Category: Incest/Taboo Stories

नेहा का परिवार 15

by SEEMASINGH©

नेहा का परिवार

लेखिका:सीमा

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CHAPTER 15

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अकबर चाचू की उनकी नन्ही साली की चुदाई की कहानी से हम सब गरम हो गए।

"अब्बू आप कितने बेरहम हैं। बेचारी शन्नो मौसी को आपने कैसे बेदर्दी से रगड़ा। मुझे तो उन पर बहुत तरस आ रहा है ,"शानू ने अकबर चाचू को उलहना दिया पर उसकी आँखों में एक अजीब से चमक थी। शानू की आँखों में अपने अब्बू के लिए फख्र साफ साफ ज़ाहिर हो रहा था।

" अरे शानू रानी यह तो तुम्हारा अपनी तरह नाटक करने वाली साली के तरफ बेवज़ह का तरस है। मुझे तो शन्नो मौसी के जीजू के ऊपर बहुत फख्र है। उन्होंने कितनी समझदारी से इन्तिज़ार किया। चाचू यदि चाहते तो रज्जो चाची की मदद से शन्नो मौसी को ज़बरदस्ती पकड़ कर रगड़ देते पहले ही दिन ," मैंने मुस्करा कर चाचू की तरफ देखा। मेजपोश के नीचे मेरा हाथ उनके फड़कते लंड को सहला रहा था।

" भाई साली साहिबा मैं भी नेहा की बात से राज़ी हूँ। मामूजान ने बहुत ही सबर से काम लिया था। " आदिल भैया ने कहते हुए कुछ न कुछ ज़रूर किया थे मेज़पोश के नीचे। शानू का लाल मुंह कुछ कहने के लिए खुला पर कोई शब्द नहीं निकला उसके खुले गुलाबी होंठों से।

तब तक खाने का वक्त हो चला। खाने के साथ लाल और सफ़ेद मदिरा थीं। शानू को किसी ने भी नहीं रोका पीने से।

हम सबने खाने के साथ शब्बो बुआ के हांथों की बनी रसमलाई भी चट कर गए।

अकबर चाचू का अपनी अनिच्छुक या नाटक वाली छोटी साली को पटाने और चोदने के गरम गरम किस्से से हम दोनों लड़कियां चुदवाने के लिए तड़पने लगीं। मैंने लगातार चाचू उनके पजामे के ऊपर से सहला कर आधा खड़ा कर दिया था। उन्होंने, मुझे पूरा भरोसा था कि, कच्छा नहीं पहना था अपने पजामे के नीचे । मैं बिना देखे जानती थी कि शानू भी आदिल भैया का लंड अपने हाथ के काबू में रखे होगी।

"मामू वल्लाह मज़ा आ गया. साली की ज़िद तोड़ कर ही माने आप।" जीजू ने शानू की और टेड़े टेड़े देख कर चाचू को बधाई दी।

"आदिल बेटा साली कितनी भी नखरे करे या हाथ भी मुश्किल से रखने दे लेकिन उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। कभी कभी सुन्दर और कमसिन सालियां बहुत मेहनत करवातीं हैं। आखिर जब बीबी मर्द का पूरा ख्याल नहीं रख सकती साली ही तो ख्याल रखती है। " चाचू भी शानू की ओर देख कर मुस्कराये।

"आप दोनों पीछे गलत सलत पड़े है। मैंने कब जीजू को इतना सताया जितना शन्नो मौसी ने अब्बू को। और अब मैंने मना किया है जीजू को। और मैं आज रात भी जीजू ख्याल आपा जैसे ही रखूंगीं। " शानू ने जोश में जो भी मुंह में आया बोल तो दिया पर जब उसके दिमाग ने ख्याल किया तो वो शर्म लाल हो गयी। उसने जीजू के बाज़ू में मुंह छुपा लिया।

हम सब बेचारी के ऊपर ज़ोरों से हंस पड़े।

"चाचू मैं थोड़ा थक गयीं हूँ. पानी पी कर मैं सोने चलती हूँ ," मुझे अकबर चाचू के ऊपर बहुत प्यार आ रहा। था. मैं उनके लम्बे सम्भोग-उपवास को जल्दी से तोड़ना चाह रही थी।

" नेहा बेटा मैं भी पानी पियूँगा ," मैं अपने लिए ताज़ा ठंडा पानी लेने फ्रिज की ओर चल दी।

