Category: Loving Wives Stories

साथी हाथ बढ़ाना Ch. 02

by iloveall©

कहानी टीना की जुबानी

मैंने जिंदगी में एक बात सीखी है। अगर आपको फूल चाहिए तो आप को कांटो को भी स्वीकारना पड़ेगा। आप सिर्फ फूल की अपेक्षा नहीं रख सकते। ऐसी अपेक्षा रखने से जिंदगी में निराशा ही प्राप्त होगी, क्यूंकि फूल तो हरेक को चाहिए। जो कांटें ले कर उसकी कीमत चुकाएगा उसे फूल मिलेंगे। जिंदगी में मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। जिंदगी में अगर कुछ चाहिए तो कुछ भोग देना ही पड़ेगा। अगर शादी करनी है तो पत्नी का ध्यान रखना पड़ेगा, उसकी बात माननी पड़ेगी, बच्चे चाहियें तो उनका बोझ उठाना ही पड़ेगा, अगर शादी के बाहर चुदाई करनी है तो चुदवाने वाली के नखरे भी सहन करने पड़ेंगे, बदनामी हो तो उसे भी झेलनी पड़ेगी बगैरह बगैरह। मुझे सेठी साहब का लण्ड चाहिए था। मेरे पति ने मुझमें वह आग लगा दी थी। पर मुझे अगर सेठी साहब का लण्ड चाहिए तो मुझे मेरे पति को सुषमाजी की चूत दिलवानी पड़ेगी, और उन्हें क्या चाहिए उसका ध्यान भी रखना पड़ेगा।

मैं समझ गयी थी की सेठी साहब क्या कहना चाहते थे। पर उस समय मेरी चूत में ऐसी आग लगी थी की मुझे और कुछ सोचने की ताकत या इच्छा ही नहीं थी। पता नहीं क्यों, पर मुझे सेठी साहब से कुछ भी कहने में बड़ी शर्म आ रही थी। वैसे तो मेरे और सेठी साहब के बिच बात करने में कोई बंदिश थी नहीं। पर उस समय, क्यूंकि मैं सेठी साहब से चुदवाने के लिए तड़प रह थी, तो मैं बात करने में शर्माती रहती थी। पता नहीं क्यों मेरा मुंह खुल ही नहीं रहा था। मैंने सेठी साहब का हाथ पकड़ा और अपने स्तनोँ को उनके हाथों पर रगड़ते हुए सेठी साहब से लिपट गयी। मुझे सेठी साहब से आलिंगन कर पता नहीं कैसा अद्भुत सकून मिलता था। मुझे ऐसा लगता था जैसे मेरी बरसों की प्यास यही मर्द बुझा सकेगा।

पर चूँकि मैं यह भी जानती थी की अक्सर चुदासी औरत के साफ़ साफ़ नहीं बोलने से कई बार उसके मन की बात मर्द समझ नहीं पाते हैं, मैंने सेठी साहब से कहा, "सेठी साहब, आपके मुंह से साफ़ साफ़ शब्द सुन कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। इसका मतलब है अब आप मुझे अपनी मानने लगे हो। वाकई में मैं यह चाहती थी हम दोनों को अकेले में बिना कोई रोकटोक कुछ रातें मिलें जिन्हें हम एन्जॉय कर सकें। यह वक्त मेरे लिए बड़ा ही कीमती है। हमारे पास सिर्फ तीन रातें हैं और उसमें हमें नींद भी लेनी है। इन्हें हम औपचारिक बातों में गँवा कर बर्बाद ना करें। मेरे पुरे बदन में इस वक्त जबरदस्त आग लगी हुई है। मैंने कहा ना की आप मुझसे जो कुछ भी करना और करवाना मतलब जैसे भी मुझे एन्जॉय करना चाहें वह मैं बिना कोई सवाल करे, बिना झिझक के करुँगी। कुछ भी मतलब कुछ भी। इसमें कोई भी किन्तु परन्तु नहीं होगा। यह मैं मज़बूरी में नहीं कह रही। यही मेरी इच्छा है। इन तीन रातों में हम सिर्फ एक दूसरे की बदन की भूख मिटायेंगे और अगर बातें भी करेंगे तो प्यार की ही बातें करेंगे, और कोई बात नहीं करेंगे। मुझे इन तीन रातों में आप से वह सब कुछ पाना है जो मैंने आज तक नहीं पाया।"

