Category: Loving Wives Stories

साथी हाथ बढ़ाना Ch. 03

by iloveall©

मैं तो पहले से ही जानती थी की सेठी साहब मुझे कपडे पहनने नहीं देंगे। इस लिए मैं वैसी ही नंगी बिस्तरे पर बैठी थी। भाभी ने मजबूरी में कुछ शर्माते हुए सबसे नजरें चुराते हुए चाय बनायी और हमें दी। मुझे यह मानना पड़ेगा की भाभी नंगी चलती हुई इतनी खूबसूरत लग रही थी की मुझे भी खुद पर हीनभावना हो रही थी। भाभी की कमर की लचक, उनके कूल्हे का घुमाव और जाँघों की खूबसूरती देखते ही बनती थी। मर्दों की आँख गड जाए ऐसे भाभी के भरे हुए कूल्हे थे। उन्हें देखते ही हर मर्द उनको सहलाना चाहेगा, कूल्हों के बिच की गाँड़ की दरार में उंगलिया डालकर उँगलियों से गाँड़ मारना चाहेंगे। वैसे भी वह साडी पहन कर भी चलती थी तो उनके कूल्हे की मटक से मर्द लोग अपनी नजर वहाँ से हटा नहीं पाते थे तो जब कपड़ों का आवरण ना हो तो भला औरत की खूबसूरती का क्या कहना? मेरी आँखें भी भाभी की नंगी मूरत देख कर चकाचौंध हो रही थी तो सेठी साहब की तो बात ही क्या? सेठी साहब भी भाभी की नंगी सुंदरता को देख कर अपनी आँखें हरी करने में लगे हुए थे।

चलते फिरते भाभी अपनी जाँघों को चिपका रख कर अपनी खूब सूरत गोरी चूत को हमारी कुरेदती हुई आँखों से दूर रखना चाहती थी। पर ऐसे चला कैसे जाए? भाभी की अजीब ढंग की चाल देख कर मैंने भाभी से कहा, "भाभी सा, अब यह नाटक बंद ही करो और सब से अपनी चूत नाहीं छिपाओ। यह जवानी यह खूबसूरती चंद दिनों की है, फिर हम सब बदसूरत, बेढंग हो जाएंगे। पुराने जमाने की खूबसूरत हिरोईनों की शकल और बदन आज कौन देखना पसंद करता है? तो चंद दिनों के लिए इसे मत छिपाओ। आपकी चूत इतनी खूबसूरत है तो देखने दो हमें।"

मेरी बात सुन कर भाभी ने मेरी और देखा और हल्कासा मुस्कुरा कर उन्होंने अपनी चूत को छिपाने की कोशिश बंद कर खुल कर चलने लगी।

मैंने भाभी को मेरे पास बुलाया और उनसे लिपट कर बोली, "भाभीजी, मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ? मुझे पता ही नहीं था की आप भी हमारे साथ शामिल हो सकते हो। इसी लिए सारी बात आप से छिपाई। आज आप के हमारे साथ शामिल होने से हम बहुत ज्यादा मस्ती कर पा रहे हैं। आपसे मुझे पहले इतना अपनापन नहीं लगता था। पर अब मुझे आप सिर्फ मेरी भाभी नहीं मेरी एक ऐसी दोस्त जिसके साथ मैं सब कुछ बात कर सकती हूँ। मैं जिसके साथ चुदाई, लण्ड, चूत कुछ भी बिंदास बोल सकती हूँ। रिश्तेदारी में ऐसे रिश्ते कहाँ मिलते हैं।"

भाभी ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा, "ननद सा, मैंने आपकी आँखों में सेठी साहब के लिए वह चुदाई वाला भाव देखा। मैं भाँप गयी की आप के और सेठी साहब के सम्बन्ध काफी करीबी, नाजुक और अंतरंग हैं। मैंने यह भी भाँप लिया की कल रात आप ने सेठी साहब से खूब चुदवाया था। ननद सा, मैं भी प्यार की भूखी हूँ। मैं सच कह रही हूँ, आप के भाई सा मुझे अच्छा चोदते हैं पर मैं उससे खुश नहीं थी। कॉलेज में मेरा एक ऐसा तगड़ा सॉलिड बॉय फ्रेंड था जो मुझे पागल की तरह चोद कर नानी की याद दिला देता था। मैंने शादी से पहले आपके भाई सा को सब कुछ बता दिया था। मैंने उन्हें यहां तक भी कह दिया था की अगर उन्हें मौक़ा मिला और अगर वह किसी भी औरत को चोदना चाहें तो चोद सकते हैं और अगर मुझे मौक़ा मिला तो मैं कोई तगड़े मर्द से चुदवाउंगी और आपके भाई सा कोई बुरा नहीं मानेंगे। इस बार सेठी साहब जब आये तो उन्होंने ही मुझे उकसाया था और कहा था की मुझे अगर सेठी साहब से चुदवाने का मौक़ा मिला तो मैं जरूर चुदवाउं।"

