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साथी हाथ बढ़ाना Ch. 04

by iloveall©

यहां मैं अपने उन पाठकों को कुछ पते की बात बताना चाहता हूँ जो शादीशुदा हैं और अपनी पत्नी के साथ मिल कर जिंदगी में सेक्स का कुछ और ज्यादा मजा लेना चाहते हैं। ज्यादा मजा से मेरा मतलब है, अपनी पत्नी को किसी गैर मर्द से चुदवाना, खुद किसी गैर औरत को चोदना, पत्नियों की अदलाबदली इत्यादि। यह चुदाई में ज्यादा मजे लेने की जो सनक है वह दोधारी तलवार है। वह आपको बेशक उन्मादक आनंद का अतिरेक देती है, पर अगर इसे सम्हाल कर अमलीजामा ना पहनाया जाए तो जिंदगी में कुछ बड़ी दिक्कतें भी पैदा कर सकती हैं। वैसे तो इसको कैसे अमलीजामा पहनाना यह हरेक कपल की व्यक्तिगत मानसिक समझदारी, एक दूसरे पर दृढ विश्वास, सहनशीलता और परिपक्वता पर आधारित है, परन्तु मेरा यह सुझाव है की इसको अमलीजामा पहनाने के पहले चाहिए की दोनों जीवन साथी इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हों और एक दूसरे से इर्षा या ईगो की टक्कर ना हो। ख़ास कर पत्नियां इसके लिए तैयार ना होने का स्वाँग करतीं हैं या वाकई में तैयार नहीं होतीं। इसका मुख्य करण यह होता है की पत्नियों को यह भय होता है की कहीं भविष्य में जब कभी पति और पत्नी का कभी किसी भी विषय पर आमनासामना हुआ तो पति पत्नी को बदनाम कर सकता है, इल्जाम लगा सकता है। पति को चाहिए की पत्नी को यह विश्वास दिलाये की ऐसा कभी नहीं होगा। पत्नी में अगर यह विश्वास पैदा हो गया तो समझो बेड़ा पार। उसके बाद तो पत्नियां कई बार पतियों से भी आगे निकल जाती हैं।

मेरी निचे लिखी हुई पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए। यह जिंदगी की सच्चाई है।

जिंदगी प्यार की दो चार घडी होती है।

चाहे थोड़ी भी हो यह उम्र बड़ी होती है।

पुरे जीवन में ही दस बारह घडी मिलतीं हैं,

चार बचपन में पढ़ाई में गुजर जातीं हैं।

बुढ़ापे की दो खोएंगी बिमारी में घडी,

बची छह घड़ियाँ गृहस्थी बलि चढ़ जातीं है।

बची पलों से चुदाई की दो घड़ियाँ छीन लो,

जब यह जवानी तुम्हारे सर पे चढ़ी होती है।

जिंदगी प्यार की दो चार घडी होती है।

चाहे थोड़ी भी हो यह उम्र बड़ी होती है।

चाहे वह पडोसी हो या दोस्त या परायी हो,

तुम पटाकर उसे मनाओ के चुदाई हो।

प्यार से पेलो ऐसे चूत भी चाहे सूज जाए,

चुदाई ऐसी हो की उसको नानी याद आये।

जो तगड़ी चुदी बुढ़ापे में भी हंसती है सदा,

नहीं चुदवाया वह पछताती और रोती है।

जिंदगी प्यार की दो चार घडी होती है।

चाहे थोड़ी भी हो यह उम्र बड़ी होती है।

ऊपर लिखी हुई जो छोटी सी कविता है उन पंक्तियों में मैंने जीवन में जवानी को जो दो चार घड़ियाँ मिलतीं हैं उन्हें प्यार से चुदाई कर बिताने का जो आनंद है वह एक दूसरे से मेल मिलाप कर सांझा करने का सुझाव दिया है। जिंदगी में थोडी सी नवीनता एवं उत्तेजना लाने के लिए हो सके तो किसी प्यारे रिश्तेदार से, किसी आकर्षक दोस्त से, ऑफिस के साथीदार से या फिर किसी दोस्त के पति या पत्नी से या किसी चंद घंटों की पहचान वाले आकर्षक युवक या मोहतरमा से प्यार भरी चुदाई करने या करवाने की कोशीश करो। यह बात हमें नहीं भूलनी चाहिए की वक्त बीतते और उम्र बढ़ते चुदाई की इच्छा क्षीण होती जाती है। उम्र बढ़ने के साथ साथ चुदाई के मौके भी कम होते जाते हैं। बाद में जब हम उम्र दराज हो जाते हैं और युवाओं को मस्तीसे चुदाई करते हुए देखते हैं तो हमें यह अफ़सोस खा जाता है की जब वक्त था, मौक़ा था तब हमने चुदाई क्यों नहीं की या करवाई? पर यह ध्यान रहे की उसके कारण जीवन में कड़वाहट ना हो बल्कि मिठास हो। एक दूसरे से समझौता कर प्यार से इर्षा और कड़वाहट बिना चुदाई करो और करवाओ। जीवन में जोशीली जवानी ज्यादा देर नहीं टिकती। बादमें गृहस्थी की चिंता और बुढ़ापे की बिमारी और कमजोरी आपको छोड़ती कहाँ है?