"मामू मैं भी सोने चलता हूँ," जीजू ने भी विदा ली।

"अब्बू मैं भी सोने चलती हूँ," शानू जल्दी से मुझे चुम्म कर आदिल, भैया के पीछे दौड़ गयी। मेरी छोटी सहेली नासमझ थी की सोचे समझे जीजू की तरफ दौड़ रही थी। शानू अभी भी लंगड़ा थी।

चाचू और मैं यह देख कर फिर से हंस दिए।

"जीजू आज रात शानू चूत की तौबा बुलवा देंगे," मैंने चाचू के लंड को सहलाते हुए कहा।

"भाई आदिल की साली है हमारी बेटी शानू। जीजू की मर्ज़ी जितना वो चाहे उतना हक़ है जीजू को साली की चूत कूटने का। हमारे दिमाग पर तो तो सिर्फ एक चूत का ख्याल तारी है। हम तो नेहा की चूत को ख़राब करने के लिए आमादा हैं ," चाचू ने मेरी चूची कपड़े के ऊपर से मसलते हुए कहा।

" नेकी और बूझ बूझ" मैंने चूतड़ हिलाते हुए चाचू को अपनी चूत का बजा बजवाने का न्यौता दिया।

चाचू ने मुझे बिना सांस लिए बाज़ुओं में उठा लिया मानों मैं फूलों के गुच्छे से भी हलकी थी।

कमरे पहुँचते चाचू ने मुझे उछाल के बिस्तर पर पटक दिया। अकबर चाचू ने अपना कुरता-पजामा बिजली फुर्ती उतार फेंका। अब इनका हाथ भर का घोड़े जैसा मुस्टंड लंड कर चूत को धमकी देने जैसी सलामी दे रहा था।

मैं पहले तो आश्चर्य और डर से चीख उठी पर जब गुदगुदी बिस्तर पर खिलखिला कर हंस पड़ी। चाचू एक छोटी सी छलांग से बिस्तर पर चढ़ गए। उनका लम्बा खेला खाया भारी बालों से ढका शरीर मुझे नीचे लेते हुए दानवीय आकार का लग रहा था।

चाचू ने अपना पूरा वज़न मेरे कंचन गदराये शरीर पर डाल के मेरे हँसते मुंह के ऊपर अपना मुंह चिपका दिया। उनकी ज़ुबान मेरे खुले मुंह के हर कोने किनारे की तलाशी लेने लगी। मैंने भी अपनी बाँहों का हार चाचू को पहना दिया। हम दोनों का खुले मुंह का चुम्बन बड़ा गीला और थूक की अदला बदली वाला था। । चाचू ने बड़ी से बेसब्री मेरे कपड़े लगभग चीड़ फाड़ कर अलग फेंक दिए ।

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अकबर चाचू ने गुर्राहट की आवाज़ में कहा , "नेहा बेटी मुझे आपकी चूत तुरंत चाहिए। "

मैं चाचू की हवस की नादीदी और बेसब्री से बहुत उत्तेजित हो गयी।

"चाचू मेरी चूत आपकी है। चोदिये इस निगोड़ी को। फाड़ डालिये अपने घोड़े जैसे लंड से। चाचू मेरी चूत मारिये। बहुत तरसा लिया आपने। " मैं वासना के ज्वर में बिलख कर गुहार मारने लगी।

चाचू ने अपना भीमकाय लंड का सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी चूत के द्वार में फंसा कर एक दमदार धक्के से लगभग एक तिहाई लंड मेरी चूत में ठूंस दिया। मैंने अपने निचले होंठ को दांतों तले दबा लिया था। पर फिर भी मेरी चीख निकल गयी।

अकबर चाचू की की चार पांच इंचे भी मेरी चूत फाड़ने के लिए काफी थीं।

चाचू ने मेरे होंठों को अपने मुंह में फंसा कर एक और तूफानी धक्का लगाया और अपने महाकाय लंड को मेरी चूत में ठूंस दिया। मैं सुबक उठी। मेरा प्यार चाचू की हवस की बेसब्री से और भी प्रबल हो उठा।

