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चौधराईन की दरबार (भाग-3)

by dimpii4u©

दोनों तेज कदमो से खलिहान की तरफ चल पडे । अन्दर पहुंचते पहुंचते थोड़ा बहुत तो भीग ही गये । माया देवी का
ब्लाउज और पंडिताईन की पेटीकोट दोनों पतले कपड़ों के थे । भीग कर बदन से ऐसे चिपक गये थे, जैसे दोनो उसी में पैदा हुए हो । तभी पंडिताईन उन्हें तौलिया देती हुई धीरे से बोली -
“तौलिया लीजिए मालकीन, और जा कर मुंह हाथ अच्छी तरह से धो कर आ जाईए ।"

माया देवी चुप-चाप बाथरुम में घुस गयी और दरवाजा उसने खुला छोड़ दी थी । फिर कमोड पर खडी होकर पुरी पेटीकोट कमर तक समेट ली और लंड हाथ में थामें चर-चर मुतने के बाद हाथ पैर धो कर वापस कमरे में आयी, तो देखा की पंडिताईन बिस्तर पर बैठ अपने घुटनों को मोड़ बैठी थी । माया देवी ने हाथ पैर पोंछे और बिस्तर पर बैठती हुई पुछी -
“क्या हुआ…राजेश्वरी..... ?”

पंडिताईन चुप रही, माया देवी की समझ में आ गयी, फिर उसने आगे बढ़ अपनी एक हाथ पंडिताईन के पेट पर रख दिया और उसने छाती पर झुक कर अपनी लम्बी गरम जुबान बाहर निकाल कर, चूचियों को चाट लिया ।

इतनी देर से गीला ब्लाउज पहन ने के कारण पंडिताईन की चूचियाँ एकदम ठंडी हो चुकी थी । ठंडी चूचियों पर ब्लाउज के ऊपर चौधराईन की गरम जीभ जब सरसराती हुई धीरे से चली, तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। कसमसाती हुई अपने दोनों हाथों से माया देवी की स्तनों को जोर से मसलते हुए बोली-
“हाय... तो चूसूँ मालकिन !!?”

चूची चूसने की इस खुल्लम-खुल्ला आमन्त्रण ने चौधराईन की लन्ड को फनफना दिया, उत्तेजना अब
सीमा पार कर रही थी और माया देवी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली-
“ ले चू,,,,,,स…बहुत मीठा है…।"

राजेश्वरी ने अपनी बांई हथेली में उसकी एक चूची को कस लिया और जोर से दबा दिया, माया देवी के मुंह से
सिसकारी निकल गई-
“आह....चूसने के लिये बोला तो… !”

“दबा के देखने तो दो…चूसने लायक पके है,,,,, या,,,????”,

गरदन नीचे झुकाती हुई पंडिताईन ने अपना मुंह खोल भीगे ब्लाउज के ऊपर से चूची को निप्पल सहित अपने मुंह में भर लिया। हल्का सा दांत चुभाते हुए, इतनी जोर से चुसा की माया देवी के मुंह से आह भरी सिसकारी निकल गई। उसने एक चूची को अपने हाथ से दबाते हुए, दूसरी चूची पर मुंह मार मार के चूसने, चुमने लगी । माया देवी की मुंह से सिसकारियां निकलने लगी, उसने अपनी जांघो को भींचते हुए , राजेश्वरी की सर को अपनी चूचियों पर भींच लिया । गीले ब्लाउज के ऊपर से निप्पल एकदम खड़े हो चुके थे और उनको अपने होठों के बीच दबा कर खींचते हुए, जब राजेश्वरी ने चुसी तो माया देवी छटपटा गई ।
राजेश्वर की सिर को और जोर से अपने सीने पर भींचती सिसयायी-
“इससस्स्स्,,,,,, उफफफ्फ्,,,,धीरे… आराम से, आम चु…स…।”

