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नेहा का परिवार 22

by SEEMASINGH©

CHAPTER 22

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१७४

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मैं नानू को उनके सुइट की ओर जाता छोड़ कर सुशी बुआ को चोरी छुपे देखने चल पड़ी। दादू दादी का मेहमान सुइट भी नानू जैसा था। अब मैं छुपे गलियारे में घुस गयी और मुझे तुरंत अपनी शैतानी भरी जस्सोस्सि का इनाम मिल गया। कमरे में दादू बिलकुल नंगे थे। उनका नानू जैसा ऊंचा पहलवानी घने बालों से भरा शरीर उनकी तोंद से और भी बलशाली लग रहा था।

सुशी बुआ नीचे बैठी अपने पिता के विकराल लंड को चूस रहीं थीं। दादू का शरीर तेल से लिसा हुआ था। वैसे ही सुशी बुआ का शरीर भी। लगता था की दादू ने भी अपनी बेटी की मालिश भी करी थी।

"सुशी बेटा अब हमें अपनी बेटी की चूत दुबारा चाहिए," दादू ने कहते हुए बुआ को उठा कर बिस्तर पे निहुरा दिया और दानवीय आकार का अपना मोटा अत्यंत लम्बा लंड बिना दया दिखाए अपनी बेटी की चूत में ठूंस दिया। सुशी बुआ चीखीं पर दर्द के बावजूद अपने पापा को उसत्साहित करने लगीं, "पापा और ज़ोर से चोदिये अपनी बेटी की चूत। भर दीजिये अपनी बेटी का गर्भाशय अपने वीर्य से।"

कमरे में बुआ की सिसकारियां और दादू के लंड और बुआ की चूत के संसर्ग से उपजीं फचक फचक की अव्वाज़ें गूंज उठीं।

दादू ने दिल भर कर अपनी बेटी की चूत मारी। आधे घंटे में बुआ का झड़ झड़ के बुरा हाल हो गया। दादू ने पानी बेटी को गुड़िया की तरह उठा कर चित बिस्तर पे लिटा कर बुआ की गदरायी जांघें हवा में उठा कर चौड़ी फैला दीं।

अब बुआ की घने घुंगराले गीली झांटों से ढकी खुली का पूरा नज़ारा मेरी आँखों के सामने था। दादू ने बिना देर लगाए अपनी बिलखती सिसकती बेटी की चूत एक बार फिर से भर दी अपने महा लंड से। बुआ सिसक सिसक कर गुहार लगा रहीं थी ,"पापा चोदिये अपनी बेटी को। आह और ज़ोर से उन्। .. उन्। ... मार डाला पापा आपने। झड़ गयी मैं फिर से।"

दादू बेदर्दी से अपनी बेटी की चूचियां मसल रहे थे। ऐसा लगता था कि जैसे दादू बुआ के विशाल भारी चूचियों को उनकी छाती से उखाड़ने का प्रयास कर रहे थे। बुआ की सिसकियाँ उनके पापा की बेदर्दी से और ऊँची हो गयीं।

दादू ने तीस चालीस मिनटों के बाद हुंकार कर अपनी बेटी की चूत में अपने वीर्य की बारिश कर दी। बुआ हलकी चीख के साथ फिर से झड़ गयीं। मुझे लग रहा था कि यह चुदाई सुबह से चल रही थी और बुआ का थकान बहुत गहरी थी। मेरा अंदाज़ा ठीक निकला दादू ने अपनी इंद्रप्रस्थ की परी जैसी सुंदर बेटी की गदरायी काया को अपनी बाहों में भरकर बिस्तर पे कुछ देर आराम करने के लिए लेट गए।

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मैं चुपचाप वहां से निकल गयी और अपने कमरे में जा आकर दौड़ने के कपड़े पहन कर बाहर निकल पड़ी। अब मैं दादू की टी शर्ट के नीचे सिर्फ ट्रैक -सूट के पैंट पहने थी। मैंने धीरे धीरे अपनी गति बड़ा दी। हालाँकि वसंत के आने की तैयारी में थी पर तब भी हवा में ठंडापन था। पर नुझे शीघ्र ही पसीना आने लगा। पांच किलोमीटर दौड़ कर मैं वापस मुड़ चली घर की ओर।

