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मम्मी की नौकरी (भाग-3)

by dimpii4u©

जबसे मम्मी की राज सामने आया है मेरा तो हालत ही खराब हो गया था । मैँ हमेशा मम्मी की वासना का खेल देखने को आतुर था । इसी बीच एक दिन मम्मी ने भारत मेँ छुट्टीयां बिताने की इच्छा जाहीर करती हुई मेरे सामने प्रस्ताव रखा । मैँने तुरन्त हां भर दिया, क्योँकि मुझे भी अपने गांव घुम आने का बहुत मन कर रहा था । इसके पन्दाह दिन बाद मम्मी ने उसकी और मेरे दो फ्लाईट टिकट बुक कराई । आखिर व दिन आ पहुंच गया और हम दोनोँ फ्लाईट पकड कर दिल्ली आ गए और एक गाडी से हमारे गांव कटिहार पहुँचे ।

गांव मेँ अब केवल मम्मी के एक दूर के मौसी अकेली रहती थी । मौसी के बच्चे बाहर रहते थे । गांव का एक डॉक्टर अपनी पत्नी के साथ हमारे घर किराए मेँ रह रहा था । अब वे दोनोँ मौसी की थोडी बहुत देखभाल कर लेते हैँ । आने से पहले मम्मी ने उन्हेँ सूचित कर दिया था तो हमेँ देख कर उन्हेँ बहुत अच्छा लगा । डॉक्टर साहब और उनकी पत्नी कोलकाता के रहने वाले थे, उन दोनोँ की उम्र भी चालीस पार कर चुकी था । वे मौसी को बुआ कह कर पुकारते थे तो मम्मी उन दोनोँ को भैया भाभी और मैँ उन दोनोँ को बडे पापा और बडी मां कह कर पुकारने लगे । गांव शहर से काफी दूर था, इसीलिए गांव के लोग अभी भी पुराने खयालात के थे । गांव मेँ बिजली तो था, पर लोग स्नान और शौच के लिए बाहर तालाब या पास वाले नदी पर निर्भर थे ।

घर काफी बडा था । डॉक्टर साहब दिन भर मरीजोँ को देखने मेँ लगे रहते थे । उनकी पत्नी और मम्मी कुछ ही दिनोँ मेँ अच्छे सहेली बन गए । व मम्मी को बहू कह कर पुकारती थी । डॉक्टर की पत्नी का नाम बिमला थी, उसकी उम्र 48 के आस पास था । उनके दो लडके थे जो बाहर रह कर पढाई कर रहे थे ।

वैसे बिमला आंटी भी काफी आकर्षक महिला थी, उनकी उम्र 48 के आसपास थी । मम्मी से व काफी बडी थी । व मम्मी को बहू कह कर पुकारने लगी थी । इस उम्र मेँ भी बिमला की मोटी-मोटी जांघेँ और भारी गांड बहुत मस्त लग रहे थे । बिमला आंटी की स्तन और गांड मम्मी से भी भरे और उभरे थे । मैँने आते ही बिमला आंटी की भारी चुतड पेशाब करते वक्त देख लिया था । क्योँकि यहां टॉयलेट नहीँ था घर के सारे लोग पिछवाडे के किसी कोने पर पेशाब बगैरा करते हैँ । क्या मस्त गांड थे आंटी के । जब बिमला आंटी पेशाब करने बैठती तो पिछे से उनकी गांड पूरा नंगा हो जाता था । और मैँ रोज मौका मिलने पर इस द्रुश्य का मजा उठाने लगा था ।

एक दिन मम्मी नदी मेँ स्नान करने का मन बना लिया । मुझे भी नदी मेँ डुबकी लगाने का मन कर रहा था । और फिर दुसरे दिन हम दोनो कपडे वगैरा लेकर नदी पर पहुच गये और फिर अपने काम में लग गए । फिर हम दोनोँ ने नहाने की तैइय्यारी शुरू कर दी, तब मम्मी उठ कर खडी हो गई । अपने साडी के पल्लू को और ब्लाउज को ठीक किया और अपने जांघो के बिच साड़ी को हल्के से दबाया और साड़ी को उपर से ऐसे रगडी जैसे की लंड मसल रही हो । मैं उसकी इस क्रिया को बडे गौर से देख रहा था । मम्मी मेरी और देख कर बोली "मैं ज़रा पेशाब कर के आती हुं तु यहीँ रुक ।" मैं हल्के से अपना सर हिलाया ।