भाभी की बात सुन कर मैं चौंक गयी। इसका मतलब था भाई को भी ऐसे चुदाई करने में या करवाने में कोई दिक्क्त नहीं थी। मेरे ही यहां यह सब चल रहा था और मुझे ही कोई खबर नहीं! मैं हैरान सी भाभी का हाथ सेहला रही थी। भाभी ने मुझे देख कर कहा, "ननद सा, मैं कब से कोई ऐसा मर्द ढूंढ रही थी जो मुझे अपनी मर्दानगी से तगड़ा चोद कर मुझे एक औरत होने का एहसास कराये। मुझे आपकी इर्षा हो रही थी। सेठी साहब जैसे बड़े ही कसरत बाज, हृष्टपुष्ट, हट्टेकट्टे, मांसल एकदम फिट जवान जिन्हें देख कर मैं खुद मोहित हो गयी थी उनसे आपने कल रात ऐसी तगड़ी चुदाई करवाइ यह देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मुझे आपके और सेठी साहब के रिश्ते में कोई भाँज तो नहीं मारनी थी पर आपको यह जरूर एहसास करवाना था की आप लोग मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते, मैंने आप लोगों की चोरी पकड़ ली है। पर आपने तो सामने चल कर मुझे सेठी साहब से चुदवाने का मौक़ा देकर मुझे अपने वश में कर लिया। अब हम दोनों एक ही डाल के पंखी हैं।"

दो दिन पहले मैं यह सोच भी नहीं सकती थी की मुझे मेरी मारवाड़ी रूढ़िवादी घराने की भाभी से ऐसे शब्द सुनने को मिल सकते हैं। मैंने भाभी की आँखों में मेरे लिए अनूठा प्रेम देखा और महसूस किया। उस दिन तक मेरे और भाभी के सम्बन्ध ननद और भाभी के ही थे पर उस रात हम एक दूसरे को नंगी कर रहे थे और एक ही मर्द से एक दूसरे के सामने चुदवा रहे थे। खैर भाभी ने मेरे सामने चुदवाया था मैंने नहीं। भाभी को श्याद इस बात का एहसास हुआ और वह बोल पड़ी, "ननद सा, अब तक आप मेरी चुदाई देखती रही, अब मैं सेठी साहब आपकी चुदाई कैसे करते हैं वह देखना चाहती हूँ। सेठी साहब अब मेरी ननद सा को चोदिये प्लीज।"

मैंने भाभी के गाल में चूँटी भर कर कहा, "आयहाय रे मेरी नटखट भाभी! मेरे ही प्रियतम से चुदवा कर मेरे ही प्रियतम को मुझे चोदने का न्यौता दे रही हो! अरे मैं तो कल सेठी साहब की चुदाई की मार झेल चुकी हूँ। हाँ यह कहो की तुम्हें सेठी साहब मेरी चुदाई कैसे करते हैं यह देखना है। ठीक है तो देखो।"

सेठी साहब मूक दर्शक की तरह चुपचाप बैठे कभी कभी मंद मुस्कुराते हम दो नारियों की प्रेम गोष्ठी सुन रहे थे।

मैंने सेठी साहब की और घूम कर कहा, "सेठी साहब आज आपकी तो चांदी हो गयी। दो खूबसूरत औरतों को एक साथ चोदने का मौक़ा मिल गया। एक को चोद लिया आपने दूसरी चुदवाने के लिए हाजिर है।"

यह कह कर मैं बिस्तर पर लेट गयी और मैंने अपनी बाँहें फैला कर सेठी साहब को आमंत्रित किया। पर सेठी साहब आये उसके पहले मेरी भाभी मेरे ऊपर सवार हो गयी और मेरी आँखों में आँखें डालकर शरारत भरी मुस्कान करती हुई बोली, "ननद सा, अब सिर्फ सेठी साहब नहीं, मैं और सेठी साहब हम दोनों मिलकर आपको चोदेंगे।"

मैं भाभी की बात सुन कर काफी हैरान रह गयी और बोली, "अरे बापरे! एक अकेले सेठी साहब से तो मुश्किल से निपट सकती हूँ, और आप दोनों मिलकर चोदोगे मुझे?" फिर एक गहरी साँस लेकर शरारती अंदाज में कहा, "अरे भाई सेठी साहब तो चलो ठीक है पर आप कैसे चोदोगे मुझे? लण्ड कहाँ से लाओगी?"