यह तो हम जानते ही हैं की हमारी महिलाओं को अगर कोई गोपनीय वस्तु, ख़ास करके उनकी जान पहचान वालों में अवैध विजातीय सम्बन्ध कहीं पनप रहा है इसकी गंध भी आ जाये तो उनकी जिज्ञासा और उत्सुकता का लेवल एकदम बढ़ जाता है। सुषमा यह जानने के लिए बड़ी ही बेसब्र और बेताब थी की पति संजू जब फर्टाइल थे ही नहीं तो फिर आखिर पत्नी अंजू ने अपने बच्चे को जनम दिया तो दिया कैसे? क्या उसने आई.वी.एफ. का सहारा लिया, या फिर किसी गैर मर्द से चुदवाया? अगर किसी गैर मर्द से चुदवाया तो वैसे भी किसी ज्वॉइंट फैमिली में यह कोई आसान काम तो होता नहीं? तो अंजू ने फिर चुदवाया तो किससे और कैसे चुदवाया? गैर मर्द से चुदाई करवाने के लिए उसे क्या क्या पापड बेलने पड़े?

संजू सुषमा का सवाल सुनकर काफी सोच में पड़ गए। उस गोपनीयता का रहस्य खोलने से जब वह कतराने लगे, तो सुषमा की उत्सुकता और बढ़ गयी। सुषमा अपनी एक दूसरे के प्रति दृढ़ श्रद्धा और विश्वसनीयता की दुहाई देते हुए दुराग्रहता की हद तक जा कर संजयजी पर दबाव डालने लगी की वह उस बातको ना छिपाए और उनसे उस रहस्य को सांझा करे। आखिर में संजयजी को स्त्री हठ के आगे झुकना ही पड़ा और उन्होंने कहा की वह उस रहस्य के ऊपर से पर्दा हटा ही देंगे और फिर वह उस दौर में हुई वह लम्बी कहानी को संक्षिप्त में बताने की कोशिश करने के लिए तैयार हुए।

साले साहब मेरी और सुषमा की और देख कर हलके से मुस्कुराये और फिर काफी गंभीरता से बोले, "चूँकि हम लोगों में कोई भी ऐसा गंभीर गोपनीय रहस्य नहीं होना चाहिए जिसके कारण हम में से किसीके मन में भी कुछ शंका कुशंका हो। सिर्फ इसी के कारण मैं इस रहस्य पर से पर्दा खोलना चाहता हूँ। यह जो कहानी है वह गोपनीय तो है ही पर उसके उपरांत बड़ी ही विचित्र है। वह हमारे समाज की एक विचित्र मानसकता को उजागर करती है। मेरे इस रहस्य को उजागर करने से ख़ास कर मेरी बहन टीना को कुछ मानसिक असुविधा हो सकती है। पर चूँकि हम छह साथीदारों ने एक दूसरे से सपूर्ण खुलेपन का संकल्प लिया है, मैं आशा करता हूँ की टीना भी इस पेचीदा मसले को समझेगी और स्वीकार करेगी। मुझे भरोसा है की चूँकि आप सब हमारी इस विचित्र मानसिकता से भलीभाँति परिचित हैं इस लिए यह कहानी सुनने के बाद उस को बुरा नहीं मानेंगे।"

मैंने सुषमा और साले साहब की और देखा और अपना सर हिला कर उनको भरोसा दिलाया की टीना जरूर इस बात को समझेगी। साले साहब ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए जो उसके बाद कहा वह मैं उन्हींके शब्दों में पेश कर रहा हूँ।