अब मैं पसीने से तराबोर थी और पसीने की बूंदे मेरी नाक की नोक के ऊपर मोतियों की तरह रुक कर नीचे गिर पड़तीं। मुझे ज्ञात नहीं था पर दादू की पुरानी टी शर्त इतनी झीनी थी कि मेरे पसीने से भीग कर वह बिलकुल पारदर्शक हो गयी थी।

मैं हाँफते हाँफते घर के बाहर टेनिस कोर्ट के पास पहुँच कर गोल रास्ते के ऊपर च पड़ी। इसे गोल रास्ता इसलिए कहते थे क्योंकि इस रास्ते पर घर में काम करने वालों के मकान थे। जिससे किसीको यह महसूनना हो की उनका घर किसी और के घर से दूर था।

मुझे एक घर से दर्द से सिसकने की आवाज़ें सुनाई पड़ी। मैं नादानी में उस तरफ मुड़ पड़ी। खुली खिड़की से मुझे तुरंत अपनी गलती का आभास हो गया। यह घर हमारे सुरक्षा-अधिकारी का था। राजमनोहर सिंह, जग राज चाचा, चालीस साल के अत्यंत बलिष्ठ फ़ौज से रिटायर्ड थे। उनकी एक साल छोटी पत्नी रत्ना थीं। मनोहर बहुत चौड़े बलशाली काळा भुजंग पुरुष थे। बहुत लम्बे तो नहीं फिर भी पांच फुट आठ नौ इंच लम्बे दानवीय आकार के मालिक थे ।उनका चेहरा सुंदर तो नहीं पर मर्दाने आकर्षण से परिपूर्ण था। रत्ना चाची पांच फुट की गठीली गहरे रंग के शरीर की मलिका थीं।

कमरे में रत्ना बिलकुल नग्न थीं और उनके सामने एक और उनके जैसे ही काया की मालकिन पर बहुत युवा लगने वाली कन्या निहुरी हुई थी। राजू चाचा उस कन्या के गदराये चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी चूत और गांड चाट रहे थे।

उस कन्या की सिसकियाँ निकल रहीं थीं, "पापा हाय कितनी याद आती है आपकी कैसे चूसते है प्यार से अपनी बेटी की चूत।"

मैं तुरंत समझ गयी की वह कन्या कोई और नहीं राजू चाचा और रत्ना चाची की लाड़ली सुकन्या थी। सुकन्या, जिसको सब प्यार से सुकि कहते थे, का विवाह एक सम्पन परिवार में करवाया था नानू ने दो साल पहले। सुकि दीदी मुझे समय तीन साल बड़ी थीं।

"सुकि और पापा का लंड याद नहीं तुझे। कितने वर्षों से तेरी सेवा की है तेरे पापा के लंड ने। अब शादी के बाद क्या दामाद का लंड इतना भा गया है तुझे," रत्ना चाची ने प्यार मारा सुकि दीदी के ऊपर।

"मम्मी तेरे दामाद का लंड बहुत लम्बा तगड़ा है पापा के जैसा पर किसी भी बेटी के लिए उसके पापा के लंड अच्छा भला कौनसा लंड हो सकता है। कैसे भूल जाऊंगीं सात साल पहले की रात जब पापा ने मेरा कौमार्य भंग किया था। उस प्यार भरी रात मुझे अब तक आतें हैं। आह पापा ऐसे ही घुसा दीजिये मेरी गांड में जीभ। मम्मी भूरा कहाँ है , बेचारे का ध्यान भी तो रखिये," सुकि दीदी सिसकते हुए बोलीं।

भूरा राजू चाचू का वफादार ग्रेट डेन और सेंट बर्नार्ड का मिश्रण था। भूरे के कुदरती प्यारी प्रकृति और वफ़ादारी से वोह सबका चहेता था।

जैसे ही उसका नाम लिया तो भूरा तुरंत कमरे में तूफ़ान की तरह आ गया। रत्ना चाची ने प्यार से उसे अपनी चूत सूंघने दी। भूरा का लंड बाहर निकल पड़ा। लाल रंग का लम्बा मोटा लंड। थरथरा रहा था आने वाले आनंद के विचार से। भूरे ने अपनी लम्बी जिव्हा से रत्ना चाची के मूंग को छाता और जब उसकी जीभ उनकी नासिका में घुस जाती तो रत्ना चाची खिलखिला कर हंस पड़ती।