"चाआआआ चूऊऊऊऊ मार डाला आपने मुझे धीरे चाचूऊऊऊ ," मैं चीखे बिना ना रह पायी।

चाचू ने अपना आखिरी एक तिहाई लंड मेरी चूत में वहशी अंदाज़ में ठूंस कर मेरी चूत को बेसबरी से चोदने लगे।

शुक्र है की चाचू की कहानी और उनके लंड की मालिश के प्रभाव से मेरी चूर बहुत गीली थी। अन्यथा चाचू के विशाल दानवीय लंड से मेरी कमसिन चूत के चीथड़े उड़ जाते। अकबर चाचू अपने, हाथ भर से भी लम्बे और मेरी हाथ कोहनी [अग्रबाहु/फोरआर्म ] से भी मोटे लंड से मेरी कमसिन चूत को लम्बे सशक्त धक्कों से चोदने लगे।

मेरी सिस्कारियां चाचू के मुंह में दफ़न हो गयीं। मेरे नितिम्ब दर्द के बावजूद चाचू के लंड के स्वागत के लिए ऊपर नीचे होने लगे। चाचू का लंड मेरी गीली चूत में सटासट अंदर बाहर हो रहा था।

"नेहा बेटी बहुत दिनों की भूख है। शायद मैं जल्दी झड़ जाऊं। पर फ़िक्र मत करना दूसरी बार तुम्हे झाड़ झाड़ के बेहोश कर दूंगा ," मुझे अकबर चाकू के ऊपर स्त्री और मातृत्व का मिला जुला प्यार आ रहा था।

"चाचू मैं तो आयी ही हूँ आपके लिए। जब मर्ज़ी हों झड़ जाइये। मेरी चूत अब आपकी है। " मैं चाचू के मुंह में फुसफुसाई। चाचू ने अब घुरघुरा के मेरी चूत पर अपने महाकाय लंड का आक्रमण और भी तीव्र कर दिया। मैं भरभरा कर झड़ गयी। चाचू ने बिना धीमे हुए आधे घंटे से भी ज़्यादा मेरी चूत मारी और मैं हर कुछ मिनटों के बाद झड़ रही थी।

अचानक चाचू ने अपना लंड मेरी गीली लबालब रति रस से भरी चूत में निकाल लिया। जब तक मैं कुनमुना कर शिकायत करती अकबर चाचू ने मुझे गुड़िया की तरह उठा कर मेरी गांड को आसमान की तरफ उठा कर घुटनों और मुंह के बल पट लिटा दिया। चाचू अब मुझे घोड़ी या कुतिया के अंदाज़ में चोदने के इच्छुक थे।

मैंने अपने गाल मुड़ी बाँहों पे टिका कर गांड को चाचू के लिए हिलाने लगी।

चाचू ने बिना देर लगाये मेरी रति रस से लबालब गीली चूत में अपना लंड फंसा कर तीन ज़बरदस्त धक्कों से जड़ तक अपना विशाल लंड ठूंस दिया। मैं हलके से करही पर चाचू ने बिना हिचक मेरी चूत का मर्दन भीषण धक्कों से जो शुरू किया तो मैं आनंद के सागर में गोते खाने लगी।

"चाआआआ...चूऊऊऊऊऊ ... आआन्न्न्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ...ह्हूऊऊन्न्न्न्न्न्न्न ...आअन्न्न्न्न्न्न्न्न ," मैं आनंद के अतिरेक से बिलबिला उठी। मेरे चरम-आनंद की तो मानों एक लम्बी कड़ी बन चली।

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चाचू के बलशाली धक्कों से मैं सर से चूतड़ों तक हिल जाती। चाचू के हर धक्के का अंत चाचू की जांघों के मेरे कोमल गुदाज़ नितिम्बों के ऊपर थप्पड़ के शोर के साथ होता। उनका लंड फचक फचक फचक की अश्लील अव्वाज़ें पैदा करता हुआ मेरी चूत की रेशमी गहराइयों को ना केवल नाप रहा था पर उनके लंड की विकराल लम्बाई उन गहराइयों को और भी अंदर तक धकेल रहीं थी।

मैं सुबक सुबक कर झड़ रही थी। चाचू के हांथो ने मेरे उरोज़ों को मसल मसल कर लाल कर दिया। मेरे चूचियों के ऊपर सम्भोग की गर्मी से उपजे पसीने की एक हलकी सी परत की फिसलन उनके हाथों को बहुत रास आ रही थी।