संजयजी की कहानी उन्हीं की जुबानी

मैं आगे की जो भी रोमांचक दास्ताँ हैं उसे आप सब से सांझा करूँ उसके पहले आप सब को हमारे परिवार का कुछ इतिहास जानना और समझना होगा। हमारे परिवार में मेरे माता पिता, मेरे बड़े भाई जिनका नाम सुदर्शन है, टीना, मैं और अंजू हैं। मरे पिताजी की अच्छीखासी नौकरी थी और जमाने के हिसाब से आमदनी भी ठीकठाक ही थी। पर उनकी शादी के कुछ सालों बाद युवावस्था में ही उन्हें ऐसी बिमारी ने घेर लिया की वह अपाहिज से हो गए। उसकी वजह से उनकी नौकरी छूट गयी। हमारे घर में आमदनी की समस्या हो गयी। उन्हीं सालों में माँ भी काफी अस्वस्थ रहने लगी। उनकी बिमारी के कारण उनमें घरगृहस्थी सम्हालने की क्षमता नहीं रही। उस समय मैं शायद पाँचवी क्लास में पढता था और टीना शायद तीसरी क्लास में। मेरे बड़े भैया उस समय ग्यारहवीं क्लास में थे। हमारी तक़दीर अच्छी थी की मेरे पिताजी को हमारे गाँव में ही उनके पिताजी की जायदाद में से वारिस में एक काफी बड़ा घर मिला था, जिसमें हम रहते थे। हम अभी भी उसी घर में रहते हैं। उस समय सुदर्शन भैया (जेठजी) ऊपर के एक कमरे में रहते थे। दुसरे कमरे में कुछ सामान पड़ा रहता था।

जब घरमें पैसों के लाले पड़ने लगे तब मेरे बड़े भाई सुदर्शनजी ने पिताजी से कहा की घर खर्चे की आपूर्ति के लिए वह पढ़ाई छोड़ कोई नौकरी कर लेंगे। वह पढ़ाई में काफी होनहार थे। पिताजी ने उन्हें पढ़ाई छोड़ने से मना किया तब बड़े भैया ने उस छोटी सी उम्र में अपनी पढ़ाई के साथ साथ स्कूल के छूटने के बाद दोपहर दो बजे से रात के ग्यारह बजे तक एक दूकान में अकाउंटेंट की नौकरी करना शुरू किया। रात को ग्यारह बजे घर आकर खाना खा कर वह दो घंटे पढ़ाई.करते थे। उस समय उनकी तनख्वाह कोई ख़ास ज्यादा नहीं थी, पर उसमें से जैसे तैसे जोड़तोड़ कर उनकी कॉलेज की फीस, मेरी और टीना की स्कूल और बाद में कॉलेज की फीस जमा हो जाती थी और हमारी किताबें, कपडे बगैरह का इंतजाम हो जाता था। जो कुछ बच जाता वह घर खर्च में लग जाता था।

उस सस्ताई के जमाने में हम बहुत ही करकसर करके जैसे तैसे गुजारा कर ही लेते थे। बड़े भैया मुझे और टीना के बचपन में जब हमारे माँ बाप हमारी देखभाल करने में असमर्थ थे तब हमारी सारी जिम्मेदारियां दिन रात, कभी खाया तो कभी भूखे रह कर, कभी सो पाए तो कभी सारी रात जाग कर उठाते थे। हमें उन्होंने कभी हमारे माँ बाप के लाड प्यार और सेवा की कमी महसूस नहीं होने दी। जब हम कॉलेज में पहुंचे तब भैया को अच्छी जॉब मिल गयी थी। पर फिर भी महंगाई के कारण और हमारी जरूरतों के बढ़ने के कारण उनकी सारी कमाई हमारी पढ़ाई और घर चलाने में ही लग जाती थी।

उनकी इस सेवा और जबरदस्त बलिदान के कारण ही मेरे माता पिता ने घर में यह नियम बनाया था की हम दोनों भाई बहन, मैं और टीना, सुबह जैसे ही कहीं बाहर जाते या बाहर से घर में आते, सबसे पहले बड़े भैया के पाँव छूते और फिर ही हम कोई भी आगे का काम करते।

जब बड़े भैया की उम्र शादी के लायक हुई तब मैं और टीना हम पढ़ाई में लगे हुए थे। पढ़ाई का काफी खर्चा हो रहा था। सब के काफी आग्रह करने पर भी उन्होंने शादी करने से मना कर दिया क्यूंकि वह कहते थे की अगर घर में उनकी पत्नी आयी तो खर्चा तो बढेगा ही पर साथ साथ माँ, बाप और भाई बहन को सम्हालने में दिक्क्त हो सकती है। नयी बहु का मेरे और टीना के साथ सौतेला सा व्यवहार भी हो सकता था।