मेरे मुंह से ऐसी सीधी साफ़ साफ़ बात इतने सलीके सुन कर सेठी साहब मेरी और कुछ देर आश्चर्य से ताकते ही रहे। शायद किसी औरत ने उन्हें पहली बार इतने साफ़ शब्दों में कहा होगा की वह उनसे चुदवाने के लिए कितनी बेताब है। कहते तो मैंने कह दिया पर सेठी साहब की पैनी नजर देख कर मेरे गाल शर्म से लाल हो उठे।

सुषमाजी ने मुझे बताया था की सेठी साहब का प्यार काफी रफ़ माने आक्रमक सेक्स होता है और वह रफ़ सेक्स बहुत पसंद करते हैं। रफ़ सेक्स में स्तनोँ को खूब चूसना, निप्पल्स को चूसना और काटना, नंगे कूल्हे पर चपेट मारना, लण्ड और चूत खूब चूसना और अगर मौक़ा मिले तो गाँड़ में लण्ड डालकर चोदना मतलब गाँड़ मारना बगैरह होता है। इसके मुकाबले मेरी मेरे पति से चुदाई काफी साधारण सी होती थी। अक्सर तो वह मेरे ऊपर चढ़कर मुझे चोदते थे, काई बार मुझे घोड़ी बनाकर भी चोदते थे। उन्होंने कई बार मेरी गाँड़ मारने का प्रस्ताव रखा था, पर मैंने उसे सिरे से खारिज कर दिया था। उसके बाद मेरे पति ने भी ज्यादा जोर नहीं दिया इस बात पर।

अब सेठी साहब मेरी कैसी चुदाई करेंगे, यह सोच कर मैं परेशान हो रही थी। कहीं वह मेरी गाँड़ मारने पर आमादा हो गए तो मैं उन्हें मना नहीं कर पाउंगी। मैंने उन्हें वचन जो दिया है की मैं वह जो कहेंगे, जैसे कहेंगे, करुँगी। मुझे लण्ड चूसना भी ज्यादा पसंद नहीं है। मेरे पति का लण्ड जब भी मैंने चूसा है तो वह कोई बड़ा अच्छा अनुभव नहीं रहा। सुषमाजी ने तो साफ़ साफ़ कहा था की सेठी साहब को लण्ड चुसवाना बहुत पसंद है। अगर सेठी साहब मुझसे लण्ड चूसवाएंगे तो मुझे कहीं उलटी ना आ जाए। ऐसा अगर हुआ तो कहीं सेठी साहब बुरा ना मान जाए। यह सब विचार मेरे दिमाग में घूम रहे थे।

मैं पलंग पर लम्बी हो कर लेट गयी तो सेठी साहब मेरे ऊपर चढ़ने के बजाय खड़े हो कर पलंग पर सीधी लेटी हुई मुझे बड़ी ही बारीकी से निहारने लगे। मैंने उनकी लोलुप निगाहें जो मेरे पुरे बदन का मुआइना कर रहीं थीं, देख कर कुछ शर्माते हुए पूछा, "क्या देख रहे हैं आप? मुझे पहले कभी देखा नहीं क्या आपने?"

सेठी साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं कितना भाग्यशाली हूँ की तुम्हारे जैसी बेतहाशा आसमान से उतरी हुई हूर सी खूबसूरत औरत इस वक्त मेरे सामने लम्बी हो कर एक संगेमरमर की तराशी हुई अद्भुत खूबसूरत मूरत की तरह लेटी हुई मेरे जैसे एक साधारण आदमी को अपना सर्वस्व समर्पण करने के लिए इंतजार कर रही है?"

सेठी साहब के बात सुनकर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए। मैंने सेठी साहब से कहा, "सेठी साहब मेरी झूठी तारीफ़ मत करो। मुझे चने के पेड़ पर मत चढ़ाओ। मैं कोई सुन्दर नहीं हूँ। सुंदरता आपकी नज़रों में है। जिसे प्यार करते हैं, वह जैसी भी हो, सुन्दर लगती है। बल्कि मैं कहती हूँ की मैं बड़ी भाग्यशाली हूँ की आपकी नज़रों ने मुझे सुंदर माना और आपके भोग के लिए योग्य माना। अब मुझे ज्यादा इंतजार मत कराइये और आप मुझे जैसे चाहें एन्जॉय कीजिये और मेरे बदन का और मेरे प्यार का भरपूर आनंद लीजिये। आपके आनंद लेने से मेरे पुरे बदन में आनंद की लहरें दौड़तीं रहेंगी। वैसे मुझ में ऐसा क्या सुन्दर लगा आपको?" हर औरत अपनी सुंदरता के बखान सुनना चाहती है। मैं कोई अपवाद नहीं। ना ना करते हुए भी आखिर में मैं सेठी साहब के मुंह से अपनी सुंदरता की तारीफ़ सुनंने की लालसा रोक नहीं पायी।