चाचू ने मेरे उरोज़ों को नृममता से मसलने कुचलने के बाद अपने हांथों को मेरे हिलते कांपते चूतड़ों के ऊपर जकड दिया। चाचू ने बेदर्दी से अपना एक अंगूठा मेरी गांड में ठूंस दिया। मैं चहक उठी। चाचू ने मेरी चूत मारते मारते मेरे गांड में उसी लय से अपना अगूंठा भी धकेलने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने अपना दूसरा अंगूठा भी मेरी गांड में घुसा दिया। उन्होंने उस पकड़ को इस्तेमाल कर मेरी चूत का मर्दन जारी रखा। उनके अंगूठे मेरी गांड के तंग छेड़ को चौड़ा कर रहे थे। मुझे लगा कि चूत की कुटाई के बाद मेरी गांड की तौबा बुलवाने के लिए तटपर थे चाचू। मैं मीठे दर्द से सुबक उठी। मेरी सिस्कारियां हल्की घुटी घुटी चीखों के सिंगार से चाचू के कानों में संगीत का रस भर रहीं थीं।

"चाआआ चूऊऊऊऊऊ ...चोदिये मुझे ...आआह्ह्ह्ह चो ...ओओओओओओओओ दीईईईईई ये एएएएएएए और ज़ोओओओओ रर से उउन्न्न्ह्ह्ह्ह्ह," मैं कामोन्माद की आग में जलते हुए चिल्लायी। चाचू ने मेरी चूत के कूटने की रफ़्तार को और भी उन्नत चढ़ा दिया।

मेरे चूत में रति रस के मानों फव्वारा फुट उठा। मैं अब गनगना उठी। चाचू मुझे बिना थके उसी रफ़्तार से चोदते रहे और मैं निरंतर झड़ रही थी। वासना के आनंद के उन्माद ने मुझे थका सा दिया। चाचू ने गुर्रा कर मेरे चूत में अपना लंड और भी ताकत से धकेला, "नेहा मैं तुम्हारी चूत में पानी छोड़ने वाला हूँ। "

"हाँ चाचू भर दीजिये मेरी चूत अपने गरम से। नहा दीजिये मेरे गर्भ को अपने उर्वर मलाई से ," मैं भी वासना के अतिरेक से अनर्गल बोलने लगी।

चाचू ने एक घंटे से भी ऊपर लम्बी चुदाई के बाद मेरी फड़कती चूत में अपने वीय का फव्वारा खोल दिया। चाचू का लंड थिरक थिरक कर मेरे गर्भाशय के ऊपर उपजाऊ वीर्य की पिचकारी बार बार मार रहा था।

चाचू ने हचक कर तीन चार धक्के और मारे और मैं चरमानंद की कमज़ोरी में पेट के बल ढुलक गयी और चाचू भी अपने पूरे वज़न से मेरे ऊपर ढुलक गए।

चाचू ने मेरी चूत से लंड निकल के मुझे बाँहों में भर लिया ," खुदा की रहमत हो आप तो नेहा बेटी। उसकी नियामत ही ले कर आयी है आपको मेरे पास जीते जी जन्नत में पहुँचाने के लिए। "

मैंने भी प्यार से चाचू को खुले गीले मुंह से चूमा ," पर चाचू यदि आप एक घंटे से भी ज़्यादा चुदाई को जल्दी झड़ना कहतें है तो लम्बी चुदाई में तो मेरी हालत ही ख़राब कर देंगे। "

"नेहा बेटी चुदाई में बिगड़ी हालत में जितना मज़ा है उस से बेहतर मज़ा और कहाँ से मिल पायेगा। "

चाचू ने मेरे मुंह को कस कर अपने हांथो में पकड़ कर मेरे होंठो को जम कर चूसा। फिर उन्होंने मेरे फड़कती नासिका को अपने मुंह में भर लिया। उनकी जीभ की नोक ने मेरी नासिका के आकार को मापा। चाचू ने जीभ को पैना कर एक एक करके मेरी दोनों नथुनों को चोदने लगे। मैं पहले तो खिखिला कर हंस दी। फिर न जाने कैसे चाचू की इस विचित्र क्रिया से भी मेरी चूत में हलचल मचने लगी। मुझे याद आया कि बड़े मामा ने भी मुझे ऐसे के आनंद दिया था। वासना के खेल में ना जाने कितने नए आनंदायी मोड़ मिलेंगे।

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अकबर चाचू ने मेरे नथुनों को जी भर कर अपनी जीभ से चोदा। मेरी चूत में चाचू की इस प्रत्यक्षता में विचित्र इच्छा का प्रभाव शीघ्र मेरी चूत में दर्शित होने लगा। मेरी चूत में आनंद की हलचल फिर से लहर उठने लगी। चाचू का जब मेरे नथुनो के जिव्हा-चोदन से मन भर गया तो उन्होंने मुझे चूम कर कहा ," क्या हमारी बिटिया की गांड अपने चाचू का लंड खाने के लिए तैयार है?"