भाभी ने मेरी कमर में घूंसा मार कर हँसते हुए कहा, "अरे भाई सेठी साहब का लण्ड तो आप अकेले नहीं हम दोनों के लिए भी ज्यादा ही है। तो फिर लण्ड की जरुरत तो है नहीं। बाकी आपके लिए सेठी साहब के साथ मैं हूँ ना।"

मैंने आँख मटकाते हुए कहा, "भाभी सा, सब सोच रखा है आपने। चलो यह भी ठीक। है अब जब आपके ही घर में चुदाई करवानी है तो यह भी झेलना ही पड़ेगा। मरता क्या ना करता?"

भाभी मेरे स्तनोँ पर अपने होंठ रख कर बोली, "ननद सा, आज मैं और सेठी साहब मिल कर तुम्हारे स्तनोँ में से दूध निकाल कर ही रहेंगे।"

मैंने भाभी के कान पकड़ कर कहा, "भाभी सा, जान लोगे क्या मेरी? अभी कहाँ से दूध आएगा? हाँ अगर तक़दीर ने चाहा और इस बार सेठी साहब से मैं गर्भवती बन गयी, तब जरूर निकलेगा दूध इनमें से। और मैं आप को जरूर वह दूध पिने के लिए बुलाऊंगी।" पर मेरे बोलने के फ़ौरन बाद मुझे पछतावा होने लगा की कैसे मेरे मुंह में से यह शब्द फिसल पड़े? अब भाभी मुझे जरूर पूछेगी बच्चे के बारे में।

मेरी बात सुन कर भाभी थोड़ी पीछे की और हटी। भाभी के चेहरे पर सदमे के से भाव थे। वह हड़बड़ाती हुई बोली, "बच्चा? सेठी साहब से? क्या कह रही हो ननद सा?" तब मेरे लिए बड़ी ही मुश्किल घडी आयी। मैं क्या बताऊँ मेरी भाभी को?

मैं एक बात समझ गयी थी। भाभी बहुत ही तेज औरत थी। वह मेरा झुठ एक सेकंड में भाँप लेगी। मुझे झूठ बोलना आता नहीं। मेरे चेहरे के भाव से कोई भी आसानी से यह भाँप सकता है, और भाभी की नजर तो बड़ी ही कुशाग्र थी। मैंने असहाय हो कर सेठी साहब की और देखा। सेठी साहब ने फ़ौरन मोर्चा सम्हाला और भाभी को साथ में बिठा कर कहा, "भाभी सा, यह कहानी बड़ी लम्बी है और उसे समझाने में वक्त भी लगेगा और हमारा यह शाम का मजा किरकिरा हो जाएगा। क्या हम फिर बाद में इसके बारे में बात कर सकते हैं?"

भाभी एक समझदार औरत थी और उसे मेरे और सेठी साहब पर काफी भरोसा था। भाभी ने कहा, "ठीक है सेठी साहब, आप और ननद सा कहते हो तो बादमें ही सही, पर मुझे बताना जरूर।"

सेठी साहब ने भाभी के हाथ से हाथ मिला कर बड़ी ही लुभावनी मुस्कान देते हुए कहा, "भाभी यह मेरा पक्का वाला प्रॉमिस रहा की बाद में अथवा टीना मौक़ा और समय मिलने पर मैं यह सारी कहानी विस्तार से तुम्हें सुनाएंगे।"

भाभी ने भी उसी लहजे से मुस्कुराते हुए सेठी साहब से कहा, "ठीक है, जब आप मेरी चुदाई करते हुए मुझे रगड़ रहे थे तब ननद सा बाजू में लेटी बड़े मजे ले रही थी। अब मजे लेने की मेरी बारी है।" फिर भाभी मेरी और घूम कर बोली, "ननद सा अब अपनी रगड़ाई के लिए तैयार हो जाओ।"