सेठी साहब ने मेरे अंग अंग को अपनी नज़रों से तराशते हुए कहा, "मैं किस किस की तारीफ़ करूं? तुम्हारी इतनी मधुर वाणी, तुम्हारा गुलाबी बदन, तुम्हारा चाँद सा चेहरा, तुम्हारी कमल की डंडी सी लम्बी भुजाये, तुम्हारे केले के वृक्ष के तने जैसी जाँघें, लम्बी खूबसूरत गर्दन, धनुष्य से तेज तर्रार होँठ, तुम्हारे पके हुए फल की तरह भरे हुए पर अति सुकोमल स्तन मंडल, पतली कमर और उसके निचे गिटार के आकार सामान तुम्हारी जाँघों का मिलन स्थान।"

मैंने मंद मंद मुस्काते हुए पूछा, "मेरी जाँघों का मिलन स्थान? अभी आपने देखा कहाँ है?"

सेठी साहब ने शरारत भरी मुस्कान देते हुए कहा, "तुम्हें क्या पता? मैंने तुम्हें इन आँखों से एक दो बार नहीं कई बार नंगी देखा है। कितनी बार तुम्हें मैंने सपनों में नंगी किया है। जब से मैंने तुम्हें पहली बार देखा तबसे मैं जब भी तुम्हें देखता हूँ तो तुम्हें अपनी नज़रों से तुम्हारे कपडे उतार पूरी नंगी कर देता हूँ। तुम्हारा हरेक अंग को मैंने जागते हुए और सपनों में देखा है।"

सेठी साहब की बात सुन मेरे रोंगटे खड़े हो गए। सेठी साहब की नज़रों का अंदाज देख कर पहले दिन से ही मैं समझ गयी थी की सेठी साहब मुझे अपनी नज़रों से नंगी कर जरूर देखते होंगे। औरतों में भगवान ने जन्मजात ही यह क्षमता दी है। मैंने शरारत भरी मुस्कान देते हुए कहा, "अब आपको सपना देखने की या अपनी नज़रों से मुझे नंगी करने की जरुरत नहीं है। मै आपके सामने हाजिर हूँ। आप मुझे खुद अपने हाथों से नंगी कर मेरी जाँघों का मिलन स्थान देख सकते हो।"

सेठी साहब ने बिना कुछ बोले झुक कर मेरी गर्दन की आसपास अपनी बाँहें डालकर मेरा सर मुझे बिस्तर से थोड़ा ऊपर उठाया और अपने होँठों से फिर से मुझे चूमने लग गए। उनके साथ चुम्बन में मैं ऐसी खो गयी की मुझे पता ही नहीं चला की कब वह मरे ऊपर आ गए और मेरी पीठ के पीछे से मेरे ब्लाउज के बटन और मेरी ब्रा का हुक खोल दिया। मैं बता नहीं सकती की सेठी साहब के छूते ही पता नहीं क्यों मेरी जाँघों के बिच में से मेरा स्त्री रस बहना शुरू हो जाता था। मैं पागल सी बेचैन हो जाती थी। मेरे पति के साथ चुदाई करवाते हुए मुश्किल से मैं एकाद बार झड़ती होउंगी। पर सेठी साहब के छूते ही मुझे लगता था जैसे मैं झड़ जाउंगी।

मेरे बूब्स तो सेठी साहब ने देखे और चूसे हुए ही थे। देखते ही देखते सेठी साहब ने मेरे ब्लाउज और ब्रा निकाल फेंके। मैंने सेठी साहब से लाइट बुझाने को कहा तो सेठी साहब बोले, "यहां तो कोई आने वाला नहीं है। अब तो लाज शर्म छोडो। मुझे तुम्हारे रूप के अच्छी तरह दर्शन तो करने दो टीना?"