जब टीना की शादी हुई तब टीना की जीजू से शादी का सारा खर्चा सुदर्शन भाई साहब ने ही उठाया था। वक्त गुजरते मैं अच्छा खासा कमाने लगा था। तब घर में हमें पैसों की किल्लत नहीं रही थी। पर तब बड़े भाई साहब की उम्र करीब पैंतीस साल की हो चुकी थी और शादी के लायक कोई लड़की नहीं मिल रही थी। बड़े भाई साहब हालांकि काफी स्वस्थ, आकर्षक और मजबूत थे।

हमारे पड़ोस में एक ब्राह्मण युवक रहते थे। उनका नाम रमेश था। उनके मातापिता नहीं थे। बड़े भाई साहब के साथ उनकी अच्छीखासी दोस्ती थी। सुदर्शन भैया की रमेशजी के साथ काफी उठक बैठक थी। रमेशजी ज्योतिष का काम करते थे पर कोई ख़ास आमदनी नहीं थी। कई बार जरुरत पड़ने पर भाई साहब ने रमेशजी की काफी पैसा दे कर मदद की थी। रमेशजी की शादी का भी सुदर्शन भाई साहब ने ही सारा खर्च उठाया था। रमेशजी की शादी के बाद रमेशजी की पत्नी, जिसका नाम माया था, वह रमेशजी के कहने पर भाई साहब से लिया कर्जा उतारने के हेतु कहो या हमारी मदद के लिए कहो, सुदर्शन भाई साहब के मना करने पर भी, हमारे घर में काम करने लगी।

माया देखने में काफी सुन्दर थी। उसके नाक नक्श और फिगर आकर्षक थे। वह मेरे माता पिता की सेवा करती, घर का खाना बनाती और बड़े भाई साहब का ख़ास ध्यान रखती। विधाता की चाल भी अजीब होती है। शादी के दो साल बाद रमेशजी की एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी। उनकी पत्नी अनाथ हो गयी। तब सुदर्शन भाई साहब ने माया को हमारे घर में काम करने के लिए उस की तनख्वाह तय की और हमारे घर के पीछले हिस्से में ही दो कमरे, बाथरूम, टॉयलेट के साथ उसे दे दिए। वह दिन भर हमारे घर में काम करती और रात अपने कमरे पर चली जाती।

उसी समय मेरी शादी अंजू से हो गयी। अब घर का खाना बनाने की और बाकी की कुछ और जिम्मेदारी अंजू ने अपने सर पर ले ली। माया के पास कोई ख़ास काम नहीं बचा। भाई साहब ने फिर भी माया को काम से नहीं निकाला और उसकी तनख्वाह में भी कोई कटौती नहीं की। माया रोज आती और अंजू का हाथ बटाती और सुदर्शन भाई साहब का कमरा साफ़ सूफ करती और उनके खानपान, कपड़ों की धुलाई बगैरह का ध्यान रखती। अंजू और माया की अच्छी खासी दोस्ती हो गयी। हमारी शादी के बाद कुछ ही दिनों में अंजू को धीरे धीरे पता लगा की हमारे सुदर्शन भाई साहब ने हमारे लिए कितना बड़ा बलिदान दिया था। उन्होंने अपना सारा जीवन हमारे लिए कुर्बान कर दिया था, यहां तक की उन्होंने ने अपना घर भी नहीं बसाया था।

अब यहां जा कर अंजू का मेरे जीवन में जो बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है उसका अध्याय शुरू होता है। आगे की कहानी में मेरी अंजू ने एक बड़ी ही अनोखी भूमिका निभायी है और मैं चाहूँगा की मैं उसे अंजू के ही शब्दों में बयान करूँ। हालांकि यह मैं बोलूंगा पर शब्द अंजू के हैं। जैसे जैसे घटनाएं होती गयीं वैसे वैसे अंजू मुझे बताती गयी। वही शब्द मैं अंजू की जुबानी बयाँ कर रहा हूँ।

आगे की कहानी अंजू के शब्दों में:

जब मैं संजू जी से शादी कर नयी नवेली दुल्हन बन कर मेरे ससुराल आयी तब मुझे पता चला की मेरे पति, ननदसा, मेरी सांस, ससुर सबके जीवन में मेरे पति संजयजी के बड़े भाई सुदर्शन भाई साहब (मेरे जेठजी) का कितना बड़ा योगदान था। मेरे पति संजयजी तो मुझे यहां तक कहते थे की अगर वह अपनी चमड़ी उधेड़ कर उससे जूते बनाकर भाई साहब को पहनाएंगे तो भी वह उनका ऋण चुकता नहीं कर सकते। कई बार संजयजी बड़े भैया की बात करते हुए इतने भावुक हो जाते की उनकी आँखों में आंसू थमने का नाम नहीं लेते।

मेरे घरमें प्रवेश के समय, जब मैं नईनवेली दुल्हन बन कर आयी थी, मेरा घर के आँगन में स्वागत मेरी सांस के साथ साथ माया ने किया था। उसी समय मेरा परिचय माया से हुआ, जो आगे चल कर मेरे लिए मेरी बहन से भी ज्यादा करीबी हो गयी थी। मुझसे माया भी कई बार बड़े भैया के बारे में बड़े चाव से बात करती थी। मैंने महसूस किया की माया कुछ हद तक बड़े भैया से प्यार करने लगी थी। माया को सुदर्शन भाई साहब से प्यार हो गया है यह सिर्फ मेरा अनुमान था जो मैं माया की सुदर्शन भाई साहब के बारे में प्यार भरी बातों से लगा सकती थी। पुरुष और स्त्री का एक दूसरे को कुछ ज्यादा ही निजी तरीके से पसंद करना शायद प्यार ही कहलाता है।

जब भी माया जेठजी के बारे में बात करती थी तब कई बार वह बहुत ज्यादा भावुक हो जाती थी। ख़ास कर माया जब उसके पति का निधन हो गया उस समय की अपने जीवन की बात करती थी तब उसकी आँखों में पानी झलझलाने लगता था। कैसे जेठजी ने माया को ना सिर्फ अनाथ होने से बचाया, बल्कि उसे घरमें सहारा दिया और एक छोटासा घर दे कर उसको सम्मान की जिंदगी दी। माया को हमारे घर में काम करने के लिए मेरे जेठजी ने या किसी और ने मजबूर या प्रेरित नहीं किया था। वह स्वयं ही शादी के फ़ौरन बाद अपने पति के कहने पर और पति के निधन के बाद स्वतः ही अपनी जिम्मेवारी समझ कर घरमें आकर बिना किसी के कहे और जेठजी के मना करने पर भी घर के काम में लग जाती थी।

अक्सर माया मुझे यह कहती रहती थी की सुदर्शन भैया ने ना सिर्फ हमारे खानदान को गरीबी और भुखमरी से बचाया था बल्कि उसे भी अनाथ से सनाथ बनाया था। माया के लिए जितना सुदर्शन भैया ने किया था उस ऋण को वह अपना जीवन भी दे कर चुकता नहीं कर सकती। जिस तरह माया जेठजी के बारे में बात करती थी, मुझे लगा की अगर माया को यह कहा जाए की उसे बिना कोई पारितोषिक के जेठजी के पास जा कर नंगी हो कर जेठजी से चुदवाना है तो मुझे कोई शक या संशय नहीं था की वह ऐसा कर सकती थी।

मैंने महसूस किया की माया अकेली थी और उसको पुरुष के संग की आवश्यकता थी तो जेठजी को स्त्री के सहवास की। मैंने यह भी महसूस किया की जेठजी (सुदर्शन भाई साहब) उस जवानी की उम्र में शायद एक औरत के प्यार की कमी महसूस करते रहते थे। हालांकि सुदर्शन भाई साहब निति नियम के मामले में बड़े ही सख्त थे और उन्होंने कभी भी मेरे या माया से किसी भी तरह की नजदीकियां बनाने की कोशिश नहीं की। पर मैं एक औरत हूँ और नजर के अंदाज से पुरुषों के मन के भाव भाँप लेती हूँ। मैंने सुदर्शन भाई साहब की नजर में कई बार जवानी की भूख देखि थी।