मम्मी पास के एक झाडी की और चल दी । मैँ तुरंत मम्मी के पिछे चल पडा । पिछले घटना के बाद मैँ हमेशा मम्मी की नंगी बदन देखना चाहता था खास कर मम्मी की लंड । मैँने जाकर एक बडा सा पत्थर की आड मेँ अपने आप को छिपाते हुए मम्मी को देखने लगा । जब मम्मी झाडीयों के पास पहुंच गयी तो एक बार पीछे मुड कर इधर-उधर देखा और फिर अपने साड़ी को पेटीकोट समेत उठा कर पेशाब करने बैठ गई । उसकी दोनो गोरी गोरी जांघेँ उपर तक नंगी हो चुकी थी और उसने अपने साड़ी को पीछे से उपर उठा के पकड रखा था जिस के कारण मम्मी के दोनोँ चुतड भी नुमाया हो रहे थे । ये सीन देख कर मेरा लंड फिर से फुफ्करने लगा । मम्मी की गोरे-गोरे उभरी हुई गांड बडे कमाल के लग रहे थे । बैठने से गांड और भी फैल गई थी । मम्मी ने अपनी गांड को थोडी सी उचकायी हुई थी जिस के कारण उसकी गांड की दरार भी दिख रही थी साथ मेँ अंडकोष भी । हल्के भूरे रंग की गांड की छेद देख कर दिल तो यही कर रहा था की पास जा उस गांड की छेद में धीरे धीरे उंगली अंदर कर दुं । तभी मम्मी पेशाब कर के उठ खडी हुई और मेरी तरफ घूम गई । उसने अभी तक साडी को अपने जांघोँ तक उठा रखी थी । अब मम्मी की लंड फिर से मेरे सामने थी । घने झांटोँ से भरी थी मम्मी की लंड, कितना लम्बा और मोटा था । फिर मम्मी ने लंड को दो-तीन बार निचोड लिया जिससे कुछ बुंदेँ पेशाब निकली ओर फिर अपने साडी को छोड दिया और नीचे गिरने दिया । फिर एक हाथ को अपनी लंड पर साडी के उपर से ले जा के मसलने लगी जैसे की पेशाब पोछ रही हो । ये देख कर मेरा हालत एकदम खराब हो गया, फिर एक बार मैँने सारा माल वहीँ निकाल दिया ।

वापस आने के बाद मम्मी नहाने की तैयारी करने लगी । नहाने के लिए मम्मी सबसे पहले अपनी साडी को उतार दी, फिर अपने पेटीकोट के नाडे को खोल के पेटीकोट उपर को सरका कर अपने दांत से पकड ली । इस तरीके से उसकी पीठ तो दिखती थी मगर आगे से ब्लाउस पूरा ढक गया था । फिर व पेटीकोट को दांत से पकडे हुए ही अंदर हाथ डाल कर अपने ब्लाउस को खोल कर उतार दी । और फिर पेटीकोट को उरोजोँ के उपर बांध दी, जिस से उसकी स्तन पूरी तरह पेटीकोट से ढक गई थी और कुछ भी नज़र नहीँ आया और घुटनोँ तक पूरा बदन ढक गया था ।

तभी मम्मी नदी में उतर के एक डुबकी लगाई ऐसे में उसकी पेटीकोट जो कि उसके बदन चिपका हुआ होता था गीला होने के कारण मेरी हालत और ज़यादा खराब गया । पेटीकोट चिपकने के कारण मम्मी की बडी-बडी चुचियां नुमाया हो जाती थी । पेटीकोट के उपर से उसकी मोटे-मोटे निपल तक दिखने लगे । पेटीकोट मम्मी की उभरी नितम्बोँ से चिपक कर उसकी गांड के दरार में फस गया था और मम्मी की चौडी गांड साफ दिखाई देने लगे थे । सामने से मम्मी की लंड भी गीले पेटीकोट से साफ नजर आने लगा था । मम्मी की दोनोँ जांघोँ के बिच एक बडा काला सा उभार दिखाई दे रही थी जो उसका लंड था । मम्मी भी कमर तक पानी में मेरे ठीक सामने अपने चुचियों को साफ किया और फिर अपने बदन को रगड-रगड के नहाने लगी । मैं भी बगल में खडा उसको निहारते हुए नहाता रहा । मम्मी अपने हाथोँ को पेटीकोट के अंदर डाल के खूब रगड-रगड के नहाना चालू रखा ।
थोडी देर बाद मम्मी ने एक दो डुबकियां लगाई और फिर हम दोनोँ बाहर आ गये । मैँने अपने कापडे चेंज कर लिए ।