चाचू ने मेरी चूचियाँ कस कर मसल दीं। " चाचू, मेरी गांड तो शामत आने वाली है चाहे वो तैयार हो या ना हो, " मेरे नहें हाथों में चाचू का बलशाली दानवीय लंड जुम्बिश मर रहा था।

"चाचू मुझे घोड़ी बना कर मेरी गांड मारेंगे या चिट लिटा कर?" मैंने चाचू को और भी उकसाने का प्रयास किया। चाचू ने मेरी नाक को दांतों से चुभलाये और मेरे दोनों चुचूकों को मसल कर मड़ोड़ा ," नेहा बिटिया तुम्हारी गांड तो एक खास तरिके से मारूंगा आज। "

चाचू लपक कर बिस्तर से अलमारी से एक अजीब सी चटाई निकाल लाये।

उन्होंने चटाई बिस्तर के ऊपर बिछा दी। उस चटाई की अजीब से बनावट थी। कोई तीन-चार फुट लम्बी और बहुत बिस्तर जैसी चौड़ी थी। चाचू ने जब उसे बिस्तर पर तकियों के नीचे से फैला दिया तो मैं उसे चकित हो कर देखने लगी। उस पर मिले जुले आकार की घुन्डियाँ भरी हुईं थी। वो किसी खास रबड़ की बनी होती मालूम पड़ती थी। ऊपर के हिस्से में थोड़े छोटे और घने घुन्डियाँ थीं। नीचे के हिस्से में बड़ी घुन्डियाँ थीं। इस विचित्रता का मतलब मुझे शीघ्र प्राप्त हो गया।

चाचू ने मुझे उसके ऊपर पेट के बल पट्ट लिटा दिया। चटाई मेरी गर्दन के नीचे से मेरी आधी जांघों तक फ़ैली थी। चाचू ने मेरी टांगें पूरी फैला दीं। फिर उन्होंने मेरी सारी कमर को चुम्बनों से गीला कर दिया। मेरे शरीर के हर जुम्बिश पर मेरी चुचिया, पेट और मेरी चूत की रगड़ उन घुंडियों के ऊपर और भी स्थापित हो जाती। पहले पहल तो उससे जलन और हलके दर्द का आभास हुआ फिर मेरे चुचूक सख्त हो गए और मेरे भग-शिश्न का दाना उन घुंडियों पर रगड़ खा कर कर मचलने लगा। चाचू ने में मुलायम गोश्त को चुम, काट कर लाल करने के बाद मेरे नितिम्बों को चौड़ा फैला कर मेरी फड़कती गांड के छेड़ के ऊपर अपना मुंह दबा दिया।

चाचू ने मेरे दोनों चूतड़ कस के अपने हाथों से मसल दबा कर चौड़ा दिए और उनका भूखा मूंग मेरी गुदा-छिद्र के ऊपर चिपक गया। उहोनेमेरी गांड के छेड़ को जीभ से कुरेदने के साथ साथ मुझे ऊपरनीचे भी हिलाने लगे। अब मुझे उस चटाई के जादू समझ आ गया। मेरे चुचूक चूचियाँ औए मेरी चूत और उसकी घुंडी चटाई की गोल गोल गांठों के उपर रगड़ खा रहीं थी। पट लेटने से एक थोड़ी सी असहाय महसूस करने के साथ साथ शरीर के सारे कामोद्दीपक क्षेत्रों को रगड़ रगड़ कर, चटाई चार हांथों का काम कर रही थी।

मैं सिसक उठी ,"चाचू मेरी गांड को ज़ोर से चाटिये। उउउम्म्म्म्म्म्म्म। "