फिर भाभी ने सेठी साहब का लण्ड अपनी हथेलियों में लिया और उसे थोड़ा सा ढीला देख कर बोली, "सेठी साहब, यह क्या? मेरी ननद सा को चोदना है और आपका लण्ड अभी पूरी तरह सख्त नहीं हुआ? यह कैसे चलेगा? लाइए मैं इसे सख्त तगड़ा टाइट कर देती हूँ।" यह कह कर भाभी सेठी साहब को पलंग पर लिटा कर खुद अपना मुंह सेठी साहब के लण्ड के टोपे पर लगा कर उसे बड़े प्यार से चाटने लगी। थोड़ा चाट कर जैसे उसे साफ़ कर रही हो ऐसे कर फिर सेठी साहब के लण्ड को दोनों हथेलियों में पकड़ कर उसे सहलाने और उसकी त्वचा को हथेलियों से ऊपर निचे कर सेठी साहब के लण्ड को अच्छी तरह से पम्पिंग करने लगी।

भाभी कुछ देर लण्ड को सहलाती तो कुछ देर मुंह में डालकर सेठी साहब से अपने मुंह को चुदवाती। सेठी साहब भी अपना पेंडू ऊपर कर के भाभी के मुंह को चोदने की कोशिश करते। भाभी ने तब मुझे पकड़ कर सेठी साहब के अंडकोष को चाटने का इशारा किया। मैं भी भाभी के साथ सेठी साहब के लण्ड को तो कभी उनके अण्डों को बारी बारी से चाटने लगी। हम दोनों महिलाओं को मिल कर सेठी साहब के लण्ड को चूसना मेरे लिए क अजीब सा रोमांचक कार्य था। सेठी साहब भी हम दोनों की मिली भगत से सेठी साहब के लण्ड को इतनी जबरदस्त ट्रीटमेंट देने से काफी उत्तेजित हो चुके थे और उनका लण्ड लोहे के छड़ की तरह सख्त हो चुका था।

सेठी साहब ने हमें रोक कर कहा, "अरे बस भी करो यार! भाभी क्या तुम अब मेरा माल अपने मुंह में ही छुडवाओगे क्या? तुम्हें पता है की मुझे तो टीना की चूत में मेरे माल को छोड़ना है।" सेठी साहब ने तब भाभी से सारी बातें छिपाने का स्वांग ना करना ही ठीक समझा और यह बता ही दिया की वह मुझे चोद कर गर्भवती बनाएंगे। भाभी को सेठी साहब की सच बोलने की बात पसंद आयी। वह फ़ौरन अपना कान पकड़ कर बोली, "सॉरी बाबा, ना, मैं ऐसा पाप नहीं करुँगी। आप मेरी ननद सा को जरूर माँ बनाइये। मुझे मेरे आप दोनों के प्यार से पैदा हुए छोटे से लाले को गोद में बिठाकर खिलाने की बड़ी ही आशा है। लीजिये मैं कबाब में हड्डी ना बन कर हट जाती हूँ।" मैंने भाभी की आवाज में कुछ आहत होने की झलक महसूस की।

मैंने फ़ौरन भाभी का सर अपनी छाती पर लगा कर मेरा एक स्तन भाभी के मुंह में दिया और बोली, "भाभी सा, यह सच है की मैं सेठी साहब के वीर्य से माँ बनना चाहती हूँ। सेठी साहब की पत्नी सुषमाजी को सेठी साहब के वीर्य से बच्चा नहीं हो रहा। सुषमा जी को कैसे भी एक बच्चा चाहिए। यातो वह मैं सेठी साहब के वीर्य से पैदा कर सुषमाजी को दूंगी या तो वह सुषमाजी खुद पैदा करेंगी मेरे पति राज के वीर्य से। दोनों में से एक तो होगा ही। अगर दो बच्चे होते हैं तो एक बच्चे को मैं रख लुंगी। यही हमारा प्लान है। मैंने सारी बात आपको घड़े में सागर के रूप में संक्षिप्त में बता दी।"