मम्मी ने भी पहले अपने बदन को टॉवेल से सूखाया फिर अपने पेटीकोट के इज़रबंद को जिसको की व छाती पर बांध के रखी थी पर से खोल लिया और अपने दांतोँ से पेटीकोट को पकड लिया । आदत न होने से मम्मी को इस प्रकार कपडे बदलना दिक्कत हो रही थी । जैसे ही मम्मी अपना हाथ ब्लाउस में घुसाने जा रही थी की पता नहीँ क्या हुआ उसकी दांतोँ से उसकी पेटीकोट छुट गई । और सीधे सरसराते हुए नीचे गिर गई । और मम्मी की पूरी की पूरी नंगी बदन एक पल के लिए मेरी आंखोँ के सामने दिखने लगा । उसकी बडी-बडी चुचियां और उसकी भारी बाहरी नितम्ब और उसकी मोटी मोटी जांघोँ के मध्य झांटोँ से भरे मूषल लंड, सब एक पल के लिए मेरी आंखोँ के सामने नंगे हो गये । पेटीकोट के नीचे गिरते ही उसके साथ ही मम्मी भी है.... करती हुई तेज़ी के साथ लंड पर एक हाथ जमा ली, फिर भी मम्मी की 8 इंच का लम्बा और मोटा लंड का आधा हिस्सा दिखाई दे रही थी । लंड को हाथ मेँ छिपाती हुई मम्मी नीचे बैठ गई । मैं जल्द ही पिछे घुम गया ताकि मम्मी को बुरा न लगे । मम्मी नीचे बैठ कर अपने पेटीकोट को फिर से समेटती हुई बोली " ध्यान ही नहीँ रहा मैं तुझे कुछ बोलना चाहती थी और ये पेटीकोट दांतोँ से छुट गया ।"
मैं कुछ नहीँ बोला ।

मम्मी फिर से खडी हो गई और अपने ब्लाउस को पहनने लगी । फिर उसने अपने पेटीकोट को नीचे किया और बांध लिया । फिर साडी पहन कर व वहीँ बैठ के अपने भीगे कपडोँ को साफ कर के तैयार हो गई । फिर हम दोनोँ वापस घर की और निकल पडे । घर पहुंचने तक मम्मी एकदम चुप रही न कुछ बोली और न कुछ मुझसे पुछी । शायद राज खुलने से मम्मी ऑपसेट थी । पर जब तक मम्मी मेरी और देखी मैँ घुम चुका था । और मेरे बर्ताव देखकर शायद मम्मी को यकिन हो रहा था कि मैँने कुछ नहीँ देखा । घर पहुंच कर मम्मी ने पहले जैसा ही मेरे साथ बातचीत करने लगी, जैसे कुछ हुआ ही नहीँ । अब मम्मी को पुरी यकिन हो गया था कि मैँ कुछ देखता, इससे पहले ही व अपनी पेटीकोट पहन चुकी थी ।

अगले दिन डॉक्टर साहब अपने पत्नी और मौसी के साथ सुबह को ही किसी रिस्तेदार के यहां चले गए थे । उन्होँने मम्मी को भी चलने को कहा पर मम्मी मना कर दिया बोली, बहुत सारे कपडे साफ करने हैँ । घर पर मैँ और मम्मी रहे । मम्मी रसोई करने लगी । मैँने सोचा क्योँ न आज मेला घुम लिया जाये । मैँने मम्मी को बताया तो उसने कहा-
"बेटा मुझे बहुत काम है, तु ही चला जा ।"

फिर मैँने कुछ नस्ता करने के बाद निकल गया और मम्मी को बताके आया कि शाम को लौटुंगा ।