मैं उनके सवाल के सामने लाजावाब थी। सेठी साहब मुझे ऊपर से नंगी कर पीछे हट कर मुझे अच्छी तरह निहारने लगे। मेरे अल्लड़ स्तनोँ की निप्पलेँ उनकी लोलुप नज़रों से एकटक देखने कारण एकदम सख्त हो कर भरे हुए स्तन मंडल पर मगरूर सी खड़ी हो गयीं। शर्म के मारे मैं आधी नंगी उनकी नज़रों से नजरें मिला नहीं पा रहीं थीं। कुछ देर मेरे स्तनोँ को निहारने के बाद उन्होंने मेरे दोनों स्तनोँ को अपनी हथेलियों में भर लिया और उन्हें प्यार से सहलाने और मसलने लगे।

मैं देख रही थी की उनकी जाँघों के बिच उनका लण्ड उनके पाजामे में सख्त हो कर तन कर खड़ा हो चुका था। वह उस सिमित मर्यादा में रुक नहीं पा रहा था। मेरे स्तनोँ को मसलते हुए धीरे धीरे वह काफी जोरों से उन्हें दबाने लगे। कुछ देर में उनकी माँसल बाँहों ने मेरे स्तनोँ को इतनी ताकत से मसलना शुरू किया की मुझे दर्द होने लगा। वह दर्द दुखद नहीं सुखद था पर दर्द तो था ही! मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी। मैंने कहा, "सेठी साहब, थोड़ा धीरे से! मैं कहीं नहीं जाने वाली।"

सेठी साहब ने कहा, "सॉरी टीना। मेरा यह लण्ड जब खड़ा हो जाता है तो मेरा अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहता। मैं एकदम उसके सामने बेबस हो जाता हूँ। इसी वजह से कई बार मेरी सुषमा से भिड़ंत हो जाती है। वह गुस्सा कर बैठती है।कई बार तो मेरी हरकतों से तंग आकर मुझे जंगली कह देती है वह। पिछले कुछ दिनों से तो सुषमा मेरे साथ में सोती भी नहीं है।"

बापरे! एक तो वैसे ही सेठी साहब की चुदाई तगड़ी होती है, और ऊपर से कुछ दिनों से अगर उन्हें सुषमाजी को चोदने का मौक़ा नहीं मिला तो मेरी तो उस रात शामत ही आने वाली थी। यह सोच कर मेरी हालत खराब हो रही थी। पर चाहे जो कुछ भी हो, मुझे किसी भी हाल में सेठी साहब पर कोई नियंत्रण करना नहीं था। यह मैंने पक्का तय किया था।

मैंने सेठी साहब के बालों में उंगलियां फिराते हुए कहा, "कोई बात नहीं सेठी साहब। मुझे पता है। सुषमाजी ने भी मुझे इशारों इशारों में यह बात कही थी। मैं समझ सकती हूँ। आप मेरी सिसकारियां और चीखों की परवाह मत करो। यह दर्द मेरे लिए दुःखद नहीं सुख के अतिरेक के कारण होगा। सेठी साहब, आपने अपने सच्चे प्यार, लगन और निस्वार्थ भाव से मुझे बिन मोल खरीद लिया है। आज रात से मैं पूरी तरह से आप की बन जाना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ की आप मुझे थोड़ी सी भी परायी ना समझें। मेरा यह बदन आपके भोग और आनंद के लिए पूरी तरह समर्पित है। आज की रात मैं आपसे खूब तगड़ी तरह रगड़वाना चाहती हूँ। आप चाहे जैसे मुझे रगड़ो। मुझे चिल्लाने दो, कराहने दो, पर प्लीज आप सॉरी मत कहो। प्यार में सॉरी और थैंक यू नहीं होते।"

फिर कुछ डरते हुए मैंने कहा, "पर फिर भी सेठी साहब, अब तो मैं आपकी हो चुकी हूँ और हमेशा रहूंगी। तो मेरी सेहत का भी ख़याल जरूर रखना।"