थोड़ी ही देर में चौधराईन की उत्तेजना काबू के बाहर होने लगी और व राजेश्वरी की गदरायी जिस्म पर जॅहा तॅहा मुंह मारने लगी । उसने चौधराईन के बगल में लेटते हुए उन्हें अपनी तरफ घुमा लिया, और उनके रस भरे होठों को अपने होठों में भर, नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए, अपनी बाहों के घेरे में कस जोर से चिपका लिया । दोनों के चुचीयां वापस मे रगड खा रहे थे । करीब पांच मिनट तक दोनों कामातुर महिला एक दूसरे से चिपके हुए, एक दूसरे के मुंह में जीभ ठेल-ठेल कर चुम्मा-चाटी करते रहे । जब दोनों अलग हुए तो हांफ रहे थे ।

दोनों अब बेशरम हो चुके थे । चौधराईन अपना एक हाथ चूचियों पर से हटा, नीचे जांघो पर ले गया और टटोलते हुए, अपने हाथ को जांघो के बीच डाल दिया । चूत पर पेटिकोट के ऊपर से हाथ लगते ही राजेश्वरी ने अपनी जांघो को भींचा, तो चौधराईन ने जबरदस्ती अपनी पूरी हथेली जांघो के बीच घुसा दी और चूत को मुठ्ठी में भर, पकड़ कर मसलते हुए बोली-
“अब तो अपना बिल दिखा ना,,,,,!!!”

पूरी चूत को मसले जाने पर कसमसा गई पंडिताईन, उसने जोश में आ चौधराईन की गाल को अपने मुँह में भर लिया, और अपने हाथ को सरका, कमर के पास ले जाती पेटीकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की । हाथ नहीं घुसा, मगर चौधराईन की खड़े लण्ड पर हाथ पड़ते ही राजेश्वरी का बदन सिहर गया । गरम लोहे की राड की तरह तपते हुए लण्ड को मुठ्ठी में कसते ही, लगा जैसे चूत पनियाने लगी हो । मुँह से निकला –
"हाय मालकीन, कितना बडा है...... !”

चौधराईन की लण्ड को हथेली में कस कर, जकड़ मरोड़ती हुई बोली-
“ हाय मालकीन..जल्दी करो ! अब रहा नहीं जा रहा…।"

झट से बैठते हुए चौधराईन पेटिकोट के नाड़े को हाथ में पकड़ झटके के साथ खोलते हुए बोली-
“भगवान बेला का भला करे जिसने तेरी बुर की इतनी तारीफ़ की कि मैं ललचा गई।"
कहती हुई चौधराइन अपने भारी भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़ उठा, पेटिकोट को चूतड़ों से सरका और शानदार रेशमी मांसल जांघों से नीचे से ठेल निकाल दिया ।

इस काम में पंडिताईन ने भी उसकी मदद की और सरसराते हुए पेटिकोट को उसके पैरों से खींच एक तरफ फेंकी, तो कमरे की रोशनी में चौधराइन की दस इंच का तमतमाता हुआ लण्ड देख पंडिताईन को झुरझुरी आ
गई । उठ कर बैठते हुए, हाथ बढ़ा उनकी लण्ड को फिर से पकड़ लिया और चमड़ी खींच उसके पहाड़ी आलु जैसे लाल सुपाड़े को देखती बोली-
“हाय,,,,,,,बेला ठीक बोलती थी आपकी लन्ड तो वाकई बहुत बड़ा,,,,,है…मेरी…तो फ़ाड़ ही देगा........।"

चौधराइन लेट गई, और अपनी दोनो टांगो को घुटनो के पास से मोड़ कर फैला दिया । दोनों अघेड औरतें अब जबर्दस्त उत्तेजना में थे । दोनो में से कोई भी अब रुकना नही चाह रहा था ।

कमरे की ट्यूबलाइट की रोशनी में चौधराइन के भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़, शानदार चमचमाती रेशमी
मांसल जांघों के बिच आधे तनी मूषल लन्ड दख पंडिताईन की आंखें एक बार तो चौंधियागयी .....फ़िर फ़टी की फ़टी रह गईं।