मैँने मजे से मेले मेँ घुमने लगा । मेला बहुत छोटा था तो दो घंटे मेँ ही मैँ पुरा मेला दर्शन कर लिया फिर सोचा की घर ही लौट जाउं । घर मेँ मम्मी अकेली भी है, यहां शाम होने तक समय क्योँ नष्ट करुं । यही सोचकर मैँ वापस लौट आया । घर पहुंचने पर देखा मुख्य दरवाजा अंदर से बन्द था । मैँने मम्मी को आवाज लगाया । पर अंदर से कोई जवाब न आने पर मैँ पिछे के रास्ते से अंदर आ गया । मम्मी कहीँ दिखाई नहीँ दी । तभी कुएं के पास से आवाजेँ आई तो मैंने उधर जाकर देखा तो मेरे होश उड गए ।

कुएं के पास मम्मी नहाने लगी थी । एक पुराने साडी को लपेट कर बाथरुम जैसा बनाया गया था, जिसका निचला हिस्सा से डेढ फुट के करीब खाली था । और निचे का सब कुछ साफ दिखाई दे रहा था ।
मम्मी बैठ के नहा रही थी । मुझे मम्मी के बडे-बडे चुतड साफ दिखाई दे रहे थे । मम्मी को नंगे नहाने की आदत पड चुकी थी, इसिलीए व अकेली होने पर सारे कपडे उतार के नहा रही थी । शायद मम्मी कपडे धो चुकी थी, अब नहाने लगी थी । मम्मी की गांड बैठने से और ज्यादा फैल गई थी, उसकी गांड थिरक रही थी । मैं बगीचे में अपने आपको छुपाते हुए निचे मम्मी की मस्त गांड देख रहा था । क्या उभरी हुई चौड़ी गांड थी मम्मी की ।

तभी मम्मी खडी हो गई, अब मुझे मम्मी की सिर्फ दो पैर ही दिखाई दे रहे थे । मेरा बैचनी बढ़ने लगा, जल्द से जल्द मम्मी फिर से बैठ जाये । मैंने अपनी नजरें गडाए रखा । तभी फिर से मम्मी बैठ गई, लेकिन अब की बार मम्मी मुड गई थी और मम्मी की लम्बा और मोटा लंड साफ दिखाई देने लगा था । मेरा तो उत्तेजना के मारे हालत ख़राब हो रहा था । बैठने से मम्मी की लंड निचे जमीन को छू रहा था । कितना लम्बा था मम्मी की लंड और साथ में उतने ही बड़े अंडकोष । मम्मी की भारी गांड और साथ में विशाल लंड और अंडकोष । तभी मम्मी लंड की चमड़ी को निचे खिंच कर सुपाडा को बाहर किया और साबुन लेकर लंड पर रगड़ के खूब झाग बनाई और एक भीगे कपडे से रगड़-रगड़ के लंड और गांड को साफ करने लगी ।

शहर में मम्मी नंगी बाथरूम में नहाती थी, इसीलिए जब उसे मौका मिला, गाँव में अकेली जी भर के नंगी हो कर नहा रही थी । मैं अब ज्यादा देर तक अपने आप को रोक नहीं पाया और धीरे से अपने कमरे में जाकर लंड का सारा मॉल खलास कर दिया । कुछ देर बाद मम्मी नहाना ख़तम करके अन्दर चली गई ।

इसी तरह गाँव में दिन बड़े मजे में गुजर रहा था की एक दिन रात को मेरी नीँद खुल गई, मुझे बडी प्यास लग रही थी । मैँने रसोई घर जाकर पानी पी ली । जब मैँ रसोई घर से लौट रहा था तो मुझे मम्मी के कमरे से कुछ बातेँ सुनाई दी । मुझे बडी हैरानी हुई, आधी रात को मम्मी किससे बात कर रही है ? मैँ मम्मी के कमरे की और गया । मम्मी का कमरा अंदर से बन्द था, मैँने दरवाजे के एक छेद से अंदर झांका । अंदर रोशनी लगी थी और ये क्या मम्मी के साथ कोई औरत बैठी हुई थी । मैँने उस औरत को पहचान लिया व कोई और नहीँ डॉक्टर साहब की पत्नी बिमला आंटी थी । पर बिमला आंटि इतनी रात गए मम्मी के कमरे मेँ क्या कर रही है ? अचानक ये सोचकर मेरा शरीर उत्तेजना मेँ कांपने लगा कि कहीँ मम्मी बिमला को चोदनेवाली तो नहीँ है ? क्योँकि पिछले कुछ दिनोँ से मम्मी और बिमला आंटी वापस मेँ बहुत ज्यादा धुल-मिल गई थीं ।