"सुकि बेटी तेरे जाने इन दोनों मर्दों मुझ अकेली जान ही पड़ गयी है। तुझे दोनों कभी भी नहीं भरता," रत्ना चाची ने कोमल हाथों से भूरे के लंड को सहलाया।

"पापा माँ शिकायत कर रही या मुझे चिड़ा रही है," सुकि ने सिसकते हुए कहा, "मम्मी अब मैं पापा के लंड अपनी चूत में लिए बिना नहीं रह सकती। पापा से चुदने के बाद भूरे की बारी है। तब तक तू इसको अपनी रसीली चूत दे दे।"

राजू चाचू ने बिना एक क्षण बर्बाद किये अपने लम्बे मोटे लंड को अपनी बेटी की चूत के ऊपर टिका दिया। उधर रत्ना चाची भी निहुर कर घोड़ी बन गयीं थीं ," आका भूरा बेटा।आ बेटा और भर दे अपनी मम्मी की चूत अपने लंड से।"

भूरा जैसे सारी बातें समझता था। उसने लपक आकर अपनी दोनों आगे की टांगें रत्ना चाची के सीने दोनों ओर बिस्तर पे टिका कर अपने पिछवाड़े को हिला हिला कर अपनी मम्मी की चूत ढूंढ़ने लगा। फिर एक क्षण में कमरे में दो चीखें गूँज उठीं। राजू चाचू का लंड और भूरे का लंड सुकि दीदी और रत्ना चाची की चूत में जड़ तक ठूंस गए।

भूरे ने शुरू से ही बिजली की तेज़ी से अपनी मम्मी की मारनी शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। रत्ना चाची की चीखें और सिसकियाँ उबलने लगीं, "हाय मेरे लाल मेरे बेटे मार ऐसे ही अपनी माँ की चूत।"

"पापा धीरे धीरे दर्द होता है आपका मूसल लेने में," सुकि दीदी बिलबिलायीं।

परना तो राजू चाचू धीमे हुए औरना ही भूरा। सुकि दीदी और रत्ना चाची की सिसकियाँ कमरे में संगीत से स्वर छेड़ने लगीं। दोनों निरंतर झड़ रहीं थीं।अहदे घंटे के बाद भूरे ने एक भीषण धक्का लगाया और रत्ना चाची की वास्तविक दर्दभरी चीख उबाल पड़ी, "हाय बेटा अपनी गाँठ मत डाल अपनी माँ के अंदर।" पर तब तक देर हो चुकी थी और भूरे ने अपनी मोती गाँठ रत्न चाची की चूत में ठूंस दी थी। अब चाचीअपने बेटे के साथ बांध चुकी थीं।

उधर राजू चाचू ने अपनी थकती बेटी को पीठ के ऊपर पलट कर बिस्तर पे फैन दिया और फिर बौराये सांड की तरह उसके ऊपर फिर से चढ़ाई कर दी। चाचू का लंड की हर दस इन्चें अपनी बेटी की चूत का निर्मम प्यारा मर्दन कर रहीं थीं। चाचू का लंड मेरे घर के पुरुर्षों से भले ही कम लम्बा और मोटा था पर उनकी चुदाई की खासियत बिलकुल जानलेवा थी। उनकी बेटी का बार बार झड़ कर बुरा हाल होने लगा था। तीस मिनटों के बाद चाचू ने भरभरा कर अपनी बेटी की चूत को अपने वीर्य से सींच दिया। सुकि दीदी सिसकते अपने पापा के गरम वीर्य की बौछार को सँभालते हुए फिर से झड़ गयी। राजू चाचू अपनी बेटी के ऊपर हफ्ते हुए निढाल हो गए।

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१७३

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जब भूरे ने अपना लंड बाहर खींचा रत्ना चाची की तड़पती चूत में से तो उनकी चीख निकल पड़ी। मुझे समझ आया कि क्यों चाची बिलख रहीं थीं। भूरे का लंड के स्तम्भ के तले की गाँठ उसके लंड से दुगुनी या तीन गुना मोटी थी जो किसी भी चूत की धज्जियां उड़ाने में सक्षम थी।