सेठी साहब ने मेरी बात को सूना अनसुना करते हुए अपने होँठ मेरे स्तनोँ के ऊपर चिपका दिए और मेरी निप्पलोँ को वह बेतहाशा जोर से चूसने लगे। उनका मुंह एक स्तन को चूसता तो उनका हाथ मेरे दूसरे स्तन को मसल ने में लगा हुआ रहता। कई बार वह इतनी ताकत और जोर से चूमते की मुझे लगा की कहीं मेरी छाती से निकल कर मेरे स्तन उनके मुंह में ही ना चले जाएँ। अगर मेरे स्तनोँ में उस समय थोड़ा सा भी दूध होता तो उनके चूसने से फव्वारा बनकर फुट कर निकल पड़ता। सेठी साहब के मेरे स्तनोँ को इतनी ताकत से चूसने के कारण सेठी साहब के दाँतों के निशान मेरे स्तनोँ पर अच्छी तरह से अंकित हो गए होंगे, उसमें मुझे कोई शक नहीं था। पर सेठी साहब से इस तरह मेरे स्तनोँ को चूसने से मेरे पुरे बदन में जैसे एक झनझनाहट सी होने लगी। मेरी जाँघों के बिच में से मेरा स्त्री रस चुने लगा, मैं झड़ ने कगार पर पहुंच गयी। मेरा तन बदन मेरे नियत्रण में नहीं रह पा रहा था। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आपको रोका।

यह दर्द मेरे लिए असह्य था। असह्य इस लिए नहीं की मैं उस दर्द को सहन नहीं कर सकती थी, पर असह्य इस लिए था की उस दर्द के कारण मेरी चूत में से पानी का फव्वारा सा छूटने लगा था। मैं सेठी साहब का वह प्यार पाना चाहती थी जो सुषमाजी को खूब मिल रहा था पर शायद वह उसे बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। मैं सेठी साहब का जीवन आनंद से भर देना चाहती थी। मैं चाहती थी की मुझे मेरे पति से जो प्यार नहीं मिल पा रहा था वह सेठी साहब से मिले और मेरा जीवन सम्पूर्ण हो।

मैंने सेठी साहब के पाजामे का नाडा खिंच कर इशारा किया की अब वह हमारे बीचमें से कपड़ों का आवरण हटा दे। मैं मेरे सेठी साहब को पूरा पाना चाहती थी। सेठी साहब ने थोड़ा सा हट कर मेरे घाघरे का नाडा खोल दिया। साडी तो वह पहले से ही निकाल चुके थे। मैंने भी मेरे पाँव ऊपर निचे कर मेरा घाघरा निकाल दिया। सेठी साहब ने बिस्तर से निचे उतर कर अपना कुर्ता, पजामा और कच्छा निकाल फेंका। सेठी साहब का बलिष्ठ माँसल नंगा बदन पूरी तरह मेरे सामने प्रस्तुत हो गया।

सेठी साहब का लण्ड उनके बदन की मर्यादा को ना मानते हुए उद्दंड सा लोहे की छड़ की तरह उनकी जाँघों के बिच में खड़ा था। उसे सिर्फ लण्ड कहना शायद बेमानी होगी। लण्ड मैंने मेरे पति का देखा था। हालांकि मेरे पति का लण्ड भी काफी तगड़ा था, पर सेठी साहब का लंड? किसी भी सेक्स की शौक़ीन औरत के सपनों का बादशाह कह सकते हैं उसे। गोरा, चिकनाहट से भरा, चमकता हुआ, पूरी गोलाई पर नीली नसों के बिछे हुए जाल से आच्छादित ऐसा लगता था जैसे चमड़े का लम्बा, मोटा, चिकना और सख्त रस्सा जिसके एक छोर पर लण्ड का चिकना टोपा था और जिसका दुसरा छोर सेठी साहब की जाँघों के बिच में चिपका दिया गया हो। हालांकि मैंने सेठी साहब का लण्ड आते हुए कार में अँधेरे में महसूस किया था। पर साक्षात जब उसे खड़ा हुआ देखा तो मुझे कोई ताज्जुब नहीं हुआ की सेठी साहब की पतली कमर, ऊपर का कसरती माँसल पेट, चौड़ी छाती और बाजू के सख्त स्नायु के साथ उस लण्ड इस लण्ड से कई अच्छी सोसाइटियों की खूबसूरत शादीशुदा या कँवारी लडकियां या औरतें सेठी साहब चुदवा चुकीं थीं या चुदवाने के लिए बेताब रहतीं थीं। ऐसे पुरुष से भला कोई भी स्त्री अपने कौमार्य को भंग करवाने के लिए मजबूर कैसे ना हो? मेरा सेठी साहब से तगड़ी तरह से चुदने का निश्चय सेठी साहब के नंगे बदन और ख़ास कर उनका वह विशाल काय लण्ड को देख और दृढ हो गया। हालांकि मुझे उससे चुदवाने से होने वाले दर्द का भली भांति अंदाज था।