मेरा निंद एकदम उड गया था और मैँने अंदर का नजारा देखने लगा । मम्मी और बिमला वापस में कुछ बातें कर रहे थे, मम्मी ने अपने दोनों हथेलियो में बिमला आंटी की चुचियों भर ली थी और उन्हें खूब कस कस के दबाने लगी । उसके मोटे मोटे निपल भी ब्लाउस के उपर से पकड में आ रहे थे । मम्मी दोनो निपल के साथ साथ पूरी चुचि को ब्लाउस के उपर से पकड कर दबाए जा रही थी । बिमला की मुंह से अब सिस्कारियां निकलने लगी थी और मम्मी उसकी उत्साह बढाती जा रही थी । फिर मम्मी ने अपने कांपते हाथों को बिमला आंटी के चिकने जांघों पर रख दिया और थोडा सा झुक गई । उसके बुर के बालों के बीच एक गहरी लाल लकीर से चीरी हुई थी । मम्मी ने अपने दाहिने हाथ को जांघ पर से उठा कर बिमला आंटी की चूत के उपर रख दिया । कुछ देर बुर को मसलने के बाद मम्मी और निचे झुकते हुए अपनी जीभ निकल ली और बिमला आंटी की बुर पर अपने ज़ुबान को फिरना शुरू कर दिया ।

अंदर का नजारा देख कर मेरा लंड कबसे कडा हो चुका था । फिर पूरी चूत के उपर मम्मी की जीभ चल रही थी और बिमला आंटी की फूली हुई गद्देदार बुर को अपनी खुरदरी ज़बान से उपर से नीचे तक चाट रही थी । अपनी जीभ को दोनों फांको के उपर फेरते हुए मम्मी ठीक बुर के दरार पर अपनी जीभ रखी और धीरे धीरे उपर से नीचे तक पूरे चूत की दरार पर जीभ को फिराने लगी । बिमला की बुर से रिस रिस कर निकालता हुआ रस जो बाहर आ रहा था उसका नमकीन स्वाद मम्मी को मिल रही थी । जीभ जब चूत के उपरी भाग में पहुच कर क्लिट से टकराती थी तो बिमला आंटी की सिसकियां और भी तेज हो जाती थी । पूरी बुर को एक बार रसगुल्ले की तरह से मुंह में भर कर चूसने के बाद मम्मी ने अपने होंठों को खूल कर बुर के चोदने वाले छेद के सामने टिका दी और बुर के दोनों फांकों को फैला कर अपनी जीभ को बिमला की बुर में पेल दी ।

बुर के अंदर जीभ घुसा कर पहले तो मम्मी ने अपनी जीभ और उपरी होंठ के सहारे बुर के एक फांक को खूब चूसी फिर दूसरी फांक के साथ भी ऐसा ही किया फिर बुर को जितना चिदोर सकती थी उतनी चिदोर कर अपने जीभ को बुर के बीच में डाल कर उसके रस को चटकारे ले कर चाटने लगी । बिमला आंटी आंखें बंद करके मजे ले रही थी । तभी मम्मी ने अपनी जीभ को तेज़ी के साथ बुर में से अंदर बाहर करने लगी और साथ ही साथ बुर में जीभ को घूमाती हुई बुर के गुलाबी छेद से अपने होंठों को मिला के अपने मुंह को चूत पर रगड भी रही थी ।

मैँने अब अपना लंड सहलाते हुए मम्मी की करतूतेँ देखने लगा । मम्मी की दोनों हाथ बिमला आंटी के मोटे गुदाज जांघों से खेल रहे थे । बिमला आंटी ने अपने दोनों हाथों को शुरू में तो कुछ देर तक अपनी चुचियों पर रखा था और अपनी चुचियों को अपने हाथ से ही दबाती रही तभी उसने सोचा ऐसे करते करते तो व फिर उसकी निकल देगी जबकि व आज तो बहुरानी की पूरी नंगी बदन देखेगी और जी भर के उससे चुदवाना चाहती थी । इसलिए बिमला ने मम्मी के हाथोँ को पकड लिया और कहा-
"बहू रूको ।"

"क्यों मज़ा ऩहीँ आ रहा है भाभी, जो रोक रही हो ।"

"बहू मज़ा तो बहुत आ रहा है मगर !"