रत्ना चाची भी अनेकों बार झड़ कर निढाल अपनी बेटी के पास लेट गयीं। तब ही भूरे के आँखें मेरी आँखों से मिल गयी। उंसने ख़ुशी से कूदते हुए खिड़की पे आ कर मेरा मुँह चाटना शुरु कर दिया। मेरी तो शर्म से जान निकल गयी। अंदर रत्ना चाची, सुकि दीदी और राजू चाचू घबरा कर भौंचक्के हो गए। मैंने लड़कों की तरह खिड़की से अंदर कूद गयी और जल्दी जल्दी हड़बड़ा के मांफी मांगने लगी, "चाचू, चाची दीद मैं क्षमाप्रार्थी हूँ आपके प्रेम के संसर्ग को चोरी छिपे देखने के लिए। मुझसे रहा नहीं गया आपका प्यार देख कर। मैं इसको अपने परिवार के रहस्य की तरह सुरक्षित रखूंगी। मैं भी आज सुबह अपने नानू के बिस्तर में थी।"

मेरे नानू के संसर्ग की बात सुन कर तीनों धीरे धीरे तनाव मुक्त होने लगे।

आखिर सुकि दीदी ने मुझे कई गन्दी बातें सिखायीं थीं बचपने में, "तो नेहा मेरी बहना तीरे कपड़े कौन उतारेगा। तू कोई मेहमान थोड़े ही है इस घर की। चल दौड़ के आजा मेरे पापा का लंड देख कैसा फड़फड़ा रहा है तुझे देख कर।"

मैंने एक क्षण लगाया नंगी होने में। राजू चाचू ने मेरे पसीने से लतपथ शरीर को ललचायी निगाहों से घूरा। मैं भी चाचू , रत्ना चाची और सुकि दीदी , के पसीने से दमकती काया को देख वासना से जलने लगी।

चाचू ने मुझे बिस्तर पे फेंक दिया और फिर एक कांख पे लग गए चाचू और दूसरी कांख ले ली रत्ना चाची। मिलजुल कर लेरे पसीने से भीगी काँखें और सीने को चाट चाट कर मुझे लगभग झड़ने के कगार पे ले आये दोनों । उधर सुकि दीदी अब भूरे ले लंड से खेल रहीं थीं। मैंने पहले रत्ना चाची की बालों भरी कांखों को दिल खोल कर चूसा और फिर राजू चाचू की कांखों और सीने को।

"पापा आप नेहा को चोदिये जब तक मैं भूरे के लंड को तैयार करतीं हूँ ," सुकि दीदी ने आदेश दिया हम सबको और कौन टाल सकता था उनके आदेश को।

मैं निहुर गयी रत्ना चाची की घने घुंघराली झांटों से ढकी भूरे के वीर्य से भरी चूत के ऊपर और पीछे से चाचू ने एक झटके में ठूंस दिया अपने लम्बा मोटा मेरी चूत में। चाची ने इस का अंदेशा लगते हुए दबा लिया था मेरा मुँह अपनी चूत के ऊपर। /

"चल नेहा बेटी चट्ट कर्जा मेरे बेटे की गाडी मलाई को मेरी चूत से। तब तक तेरे चाचू फाड़ेंगें तेरी चूत," रत्ना चाची ने अपनी टांगें फ़ैल दीं और मेरी जीभ घुस गयी उनकी चूत के अंदर। भूरे की मलाई का स्वाद नानू और मामाओं से बहुत अलग था। भूरे का वीर्य थोड़ा कम गाढ़ा और बहुत गरम और नमकीन था।

राजू चाचू ने अब दमदार धक्कों से मेरी चूत की सहमत भुलवा दी। अगले आधे घंटे में मैं दस बार झड़ गयी और मैंने रत्ना चाची को भी पांच बार झाड़ दिया था।

मैं फिर से झड़ने वाली थी की सुकि दीदी ने नए आदेश निकाले,"पापा अब रुकिए। भूरा तैयार है नेहा के लिए। आप मेरी गांड मारिये। पापा पर आप झड़ना अपनी बेटी की चूत में। इस बार मैं आपसे बिना गर्भित हुए बिना सुसराल वापस नहीं जाऊंगी।"

राजू चाचू ने अपना लंड एक झटके से मेरी चूत से निक्कल लिया। सुकि दीदी ने भूरे को मुझ पर चढ़ा दिया। और फिर उसका लंड पकड़ कर मेरी चूत के ऊपर लगा दिया। भूरे ने एक भयंकर झटके में अपना पूरा लम्बा मोटा लंड मेरी कोमल चूत में ठूंस दिया।