मेरी बात सुन कर भाभी अपने आंसूं रोक नहीं पायी। भाभी आंसू बहाती हुई बोली, "मुझे माफ़ कर देना ननद सा, मैंने आपको गलत समझा। मैंने सुषमा जी का भी फ़ोन पर मजाक उड़ाया। हाय राम, यह मेरे से बड़ा पाप हो गया। मैं सुषमाजी की पीड़ा को समझ सकती हूँ। मैंने आपको और आपके इस बहुत बड़े बलिदान को छिछोरे रूप में ले लिया। ननद सा, मैं भी इस राह से गुजर चुकी हूँ। मैं भी यह सब भुगत चुकी हूँ। मेरी जिंदगी में भी ऐसा ही एक समय एक झंझावात के रूप में आया था। हमने भी कुछ ऐसा ही कर उसे पार किया है। आप यह सब नहीं जानते। मुझे माफ़ कर देना।"

मैंने भाभी को मेरे स्तनों को चूसने के लिए इंगित किया और बोली, "भाभी, आप दिल छोटा मत कीजिये। मुझे अब आपकी यह छोटी छोटी शरारतें बड़ी ही प्यारी लगने लगीं हैं। आप जैसी हैं वैसी ही रहिये। यह हंसी मजाक ही जिंदगी का अमृत है। पर बाद में मुझे जरूर बताइयेगा की आपके साथ क्या हुआ था।"

भाभी ने मेरे स्तनोँ को बड़ी शिद्दत से चूसते हुए कहा, "ननद सा जरूर बताउंगी। पर अभी तो आपको सेठी साहब से अच्छी तरह रगड़वाना है और माँ भी बनना है।" यह कहते हुए भाभी ने मेरे स्तनों की निप्पलों को अपने दांत में दबा कर जोर से काटना शुरू किया। मेरे मुंह से दबी हुई चीख निकल पड़ी। मैंने कहा, "भाभी सा, यह काम सेठी साहब के लिए ही छोड़ दीजिये ना?"

भाभी ने हँसते हुए कहा, "ननद सा, मैंने कहा न था की सेठी साहब और मैं हम दोनों मिलकर आपको चोदेंगे? अब यह डिपार्टमेंट मेरा है।" यह कह कर भाभी ने मेरे एक निप्पल को और जोर से काटा।

फिर भाभी ने मेरी दो टांगें चौड़ी की और खुद बिच में आ कर जो तेल मैंने भाभी की चूत में और सेठी साहब के लण्ड पर लगाया था वही तेल मेरी चूत में अपनी उंगलियां डालकर लगाने लगी। भाभीने बड़ी उदारता से वह तेल मेरी चूत की सुरंगों में लगाया और मेरी पूरी चूत वह तेल से लबालब चिकनी कर दी। मेरी भाभी की इस तरह मजाक करते हुए भी मेरी चिंता करती देख मेरी आँखें नम हो गयी।

मैंने भाभी को मेरे ऊपर खिंच कर मेरे ऊपर सुला दिया। फिर भाभी के होँठों से अपने होँठ चिपका कर मैंने कहा, "भाभी, आप की जबान पर भले ही कटाक्ष हो पर आपका दिल शीशे की तरह साफ़ है। आप दिल की बड़ी भली और अच्छी औरत हो।"

भाभी ने मेरी आँखों में पानी देखा तो वह भी कुछ इमोशनल हो गयी। भाभी की आँखों में भी नमी आयी, उसे छिपाते हुए भाभी बोली, "ननद सा, मैं आपकी मीठी मीठी बातों में फंस कर सेठी साहब को यह नहीं कहने वाली की आपको ज्यादा सख्ती से ना रगड़े।"

मैंने भाभी का एक हाथ पकड़ कर मुस्कुराते हुए कहा, "भाभी सा, सेठी साहब जैसे चोदने वाले हों और आप जैसे देखकर मजे लेने वाले हों तो मैं जिंदगी भर बिना रुके इस लण्ड से रगड़ते हुए चुदवाना पसंद करुँगी।"

भाभी ने मुझे टोकते हुए कहा, "ना रे बाबा, ऐसा मत करना। फिर तो सारी रगड़ाई का मजा आप ही लोगी। अरे दो और औरतें सेठी साहब के इस लण्ड से रगड़ने ले लिए बेताब हैं वह फिर कहाँ जाएंगी? तब मेरा और सुषमा जी का क्या होगा?"

सेठी साहब बाजू में बैठे हम दोनों नारियों की एक दूसरे को छेड़खानी के साथ हो रहा वार्तालाप सुन रहे थे। आखिर में वह बोल ही पड़े, "अरे तुम दोनों महिलाओं ने मिलकर तो सारा स्टेज ही हथिया लिया है। अरे भाई आजकी चुदाई का हीरो तो मैं हूँ। मुझे मेरी टीना को चोदने तो दो अब?"