कई बार जब माया जेठजी के कमरे में साडी और घाघरे का छोर अपनी जाँघों के ऊपर तक चढ़ा कर फर्श पर घुटनें टेढ़े कर झाड़ू लगाने बैठती थी या पोछा करती थी या फिर कुछ साफ़ सफाई करने आगे झुक कर घोड़ी जैसी पोजीशन में होती थी तब माया की जाँघें और उसकी गाँड़ का आकार इतना कामुक और मनमोहक होता था जिसे चोरी से छिप कर टकटकी लगा कर देखते हुए जेठजी को मैंने कई बार देखा था। कई बार मैंने उन्हें ऐसे मौके पर अपने पयजामा में अपने लण्ड को सहलाते हुए भी देखा था।

इस में मुझे कोई शक नहीं था की अगर जेठजी को किसी कमसिन औरत को चोदने का मौक़ा मिले और अगर किसी भी तरह का कोई निति नियम की बाधा बिच में ना आये तो जेठजी जरूर चोदने का ऐसा मौक़ा नहीं छोड़ते। वैसे भी वह अपनी जवानी की चरम अवस्था में थे और उनका बदन स्वस्थ और तेज तर्रार था। मुझे कोई भी शक नहीं था की जेठजी किसी भी औरत को चुदाई कर पूरी तरह संतुष्ट करने की क्षमता रखते थे। यह सोचते हुए मेरे मन में कई बार माया का ख़याल आता था। मुझे ऐसा मन ही मन में महसूस होता था की कहीं ना कहीं जेठजी माया के युवा कमसिन बदन पाने की मनोकामना रखते थे, पर उनके सख्त नैतिक और सैद्धांतिक रवैये के कारण वह माया से जान बुझ कर दुरी बनाये रखते थे। अगर जेठजी उन सिद्धांत से ऊपर उठ कर माया को चोदने के लिए राजी हो जाये तो मुझे कोई शक नहीं था की माया भी जेठजी से चुदवाने में पीछे नहीं हटेगी।

इसी के चलते मैंने सोचा की शायद माया और भाई साहब की जोड़ी बन सकती है हालांकि दोनों की उम्र में करीब दस साल का अंतर जरूर था। पर माया को सुदर्शन भाई साहब से प्यार जैसा हो गया था और अगर शादी की बात चलेगी तो मेरा मानना था की माया मना नहीं करेगी। तब मैं माया के और करीब जाकर उसकी राजदार बनने की कोशिश करने लगी। मैं माया को उकसाती और उसे वक्त बे वक्त काम हो या ना हो; कुछ ना कुछ बहाना बना कर जेठजी के कमरे में भेज देती। ऐसे ही मैंने एक बार जब जेठजी की तबियत ठीक नहीं थी तब कुछ देर रात में माया से जेठजी का हाल पूछने और चाय देने के बहाने जेठजी के कमरे में भेज दिया।

माया को मैंने भेजा उसके दो या तीन मिनटों मैं ही वह दौड़ती हाँफती हुई वापस आ गयी। उसका हाल देखने वाला था। वह काफी घबराई हुई लग रही थी। जब मैंने उसे जेठजी का हाल पूछा तो वह रोनी सी सूरत बना कर कहने लगी, "दीदी मैं क्या बताऊँ? मैंने बड़े भैया को ऐसे कभी नहीं देखा। अरे बापरे उनको ऐसे हाल में देख कर मैं तो डर ही गयी।"

मैंने जब दुबारा माया को झकझोरते हुए पूछ की "क्या हुआ, बताओ तो सही? क्या देखा तूने? तुझे डर क्यों लग रहा है?"

तो वह बोली, "दीदी, मैं नहीं बताउंगी। मुझे शर्म आ रही है।"

मैं माया की बात सुनकर कुछ झुंझलाती हुई बोली, "अरे तुझे डर लग रहा है की शर्म आ रही है? अगर शर्म आ रही है तो मुझसे शर्म किस बात की? बोल क्या देखा तूने?"

जब मैं बार बार माया को बोलने के लिए कहने लगी तब झिझकते हुए तुतलाती हुई माया बोल पड़ी, "बड़े भैया बिस्तरे में पड़े हुए अपने उसको अपने हाथ से हिला रहे थे।"

अब मेरे दिमाग का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया। मैंने माया को हिलाते हुए पूछा, "तू क्या बक रही है? किसको बड़े भैया अपने हाथ से हिला रहे थे?"