रत्ना चाची ने फिर से मेरा मुँह अपनी चूत में दबा लिया और मेरी चीखें उनकी झांटों को गुदगुदी करने लगीं। मैंने भी चाची के मोटे भगोष्ठों को दांतों से काट कर उनकी चीख निकलवा दी। और फिर मैं किसी भी काम की नहीं रही। भूरे ने जब चोदना शुरू किया तो मैं उसकी भीषणता सी बिलबिला उठी। मेरा सारा शरीर उसकी हर टक्कर से हिल उठता। और मैं भरभरा के झड़ने लगी निरंतर हर तीन चार धक्कों के बाद। ऐसे तेज़ निर्मम चुदाई सिर्फ भूरा ही कर सकता था।

मेरा ध्यान सिर्फ अपनी चूत में बिजली की तेज़ी से चलते पिस्टन के ऊपर केंद्रित था।

मुझे सुकि दीदी की दर्दभरी चीखें बहुत कम याद हैं। राजू चाचू ने अपनी बेटी की गांड में अपना मूसल तीन झटकों में जड़ तक ठूंस कर बेदर्दी से उसकी गांड का मंथन शुरू कर दिया , भूरे जैसी रफ़्तार से नहीं तो बहुत कम भी नहीं। आधे घंटे में मैं अनगिनत बार झड़ते हुए सिसक उठी। उधर चाची भी झड़ने लगीं थीं वैसे मेरा उनकी चूत का चूसना बहुत अच्छा नहीं था भूरे की अमंनवीय चुदाई की वजह से।

सुकि दीदी भी भरभरा के झड़ रहीं थीं ,"पापा फिर से झाड़ दिया आपने अपनी बेटी को। पापा लेकिन आप झड़ना अपनी बेटी की चूत।" सुकि दीदी ने याद दिलाया अपने पापा को उन्हें गर्भित करने के वायदे को।

"नेहा बेटी लेले भूरे की गाँठ अपनी नन्ही चूत में। दर्द तो होगा पर बहुत आनंद भी आयेगा," चाची ने मेरा मुँह कस के दबा लिया अपनी चूत में। और फिर मैं भीषण दर्द से बिलबिला उठी। भूरे के लंड की गाँठ अचानक बन गयी और उसने उसे जड़ तक मेरी चूत में ठूंस कर मुझे अपने अगली टांगों से जकड़ लिया। उसका मोटा लंड मेरी चूत में थरथरा रहा था। उसका बहुत गरम वीर्य मेरी चूत की कोमल दीवारों को जला रहा था।

मैं उस दर्द और आनंद के मिश्रण के अतिरेक से अभिभूत हो गयी। मुझे पता नहीं चला कि भूरे का लंड आधे घंटे तक अटका रहा मेरी चूत में और मैं झड़ती रही हर दो तीन मिनटों के बाद। उधर पता नहीं कब चाचू ने थकी मांदी सुकि दीदी की गांड से अपना लंड निकाल कर उनके गर्भाशय को नहला दिया। चाचू ने अपनी बेटी की टांगें ऊपर उठा दीं और फिर लेट गए उसके ऊपर।

जब हम को थोड़ा होश आया तो सुकि दीदी का दिमाग़ शैतान की तरह चलने लगा। उन्होंने मिल बाँट कर हम तीनो का सुनहरी शर्बत पिलाया अपने पापा को। फिर चाचू और भूरे का सुनहरी शर्बत मिला कर बांटा हम तीनो के बीच में।

मैं उनके साथ तीन घंटे रही। भूरे ने चाची की गांड मारी और चाचू के ऊपर लेती चाची की चूत में ठुंसा हुआ था चाचू का लंड। पर चाचू झड़े अपनी बेटी की चूत में।

फिर मेरी बारी थी चाचू के लंड के ऊपर घुड़सवारी की और भूरा तैयार था मेरी गांड की धज्जियाँ उड़ाने के लिए। मैं तो बेहोश सी हो गयी एक घंटे में। चाचू ने एक बार फिर अपनी बेटी की चूत भर दी अपने गाड़े वीर्य से। चाची ने मुझे अपने मुँह के ऊपर बिठा कर मेरी गांड में से फिसलते अपने भूरा बेटे का वीर्य सटक लिया।