भाभी ने मुस्कुरा कर सेठी साहब की और देखा और अपना अंगूठा ऊपर कर इशारा किया की वह अब मुझे चोद सकते हैं। भाभी धीरे से मेरी एक तरफ हो गयी और सेठी साहब की जगह खाली कर दी। सेठी साहब मेरी टाँगों के बिच में पहुँच गए और मेरी टाँगें फिर से अपने कन्धों पर रख मुझे चोदने के लिए तैयार हुए। भाभी ने सेठी साहब का खड़ा तगड़ा लण्ड अपनी दोनों हथेलियों में लिया और जैसे उसका वजन कर रही हो वैसे बोलीं, "यह ढाई किलो के लण्ड को मुझे अच्छी तरह से चिकना करना पडेगा, ताकि मेरी ननद सा को चुदवाने में दिक्कत ना हो।"

यह कह कर भाभी ने सेठी साहब के लण्ड को पहले तो जैसे उसके वजन का अंदाज लगा रही हो वैसे अपनी हथेलियों में ऊपर निचे किया और फिर हलके बड़े प्यार से मेरी चूत की पंखुड़ियों को अलग कर के उसके केंद्र स्थान पर रखा और फिर उस तेल से सेठी साहब के लण्ड को जैसे अभिषेक कर रही हो ऐसे उस तेल को अच्छी तरह से पूरी लम्बाई और गोलाई पर खूब उदारता पूर्वक लगाया।

इस बार सेठी साहब को अपना लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ने में पहले जितनी मशक्क्त नहीं करनी पड़ी। मेरी भाभी बैठ कर बड़े नजदीक से सेठी साहब का तगड़े घोड़े के जैसे लण्ड को मेरी नाजुक चूत में घुसते हुए देख कर छोटी बच्ची किसी नज़ारे को देख कर तालियां बजा कर हंसती है ऐसे तालियां बजा कर हंसती हुई बोलने लगी, "मेरी ननद सा चुद रही है रे, मेरी ननद सा चुद रही है।"

भाभी की इस बचकाना हरकत देख कर मुझसे मेरी हंसी रोकी नहीं गयी। सेठी साहब से चुदवाते हुए, उनके धक्कों को सहन करते हुए भी मेरे मुंह से हंसी खिल कर फुट पड़ी। सेठी साहब की भाभी की हरकत से अपनी मुस्कुराहट को रोक नहीं सके।

सेठी साहब ने भाभी की और मुड़कर देखा और कहा, "भाभी सा, आप यह कतई ना समझें की आपकी ननद सा को चोदते हुए आपको मैं छोड़ दूंगा।" यह कहते हुए सेठी साहब ने भाभी को अपनीं और खींचा और भाभी की मदमस्त चूँचियों में से एक की निप्पल को अपने मुंहे में लिया और मुझे चोदते हुए वह उस निप्पल को जोर से चूसने लगे। साथ साथ में वह कभी जोश में आ कर उस निप्पल को काट भी रहे थे। सेठी साहब का एक हाथ मेरे एक स्तन को मसल रहा था जब की उनका दुरा हाथ भाभी की पतली कमर के इर्दगिर्द था। सेठी साहब मुझे चोदते हुए एक साथ दो औरतों के साथ मजे करने का आनंद ले रहे थे।

मेरी तो हालत ही खराब थी। जैसे ही मैंने सेठी साहब का लण्ड मेरी चूत में लिया की मेरी चूत में अजीब सी झनझनाहट फिर से चालु हो गयी। सेठी साहब से मैं पहले दिन चुद चुकी थी। पर पता नहीं सेठी साहब के लण्ड का स्पर्श ही कुछ ऐसा था की मेरी चूत क्या मेरे पुरे बदन में एक तेज आंधी के समान उत्तेजना की लहरें दौड़ने लगतीं थीं। मैं जितनी मेरी पूरी जिंदगी में मेरे पति के साथ नहीं झड़ी होउंगी उससे कहीं ज्यादा सेठी साहब के लण्ड के दो या तीन स्ट्रोक से झड़ जा रही थी। मेरा झड़ना सेठी साहब शायद महसूस कर रहे होंगे, पर मैं इतनी ज्यादा बार झड़ रही थी की शायद सेठी साहब उसे मेरी आतंरिक प्रक्रिया मान कर उसे झड़ना नहीं मान रहे होंगे क्यूंकि वह फिर भी मुझे अपने तगड़े लण्ड से पेलते ही रहेथे।