राजेश्वरी ने चौधराईन की चमचमाती जांघो को अपने हाथ से पकड़, थोड़ा और फैलायी और उसके ऊपर
हपक के मुँह मारकर चुमते हुए, फ़िर उसकी झाँटदार लन्ड के ऊपर एक जोरदार चुम्मा लिया, और लन्ड की चमडी को निचे सरका कर लाल सुपाडी की छेद में जीभ चलाते हुए, अंडकोष को झाँटों सहित मुठ्ठी में भर कर खींचा, तो चौधराइन लहरा गई और सिसयाती हुई बोली-
“इसस्स्,,,!! क्या कर रही है…???”

राजेश्वरी ने चौधराईन की लन्ड पकड लिया । अब वो उनकी लन्ड से खेल रही थी । चौधराईन की लन्ड फ़ूल कर मोटा और कडक हो गया था । उसने सुपाडे की चमडी खींच कर उसे खोल दिया । अब वो उसे उपर नीचे कर रही थी । चौधराईन को मीठी मीठी तेज गुदगुदी होने लगी । चौधराईन उसका हाथ पकड़ना चाहा तो उसने प्यार से उनकी हाथ हटा दिया और उनकी लन्ड को पकड़ कर मुठ मारने लगी । चौधराईन की सारे शरीर में सनसनाहट होने लगी, व अपनी चुचीयों को मसलते हुए बोली- "पंडिताईन…… हाय……… मजा आ रहा है … और मुठ मार …… हाय……आज तो बस ऐसे ही मेरा रस निकाल दे……।"

पंडिताईन ने माया देवी की लन्ड को मुठ मारते मारते अपने मुंह में सुपाडा ले लिया । उत्तेजना में चौधराईन को सब अच्छा लग रहा था। उसके हाथ चौधराईन की लन्ड पर और तेज चलने लगे… मुंह से लन्ड चूसने की मधुर आवाजें आ रही थी, मुठ मारती जा रही थी… ।

तभी पंडिताईन लन्ड मुंह निकाल फिर माया देवी के पैरो के बीच में आ गई । चौधराईन चित लेटी थी । राजेश्वरी के खुले बाल चौधराईन की पेट और जाँघों पर गुदगुदी कर रहे थे और व चौधराईन की लंड को गप्प से पूरा अन्दर लेकर चूसने लगी । मस्ती में चौधराईन अपनी भारी चुतड उछाल रही थी ।

कभी राजेश्वरी चौधराईन की लंड को पूरा बाहर निकाल देती और उस पर जीभ फिराती कभी पूरा मुंह में ले लेती ।
कभी वो सुपाड़े को दांतों से दबाती और फिर उसे चूसने लगती । कभी व चौधराईन की लंड को अपने मुंह से बाहर निकाल कर उनकी अन्डकोशों को अपने मुंह में ले लेती और उन्हें चूम लेती और फिर दोनों अण्डों को पूरा मुंह में लेकर चूसने लगती । साथ में चौधराईन की लंड पर हाथ ऊपर नीचे फिराती । चौधराईन की आनंद का पारावार ही नहीं था ।

पता नहीं इस चूसा चुसाई में कितना समय बीत गया। माया देवी भला कितनी देर ठहरती । उन्होंने पंडिताईन को कहा कि मैं अब जाने वाली हूँ तो वो एक ओर हट गई । चौधराईन कुछ समझी नहीं । पंडिताईन झट से चित
लेट गई और माया देवी की लंड को अपने मुंह की ओर खींचने लगी । चौधराईन उकडू होकर उसकी मुंह के
ऊपर आ गयी । चौधराईन की भारी नितम्ब अब राजेश्वरी की स्तन पर थे और उसकी नाजुक उरोजों को दबा रहे थे । चौधराईन राजेश्वरी के बालों को पकड़ लिया और और उसके सिर को दबाते हुए अपना लंड उसके मुंह में ठेलने की कोशिश करने लगी । चौधराईन की लंड उसके गले तक जा पंहुचा था ।