"फिर क्या हुआ भाभी ।"

"फिर, मैं कुछ और करना चाहती हूं बहू ।"

इस पर मम्मी मुस्कुराती हुई पुछी-"तो तुम और क्या करना चाहती हो ।"

"ये देखना है ।" कह कर बिमला ने एक हाथ सीधा मम्मी के जांघोँ के म्ध्य रख दी ।

मम्मी थोडी मुस्कराई और बोली-
"हां भाभी, सब करूंगी, सब करूंगी जो तुम कहोगी व सब करूंगी, मुझे तो विश्वास ऩहीँ हो रहा की मेरी ज्यादा से ज्यादा बुर चोदने का सपना सच होने जा रहा है । मैं यहां आते ही तुम्हेँ चो...।"

"हां, हां बोलो ना क्या करना चाहती थी, अब तो खुल के बात करो बहु, शर्माओ मत "।

"हां भाभी कब से तुम्हेँ मैँ चोदना चाहती थी पर कह ऩहीँ पाती थी, पर अब तो तुम्हेँ मेरी गहरी राज का पता चल गया है ।"

"कोई बात ऩहीँ बहू व भला हुआ की आज मैँने खुद ही पहल कर दी, पर बहू जबसे तुम्हारी राज मेरे सामने आया है, मैँ भी तुम्हारी लंड अपनी बुर मेँ लेने के लिए तरसती जा रही हुं, चलो दिखाओ अपनी नंगा बदन ।" कह कर बिमला आंटी ने मम्मी को बिस्तर से नीचे उतार दिया और सामने मम्मी को खडा कर दिया ।

"इधर आओ मेरे पैरो के बीच में अभी तम्हेँ दिखती हू ।" कहने के साथ मम्मी अपनी साडी को बदन से अलग कर दी और धीरे-धीरे करके अपने ब्लाउस के एक बटन को खोलने लगी । ऐसा लग रहा था जैसे चांद बादल में से निकल रहा है । धीरे-धीरे मम्मी की गोरी गोरी चुचियां दिखने लगी । ओह! गजब की चुचियां थी मम्मी की, देखने से लग रहा था जैसे की दो बडे नारियल दोनों तरफ लटक रहे हो । एक दम गोल और आगे से नुकीले तीर के जैसे । मम्मी के निपल थोडे मोटे और एकदम खडे थे और उनके चारोँ तरफ हल्का गुलबीपन लिए हुए गोल गोल घेरा था । निपल भूरे रंगे के थे । मम्मी अपने हाथों से अपने चुचियों को नीचे से पकड कर चुचियों पर हाथ फेरते हुए बिमला आंटी को दिखाती हुई हल्की सी हिलायी और बोली-
"खूब सेवा करनी होगी इसकी तुम्हेँ ।" कह कर मम्मी फिर अपने हाथोँ को अपने पेटीकोट के नाडे पर ले गई और बोली-
"अब देखो भाभी तुमको जन्नत का दरवाजा दिखती हूं, अपनी बहूरानी की स्पेशल हथियार देखो, जिसके लिए मैँ तुम्हेँ आज यहां लायी हुं ।" कह कर मम्मी ने अपनी पेटीकोट के नाडे को खोल दी ।
पेटीकोट उसकी कमर से सरसराती हुई सीधे नीचे गिर गया और मम्मी ने एक पैर से पेटीकोट को एक तरफ उच्छाल कर फेँक दिया और बिस्तर के और नज़दीक आ गई । बिमला आंटी की नज़रेँ मम्मी की जांघोँ के बीच में टिकी हुई थी । मम्मी की गोरी-गोरी चिकनी मांसल जांघोँ के बीच में काले काले झांटोँ के बिच से एक 8 इंच के करीब लम्बा और मोटा लंड अंडोँ के साथ लटक रहा था । उत्तेजने के कारण मम्मी की लंड तनने लगा था । झांटोँ के बीच में से मम्मी की विशाल लंड की पूरी झलक मिल रही थी, बिमला आंटी ने अपने हाथोँ को मम्मी के जांघोँ पर रखा और थोडा नीचे झुक कर ठीक लंड के पास अपने चेहरे को ले जा के देखने लगी । मम्मी ने अपने दोनोँ हाथ को बिमला के सिर पर रख दिया और उसकी घने लम्बे बालोँ से खेलने लगी फिर बोली-
"रुक जाओ ऐसे ऩहीँ दिखोगी तुम्हेँ आराम से बिस्तर पर लेट के दिखाती हू ।"