माया ने अपनी नजरें नीची कर कहा, "वही जो मर्दों का होता हैं ना दीदी। बड़े भैया अपने उसको अपने हाथ में पकड़ कर हिला रहे थे।'

तब मेरी समझ में आया की जेठजी अपने लण्ड को अपने हाथ में पकड़ कर हिला रहे थे। मेरी शादी के बड़ी देर के बाद मुझे सुदर्शन भाई साहब मतलब जेठजी को औरत के प्यार में घेरने का एक अच्छा मौका नजर आया। कुछ मुस्कुराते हुए मैंने माया से पूछा, "अरे मूरख, तो तू यूँ कह ना की तूने जेठजी का लण्ड देख लिया। क्या वह अपना लंड हिलाकर मुठ मार रहे थे? अगर ऐसा था तो तू उसके कारण इतनी घबराई हुई क्यों है? क्या तुम्हारे पति को अपना लण्ड हिलाते हुए नहीं देखा तूने? क्या तूने अपने पति का लण्ड अपने हाथों में पकड़ा नहीं?"

मेरी बात सुन कर माया चौंक गयी और कुछ झिझकती हुई बोली, "हाँ देखा तो है। पति का तो हमेशा सहलाना पड़ता था पति को तैयार करने के लिए। कई बार उसे मेरे मुंह से चूसा भी है मैंने।"

मैंने कहा, "यही तो हम स्त्रियों का काम होता है। तो फिर जब तूने जेठजी का लण्ड उनको अपने हाथ से हिलाते हुए देखा तो उसमें शर्म और डर की क्या बात है? कहीं जेठजी ने तुझे देखा तो नहीं ना?"

माया ने अपनी नजरें नीची रख कर कहा, "जी नहीं, बड़े भैया ने मुझे देखा नहीं क्यूंकि जब मैंने बिना आवाज किये उनके कमरे का दरवाजा धीरे से खोला उस समय उनकी आँखें बंद थीं और मैंने जब उनको इस हाल में देखा तो एक पल में ही बिना आवाज किये तुरंत दरवाजा बंद कर फ़ौरन उलटे पाँव भाग कर वापस आ गयी। दीदी एक बात कहूं? आप बुरा तो नहीं मानोगी?"

मैंने माया को मुंडी हिला कर इशारा किया की मैं बुरा नहीं मानूंगी। तब माया ने कहा, "क्या यह शर्म और अफ़सोस की बात नहीं है दीदी, की हम जवान औरतों के घर में रहते हुए बड़े भैया को अपने हाथ से यह सब करना पड़ रहा है। क्या हमें इसके लिए कुछ करना नहीं चाहिए?"

मुझे भी माया की बात में दम लगा। मैंने अपनी मुंडी हिलाते हुए माया से सहमति जताई और कहा, "हाँ तुम्हारी बात तो सही है।"

माया ने अपने भोलेपन में ही सही पर बात बड़ी पते की कही थी। जब माया ने मुझे यह कहानी सुनाई तब मुझे यकीन ही नहीं दृढ विश्वास हो गया की हालांकि जेठजी ने हमारे लिए इतना बड़ा बलिदान दिया था, पर उनके बदन में काम की आग तब भी उतनी ही जल रही थी। अब हमारा कर्तव्य था की उनके बदन की उस काम ज्वाला का शमन करने में हम जो कुछ हम से हो सके हम करें। माया ने अपनी भोलीभाली जबान में अपने मन की बात कह डाली की हम जवान और खूबसूरत औरतों के घर में होते हुए भी हमारे जेठजी जिन्होंने हमारे सब के लिए इतना सब कुछ किया था उनको अगर मुठ मारनी पड़ती है तो वह हमारे लिए बड़े ही अफ़सोस की बात थी। तब मैंने तय किया की मैं कोशिश करुँगी की माया और जेठजी की जोड़ी बन जाए। इससे उन दोनोंके बदन की काम की भूख तृप्त हो सकती थी और उन दोनों के जीवन को एक नयी दिशा भी मिल सकती थी।

मैंने माया से कहा, "माया मैं तेरी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। देख तु कहती है ना की मेरे जेठजी ने तुझ पर इतने एहसान किये हैं की तू मेरे जेठजी के लिए अपनी जिंदगी भी दे सकती है? तू अभी अभी यह नहीं कह रही थी की हम जवान औरतों के घर में रहते हुए जेठजी को अगर मुठ मारनी पड़े तो यह हमारे लिए कलंक है? तो फिर तू एक काम कर। अभी की अभी जेठजी के कमरे में चाय लेकर वापस चली जा और कहना आपकी तबियत देखने आयी थी। फिर टेबल पर चाय रख कर बेझिझक उनके पास बैठ जाना। बोल तू कर सकती है यह?"