उसने चौधराईन की लंड को अपने मुंह में समायोजित कर कर लिया और खूब जोर-जोर से उनकी आधे से अधिक लंड को अपने मुंह में भर कर अन्डकोशों की गोलियों के साथ खेलते हुए चूसने लगी। पंडिताईन कभी उन्हें सहलाती और कभी जोर से भींच देती। चौधराईन की मुंह से सीत्कार निकलने लगी थी-
"ऊईइ … मेरी जा… आ… न… मेरी रानी…. ईईइ.... और जोर से चूसो और जोर से ओईइ….. या आ …… ।"
और लन्ड को पंडिताईन के मुँह में लगातार पेल रही थी । जब उन्हें लगी कि ऐसे ही पेलती रही तो उनकी पानी निकल जायेगी ।

झटके से चौधराईन अपनी लन्ड बाहर निकल राजेश्वरी को बिस्तर पे चित लिटा दिया और उसकी मोटी जांघों के बीच बैठा कर पंडिताईन कि दोनों टाँगों को थोड़ा फैला दिया और अपनी जीभ दे दी उसकी चूत में । अपनी जीभ से
उसकी चूत के दाने को रगड़ने लगी । चूत के दाने पर चौधराईन कि जीभ के लगते ही सिसकारियों कि बाढ़
आई । चौधराईन कि जीभ उसकी चूत में जाकर उसको पागल कर दी ।
"मालकीन....ओह्ह्ह . उफ्फ्फ्फ्फ्फ....चाटो चूसो.. मेरी चूत....चाटो इसे अपनी जीभ से.....अह्ह्ह . उफ्फ्फ . रगड़ों . मेरे रज. चूसो उफ्फूओ आह हाइ.... हाअन येआ... येअह..... ये...... अह चाट जाओ मुझे ।"

ऐसी सिसकारीयां लेती हुई पंडिताईन अपनी चूत को ठेलते हुए चौधराईन को जमीन पर सुला दिया और उसके मुँह पर अपनी चूत रगड़ने लगी । अपनी चूत को जोर जोर से चौधराईन की मुँह पर रगड़ रगड़ कर बोली-
"खा जाओ मेरी चूत को आअह्ह्ह्ह्ह
....आआअह्ह्ह्ह .....पीईईई...... जाआआअओ.... मेरी चू...ऊ....त का....अ....रस ।"

लेकिन चौधराईन ने उसकी चूत को चूसना चालू रख । पंडिताईन ने बड़ी अदा से अपने दोनों घुटने चौधराईन की सिर के दोनों ओर कर दिए और अपना मुंह उनकी लंड के ठीक ऊपर कर लिया । चौधराईन की मोटी-मोटी संगेमरमर जैसी कसी हुई जाँघों को कस कर पकड़ लिया और नीचे से ऊपर अपनी जीभ फिराई गांड के सुनहरे छेद तक और फिर ऊपर से नीचे तक।

चौधराईन की लन्ड तो किसी चाबी वाले खिलौने की तरह उछल रहा था । उसने तो प्री-कम के टुपके छोड़ने शुरू कर दिए थे । पंडिताईन ने पहले चौधराईन की लंड को अपने हाथ से पकड़ा और फिर अदा से अपने सिर के बालों को एक झटका दिया । बाल एक ओर हो गए तो उन्होंने सुपाड़े पर आये प्री- कम पर अपनी जीभ टिकाई चाट लिया । फिर अपनी जीभ सुपाड़े पर फिराई लंड के ऊपर से नीचे तक । फिर जब उसने चौधराईन की अन्डकोषों को चाटा तो चौधराईन भी उनकी गांड के सुनहरे छेद पर
अपनी जीभ की नोक लगा दी ।

