Category: Loving Wives Stories

साथी हाथ बढ़ाना Ch. 05

by iloveall©

जिनको मैं दिल से पूजती हूँ जो दिल में मेरे बसता है

यौवन क्या, जाँ कुर्बां उस पर, यौवन का सौदा सस्ता है।

यह बदन मेरा अर्पण उसको जितना वह चाहे चोदे मुझे

कुर्बां मेरा हर एक अंग जैसे चाहे वह रोंदे मुझे।।

इतनी मैं पागल हूँ उससे चुदते मरना मंजूर मुझे

चूत मेरी चाहे लण्ड उसका ना करना उससे दूर मुझे।

चाहे प्यार करे या दुत्कारे वह भले मुझे रंडी माने

बस दिल भर कर चोदे मुझ को पहचाने या ना पहचाने।

चाहे मेरे मुंह को चोदे चाहे चाटे चूत का पानी

ना कोई शिकायत करूंगी मैं चाहे कर जितनी मनमानी।

तेरे बच्चों की मां बन जाऊं यही गुज़ारिश है मेरी

मुझे प्यार करे या ठुकराए रखना जैसे मर्जी तेरी।।

मेरे जेठजी से चुदवाने का पागलपन मेरे सिर पर सवार हो चूका था। जिसके बारे में पहले मैं सोच भी नहीं सकती थी वह करने के लिए मैं अब पागल हो रही थी। मेरे जेठजी कभी ना कभी तो यह जान ही जाएंगे की मैंने उनसे चुदवाया था। मुझे पता नहीं था की जेठजी मेरे बारे में इसके बाद क्या सोचेंगे। जिस बात के मैं सपने देखती रहती थी, अब हकीकत में वह होने वाला था। मैं मेरे जेठजी से चुदने वाली ही थी। मैं मेरे जेठजी की तगड़ी चुदाई करने की क्षमता के बारे में भलीभाँति जानती थी। माया ने सब कुछ तो बता दिया था मुझे। मैं जानती थी की उनके लण्ड में वह दम था की वह अगर ठान ले तो ऐसी चुदाई करने की ताकत रखते थे की किसी भी औरत की चूत की ऐसी की तैसी कर सकते थे। मुझे भी इस बात का डर तो था ही। पर साथ में मैं यह चाहती भी थी की मेरी भी ऐसी ही तगड़ी चुदाई हो। हर औरत की तमन्ना होती है की जीवन में एक बार तो उसे ऐसी चुदाई का अनुभव हो।

हर औरत को ऐसे मर्द से चुदवाना पसंद होता है जिसे वह बेतहाशा प्यार करती है। उस पर अगर ऐसा मर्द अपने लण्ड के दम पर उस औरत की तगड़ी चुदाई कर पाए तो फिर तो उसे सोने में सुहागा ही कहना होगा। ऐसा मौक़ा कम औरतों की तक़दीर में होता है। मुझे ऐसा मौक़ा मिला था और मैं उस समय उस मौके का पूरा फायदा उठाना चाह रही थी। मैं उस वक्त मेरे जेठजी के महाकाय लण्ड से चुदवाने का उत्तेजना भरा मीठा दर्द महसूस कर रही थी। मेरे जहन में जो भाव थे उनका वर्णन करना मेरे लिए बड़ा ही मुश्किल है। वह दर्द क्या जेठजी से चुदवाते हुए अगर मेरी चूत फट भी जाती और अगर मैं मर भी गयी तो मुझे मंज़ूर था। मेरे जेठजी के क़दमों में मेरा यौवन या मेरी चूत क्या मेरी जान भी कुर्बान थी। मैं जेठजी का लण्ड मेरी चूत में महसूस कर उस दर्द से कहीं ज्यादा मेरा जीवन धन्य महसूस कर रही थी।

पर मेरे जेठजी को मेरे दर्द का एहसास हो रहा होगा, क्यों की उन्होने कुछ समय के लिए मेरी चुदाई रोक दी थी। मुझे कुछ पलों की राहत देने के बाद जेठजी ने फिर से एक धक्का दे कर मेरी चूत में अपना लण्ड पेला। इस बार जेठजी के लण्ड ने मेरी बच्चेदानी को तगड़ी ठोकर मारी थी। मेरा दर्द असह्य बनता जा रहा था। पर मैंने निश्चय किया था की कुछ भी हो जाए, मैं जो भी कुछ दर्द हो उसे सहन कर लुंगी। मैं इतनी आसानी से मेरे जेठजी के सामने हथियार नहीं डालूंगी, मतलब मैं उस समय चीख कर चिल्ला कर बना बनाया खेल नहीं बिगाड़ूँगी।