"ठीक है, आ जाओ बिस्तर पर, बहू एक बार ज़रा पिछे घुमो ना ।"

"ओह, मेरी रानी मेरी गांड भी देखना चाहती हो क्या ? चलो गांड तो मैं तुम्हेँ खडे-खडे ही दिखा देती हूं, लो देखो अपनी बहू की लंड और गांड को ।" इतना कह कर मम्मी पिछे घूम गई ।
ओह! कितना सुंदर दृश्य था व । इसे मैं अपनी पूरी जिंदगी में कभी ऩहीँ भूल सकता । मम्मी की गांड सच में बडे खूसूरत थे । एक दम गोल-मटोल, गुदाज, मांसल और बीच में दो बडे-बडे अंडे जैसे अंडकोष जो की उसकी गांड की छेद के निचे थे । बिमला आंटी ने मम्मी को थोडा झुकने को कहा तो मम्मी झुक गई और बिमला आराम से मम्मी की मक्खन जैसे चुतडोँ को पकड के अपने हाथोँ से मसलती हुई उनके बीच की दरार को देखने लगी । दोनोँ चुतडोँ के बीच में गांड की भूरे रंग की छेद थी, बिमला आंटी ने हल्के से अपने हाथ को उस छेद पर रख दिया और हल्के -हल्के उसे सहलाने लगी, साथ में मम्मी की गांड को भी मसल रही थी । पर तभी मम्मी आगे घूम गई और बोली-
"चलो मैं थक गई खडी-खडी अब जो करना है बिस्तर पर करेंगे ।"
और मम्मी बिस्तर पर चढ गई । पलंग की पुष्ट से अपने सिर को टिका कर उसने अपने दोनो पैरोँ को बिमला आंटि के सामने खोल कर फैला दिया और बोली-
"अब देख लो आराम से, पर एक बात तो बताओ तुम देखने के बाद क्या करेगी कुछ मालूम भी है या ऩहीँ ?"

"हां, बहू मालूम है ।"

"अच्छा चुदोगी ।"

"मैं पहले तुम्हारी लंड चुसना चाहती हूँ ।"

तब मम्मी ने अपनी पैरोँ के बीच इशारा करते हुए कहा-
"नीचे और भी मज़ा आएगा, यहां तो केवल तिजोरी का दरवाजा था, असली खजाना तो नीचे है ।"

बिमला आंटी धीरे से खिसक कर मम्मी के पैरोँ पास आ गयी । मम्मी ने अपने पैरोँ को घुटनोँ के पास से मोड कर फैला दिया और बोली-
"यहां, बीच में, दोनोँ पैर के बीच में आ के बैठो तब ठीक से देख पाओगी अपनी बहू की खजाना । बिमला उठ कर मम्मी की दोनोँ गदराए जांघोँ के बीच घुटनोँ के बाल बैठ गयी और आगे की और झुकी ।

सामने मेरे वो चीज़ थी जिसको देखने के लिए मैं मारा जा रहा था । और अपने लंड को मुठियाते हुए मैँने फिर से अंदर झांका ।

मम्मी ने अपनी दोनोँ जांघेँ फैला दी और अपने हाथोँ को अपने लंड के उपर रख कर बोली-
"लो देख लो अपना मालपुआ"

मेरी खुशी का तो ठिकाना ऩहीँ था । सामने मम्मी की खुली जांघोँ के बीच झांटोँ का एक त्रिकोना सा बना हुआ था । इस त्रिकोने झांटोँ के जंगल के बीच में से मम्मी की फूली हुई लम्बा लंड तन रहा था । बिमला ने अपने कांपते हाथोँ को मम्मी की चिकने गुदाज जांघों पर रख दिया और थोरा सा झुक गयी । मम्मी कि लंड के बाल बहुत बडे-बडे ऩहीँ थे, घुंघराले बाल और उनके बीच एक खम्बा जैसा बाहर निकली हुई थी मम्मी की लंड । बिमला आंटी ने अपने दाहिने हाथ को जांघ पर से उठा कर हकलाते हुए पुछा-"बहू मैं इसे छु लूं......."