मैंने सेठी साहब का लण्ड मेरी उँगलियाँ में प्यार से सहलाया और झुक कर उसे बार बार चूमा। चूमते हुए सेठी साहब के वीर्य रस का स्वाद मुझे अच्छा लगा। मैं लण्ड चूसना तो दूर, चूमना भी पसंद नहीं करती थी। पर उस रात मुझे सेठी साहब पर इतना प्यार आ रहा था की मैं अपने आपको सेठी साहब का लण्ड चूसने से रोक नहीं पायी। मैंने सेठी साहब के लण्ड को चूमते हुए धीरे धीरे से पहले उसका टोपा और उसके बाद जितना भी उस महाकाय लण्ड का हिस्सा अपने मुंह में ले सकती थी, उतना लेकर मैं सेठी साहब के लण्ड को चाटने और चूसने लग गयी। मैं तब पहली बार समझ पायी की अपने प्यारे मर्द का तगड़ा लण्ड चाटने और चूसने में कई औरतें कितना ज्यादा एन्जॉय क्यों करतीं हैं। उस समय मुझे सेठी साहब का लण्ड चूसने में इतना सच्चा आनंद आ रहा था जो कहना मुश्किल है। पर मेरे लण्ड चूसने से सेठी साहब के पुरे बदन का बुरा हाल हो रहा था। उनका पूरा माँसल बदन मेरे उनका लण्ड चूसने से एकदम सख्त हो गया था। उनके मुंह से बारबार "आह... ओह.... हूँ...." की सिकारियाँ निकल रहें थीं। जितना एक औरत को अपने प्यारे मर्द का लण्ड चूसने में आनंद आता है ऐसा ही आनंद एक मर्द को भी जब अपनी प्यारी औरत उसका लण्ड चुस्ती है तो आता है। उस समय वह औरत का मन अपने प्यारे मर्द का लण्ड उस की चूत के गहराईयों में घुस कर उन गहराइयों को कैसे अपना बनादेगा इसी सोच में खो जाता है।

सेठी साहब ने झुक कर मेरी छोटी सी पैंटी को भी निकलवा दिया और मैं उनके सामने पूरी नंगी हो गयी। सेठी साहब मुझे पूरी तरह निर्वस्त्र कर मेरे नंगे बदन को ऐसे घूरने लगे जैसे उन्होंने कोई स्त्री को नंगी देखा ही ना हो। कुछ देर तक स्तब्ध से देखते रहने के बाद वह बोले, "टीना, भगवान ने तुम्हें बना कर शायद वह ढांचा ही तोड़ दिया। तुम लाजवाब हो।"

मैंने सेठी साहब की बात पर कुछ शर्माते हुए मुस्कुरा कर कहा, "सेठी साहब अब मुझे और परेशान मत करो। अब तो हद ही हो गयी। मुझे पता है, मैं कितनी सुन्दर हूँ। कई बार मैं सुषमाजी को देखती हूँ तो इर्षा से जल उठती हूँ। उपरवाले ने कितना सुन्दर बनाया है उनको। मैं तो उनके मुकाबले कुछ भी नहीं। खैर, चलो अगर मैं सुन्दर हूँ तो अब यह सुंदरता पूरी तरह से आपकी है। मुझे अब आप पूरी तरह से एन्जॉय करो। मैं आपके प्यार के लिए कबसे तरस रही हूँ।"

सेठी साहब ने झुक कर मुझे प्यार से कपाल पर चुम्बन किया फिर मेरी टांगों को चौड़ी कर टांगों के बिच में अपना सर डालकर जीभ से मेरी चूत में से रिसते हुए रस को चाटने लगे। सेठी साहब की जीभ मेरी चूत में गजब कई हलचल मचा रही थी। मेरे पुरे बदन में सेठी साहब के मेरी चूत चाटने के कारण उन्माद की लहर दौड़ रही थी। मेरी टाँगों के बिच पता नहीं जैसे मेरे स्त्री रस की धारा सी बह रही थी, जिसे सेठी साहेब बड़े चाव से चाटे जा रहे थे। मेरी चूत का हरेक स्नायु छटपटा रहा था। सेठी साहब की जीभ कहाँ कितना कुरेदना उसमें माहिर लग रही थी। मेरी छटपटाहट की परवाह किये बिना सेठी साहब मेरी चूत की हर पंखुड़ी और पंखुड़ियों के बिच की सतह को बड़े प्यार से चाटे और चूसते बाज़ नहीं आ रहे थे। मेरी कामाग्नि की ज्वाला सेठी साहब की जीभ के कुरेदने से बढ़ती ही जा रही थी।