मुझे कुछ आश्चर्य हुआ जब मैंने मेरे जेठजी के चेहरे को देखा। हालांकि वह कस के बँधी हुई काली पट्टी के कारण मेरे चेहरे पर रेखांकित दर्द का प्रतिबिम्ब और कपाल पर बह रही पसीने की बूंदें देख नहीं पा रहे थे, फिर भी मैंने उनके चेहरे पर सहानुभूति की झलक महसूस की। मेरे जेठजी के चेहरे पर मैं यह भी देख पा रही थी की वह मुझे चोदने से वाकई में बड़े ही उन्मादित लग रहे थे। वह माया को तो लगभग रोज ही चोदते थे पर फिर आज मुझे चोदने पर वह अलग अंदाज वाला उन्माद क्यों? अंतर्मन से तो वह जानते ही थे की मैं कोई और नहीं माया ही थी। पर फिर भी मुझे चोदते हुए जो भावभंगिमा उनके चेहरे पर दिख रही थी वह कुछ अलग ही थी।

जेठजी का लण्ड मेरी चूत में वह कर रहा था जो उस रात तक कोई लण्ड नहीं कर पाया था। उस रात मुझे महसूस हुआ जैसे मेरे जेठजी का लण्ड और उनका सारा बदन ही नहीं उनका सारा ह्रदय उनकी सारी सख्सियत मुझे चोदने में मग्न थी। किसी ने सही कहा है की चुदाई सिर्फ तन की ही नहीं होती है, चुदाई में मन और भाव का भी बड़ा अहम् रोल होता है। हर बार मेरी चूत में अपना लण्ड पेलते वक्त मेरे जेठजी के चेहरे पर जो भाव प्रदर्शित हो रहे थे, मैं वह भावों का वर्णन नहीं कर सकती। मुझे उनके चेहरे के भाव देख ऐसे लगता था जैसे वह मुझे चोदते हुए कुछ असाधारण अनुभव कर रहे हों।

मुझे एक पोर्न वीडियो याद आया जिसमें जंगल मानव टारझन ने जंगल में जब पहली बार धरती पर लगभग बेहोश हालत में लेटी हुई जेन को देखा था। उस से पहले टारझन ने किसी भी मानव मर्द या औरत को नहीं देखा था। जब टारझन ने जेन के कपडे खुले हुए बदन को देखा तो वह आश्चर्य में डूब सा गया। वह बड़े ही कौतुहल से जेन के स्तनोँ को और अपनी छाती को, जेन की साफ़ जाँघों को और अपनी बाल वाली जाँघों को, अपने लण्ड को और जेन की चूत को आश्चर्य चकित हो कर देख कर दोनों का अंतर समझने की कोशिश कर रहा था। उस वक्त नग्न जेन को देखते हुए जो भाव टारझन के चेहरे पर थे कुछ वैसे ही भाव मेरे जेठजी के चेहरे पर मुझे दिखाई दे रहे थे। हालांकि जेठजी ना तो मेरा चेहरा, नाही मेरे स्तनोँ और नाही मेरी चूत देख पा रहे थे। जब जेन जाग उठी और जेन ने टारझन को उसका लण्ड अपनी चूत के साथ रगड़ते हुए देखा तो जेन ने टारझन का लण्ड अपने हाथ में पकड़ा और उसे अपनी चूत में डाल दिया। टारझन ने जब एक धक्का मारा तो टारझन का लण्ड जेन की चूत में घुस गया। फिर जेन ने टारझन की कमर पकड़ कर उसे आगे पीछे करते हुए टारझन को उसका लण्ड अपनी चूत में अंदर बाहर करने के लिए प्रेरित किया। तब धीरे धीरे जेन को चोदते हुए जैसे कोतुहल, उत्सुकता और उन्माद के भाव टारझन के चेहरे पर दिख रहे थे वैसे ही कोतुहल, उत्सुकता और उन्माद के भाव मुझे मेरे जेठजी के चेहरे पर मेरी चूत में अपना लण्ड पेलते हुए दिखाई दे रहे थे।