शाम हो चली थी। मैंने दीदी , चाचू, चाची और खासतौर पे भूरे को धन्यवाद दे कर घर की ओर चल पड़ी। जैसा मेरे घर में होने वाला था वैसे ही मुझे पता था कि रात के खाने के बाद चाचू, चाची और उनका बेटा भूरा और बेटी सुकि और मस्ती के लिए फिर से तैयार हो जायेंगें।

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१७४

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मैं नहा धो कर तैयार हो गयी। मैंने खाकी निक्कर और टी शर्त पहन ली। मेरा सारा बदन दर्द कर रहा था। सुबह आधा दिन नानू ने रोंदा था। फिर दोपहर भर सुकि दीदी ,रत्ना चाची, राजू चाचू और उनके बेटे ने रगड़ रगड़ कर थका डाला था मुझे। पिच्छली रात से मैंना जाने कितनी बार चुद चुकी थी।

सुशी बुआ ने मेरी चाल से समझ लिया कि मेरे नए अनुभव के बारे में। मुझे उन्हें विस्तार से बताना पड़ा। सुशी बुआ की आँखें फ़ैल गयीं भूरे की करामाती चुदाई के विवरण सुन कर।

रात के खाने पर सारे परिवार में चुअल बाज़ी हो रही थी। मैंने देखा कि मम्मी थोड़ी बेचैन लग रहीं थीं। उनकी आँखें बिना संयम रखे बार बार अपने पापा और भाइयों के चेहरों को निहार रहीं थीं।

"सुन्नी , यदि तुझे नींद आ रही हो तो बाबूजी के कमरे में सो जाना। मैं तो आज देर तक बात करूँगीं अपने भैया, पापा मम्मी के साथ।" सुशी बुआ ने हमेशा की तरह मीठा संदश भेजा। अब मुझे समझ आने लगे यह सब ढके छुपे सांकेतिक इशारे। मम्मी की शर्माहट से मेरा हृदय खिल उठा। शरमाते हुए मेरी अप्सरा जैसी मम्मी और भी सुंदर लगतीं थीं।

दादू ने टीका लगाया, "निरमु आज हमारी बेटी ने जो मालिश की है उसके लिए तो हमारे पास कोई शब्द ही नहीं है।"

दादी हंस दीं," बेटी नहीं मालिश करेगी अपने पापा की तो और कौन करेगा? आज मुझे तो अपने बेटे के साथ बिताये दिन की यादें ध्यान कर अंकु के प्यार अभिभूत हो गयीं हूँ।"

"मम्मी क्या ख़रीदा भैया ने आपके लिए। सुन्नी भाभी देख तो जरा। भैया तेरी सास को मॉल ले जा कर दौलत खर्चते हैं और तू कुछ नहीं शिकायत करती।," मेरी मम्मी भले ही सुशी बुआ जैसी तेज़ तर्रार नहीं थी पर बिलकुल निस्सहाय भी नहीं थी।

"नन्द जी तेरे भैया जैसा हीरा तो मुझे मिला ही है अम्माजी की कोख से। इस हीरे के लिए तो दुनिया की साड़ी दौलत भी काम है अम्माजी के ऊपर खर्चने के लिए," मम्मी ने इक्का मार दिया बुआ के बादशाह के ऊपर। मम्मी और बुआ का रिश्ता भी मजे का था। दोनों एक दुसरे की भाभी और ननंद दोनों थीं।

सब हंस पड़े। फिर सब मीठा खाने के बाद कौनियाक के गिलास ले कर अपने सुइट्स की ओर चल पड़े। मैं अब सब समझती थी और मैंने भी लम्बी थकी जम्भाई ले कर सोने के लिए जाने का नाटक किया।

