिर्द हिलने लगी।

सुरेश चाचा ने अपने विकराल लंड मेरी जलती अविस्वश्नीय अकार में चौड़ी हुई गांड से बाहर निकालने लगे। मेरी गुदा के द्वार ने उनके लंड की हर मोटी इंच की दर्द भरी रगड़ को महसूस किया। मेरी दर्द भरी सीत्कारी ने सुरेश चाचा के की मेरे कमर के ऊपर की जकड़ को और भी कस दिया।

सुरेश चाचा ने एक गहरी सांस ले कर अपने शक्तिशाली शरीर की असीम ताकत से उत्त्पन्न दो भयंकर धक्कों में मेरी गांड में जड़ तक शवाधन कर दिया। मेरी चीत्कार पहले जैसी हृदय-विदारक तो नहीं थी पर फिर भी मेरे कानों में जोर से गूँज रही थी। चाचू ने बेदर्दी से अपना विशाल लंड की छेह और सात इंचों से मेरी गांड का मर्दन शुरू कर दिया।

चाचू के हर धक्के से मेरा पूरा असहाय शरीर हिल रहा था।

सुरेश चाचा ने मेरी दर्द भरी चीत्कारों की उपेक्षा कर मेरे मुलाशय की गहराइयों में में अपना लंड मूसल की तरह जड़ तक कूटने लगे।

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