और फिर अचानक मुझे एक सदमा सा लगा जब मैंने खुद यह समझा की मेरे मन के भाव भी तो बिलकुल वैसे ही थे जैसे उस समय जेन के रहे होंगे। मैं भी तो मेरे जेठजी के लण्ड से चुदवाते हुए मेरे जेठजी के लण्ड की एक एक इंच की लम्बाई मेरी चूत के अंदर जाते हुए और बाहर निकलते हुए मीठे मीठे दर्द को वैसे ही कौतुहल, उन्माद और रोमांच अनुभव कर रही थी। मेरी में चूत एक अजीब सी टीस उठ रही थी। वह टीस कोई दर्द की नहीं, वह टीस मेरे जेठजी के लण्ड का मेरी चूत की दिवार से अंदर बाहर आते जाते जो जबरदस्त घर्षण हो रहा था उसके कारण थी। जेठजी का लण्ड अंदर जाते जैसे मेरी चूत के पंखुड़ियां समेत सारी चूत की बाहरी सतह पूरी तरह मेरे चूत की सुरंगों में घुस जाती थी। जब जेठजी का चिकना चमकता लण्ड मेरी चूत में से बाहर निकलता तब वह सारी त्वचा फिर से बाहर आती थी। इस प्रक्रिया में मेरी चूत की त्वचा में हो रहे जबरदस्त खिंचाव के कारण जो मीठे दर्द का अनुभव मुझे हो रहा था वह दर्द मेरी चूत में एक अजीब सा कम्पन या वह टीस पैदा करता था जो शायद मेरे जेठजी भी अपने लण्ड की सतह के ऊपर महसूस कर रहे होंगे।

शायद इसी अनुभव के कारण मेरे जेठजी के चेहरे पर मुझे उस समय उस अजीब उन्माद की अनुभूति होते हुए दिख रही थी। मेरे उन्माद और उस अजीब सी टीस का एक और भी कारण था जो सिर्फ मैं ही जानती थी। स्वाभाविक था की उस कारण का मेरे जेठजी को नहीं पता था। वह कारण था मेरा मेरे देवता समान पूजनीय और दिव्य तन वाले जेठजी से चुदवाना और उनको वह ख़ुशी देना जिसकी प्रबल कामना जबसे मैं हमारे घर में बहु बन कर आयी तब से मेरे अंतरात्मा में चोरी से पनप रही थी। यही मेरे ह्रदय के भाव मेरी चूत के अंदर चुदवाते हुए कम्पन के रूप में प्रकट हो रहे थे।

जब एक दूसरे को चोदते हुए पुरुष और स्त्री के मन में एक दूसरे के लिए बहुत अधिक प्यार, उत्तेजना, सम्मान और समर्पण का भाव हो तो वह चुदाई अकल्पनीय आनंद देती है। और जब उस भावों के साथ पुरुष का लण्ड ऐसा हो जो स्त्री की चूत की त्वचा को इतना खींचे, लम्बे समय तक चोदता ही रहे और ऐसा जबरदस्त उत्तेजना भरा घर्षण पैदा करे तो स्त्री तो बेचारी बार बार झड़ती ही रहेगी।

मेरे पति के समेत मुझे चोदने वाले मेरे सारे पुरुष मित्र मुझे चोदते हुए ऐसी उत्तेजना, ऐसा रोमांच और ऐसा आनंद नहीं दे पाए थे जैसा मेरे जेठजी उस समय उनकी चुदाई से मुझे दे रहे थे। मेरे झड़ने का तो यह हाल था की मेरे जेठजी के दो या तीन धक्के मारते ही मैं झड़ जाती थी। मैं जेठजी का आधा लण्ड जो मेरी चूत में जा नहीं पा रहा था उसे देखती तो मेरा पूरा बदन रोमांच और एक तरह के छिपे भय से काँपने लगता। पर उस भय में भी एक तरह की अनोखी उत्तेजना थी। अगर जेठजी ने मुझे कहीं जोर का धक्का दे कर अपने पुरे लण्ड को मेरी चूत में पेलने की कोशिश की तो मेरी चूत में मेरी बच्चे दानी तो फट ही जाएगी और आतंरिक खून के जबरदस्त रिसाव से मैं तो मर ही जाउंगी। यह सोच कर ही मेरी हवा निकल जाती थी। जब मैं ऐसा सोच कर डरने लगती थी तब मारे रोमांच और डर के पता नहीं कैसे और क्यों, मेरा पूरा बदन एक अजीब रोमांच, उत्तेजना, उन्माद और कामुकता से अजीब सी दशा अनुभव करने लगता था। मेरे पुरे बदन में इतनी तेजी से खून का चाप बढ़ने लगता था जिसे दिमाग में एक नशा सा फ़ैल जाता था। इस अजीबो गरीब भाव को सिर्फ स्त्रियां ही अनुभव कर सकती हैं। किसी पुरुष के लिए इस को समझ पाना असंभव है।