शीघ्र ही मैंने पहले दादू के कमरे की ओर चल पड़ी। कमरे में सुशी बुआ, दादू और दादी थीं। बुआ आने अपनी मम्मी की साड़ी उतार दी और कुछ ही क्षणों में दादी बिलकुल नग्न थीं। दादी का परिपक्व प्रौढ़ सौंदर्य देखते ही बनता था। उनके प्रचंड चवालीस ( ४४ ") इंचों के ई ई (डबल ई ) भारी ढलके हुए स्तन , गोल भारी तीन सुंदर तहों से सजी अड़तीस ( ३८ ") इंच की कमर और फिर उनके तूफानी अड़तालीस (४८ ") इंची हाहाकारी विशाल स्थूल नितम्ब। उनके बगलों में घने घुंगराले बाल उनके सौंदर्य में और भी इज़ाफ़ा कर रहे थे। दादी के पांच फुट छह इंच का पिच्चासी किलो ( ८५ किलो ) का गदराया शरीर किसी भी संत का संयम भांग कर सकने में सक्षम था। फिर बुआ ने अपने पापा को आदर से वस्त्र विहीन आकर दिया।

"सुशी बेटा मेरा अंकु कहाँ है?" दादी ने बुआ का कुरता उतारते हुए पूछा।

दादू ने तब तक अपनी बेटी की सलवार का नाड़ा खोल दिया था, "मम्मी आप तो सिर्फ अपने बेटे के प्यार में डूबी रहती हो। अपनी बेटी की तरफ भी तो देख लीजिये कभी कभी।" बुआ की नटखट आवाज़ को दादी भी गंभीरता लिया।

बुआ ने नहीं पहनी थी सलवार उतारने साफ़ था की उन्होंने पैंटी भी नहीं पहनी थी, "मम्मी शालिये लेट जाइये आपकी बेटी ने कितने दिनों अपनी मम्मी की चूत पिया है। अंकु भाभी को तैयार होने में मदद कर रहा है।"

दादी का गदराया शरीर बिस्तर पर फैला था। बुआ ने अपनी मम्मी की झांटों को फैला कर उनकी गुलाबी चूत को खोल दिया। कितनी प्यारी थी दादी की चूत। दादू ने अपनी बेटी के चूतड़ फैला कर बुआ की चूत और गांड के ऊपर मुँह टिका दिया।

दादी और बुआ सिसकारी निकल पड़ीं। और तभी पापा दाखिल हुए कमरे में, "अहा सब शुरू हो गए हमारे बिना।" पापा कमीज़ खोलते हुए कहा।

न जाने क्यों मुझे पापा को देख आकर बुरी तरह शर्म से भर गयी और मैं वहां से दौड़ पड़ी।

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मम्मी के कमरे में मम्मी आखिर तैयारी में थीं। मम्मी ने शादी वाली साड़ी पहनी थी। उनके सारे शादी के गहने उन पर चमक रहे थे। उनकी नाथ का हीरा उनके चेहरे के हिलने भर से चका-चौंध कर रहा था। मम्मी ने पूजा की थाली तैयार की हुई थी। कस्तूरी , चन्दन , हल्दी और सिंदूर सब थे थाली में। मैं मम्मी की सुंदरता देख कर रोने जैसी हो गयी ,ना जाने क्यों। ख़ुशी में भी आंसू उबलने लगते हैं।

मम्मी की काया सुडौलता से भरी गदरायी हुई थीं। साड़ी में भी नहीं समा पा रहे थे मम्मी के लार टपका देने वाले नितम्ब। उनके ब्लाउज़ की बटन झगड़ा सा कर रहे थे उनके उन्नत हिमालय की चोटी जैसे मीठे उरोजों से।मम्मी ने हल्का सा घूँघट खींच लिया अपने माथे के ऊपर। मम्मी ने अपने पापा के सुइट की ओर कदम बड़ा दिए।

मैं पहले ही पहुँच गयी नानू के सुइट में।

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कमरे में सजावट देख कर मैं हैरान हो गयी। सारा कमरा फूलों से सजा हुआ था। बिस्तर पर गुलाब की पंखुड़ियां फैली हुईं थीं। बड़े, छोटे मामू सिल्क के जरीदार कुरता, पजामा और अचकन पहनी हुई थी। नानू भी उसी तरह तैयार थे। उनके सर पर शादी की पगड़ियां थीं। तीनों पुरुष कितने मोहक,और काम-आकर्षक लग रहे थे।

मम्मी जैसे ही दाखिल हुईं तीनो खड़े हो गए। मम्मी ने अपनी कोल्हापुरी सोने से सजी जूतियां दरवाज़े पे उतार दीं अपने के साथ दोनों भाईयों और पिता की जूतियों के साथ।