माया ने मेरी और देख कर अपने दांतों में ऊँगली दबा कर बोली, "दैया रे दैया! यह क्या कह रहे हो बीबीजी? जब भैया इस हालत में हों तो मैं कमरे में कैसे जाऊं? मुझे बड़े भैयाजी से बड़ा डर लगता है।"

मैंने अपना धीरज ना गँवाते हुए कहा, "देख माया, हमें कैसे भी कर के जेठजी का घर बसाना है। मैं चाहती हूँ की तू मेरे जेठजी से शादी करके जेठजी का घर बसाये। मैं चाहती हूँ की तू मेरी जेठानी बने। क्या तू जेठजी को चाहती है? सच सच बताना।"

मेरी बात सुन कर माया चक्कर में पड़ गयी। माया ने कभी सोचा भी नहीं था की जिस घर में वह अपने आप को एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं समझती थी उसी घर में वह बड़ी बहु बन सकती है। वह लाज के मारे हाँ भी नहीं कह सकती थी। माया मना भी कैसे कर सकती थी, चाहती जो थी वह जेठजी को? माया ने मेरी और देख कर कहा, "दीदी, आप यह क्या कह रहे हो? आप मेरे लिए इतनी बड़ी बात कर रहे हो? आप कहीं मेरा मजाक तो नहीं कर रहे हो? मैं एक छोटे घराने की आपके यहां नौकरी कर रही हूँ और आप मुझे आपकी जेठानी बनने के लिए कह रही हो? आप मुझे बड़ी ही उलझन में डाल रही हो।"

माया यह कहते हुए मेरे पाँव में गिर पड़ी और रोती हुई मेरे पाँव छूने लगी। मैंने माया को उठा कर अपने गले लगाया और उसके आंसूं पोंछते हुए बोली, "माया मैं क्या कहूं? तुम अगर मेरी जेठानी बनोगी तो मेरे लिए यह गर्व की बात होगी। तू बस एक बार हाँ कह दे। बोल, जो मैं कहूँगी क्या तुम करोगी?"

माया ने मुझसे लिपटते हुए कहा, "अंजू जी आप मेरी बहन से कम नहीं हो। जो आप कहोगे मैं करुँगी। बोलो, मुझे क्या करना होगा?"

मैंने कहा, " तू भी जानती है की मेरे जेठजी बड़े ही जिद्दी हैं। वैसे हम कितनी भी कोशिश करें वह शादी करने के लिए मानेंगे नहीं। अगर तू अभी जायेगी और उन्हें अपना लण्ड हिलाते देख कर पूछना की भैया यह क्या कर रहे हो? और फिर कुछ ना कुछ तिकड़म कर के जेठजी का लण्ड अपने हाथ में पकड़ लेना और कहना की लाइए मैं इसे हिला देती हूँ। फिर अगर मौक़ा मिले तो उसे चूस भी लेना तुम, ओके? कोई भी मर्द का लण्ड अगर तेरे जैसी सुन्दर स्त्री पकड़ ले, उसे प्यार से हिलाने लगे और अगर उसे चूसने लगे तो अच्छे से अच्छा मर्द भी बेचारा लाचार हो जाएगा। फिर भले ही वह मेरे जेठजी जैसे सख्त इंसान ही क्यों ना हों? हाँ माया, यह ध्यान रहे की हो सकता है तेरे ऐसे करने से बात आगे बढ़ जाए। देख माया यह भी हो सकता है की आवेश में आकर जेठजी तुझे पकड़ लें। हो सकता है तुझे जेठजी से चुदवाना भी पड़े। तू तो मेरे जेठजी के लिए जान तक देने की बात कर रही थी। अगर ऐसा कुछ मौक़ा हुआ तो बोल क्या तू मेरे जेठजी से चुदवा सकती है? तू अभी कह रही थी ना हम जवान औरतों को इसके लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए? तो यह सुनहरा मौक़ा है। अगर तू अभी चली जायेगी तो कुछ ना कुछ हो सकता है। अगर कुछ हुआ तब हम उन्हें तुम्हारे प्यार के चक्कर में घेर सकते हैं। ऐसा ही कुछ तुझे करना पडेगा तभी यह मामला सुलझ सकता है। फिर हो सकता है वह शायद शादी करने के लिए भी राजी हो जाएँ। अभी वह रोमांटिक मूड में है। तुझे बिकुल घबराना नहीं है। बोल तू यह सब कर सकेगी?"

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