पर जितना प्यार मैं मेरे जेठजी को चुदवाते हुए देने की कोशिश कर रही थी मेरे जेठजी मुझे चोदते हुए उससे कहीं ज्यादा प्यार, संवेदना और ममता दिखा रहे थे। जेठजी ने मुझे चोदने की रफ़्तार तो जरूर बढाई थी, पर वह अपना लण्ड पूरा का पूरा अंदर तक घुसेड़ने की कोशिश नहीं करते थे। मेरी चुदाई करते हुए जेठजी ख़ास तौर से मेरी चूँचियों को कई बार बहुत ज्यादा उत्तेजना से मसल देते थे जिसके कारण मेरे मुंह से दर्द की टीस उठती थी और मैं सिसकारियाँ भरने लगती थी।

जेठजी ने अपनी पोजीशन बदली और मुझे चोदते हुए वह थोड़े टेढ़े हो गए। उनकी पोजीशन ऐसी हो गयी की मैं उनकी जाँघों के बिच और वह मेरी जाँघों के बिच हो गए। ऐसी पोजीशन में चुदवाते हुए मेरी चूत में वह मीठा दर्द और बढ़ गया। मैं बार बार मारे उत्तेजना के झड़ जाती थी। पता नहीं जेठजी मुझे ४० मिनट से ज्यादा ही चोदते रहे होंगे। हालंकि मैंने कभी भी किसी मर्द से एक ही चुदाई में इतनी लम्बी देर तक मुझे चोदते हुए नहीं पाया और उस तरह की उत्तेजना नहीं अनुभव की पर मैं भी बार बार झड़ने से और इतनी तगड़ी चुदाई होने से थकने लगी थी।

मैंने माया की तरफ देखा। माया बड़ी ही तीखी नजर से मेरी चुदाई देख रही थी। सबसे अजीबोगरीब भाव तो मैंने माया के चेहरे पर देखे। अपने पति को किसी दूसरी औरत को चोदते हुए देख कर हुए कोई पत्नी कैसे अपने आप को सम्हाल सकती है? पर माया ना सिर्फ सम्हली हुई थी, वह तो मेरी उसके पति से होती हुई चुदाई देख कर काफी उत्तेजित दिखाई दे रही थी। मैंने बार बार माया को अपनी साड़ी ऊपर कर अपनी चूत में अपनी उंगली डालकर उनको अंदर बाहर करते हुए देखा। मेरी समझ में नहीं आया की मैं उस पर कैसे प्रतिक्रया दूँ? बेचारी माया मुझे चुदवाते हुए देख कर शायद अफ़सोस कर रही थी की काश वह मेरी जगह होती।

इतनी बार, बार बार झड़ने के बावजूद भी मेरी उत्तेजना कम होने का नाम नहीं ले रही थी। मुझे पता नहीं क्या हो गया था। मेरे जेठजी से चुदवाने का पागलपन मुझ पर ऐसे सवार हो गया था की इतनी जबरदस्त चुदाई की थकान के बावजूद मैं चुदाई को रुकवाना नहीं चाहती थी। मैं और भी ज्यादा चाहती थी। मैंने जेठजी को चोदने से बिना बोले रोका। उनका लण्ड मेरी चूत में ही रखे हुए मैंने जेठजी को पलंग पर लिटाया और मैं जेठजी के ऊपर चढ़ गयी। मैं जेठजी के ऊपर घुड़सवार की तरह चढ़ गयी और जेठजी को बेतहाशा पागल की तरह चोदने लगी। पहले के मुकाबले जेठजी का लण्ड मेरी चूत में और कहीं ज्यादा घुस रहा था। पर मुझे उसका होश कहाँ?