मेरी हालत मेरी भाभी और खराब कर रही थी। वह सेठी साहब के लण्ड जहां से मेरी चूत में घुस कर गायब हो जाता था वह सतह पर मेरी चूत की पंखुड़ियों को अपनी उंगली के छोर से बार बार सेहला रही थी, मसल रही थी। मेरी चूत की पंखुड़ियों को मसल मसल कर मुझे में और भी तेज उत्तेजना पैदा कर रही थी। औरत जब किसी मर्द से चुद रही होती है तो कई बार अपने आपको झड़ने के लिए लण्ड से चुदवाते हुए वह अपनी चूत की पंखुड़ियों को अपनी उँगलियों से मसलती रहती है। ऐसा करने से उसकी चूत को अतिरिक्त रोमांचक उत्तेजना मिलती है। इस प्रक्रिया में उसकी उंगलियां अक्सर लण्ड को भी छू लेती हैं। उसका लण्ड पर भी असर होता होगा। पर चूत पर तो उसका गजब का असर होता है। मुझे तो अपनी उँगलियाँ नहीं किसी और की उंगलियां छेड़ रहीं थीं। मेरा बार बार झड़ना भला कैसे रुक सकता था? इसी कारण भी सेठी साहब से चुदवाते हुए पता नहीं मैं कितनी बार झड़ती ही रही।

उधर मेरी भाभी सा मुझे बार बार झड़ने के लिए जो भी हथकंडे अपनाने चाहिए वह अपना रही थी। कभी वह मेरी गाँड़ में उंगलियां डालती तो कभी मेरी नाभि को छेड़ती। कभी वह अपने मुंह की लार अपनी उँगलियों में लपेट कर मेरे मुंह में डालती तो कभी मेरे होँठों से अपने होंठ मिलाकर मेरी जीभ को चूसकर जैसे मेरे मुंह की साड़ी लार चूस जानी हो ऐसे कोशिश करती। कभी वह मेरे कानों या नाक को अपनी जीभा से चाटती तो कभी मेरी गाँड़ की दरार में अपनी जीभ डालकर वहाँ चाटती। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की मेरी भाभी ना सिर्फ अपने मर्द को मजे कराना जानती थी, वह एक औरत को कैसे उत्तेजित करके उसे अपने मर्द से चुदवाने का सबसे ज्यादा मजा कैसे लिया जाए उस कला में निष्णात लगती थी।

इधर सेठी साहब को मेरी टाइट चूत को चोदने में बहुत मजा आ रहा था। वह मेरी और भाभी की छेड़खानी देख रहे थे और उसे देख उनके लण्ड में और भी जोर से उनका वीर्य दौड़ता हो ऐसा लगता था। मेरी चूत को उनका लण्ड अब अच्छी तरह से चोद रहा था। काफी तेल से मेरी चूत भरी हुई होने के कारण सेठी साहब के चोदने से कमरे में "फच्च फच्च" की आवाज गूंज रही थी। साथ साथ में हमारी जाँघे टकराने से भी "थपाक, थपाक" की आवाज भी साथ दे रही थी। सेठी साहब के अपने लण्ड को मेरी चूत में जोर जोर से पेलने के कारण मेरे सारे संतुलन की ऐसी की तैसी हो जाती थी।

सेठी साहब के पेंडू के तगड़े धक्के के कारण मैं तकिये के ऊपरी छोर पर पहुँच जाती थी। फिर जैसे तैसे मैं वापस तकिये पर सर रखने लगती की दूसरे धक्के में फिर वही बात। मैंने सेठी साहब को चोदने से रोक कर सेठी साहब को अपनी बाँहों में भरने की कोशिश की। मैं भला सेठी साहब को अपनीं बाँहों में कैसे भर सकती थी? जब सेठी साहब ने यह देखा तो उन्होंने चुदाई रोक कर मुझे अपनी विशाल बाँहों में भर लिया और मेरे पुरे बदन को अपने इतने करीब खींचा की उनका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस जाए। पर यह तो संभव ही नहीं था क्यूंकि शायद उनके लण्ड के लम्बाई के जितनी मेरी चूत के सुरंग की गहराई नहीं थी।