कुछ ही देर के बाद सेठी साहब कुछ पीछे हट गए। पीछे हट कर अपनी जीभ की जगह उन्होंने अपनी दो उंगलियां मेरी चूत में घुसेड़दीं। उँगलियाँ का मेरी चूत में घुसते ही पता नहीं मेरे दिमाग में कैसा झटका लगा की मैं उन्माद और रोमांचित उत्तेजना से कराहने लगी। मेरा झड़ना अब रुका नहीं जा रहा था। मेरा पूरा बदन बिस्तर पर मचल रहा था जिसे सेठी साहब देख कर हैरान लग रहे थे। मैंने सेठी साहब का हाथ पकड़ कर जोर से दबाते हुए कहा, "सेठी साहब, आह....... ओह...... मुझे चोदो। मैं झड़ रही हूँ। प्लीज अपना तगड़ा लण्ड मेरी चूत में पेलो, अब मुझसे रहा नहीं जा रहा।" ऐसा कहते कहते मैं झड़ पड़ी। मेरे दिमाग में ही नहीं मेरे पुरे बदन में जैसे एक बिजली की तीखा झटका दौड़ रहा था।

मैं जानती थी की जैसे ही सेठी साहब का मोटा लण्ड मेरी चूत में घुसने की कोशिश करेगा तो मेरे पर कहर ढाएगा। पर आखिर मुझे उसे तो लेना ही था तो फिर जब ओखल में सिर रख दिया है तो मुसल से क्या डरना?

मैंने सेठी साहब का सर पकड़ कर उठाया और कहा, "वैसे तो मुझे यह बहुत अच्छा लग रहा है, पर सेठी साहब आज अब मैं आपकी मर्दानगी को पूरा अपने बदन में अंदर लेकर जो सुख एक औरत को अपने प्रेमी से प्यार करके मिलता है, वह मैं महसूस करना चाहती हूँ। इस पल का मैं महीनों से इंतजार करती रही हूँ। अब मुझसे रहा नहीं जाता। अब प्लीज आइये और मुझे खूब प्यार कीजिये और मुझे अपना बना लीजिये। आज की रात मैं मैं ना रहूं और आप आप ना रहो। हम एक दूसरे में खो जाएं। मुझे खूब तगड़ा चोदिये प्लीज।"

सेठी साहब ने मेरी मुंडी पकड़ कर उसे हिलाते हुए कहा, "टीना, मुझे बहुत अच्छा लगा की तुम खुल्लम खुल्ला देसी भाषा में मुझे कह रही हो की तुम मुझ से चुदवाना चाहती हो।"

मैंने सेठी साहब के लण्ड को अपने एक हाथ में पकड़ कर उसे हिलाते हुए कहा, "सेठी साहब, मुझे मजबूर मत करिये। मुझे शर्म आती है। वैसे तो मैं अपने पति से खुल्लमखुल्ला सब बोलती हूँ, पर पता नहीं आपके साथ मुझे आपको मेरा सरगना बनाकर, अपना स्वामी बना कर बहुत अच्छा लगता है।

मेरी नजर में आपका लेवल कहीं ऊंचा है। मैं उसे निचे नहीं लाना चाहती। मैं आपकी औरत बन कर आपके निचे रहना चाहती हूँ। आप कह रहे हैं तो मैं कुबूल करती हूँ की आपकी कसम, आज मैं आपके इस तगड़े लण्ड से खूब चुदना चाहती हूँ। जिस दिन मेरे पतिने आपका यह लण्ड देखा तब से उन्होंने आप के इस लण्ड के बारे में बता बता कर मुझे पागल कर दिया है। मैं दिन रात इसी के बारे में सोच कर परेशान हो जाती थी की अगर वाकई में आपका यह लण्ड ऐसा तगड़ा है तो उसको मैं अंदर लेकर अंदर में डलवा कर कैसा महसूस करुँगी। जब आपने उस दिन स्कूल में मेरे पति के हक़ की अपेक्षा ना रहते हुए, मेरे पति की जिम्मेदारियां निभाने की इच्छा जाहिर की थी तो मैंने तय किया की मैं आपसे जरूर अपने आप को समर्पण कर मतलब चुदवा कर आपको मेरे प्रेमी और पति होने का पूरा एहसास कराउंगी और अपनी जिम्मेवारी भी निभाऊंगी। उस दिन से ही मैं आपके लण्ड से चुदने के लिए बेबस हो रही थी। आजकी रात मुझे मौक़ा मिला है। अब अगली तीन रातें आप बिलकुल सोओगे नहीं और यहीं मेरे साथ ही गुजारोगे, और मुझे खूब चोदोगे।"