जेठजी ने जब मुझे उनको इस तरह पागल की तरह चोदते हुए महसूस किया तो उनसे शायद अपने वीर्यस्खलन पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो गया, क्यूंकि उस समय तक मैंने जेठजी को मुझे चोदते हुए हलकी फुलकी हुंकार करते हुए तो सूना था पर मैं जब उनके ऊपर चढ़ कर इनको चोदने लगी तो शायद उनकी उत्तेजना इतनी ज्यादा बढ़ गयी की मेरे जेठजी, "ओह....... अरे....... बापरे....... आह....... ओह....... उफ़........ तुम क्या चोदती हो..... अब मुझसे रहा नहीं जाता......" की कराहटें निकलने लगीं।

मैं समझ गयी की जेठजी अपना वीर्य छोड़ने के कगार पर पहुँच गए थे। मैंने अपने चोदने की फुर्ती बढ़ा दी। मेरे चोदने के फुर्ती के बढ़ते ही मेरे स्तनों के दो भरे हुए खरबूजे भी मेरे अंकुश के बाहर हो गए। मेरे ऊपर निचे होते मेरे दोनों बूब्स इस तरह फुदक फुदक कर कूदते हुए मेरी छाती पर हर तरफ फ़ैल रहे थे। आँखों पर सख्ती से बंधी हुई काली पट्टी के बावजूद भी जैसे मेरे जेठजी को मेरे बूब्स उड़ते हुए दिख रहे हों, वैसे उन्होंने अपनी दोनों हथेलियों में मेरे दोनों बूब्स भर लिए और उन्हें मसलते और पिचकाते हुए वह अपनी उत्तेजना का इजहार कर रहे थे।

माहौल इतना उत्तेजना भरा हो गया था की मेरे जेठजी से अब अपना वीर्य रोके रखना नामुमकिन था। मैंने माया की और देखा और उसे जेठजी के लण्ड की और देख कर आँखें मार कर इशारा किया। माया समझ गयी की वक्त आ गया था की उसके पति उनका सारा वीर्य मेरी चूत में उंडेल दें। माया ने मेरे जेठजी के करीब जा कर बोला, "जी सुनो, अब जाने दो अपना सारा माल मेरी चूत में।"

तब मेरे जेठजी ने जो जवाब दिया उसे सुनकर मेरी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। जेठजी ने कहा, "तेरी चूत में क्यों? मैं तो छाया की चूत में मेरा सारा वीर्य छोडूंगा। मुझे उसे गर्भवती जो बनाना है।"

जेठजी के यह शब्द मेरे लिए वज्राघात से कम नहीं थे। मुझे डर लगा की कहीं जेठजी की आँखों से पट्टी निकल तो नहीं गयी थी। पर मैं पूरी चुदाई के दरम्यान अच्छी तरह से देख रही थी। आँखों पर सख्ती से बंधी पट्टी वैसी ही थी। जेठजी मुझे माया ही समझ रहे थे क्यूंकि उन्होंने शायद माया के डर से छाया शब्द का इस्तेमाल किया था।

मैंने मेरे जेठजी का गरम वीर्य मेरी चूत में एक सैलाब की तरह उनके लण्ड के छिद्र में से फुटकर निकलते हुए महसूस किया। मेरी चूत की पूरी सुरंग मेरे जेठजी के गाढ़े वीर्य से भर गयी थी। जेठजी का लण्ड मेरी चूत में ही रखते हुए मैं फुर्ती से जेठजी के निचे लेट गयी और जेठजी को मेरे ऊपर चढ़ा दिया। मैं जेठजी का एक एक बून्द मेरी चूत में भर लेना चाहती थी।

जेठजी भी शिथिल हो कर मेरे ऊपर लेटे रहे जब तक उनके वीर्य की आखिरी बून्द निकल कर मेरी चूत में नहीं गयी। उसके बाद मुझे बड़ी राहत महसूस हुई जब मेरे जेठजी का अच्छा खासा भारी बदन मेरे ऊपर से हटा। जब तक औरत मर्द से चुदवाती रहती है, तब तक उसे मर्द का वजन महसूस नहीं होता। पर जैसे ही मर्द अपना वीर्य औरत की चूत में छोड़ देता है वैसे ही औरत को अपने ऊपर लेटे हुए मर्द का वजन महसूस होने लगता है।