अब चौधराईन की जीभ राजेश्वरी की चूत को कुरेदने लगी और उसकी मुख से आनन्द भरी सिसकारियाँ फ़ूटने लगी। पंडिताईन की गाण्ड की छेद माया देवी की आँखों के सामने था । गांड का छेद तो कभी खुल रहा था कभी बंद हो रहा था। चौधराईन ने गांड को थूक से उसे तर कर दिया था। उन्होने अपनी एक अंगूठे पर थूक लगा कर गच्च से पंडिताईन की गांड के छेद में डाल दिया ।

"ऊईइ माँ….. " कहते हुए पंडिताईन ने माया देवी की दोनों अन्डकोशों को अपने मुंह में भर लिया । फिर उन्होंने उन गोलियों को मुंह के अन्दर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया। माया देवी की लंड का बुरा हाल था उनका का सारा शरीर ही रोमांच से कांपने लगा था । पंडिताईन ने माया दोवी की लंड को मुंह में भर लिया और लोलीपोप की तरह चूसने लगी । चौधराईन भी अपनी जीभ से उनकी चूत की फांकों को चौड़ा किया और जीभ फिराई ।
पंडिताईन की हालत तो पहले से ही ख़राब थी ।
उसने कहा-
"ओह मालकीन…. जोर से चूसो… ओह… मैं तो गई। ऊईई… माँ …………।"

अब चूत कि चुसाई पंडिताईन को और सहन नहीं हो रही थी तो बोली-
"क्यों तड़पा रहे हो मालकीन चलो अब चोदो मुझे । अपने लन्ड को मेरी चूत में डाल कर जोर-जोर के धक्के मारो....अब दाल भी दो ।"

चौधराईन भी अब खुद चोदने के लिए बेसब्र हो चुकी थी ।
लन्ड में जीभ चलने पर मजा तो आया था मगर लण्ड, बुर में लेने की जल्दी थी। जल्दी से राजेश्वरी के सिर को पीछे धकेला और फिर राजेश्वरी की पनियायी चूत की दरार पर उँगली चला उसका पानी लेकर, चौधराईन अपनी लण्ड की चमड़ी खींच, सुपाड़े की मुन्डी पर लगा कर चमचमाते सुपाड़े को राजेश्वरी को दिखाती बोली-
“देख मेरी लन्ड..... तेरी छेद पर...।"

“हां…जल्दी से…। मेरे छेद में…।“

चौधराईन अपनी मूषल लण्ड के सुपाड़े को उसकी चूत के छेद पर लगा, पूरी दरार पर ऊपर से नीचे तक चला,
बुर के होठों पर लण्ड रगड़ते हुए बोली-
“हाय,,, पेल दुं,,,,पूरा…???”

“हां,,,!! मालकीन…चोद बन जाओ…”

“फ़ड़वाये,,गी..???” हाय,,,फ़ाड़ दूँ”

“बकचोदी छोड़,,,,, फ़ड़वाने के,,,,,लिये तो,,,,,खोल के,,,,नीचे लेटी हूँ…!! जल्दी कर......", वासना के अतिरेक से कांपती झुंझुलाहट से भरी आवाज में राजेश्वरी बोली ।

लण्ड के लाल सुपाड़े को चूत के गुलाबी झांठदार छेद पर लगा, चौधराईन ने उभरी चौडी चुतड उछाल के एक धक्का मारी । सुपाड़ा सहित चार इंच लण्ड चूत के कसमसाते छेद की दिवारों को कुचलता हुआ घुस गया । हाथ आगे बढ़ा, चौधराईन के सिर के बालो में हाथ फेरती हुई, उसको अपने से चिपका, भराई आवाज में बोली-
“हाय,,,, पूरा…डाल दो…“हाय,,,,, ,,,!!! …फ़ाड़…! मेरी मालकीन.... …शाबाश।"

चौधराईन ने अपनी कमर को थोड़ा ऊपर खींचते हुए, फिर से अपने लण्ड को सुपाड़े तक बाहर निकाल फुर से गांड उछाल धक्का मारी । इस बार का धक्का जोरदार था ।
पंडिताईन की चूतड़ों फट गई ।