मम्मी शर्म से लाल लज्जा से भरी तीनों पुरुषों के सामने खड़ीं हो गयीं।

उन्होंने पहले अपने पिता के फिर बड़े भैया के और फिर छोटे भैया के पैर छुए। तीनो ने उन्हें बारी बारी से आशीर्वाद दिया -सम्पनता, विपुलता और गर्भ धारण के आशीर्वाद।

फिर तीनो पुरुष बैठ गए थाली के इर्द गिर्द। मम्मी ने कस्तूरी का दिया जला दिया। मम्मी ने पहले अपने पापा के माथे पर पहले हल्दी, फिर चन्दन का टिका लगाया। और फिर अपने दोनों भाइयों के माथे पर टिका लगाया।

फिर मम्मी खड़ीं हो गयीं और नानू ने उनके घूँघट को हटा कर उनकी साड़ी का पल्लू उनके कन्धों पर गिरा दिया।

"आप तीनों ने मुझे कुंवारी से स्त्री बनाया था पच्चीस साल पहले। आज भी आपकी बेटी और बहन उस दिने से आप तीनो की अर्धांगिनी भी है। इस बहन और बेटी की मांग भर कर उसे एक बार फिर से अपनी अर्धांगिनी होने का सौभाग्य दे दीजिये," मम्मी ने भावुक शब्दों से अपने पिता/भाइयों/पतियों से कहा।

नानू ने अपनी बेटी की मांग में सिंदूर भर दिया और कहा," सुन्नी बेटा ,हमसे भाग्यशाली कोई भी पिता नहीं है जिसे तुझ जैसी बेटी और अर्धांगिनी मिली हो। सदा सुहाग शाली रहो मेरी बेटी।"

फिर बड़े मामू ने छोटे मामू ने अपनी बहन की मांग सिंदूर से भर कर पूजा का समापन किया। और फिर तीनों ने पहनाये साधारण पर पवित्र मंगलसूत्र मम्मी को।

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"अब आप तीनों इस सुहागन के सुहाग को पूर्ण करने के लिए इसका शरीर सुहागरात के लिए स्वीकार कीजिये," मम्मी बोलीं और नानू ने उनकी नथ उतार दी। हमेशा की वर्षगाँठ की तरह यह क्रिया सुहागरात शुरू होने का द्योतक थी।

एक भाई ने मम्मी की साड़ी उतारी तो दुसरे भाई ने उनका ब्लाउज़ खोल कर उतार दिया। उनके विशाल उन्नत को उनकी ब्रा मुश्किल से संभाल पा रही थी। नानू ने अपनी बेटी के दोनों भारी गुदाज़ उरोजों को मुक्त कर दिया ब्रा के बंधन से।

नानू ने नाड़ा खोल दिया मम्मी के पेटीकोट का और सिल्क का पेटीकोट सरसरा कर उनके तूफानी जांघों के ऊपर सरक कर फर्श पर गीत पड़ा। मम्मी की सिल्क की लाल सुहागवली कच्छी में से उनके घुंगराली झांटें उत्सुकता से दोनों ओर बाहर झाँकने लगीं।

मम्मी ने बारी बारी से नानू के और अपने भाइयों के वस्त्र उतार दिए।

सबसे पहला हक़ तो पिता का ही होता है अपनी बेटी के ऊपर। मम्मी ने अपने पापा का हाथ पकड़ा और बिस्तर की तरफ चल पड़ीं ,"पापा सुशी भाभी ने दस दिनों से मेरी चूत और गांड में वि-टाइट और सो-टाइट लगा कर वायदा लिया है की हमारी सुहागरात की चादर पर यदि मेरे कौमार्यभंग होने वाले जितना खूनना दिखे तो वो बहुत नाराज़ होंगीं अपने बाबूजी, पति और जेठ जी से।" मम्मी की इस बात से तीनों का दानवीय लंड मानों एक दो इंच और लम्बा मोटा हो गया।

नानू ने मम्मी को चित्त लिटा कर उनके पहली रात की तरह उनके चूमते हुए उनकी घुंगराली झांटों ढकी चूत के सुहाने द्वार पे अपनी जीभ लगा कर उसके कसेपन का अहसास किया। मम्मी की सिसकारियां निकलीं बंद ही नहीं हुईं। आखिर कितनी भाग्यशाली वधुओं को तीन वृहत लण्डधारी पतियों से साथ सुहगरात मनाने का सौभाग्य प्राप्त होता है।

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