मेरे बाजू में लेटते ही मेरे जेठजी ने मुझे खिंच पर अपने ऊपर ले लिया। मुझे कस कर जेठजी ने अपनी बाँहों में भर लिया और मुझे बेतहाशा चूमते हुए बोले, "अंजू बेटी, अब तो तुम और माया मेरी आँखों से पट्टी खोलो। तुमने पट्टी इतनी सख्त बाँधी है की मेरी आँखों में बड़ा दर्द हो रहा है।"

मेरे जेठजी को सुन कर मैंने माया की और देखा। मुझे लगा की उस समय अगर मुझे या माया को किसी ने छुरी से काटा होता तो खून की एक बूँद भी नहीं निकलती। मुझे लगा जैसे मेरा खून मेरी रगों में जम कर थम गया हो। हम दोनों ही कुछ बोलने के लायक नहीं थे।

मेरा सिर फट रहा था। मेरे पिता समान जेठजी से चुदवा कर मैंने बड़ा भारी गुनाह किया था। मैं मन ही मन में कचोट रही थी। अब मैं मेरे जेठजी से कैसे नजरें मिला पाउंगी? मैं तो मेरे जेठजी के सामने ना सिर्फ पूरी नंगी थी बल्कि उनके नंगे बदन पर उनके लण्ड को मेरी चूत में डलवा चुकी थी, और उनका वीर्य मेरे बदन पर बह रहा था। मैंने माया की और देखा। माया ने अपने हाथ लम्बे कर जेठजी की आँखों से पट्टी खोली।

जेठजी को अपनी आँखों को खोलते हुए कुछ कष्ट हुआ और कुछ देर तक वह इधरउधर आँखे झपकाते हुए हमें देखने की कोशिश करते रहे। कुछ देर बाद जब उन्होंने मुझे देखा तो दुबारा मुझे अपनी बाँहों में समेटते हुए बोले, "अंजू बेटी, माया, तुम दोनों मेरे करीब आओ तो।"

माया डरती हुई मेरे जेठजी के बाजू मैं बैठ गयी। जेठजी ने मुझे तो अपनी बाँहों से अलग ही नहीं किया। मेरे स्तनों को अपने हाथों में जकड़ कर दबाते हुए जेठजी ने मेरी आँखों में आँखें मिलाते हुए कहा, "देखो, अंजू बेटी, तुम बच्चे लोग क्या समझते थे? मैं तुम्हारी चाल नहीं समझ पाउँगा? बेटे, तुम जिस कॉलेज में पढ़ रहे हो ना, मैं उस कॉलेज का प्रधान आचार्य हूँ। मैं तो तुम लोगों की चाल पहले से ही समझ गया था। मुझे माँ ने बताया था की वह संजू से बच्चे के बारे में बार बार कह रही थी। जब माया ने मुझे आँख पर पट्टी बाँध ने की बात की और फिर बच्चे के लिए बगैर प्रोटेक्शन से सेक्स की बात की तो मुझे दो से दो जोड़ ने में देर नहीं लगी। हाँ संजू की दिक्कत के बारे में मुझे पता नहीं था और वह मुझे तुम्हारी हरकतों से ही अंदाज लगाना पड़ा।"

जेठजी की बात सुन कर मेरा और माया का सिर शर्म से झुक गया। मैंने आँखें झुकाते हुए कहा, "जेठजी, मुझमें हिम्मत नहीं थी ऐसी बात करने की। आखिर आपने हमें अपने बच्चों की तरह पाला है।"

जेठजी ने मेरा सर अपने हाथों में पकड़ कर मेरे गाल पर एक हलकी चुम्मी देते हुए कहा, "देखो अंजू, जब तक हम लाज का पर्दा रखते थे हमारे बिच कुछ दूरियां थीं, वह ठीक भी था। पर जब हम पर कोई विपदा आन पड़ती है तो हमें हमारे बिच की सारी दूरियां, चाहे वह लज्जा के कारण हों या फिर बड़े छोटे होने के कारण हों, उन्हें तोड़ कर एक साथ मिलकर उनको दूर करनी होगी। काश तुम में से कोई भी अगर मुझसे सीधे बात करता तो मैं ना क्यों कहता? आखिर एक बात समझो। हमारा परिवार एक जुड़ा हुआ परिवार है और किसी भी आपत्ति में हम सब एक साथ हैं। जब आप ने मुझसे यह खेल रचाया तो फिर मैं भी आप के साथ इस खेल को खेल कर मजे लेना चाहता था।"