मेरी चूत रगड़ने से गनगना उठी। मेरा भाग-शिश्न तनतना तो पहले ही गया था अब लगातार रगड़ के हस्तमैथुन के प्रभाव से कामोन्माद के कगार पर मेरी चूत को ले आया। मैं अचानक हलकी से चीख के साथ झड़ गयी।

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चाचू का लंड तन्नाया हुआ था। उनके लंड के खम्बे पर मोटी सर्पों जैसे घिमावदार नसें फूल गयीं थीं। उनका सुपाड़ा लाल से जामुनी रंग का हो चला था। उन्होंने आने विशाल भरी शरीर को मेरे नितिम्बों के दोनों ओर घुटनों के ऊपर रख कर मेरे दुदाज़ चूतड़ों के बीच छुपे गुदा-द्वार को अपने तड़कते लंड से ढूंढ कर अपने महाकाय सेब जैसे सुपाड़े को मेरी नन्ही गांड के छेद पर रख दिया।

फिर चाचू अपने भारी भरकम शरीर के पूरे वज़न के साथ मेरे ऊपर लेट गये। उन्होंने मेरी उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फंसा लीं। अब ममेरी दोनों टांगें और बाज़ू पूरे शरीर से दूर फ़ैल गए थे। उनके विशाल बालों से ढके भारी शक्तिशाली नितिम्बों ने एक जुम्बिश सी ली और उनके सुपाड़ा मेरे गांड के छेद पर दस्तक देने के बाद उसे खोलने के लिए बेताब हो गया।

मेरा छोटी हिरणी जैसा शरीर चाचू के विशाल शरीर के नीचे दबा हुआ था , उस दबाव से मेरी चूचियाँ और चूत खुल कर चटाई के बड़े बड़े गांठों के ऊपर और भी रगड़ खा रहे थे।

चाचू ने मुझे बिलकुल निसहाय कर के एक ज़ोरदार धक्का लगे। मैं चीख उठी दर्द के मारे , " चाचू नहीईईइ... धीईईईई ...रेए...ए...ए...ए...ए...ए...। " बिलबिला कर चाचू से तरस खाने के लिए गुहार की।

चाचू ने मुझे अब नन्ही हिरणी की तरह अपने विशाल शरीर के नीचे दबा रखा था। मैं कितना भी बिलबिला कर तड़पती पर कुछ भी नहीं कर सकती थी। चाचू ने दूसरा भयंकर धक्का मारा। उनका लंड मेरी गांड के तंग द्वार को फैला कर अंदर धसने लगा। मेरी सुबकाई के साथ साथ मेरी आँखों में आंसू भर गये दर्द के प्रभाव से।

चाचू ने निर्मम खूंखार धक्कों से मेरी गांड के भीतर अपना महाकाय लंड ठूंसते रहे। आखिर में उनके घुंगराले झांटे मेरे चूतड़ों की कोमल त्वचा को रगड़ रही थी। मैं दर्द से बोझिल बिलबिलाने के बावजूद भी समझ गयी कि चाचू का विकराल गांड-फाड़ू जड़ तक मेरी गांड में विजय-पताका फहराते हुए स्थापित हो चूका था।

" नेहा बेटा तुम्हें नमृता चाची ने समझाया होगा की यदि लड़की की चीख ना उठे दर्द से बिलबिला कर और उसकी आँखें आंसुओं से न भरे तो मर्द के लंड पे बड़ी तोहमत लग जाती है।"

मैं दर्द से बिलख उठी थी और कुछ नहीं बोल पाई। चाचू की बात बिलकुल सही थी।

चाचू में मुझे अपने नीचे कस कर दबा कर मेरी गाड़-हरण शुरू कर दिया। उनके भरी चूतड़ ऊपर उठते और उनका लंड मेरी तड़पती गांड से बाहर निकलता और फिर चाचू अपना पूरे भरी वज़न का फायदा उठा कर मेरे ऊपर अपने को पटक देते और उनका वृहत मोटा लम्बा लंड एक धक्के ऐसे मेरी गांड में जड़ तक समां जाता।

अब मेरी गांड की चुदाई की एक लय सी बन गयी। चाचू के वज़न से मेरी चूचियों चटाई की गांठों से मसल रहीं थी। चाचू के लंड का हर धक्का मेरा शरीर को कई इंचों तक ऊपर धकेल देता। उस से मेरी चूत चूचियाँ और भग-शिश्न रगड़ खा रहे थे रहे थे।