“उईईई आआ,,,,,, शाबाश फ़ाड़ दी,,,,,, ,, आह…।”
करते हुए, अपने हाथों के नाखून चौधराईन की पीठ में गड़ा दिये।

“बहुत,,,,, टाईट…है…तेरा,,,,छेद…”
चूत के पानी में फिसलता हुआ, चौधराईन की पूरी लण्ड उसकी चूत की जड़ तक उतरता चला गया।

“बहुत बड़ा…है,,,,आपकी,,,,लन्ड…उफफफ्…। मेरे,,,,,,चुची चूसते हुए,,,,,चोदो ....शाबाश ।”

चौधराईन ने एक चूची को अपनी मुठ्ठी में जकड़ मसलते हुए, दूसरी चूची पर मुंह लगा कर चूसते हुए, धीरे-धीरे एक-
चौथाई लण्ड खींच कर धक्के लगाती पुछी-
“पेलवाती,,,, नही… थी…???”

“नही,,,। किस से पेलवाती,,,,,,?”

“क्यों,,,,?…पंडित…!!!।”

“उसका मूड…बहुत कम… कभी-कभी ही बनता है।”

“दूसरा…कोई…”

ये सुनकर पंडिताईन ताव में आकर झल्लाते हुए चार-पांच तगडे धक्के नीचे से लगा दी । तगडे धक्को ने चौधराइन को पूरा हिला दिया। चूचियाँ थिरक उठीं । मोटी जांघो में दलकन पैदा हो गई । लन्ड में थोड़ा दर्द हुआ, मगर मजा भी आया, क्योंकि चूत पूरी तरह से पनिया गई थी और लण्ड गच-गच फिसलता हुआ अन्दर- बाहर हुआ था । अपने पैरों को चौधराईन की उभरी हुई भारी चुतडों के उपर कमर से लपेट उनको भींचती सिसयाती हुई बोली-
“उफफफ्,,,,,,,, सीईई दुखा दिया आरम,,....।”

चौधराईन कुछ नही बोली । लण्ड अब चुंकी आराम से फिसलता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था, इसलिये व पंडिताईन कि टाईट, गद्देदार, रसिली चूत का रस अपने लण्ड की पाईप से चूसते हुए, गचा-गच धक्केलगा रही थी । राजेश्वरी को भी अब पूरा मजा आ रहा था । चौधराईन की तग़डी लण्ड सीधा उसकी चूत के अखिरी किनारे तक पहुंच कर ठोकर मार रहा था । धीरे-धीरे चूतड़ों उंचकाते हुए सिसयाती हुई बोली-
“बोलोना,,,,,तो, जो बोल…रही…”

“मैं तो…बोल रही थी,,,,,, की अच्छा हुआ…जो किसी और से…नही… करवाया …नही तो,,,,,,,,मुझे…तेरी
टाईट…छेद की जगह…ढीला…छेद में लन्ड डालनी पडती ।”- राजेश्वरी की चुत पर धक्के तेज करती हुई चौधराईन बोली।

“हाय…आपको,,,,छेद की…पड़ी है…इस बात की नही, की मैं दूसरे आदमी .....।"

“हाय,,,, अब…आदमीयों को छोड़…अब तो बस तेरी… ही…सीईईइ.....उफफ्… बहुत मजेदार छेद है…”,
गपा-गप लण्ड पेलता हुई चौधराईन सिसयाते हुई बोली ।

अब चौधराईन की लण्ड राजेश्वरी की बुर की दिवारों को बुरी तरह से कुचलता हुआ, अन्दर घुसते समय चूत के धधकते छेद को पूरा चौड़ा कर देता था, और फिर जब बाहर निकलता था तो चूत के मोटे होठ और पुत्तियां अपने आप करीब आ छेद को फिर से छोटा बना देती थी । मोटी जाँघों और बड़े होठों वाली, फ़ूली पावरोटी सी
गुदाज चूत होने का यही फायदा था । हंमेशा गद्देदार और टाईट रहती थी, ये बात चौधराईन को भली-भांती मालुम थी और खास इसी वजह से ही तो उनकी नजर पंडिताईन की भारी गठीले वदन पर थी ।