मेरी बात सुनते ही सेठी साहब ने झुक कर मुझे होंठों पर चूमा और मुस्कुरा कर बोले, "टीना, मैंने कभी सोचा नहीं था की मेरे सपनों की खूब सूरत रानी तुम मुझ पर इतनी जल्दी मेहरबान हो जाओगी। मैं हमेशा तुम्हें अपनी बनाकर मेरे लण्ड से तुम्हें चोदना जरूर चाहता था, पर मैं यह सिर्फ तुम्हारी मर्जी नहीं, बल्कि तुम्हारी सक्रीय इच्छा से ही करना चाहता था। मैंने तय किया था की मैं तुम्हें तब तक नहीं चोदुंगा जब तक तुम मुझे सामने चल कर चोदने के लिए नहीं कहोगी। आज तुमने मेरी यह इच्छा पूरी कर दी।"

यह कह कर सेठी साहब उठ खड़े हुए। उनका तगड़ा लण्ड अल्लड़ सा बेखोफ उद्दंड सा खड़ा हुआ मेरी और ऐसे देख रहा था जैसे मुझे चुनौती दे रहा हो। मैं आश्चर्य से उनको देखती ही रही जब सेठी साहब खिसक कर एक स्टूल पर रखी अपनी सूट केस की पॉकेट टटोलने लगे। मैं समझ गयी की वह शायद कंडोम ढूंढ रहे थे। यह देख कर मेरे ह्रदय में सेठी साहब के लिए सम्मान बढ़ गया। एक जिम्मेवार प्रेमी की भूमिका सेठी साहब निभा रहे थे। पर मुझे सेठी साहब के तगड़े लण्ड का मेरी चूत में पूरा पूरा मजा लेना था। यह मैंने पहले से ही तय किया था। मैंने बैठ कर उनका हाथ पकड़ा और कहा, "अगर आप कंडोम ढूंढ रहें हैं तो मत ढूंढिए। वैसे तो इस वक्त मेरा फर्टिलिटी पीरियड हैं नहीं, पर अगर मुझे आपसे गर्भ रह गया तो मैं आपके बच्चे को जरूर जनम देना चाहूंगी। मैं ना सिर्फ आपकी बीबी बनना चाहती हूँ, मैं आपके बच्चे की माँ भी बनना चाहती हूँ।आज मैं आपके और मेरे बिच में कोई भी आवरण रखना नहीं चाहती चाहे वह गर्भ निरोधक कंडोम का पतला सा आवरण ही क्यों ना हो।"

सेठी साहब कुछ देर तक मेरी और आश्चर्य से एकटक देखते रह गए। वह उस समय उनकी अपने बच्चे की समस्या के बारे में शायद सोच रहे थे। मैंने उनका सर दोनों हाथों में पकड़ कर कहा, "सेठी साहब, अगर हमारे मिलन से कोई बच्चा रह गया, तो मैं उसे जरूर जनम दूंगी और मैं आपसे वादा करती हूँ की मेरे उस बच्चे को अगर आप और सुषमाजी चाहो तो गोद ले सकते हो। हो सकता है वह हमारा बच्चा आपकी और सुषमाजी की जन्दगी फिर से राह पर ला दे। अगर आप और सुषमाजी चाहोगे तो वह बच्चा आपका होगा और ना मैं और ना ही मेरे पति उस बच्चे पर माँ बाप होने का दावा करेंगे। मैं चाहती हूँ की हमदोनों का यह मिलन ना सिर्फ मेरे और आपके लिए बल्कि आपके और सुषमाजी के लिए भी एक अद्भुत आनंद और वरदान का कारण बने और आप दोनों की जिंदगी में फिर से वही बहार लौट आये।"

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