सेठी साहब मेरे बार बार झड़ने से बड़े ही ज्यादा उत्तेजित हो रहे थे क्यूंकि उनके लण्ड पर मेरी चूत इतनी जबरदस्त खिंचाव कर रही थी की उनका लण्ड अब उनके नियंत्रण में नहीं रह रहा था। उनके लण्ड में सुनामी की तरह दौड़ रहा वीर्य का फव्वारा अब बाहर आकर मेरी चूत की पूरी सुरंग भर देने और मेरी बच्चेदानी में जा कर मेरे ही बीज को फलीभूत करने के लिए जैसे व्याकुल हो रहा था। उसके ऊपर से भाभी जी की करामात देख कर सेठी साहब बहुत ज्यादा उत्तेजित हो रहे थे।

तब मैंने सेठी साहब से कहा, "मेरे पति, मेरे प्रियतम, मेरे मालिक, मेरे राजा, मेरे स्वामी, अब मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने के लिए बड़ी ही बेताब हूँ। मेरी इच्छा पूरी करो। मुझे अपने बच्चे की माँ बनाओ। जो आपने मुझे अब तक इतनी शिद्द्त से चोदा है और मैंने आप से बड़े ही प्यार और धीरज से चुदवाया है उसका फल मुझे दो।"

सेठी साहब ने जैसे इसे सूना तो मारे उत्तेजना के वह अपने वीर्य को रोक नहीं पाए और एक गहरी सांस लेकर बोल पड़े, "टीना, मैं अब मेरा माल छोड़ रहा हूँ। इसे अब सम्हालना तुम्हारा काम है। ओह....... आह्हः......." की आवाजें करते हुए सेठी साहब ने अपने लण्ड में से गरमा गरम वीर्य का फव्वारा मेरी चूत में छोड़ दिया। मेरी चूत की पूरी सुरंग एकदम गरम हो गयी। कहीं ना कहीं मुझे ऐसा लगा की मेरी बच्चा दानी में सेठी साहब के किसी ना कसी अणु ने मेरे अणु से मिल कर उसे फलीभूत कर ही दिया था। मुझे भरोसा हो गया की सेठी साहब के इस वीर्य से मैं जरूर बच्चे का गर्भ धारण करुँगी।

जब भाभी सा ने देखा की सेठी साहब ने चुदाई रोक दी है और अपना लण्ड मेरी चूत में रखे हुए उन्होंने मुझे कस कर अपने बाहुपाश में ऐसे लिया है की अगर वह मुझे और जोर से दबाएंगे तो मेरी हड्डियों का तो कचुम्बर ही निकल जाएगा और मेरी चूत की सुरंग में अपना गरमागरम वीर्य फव्वारे सा छोड़ कर मेरी चूत को लबालब भर दिया है तब वह बड़ी खुश हुई और तालियां बजा बजा कर गाने लगी,

"लण्ड जकड़ गयो चूत में छोड़के अपणो माल,

कहत अबीर लुगाई के होगो तगड़ो बाल।"

इसका मतलब की जब कोई लण्ड किसी औरत की चूत में एकदम फिट बैठ जाए (जो छूटा ने की कोशिश करने पर भी ना छूटे - जैसे कुत्ता कुतिया चुदाई करते हुए चिपक जाते हैं वैसे) और फिर फिट ही रहते हुए वह अपना माल उस चूत के अंदर छोड़ दे तो समझना की वह औरत एक तगड़े बच्चे को जनम देगी। राजस्थान का यह अश्लील गलियारों में काफी प्रचलित दोहा मेरी परिस्थिति में बिलकुल फिट बैठ रहा था।

मेरी चूत में सेठी साहब ने जब अपना पूरा अंडकोष में भरा हुआ वीर्य खाली कर दिया तब उन्होंने मेरी आँखों से आँख मिलाई और मुस्कुरा कर मेरे होँठों से अपने होँठ मिलाये। कुछ देर प्यार भरा चुम्बन करने के बाद सेठी साहब अपना सिर थोड़ा ऊपर कर बोले, "मुझे लगता है की हमारे बच्चे की आत्मा ने तुम्हारे पेट में प्रवेश कर बालक रूप ले लिया है। अब तुम वाकई में ना सिर्फ मेरी पत्नी बन गयी हो, अब तुम मेरे बच्चे की माँ भी बनोगी।"

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