राजेश्वरी ने भी चौधराईन की उरोजों को मसलते हुए निपलों को मुंह में भर चुसने लगी । राजेश्वरी के रसीले होठों को चूसते हुए, नीचे के होठों में लण्ड धंसाते हुए चौधराईन तेजी से अपनी उभरी चूतड़ों उछाल कर उसके
ऊपर कुद रही थी ।

“हाय,,,मालकीन... आपकी लन्ड भी…!! बहुत मजेदार…है, मैंने आजतक इतना लम्बा..और मोटा लन्ड …सीसीसीईईईईईईई…हाय डालती रहो…। ऐसे ही…उफफ्…पहले दर्द किया,,,,,मगर…अब…। आराम
से…। हाय…। अब फ़ाड़ दो…। सीईईईई…पूरा डाल… कर…। हायमादर,,,,,चोद…बहुत पानी फेंक रही…
है मेरी …चु…त...।”

नीचे से चूतड़ों उछालती, चौधराईन की चौडी उभरी गांड को दोनो हाथों से पकड़ अपनी चूत के ऊपर दबाती, गप गप लण्ड खा रही थी राजेश्वरी ।

कमरे में बारिश की आवाज के साथ पंडिपाईन की चूत की पानी में फच-फच करते हुए चौधराईन की लण्ड के अन्दर-बाहर होने की आवाज भी गुंज रही थी । इस सुहाने मौसम में खलिहान के विराने में दोनो चोदाई का मजा लूट रहे थे ।

कहाँ चौधराईन अपनी गुप्त रहस्य पकड़े जाने पर अफसोस मना रही थी वहीं अभी खुशी से अपनी भारी चूतड़ों कुदाते हुए, अपनी पंडिताईन की टाईट पावरोटी जैसी फुली चूत में लण्ड पेल रही थी । उधर पंडिताईन जो सोच रही थी की मालकीन आखिर मर्द बनी कैसी ! ईतना ब़ा लन्ड ... अब नंगी अपने चौधराईन के नीचे लेट कर, उनकी तीन इंच मोटे और दस इंच लम्बे लण्ड को कच-कच खाते हुए खुशियां मना रही थी ।

“हाय,,,, बहुत…। मजेदार है, तेरी चुची..... तेरी ...छेद…उफफ्…हाय,,,, अब तो…हाय,,,, मजा आ रहा है,
इस चौधराईन की लन्ड बुर में घुसवाने में ???…। सीएएएएएए…। हाय, पहले ही बता दिया होता …तेरी सिकुड़ी चूत फ़ाड़ के भोसड़ा बना देती …सीईईईई ले अपनी मालकीन की…। लण्ड.... हाय…बहुत मजा,, हाय,,…तूने तो खेल-खेल कर इतना… तड़पा दिया है…अब बरदाश्त नहीं हो रहा…मेरी तो निकल जायेगी
……सीईईईईई… तेरी … चु…तमें,,,....,???।," सिसयाते हुए चौधराईन बोली ।

नीचे से धक्का मारती, धका-धक लण्ड लेती, राजेश्वरी भी अब चरम-सीमा पर पहुंच चुकी थी । चूतड़ों को
उछालती हुई, अपनी टांगो को चौधराईन की कमर पर कस ली और उनकी उभारों को मसलती हुई चिल्लाई-
”मार,,,,,मार ना,,,, … चौधराईन..... हाय… सीईईईई,,,, अपने घोड़े जैसे लण्ड से,,,…मार… मेरी…चूत…फ़ाड़ दे…। हाय,,, …मालकीन, मेरा भी अब झड़ेगा…पूरा लण्ड…डाल के चोद दो …मेरी चूत…। पेल दो... । चौधराइन की लण्ड चोद्द्द्द्…मेरी चूऊत में…।”
यही सब बकते हुए उसने चौधराइन को अपनी बाहों में कस कर उनकी चुचीयों पर मुंह रगडने लगी ।

अब चौधराईन ने पूछा-
"मज़ा आ रहा है राजो....?