चाचू की जादुई चटाई उनके साथ मिल कर मेरी चुदाई में उनका पूरा साथ दे रही थी।

चाचू ने मेरी गांड ज़ोरदार धक्कों से मारनी शुरू की। मेरी दर्द भरी सुब्काइयां शीघ्र वासना की सिस्कारियों में बदल गयीं। मैं चाचू की पांच मिनटों की भीषण गांड चुदाई से भरभरा कर झड़ उठी।

"आअन्न्न्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह चाआआ... चूऊऊऊऊऊऊऊऊऊ... ," मैं चरमानंद के अतिरेक से सिसक कर चाचू के लंड के गुण गाने लगी |

चाचू ने मेरी गाड़ मारने का अब लम्बा इंतिज़ाम बना सा लिया था। उन्होंने मुझे चटाई पर बरकार दबाते हुए अपने लंड के धक्कों की रफ़्तार और लम्बाई बदलने लगे। चाचू कभी लम्बे सुपाड़े से जड़ तक लम्बे धक्कों से मेरी गांड मारते । कभी छोटे लेकिन भयंकर तेज़ धक्कों से गाड़ की चुदाई करते। इन धक्कों से मेरा पूरा शरीर हिल उठता। लेकिन उनके लंड का हर धक्का मेरे संवेदनशील चूचियों, चुचूकों और चूत को चटाई पर लगातार मसल रहा था।

अब मैं गनगना के लगातार झड़ रही थी ," चाचू ... हाय मम्मी... ई...ई... मर गयी। ... चोदिये... मेरी...गांड चाचू ...ज़ोर से चोदिये मेरी गांड ... फाड़ डालिये मेरी गांड अपने मोटे लंड से ...पर मुझे फिर से झाड़ दीजिये। "

मेरी सिस्कारियों से मिलीजुली जोर से चुदने के गुहार चाचू को और भी उत्तेजित करने लगी। मुझे लगा की उनके धक्कों में और भी ताकत शुमार हो गयी थी।

चाचू ने बिना थके मेरी गांड की चुदाई बरक़रार रखी। कमरे मेरी सिस्कारियां गूँज रहीं थीं। चाचू अब जब ज़्यादा ताकत से अपना लंड ठूंसते तो उनके हलक से गुरगुराहट उबल जाती। मैंने निरंतर रति-निष्पति से भड़क उठी। मेरा शरीर कामवासना के अतिरेक से काम्पने लगा।

चाचू के मोटे लम्बे लंड से मेरी गांड की चुदाई की आवांजें कमरे में संगीत सा बजाने लगीं। चाचू लंड अब मेरे गांड रस से सन लस और भी चिकना गीला हो गया होगा और उनका लंड अब और भी आसानी से मेरी गांड का मर्दन कर रहा था। मेरी गांड में से अब फचफच फच फच की आवाज़ें निकलने लगीं।

न जाने कितनी देर तक मैं सिसक सिसक अनर्गल बोल बोल कर चाचू से चुदी। मेरी गांड में जब चाचू ने अपने गरम गरम वीर्य की पिचकारियाँ मारनी शुरू की तो एक घंटे से भी बहुत ऊपर तक वो मुझे चोद रहे थे। मेरी गांड उनके गरम गरम वीर्य की फुंहारों से चिहक गयी। मेरी चूत ने भी एक बार फिर से भरभरा के पानी छोड़ दिया।

चाचू ने मुझे अपने नीचे दबा के रखा और मेरे शिथिल निस्तेज शरीर के ऊपर पड़े रहे।

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कुछ देर साँसों पर कुछ काबू पाने के बाद अकबर चाचू ने मेरे एक तरफ मुड़े मुंह को कस कर पकड़ कर मेरे गाल को चूसने लगे। उनके होंठों ने मेरी फड़कती नासिका को चूम चाट कर अपने प्यार का इज़हार सा किया।

बड़ी देर बाद चाचू ने अपना भारी भरकम बदन मेरे ऊपर से उठाया। उनका विकराल लंड ढीला शिथिल होने के बाद भी मेरी गांड के दरवाज़े को चौड़ा रहा था।