मैं मेरे जेठजी की नजरें से नजरें मिला नहीं पा रही थी। मैं जेठजी के पाँव से लिपट गयी। मैं अपनी आँखों में से आंसूं रोक नहीं पा रही थी। जेठजी ने मुझे अपने सीने से लगा कर कहा, "अरे बेटी, तुम्हारी जगह मेरे पाँव में नहीं। तुम्हारा स्थान मेरे ह्रदय में है। तुम मेरी बहु हो। बहु बेटी जैसी होती है। तुम पूछोगी, बेटी है तो फिर मैंने सेक्स कैसे किया? सेक्स भगवान की दी हुई देन है। हमारे समाज में कुछ पाबंदियां जरूर हैं, पर वक्त आने पर उन्हें तिलांजलि भी दी जा सकती है।"

मैं हैरान सी मेरे जेठजी की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी। जेठजी शायद मेरी उलझन को दूर कर मुझे तनाव मुक्त करने की कोशिश कर रहे थे।

जेठजी ने मेरी उलझन को समझते हुए अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "हमारे यहां एक गोत्र में शादी और चुदाई की मनाई है। मैं भी मानता हूँ की एक ही गोत्र में चुदाई नहीं होनी चाहिए। तुम मेरे गोत्र की नहीं हो तो जो हमने किया वह परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए स्वीकार्य होना चाहिए। हम अगर एक दूसरे से प्यार करते हैं और हमारे बिच अगर कोई इर्षा, द्वेष का भाव नहीं है तो मैं मानता हूँ की अगर प्रबल इच्छा हो या जरुरत हो तो चुदाई करने में कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए। तुममें से कोई भी अगर मुझसे सीधा आ कर अपनी समस्या बताते तो मैं अपने आप ही तुम्हें यही रास्ता बताता जो तुम्हें माया ने बताया।"

माया ने देखा की मैं जेठजी के इतना सारा कहने पर भी काफी शर्मसार अनुभव कर रही थी। तब माया मेरे करीब आयी। मैं उस समय अपनी साड़ी के एक छोर को पकड़ कर अपने नंगे बदन को जेठजी से छिपाने की कोशिश कर रही थी। माया ने मेरी साड़ी को खिंच कर हटाई और दूर कोने में फेंक दी। फिर मेरे हाथ में मेरे जेठजी के लण्ड को थमा कर बोली, "दीदी, अब मेरे पति आपके भी पति हैं। अब आपको मैं यहां से पूरी रात नहीं जाने देने वाली। आपको मैंने सौतन बना दिया है और मैं सौतन की तरह ही आपसे प्यार करुँगी। मेरे पति याने आपके जेठजी भी आपको अपनी पत्नी की तरह ही प्यार करेंगे और चोदेंगे भी। आप भी जब तक उनके साथ सोती है तब तक उन्हें अपना पति ही समझो। जब आप यहां से जाओ तो वह फिर से आपके जेठजी बन जाएंगे। पर तब तक आप उनकी पत्नी और मेरी प्यारी सौतन ही रहोगी।"

माया की बात सुन कर जेठजी ने माया को अपनी बाँहों में भर लिया और बोले, "माया, ऐसा करना तो संजू के ऊपर अन्याय होगा। अगर अंजू आज रात मेरे साथ सोयेगी तो फिर तुम्हें आज रात संजू के साथ सोना पड़ेगा। आज रात तुम संजू के साथ सुहाग रात मनाओगी, आज रात तुम संजू से चुदवाओगी। बोलो तुम्हें मंजूर है?"

माया जेठजी की बात सुनकर आश्चर्य से उछल पड़ी। माया को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह अपनी बड़ी बड़ी आँखें पटपटाती हुई बोली, "क्या? आप क्या कह रहे हो जी? मुझे संजयजी के साथ सोना पड़ेगा? ऐसा क्यों?"