"छुं लो, तुम्हारे छुने के लिए ही तो खोल के बैठी हूं"

बिमला आंटी ने अपने हाथोँ को मम्मी की लंड के उपर रख दिया । मम्मी के झांटेँ एकदम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे । .. हल्के हल्के बिमला उन बालोँ पर हाथ फिराते हुए उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रही थी । अब मम्मी की लम्बा और मोटा लंड और स्पस्ट रूप से दिख रहे थे । मम्मी की लंड एक फूली हुई और रॉड जैसा लग रहा था । मम्मी की मोटी लंड और अंडोँ के चारोँ और काले बाल बहुत आकर्षक लग रही थी । बिमला से रहा ऩहीँ गया और व बोल पडी -
"ओह बहू ये तो सच मुच में रॉड के जैसा फूला हुआ है ।"

"हां भाभी यही तो अब मेरी असली हथियार है आज के बाद जब भी चुदवाने का मन करे मुझे अपने पास बुला लना ।"

"हां बहू मैं तो हमेशा यही लंड लुंगी, ओह बहू देखो ना इससे तो रस भी निकल रहा है ।"

मम्मी की लंड अब धिरे-धिरे फुलने लगा था । जब बिमला आंटी ने मम्मी के तन रहे लंड को छुआ तो उसकी हाथो में चिप छिपा सा रस लग गया । बिमला ने उस रस को वहीँ बिस्तर के चादर पर पोछ दिया और अपने सिर को आगे बढ़ा कर मम्मी की लंड को चूम लिया । मम्मी ने इस पर बिमला आंटी के सिर को अपनी लंड पर दबाती हुई हल्के से सिसकती हुई कही-
"बिस्तर पर क्यों पोछ दिया भाभी, यही मेरी असली प्यार जो की तुम्हारी बुर को देख के मेरी लंड के रास्ते छलक कर बाहर आ रही है, इसको चुस के देखो, चूस लो इसके । हां भाभी चुसो ना चुस लो अपनी बहू की लंड को, सुपाडा को खोल के अपनी जीभ फिराओ और चूसो, और ध्यान से देखौ तुम तो लंड के केवल चमडी को देख रही हो, देखो मैं तुम्हेँ दिखाती हूं ।"

और मम्मी ने अपनी लंड के चमडी को पूरा निचे खिसका दिया और लाल सुपाडी पर अंगुली रख कर बताने लगी-
"देखो ये जो छोटा वाला छेद है ना व मेरी पेशाब करने वाला छेद है और लंड के इसी छेद में से विर्य भी निकालता और ये औरत को गर्म भी करता है, समझ में आया ।"

"हां बहू, आ गया समझ में कि कितनी सुंदर लग रही है ये लंड तुम्हारी शरीर मेँ, मैं चाटुं इसे बहू ।"

"हां भाभी, अब तुम चाटना शुरू कर दो, पहले पूरी लंड के उपर अपनी जीभ को फिरा के चाटो फिर मैं आगे बताती जाती हूं कैसे करना है ।"

बिमला आंटी ने अपनी जीभ निकल ली और मम्मी की लंड पर अपने ज़ुबान को फिराना शुरू कर दिया, पूरी लंड के उपर उसकी जीभ चला रही थी और मम्मी की फूली हुई लंड को अपनी खुरदरी ज़बान से उपर से नीचे तक चाट रही थी । अपनी जीभ को मम्मी के सुपाडे के उपर फेरते हुए आंटि ठीक सुपाडे के दरार पर अपनी जीभ रखी और धीरे-धीरे उपर से नीचे तक पूरे लंड को चाटने लगी । बिमला आंटी की जीभ जब मम्मी की लंड की उपरी भाग में पहुच कर सुपाडी से टकराती थी तो मम्मी की सिसकियां और भी तेज हो जाती थी ।

मम्मी ने अपने दोनोँ हाथोँ से अपनी चुचियों को मसलती रही मगर बाद में उसने अपने हाथोँ को बिमला की सिर के पिछे लगा दिया और उसकी लम्बे बालोँ को सहलाते हुए सिर को अपनी लंड पर दबाने लगी । बिमला आंटी की लंड चुसना बदस्तूर जारी थी और अब उसे इस बात का अंदाज़ा हो गया था की मम्मी को सबसे ज़यादा मज़ा अपनी लंड की

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