उनका मोटा सुपाड़ा जैसे ही मेरी मलाशय के द्वार की तंग मांसल संकोचक पेशी से बहार निकला मेरी बुरी तरह पैशाचिक अंदाज़ में चुदी गांड बिलबिला उठी। न चाहते हुए भी मेरी हलकी सी चीख निकल गयी।

" चाचू आज तो आपने मेरी गांड की तौबा बुला दी। " मैंने चाचू को मुहब्बत भरा उलहना मारा।

"नेहा बेटी सालों की प्यास है। थोड़ी वहशियत तो मर्द में आ ही जाती है। पर हमें पूरा भरोसा है की हमारी नेहा बेटी हमें माफ़ कर देगी। " चाचू ने मेरा मुंह मोड़ कर मेरे मुस्कराते होंठों को चूम कर कहा।

अकबर चाचू जैसे आपने हमें चोदा है उस चुदाई के बाद सात खून भी माफ़ हैं। यह तो मेरी खुशनसीबी है की आप जैसे मर्द चाचू से चुदने का सौभाग्य मिला ," मैंने खुल कर मर्दाने चाचू की भीषण चुदाई की सराहना की।

अकबर चाचू ने मेरी पीठ चूमते हुए मेरे गुदाज़ नितिम्बों पर पहुँच गए। उन्होंने दोनों चुत्तडों को मसल कर फैला दिया और मेरी ताज़ी ताज़ी चुदी गांड के छिद्र के ऊपर अपने होंठो को चिपका दिया। चाचू ने मेरी भयंकर गांड-चुदाई से उपजे रस को चूसना शुरू कर दिया। मैं कुनमुना उठी। चाचू ने न केवल मेरे गान के इर्द-गिर्द चूमा चाटा बल्कि अपनी जीभ को मेरी अभी भी ढीली सी खुली गांड में खुसा कर उसके स्वाद को पूरा चाहत से सटक लिया।

अब चाचू अपनी पीठ पैर लेते थे मैं उनके विशाल बालों से भरे भारी शरीर पर चढ़ गयी। मैंने उनके मुस्कुराते मुंह को चूमा और फिर उनके मर्दाने घने बालों से ढके सीने को चूमते हुए उनके दोनों चुचूकों को भी चूसा।

फिर उनके बड़ी तोंद के ऊपर चुम्बन भरते हुए उनकी गहरी नाभि को जीभ से कुरेदते हुए उनके शिथिल पर विकराल मोटे लंड के ऊपर पहुँच गयी। चाचू का लंड उनके मलाई जाइए वीर्य और मेरी गांड से उपजे रस से लिसा हुआ था। मुझे उनके लंड पर बहुत प्यार और ग़रूर आ रहा था। मैंने हौले हौले उनका सारा लंड चाट कर साफ़ कर दिया। उनके लंड के ऊपर से मिला जुला स्वाद ने मुझे उत्तेजित सा कर दिया। अपने थूक से लिसे चाचू के लंड को मैंने प्यार से सहलाते हुए कहा , " अच्छे से आराम करो थोड़ी देर मेरे प्यारे मूसल अभी तुम्हें बहुत मेहनत करनी है। "

चाचू को मेरी बचकानी बात से बहुत हंसी आयी।

" अभी तो नेहा बेटी अब इस मूसल को बहुत ज़ोरों से पेशाब आया है, " चाचू ने हँसते हुए कहा।

" चाचू पेशाब तो मुझे भी लगा है। कसके चुदाई के बाद न जाने क्यों पेशाब की इच्छा होने लगती है ," मैंने चाचू के ऊपर चढ़ कर उनको चूमते हुए कहा ।

चाचू ने मुझे बाँहों में उठा कर शयनघर से लगे स्नानघर में चल पड़े।

" मैं नेहा बेटी आपसे कुछ मांगू तो इंकार तो नहीं करोगी? "चाचू ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए पूछा।

"आप मांग कर तो देंखे चाचू," मैंने भी चाचू की मर्दानी नासिका को चूम लिया।

"मुझे आज रात आपके साथ पहली चुदाई की ख़ुशी में आपके सुनहरे शरबत के शराब पीनी है ," चाचू ने मुझे कई बार चूमा।

मैं बिलकुल भी नहीं झिझकी। बड़े मामा ने मुझे इस क्रिया से बहुत वाकिफ करा दिया था , " चाचू मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा पर आपको भी मुझे अपना सुनहरी शरबत देना होगा। "

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