जेठजी माया की पीठ सहलाते हुए बोले, "क्योंकी अब जब तुम और अंजू मेरे लिए एक सी ही हो तो फिर तुम और अंजू संजू के लिए भी एकसी ही होनी चाहिए। मतलब अगर अंजू यहां मेरे साथ सोयेगी, मुझ से चुदवायेगी तो उधर संजू के साथ तुम्हें भी सोना पड़ेगा, संजूभी तुम्हें चोदेगा। तभी तो हिसाब बराबर होगा ना? मैं नहीं चाहता की जब अंजू मेरे साथ हो तो संजू अकेला हो। बोलो मंज़ूर है की नहीं?"

मैंने माया की और देखा। माया ने कुछ उलझन से मेरी और देखा। मैंने उसे आँख मटका कर "हाँ" का इशारा किया। तब माया ने अपने पति और मेरे जेठजी की और दिखा और शर्माती हुई बोली, "मैंने आपका कहना ना माना हो ऐसा हुआ है कभी? अगर आप कहते हैं और अगर संजयजी और दीदी को एतराज ना हो तो मैं तो आपके हुक्म की गुलाम हूँ। आप जो कहोगे मैं वही करुँगी।"

जेठजी ने माया की और तीखी नज़रों से देखा और बोले, "नहीं ऐसे जबरदस्ती नहीं। मैं तुम्हारी तरह कोई खेल नहीं खेल रहा हूँ। मैं सीधे से पूछ रहा हूँ, क्या तुम संजू से चूदवाओगी?"

माया ने फिर से उसी तरह दृढ़ता से कहा, "देखिये जी आप मेरे प्राणधन हैं। मैंने अपना सारा जीवन आपको समर्पण कर दिया है। मैंने आप को अपना प्राणनाथ माना है और दीदी को अपनी बड़ी बहन। अगर आप चाहते हैं की मैं संजयजी के साथ सोऊँ, उनसे चूदवाऊं तो यह मेरा सौभाग्य होगा। मुझे संजयजी अगर स्वीकार करेंगे तो अपने आपको उनको सौंपने में मुझे ख़ुशी होगी। बताइये मैं क्या करूँ?"

जेठजी ने माया को अपने गले लगा कर कहा, "तुम नईनवेली दुल्हन सी तो सजी हुई ही हो। अपने कपडे ठीक से दुबारा पहनलो और ठीक से सज कर अभी संजू के कमरे में उसके साथ सोनेके लिए जाओ और उससे चुदवाओ। अगर संजू मना करे तो मुझे बताना।"

मैं भी मेरे जेठजी की और देखती ही रह गयी। माया धीरे से अपनी साड़ी सम्हालती हुई उठ खड़ी हुई और कमरे से निकल गयी। मैंने जेठजी के गले में अपनी बाँहें डालकर उनके होँठों को हलके से चूमते हुए पूछा, "मैं यह तो जानती थी की आप न्याय पसंद हैं, पर आप इतनी हद तक अपनी न्याय की दृढ़ता को ले जाएंगे यह सोचा नहीं था।" यह कह कर मैं जेठजी के लण्ड को हिलाकर उसे दुबारा सख्त करने की कवायद में लग गयी।

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जब माया संजयजी के कमरे में पहुंची तब संजयजी के कमरे का किवाड़ खाली बंद था। माया ने हल्का सा धक्का दिया तो किवाड़ खुल गया। कमरे में अन्धेरा था। माया ने जैसे कमरे प्रवेश किया तब कमरे में बत्ती जल उठी। संजयजी बिस्तर में से उठ गए और माया को देख कर चौंक कर बोल उठे, "माया, मेरा मतलब भाभीजी आप?"

माया बिना कुछ बोले हमारे पलंग के पास जा कर खड़ी हुई। संजयजी बड़े ही अचरज से माया की और स्तब्ध हो कर देखते रहे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था की माजरा क्या था। माया ने संजयजी का हाथ थामा और उन्हें खिंच कर पलंग के ऊपर से उठाकर संजयजी से लिपटते हुए बोली, "संजयजी, मैं आपके साथ आज सुहागरात मनाने के लिए आयी हूँ।"

संजयजी पूरी तरह आश्चर्यचकित हो कर माया को कुछ देर तक चुपचाप देखते रहे। फिर उन्होंने माया को अपनी बाँहों में भर कहा, "अच्छा! अब मैं समझा। आप लोगों का खेल भाई साहब ने पकड़ लिया लगता है। यह भाई साहब का न्याय है। तभी मैं सोचूं, की यह सब चक्कर क्या है।"

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