"कभी-कभी आ रहा है, जब व अन्दर टकरा रहा है !" पंडिताईन ने कहा ।

चौधराईन का पूरा लण्ड अन्दर जाते गर्भाशय से टकराता और बाहर दाने पर दबाव पड़ते ही राजेश्वरी की मुँह से स्स्सीईईईईई.हा....आआ निकल जाता । हर धक्के के साथ उसकी चूत से हवा भी बाहर निकलने के कारण पर ररररर की आवाज भी निकलने लगी । लगातार आधा घन्टे की चोदाई में इतना जबरदस्त मज़ा आने के बाद भी चौधराईन झड़ी नहीं ।

तभी चौधराईन राजेश्वरी को बेड से उतारकर बेड की साइड में रखे एक बड़े से लोहे के बक्से के सहारे आधा झुकाकर खड़ा किया । उसकी एक पैर उठाकर बेड पर रखा और उसके पीछे से उसकी टांगों के नीचे आकर पहले तो चौधराईन आठ-दस बार राजेशेवरी की चूत को चाटा......। फ़िर उसके पीछे खड़ी होकर माया देवी ने पंडिताईन की चूत में आधा लण्ड घुसेड़ कर उसकी दोनों चूचियों को पकड़ते हुये बाकी का आधा लण्ड अन्दर किया और इसी तरह पांच सात मिनट तक चोदने के बाद उन्होने पंडिताईन को और झुकाकर उसकी कमर पकड़कर सटासट सटासट चोदने लगी ।

चौधराईन की भारी उभरी चुतड हवा में उछल रहा था । जैसे ही चौधराईन की लण्ड उसकी चूत से बाहर आता..इससे पहले कि व धक्का मारकर अन्दर करती...मदहोशी में पंडिताईन ही पीछे को धक्के मारकर स्स्सीईईईई ह... ... आ.... करते हुये अन्दर लेने लगी । चौधराईन झड़ने
वाली थी.... उनका एक हाथ अपने आप उसकी उभारों पर गया और पकड़कर मसलती और पीछे से चुत पर धक्का मारती.... ।

उसकी चूत ने पानी फेंकना शुरु कर दिया था । तभी चौधराइन ने भी हवा में जोर-जोर अपनी उभरी गांड उछाली और तेजी से राजेश्वरी की बुर में लन्ड अंदर-बाहर करने लगी । राजेश्वरी ने भी नीचे से पुरा साथ दे रही थी । इतने में चौधराइन ने एक जोरदार धक्का लगाई और पंडिताईन की बुर में जड तक लन्ड पेल कर झडने लगी । चौधराइन की लण्ड से तेज फौवारे के साथ पानी निकलना शुरु हो गया था ।

चरम आनंद में दोनों निढाल होकर बिस्तर पर लुढक गईं । चौधराइन के होठों राजेश्वरी के होंठ से चिपके हुए थे, दोनो का पूरा बदन अकड़ गया था । दोनो आपस में ऐसे चिपक गये थे की तिल रखने की जगह भी नही थी। पसीने से लथ-पथ गहरी सांस लेते हुए। जब चौधराइन की लण्ड का पानी राजेश्वरी की चूत में गिरा, तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी बरसों की प्यास बुझ गई हो ।

तपते रेगीस्तान पर चौधराइन की लण्ड बारिश कर रहा था और बहुत ज्यादा कर रहा था, आखिर उसने अपनी
पंडित की धर्मपत्नी की रसीली बुर को चोद ही डाली । करीब आधे घन्टे तक दोनो महिलाएं एक दूसरे से चिपके, बेसुध हो कर वैसे ही नंगे लेटे रहे । राजेश्वरी अब चौधराइन बगल में लेटी हुई थी । चौधराइन आंखे बन्द किये टांगे फैलाये बेसुध लेटी हुई थी, ।

आधे घन्टे बाद जब पंडिताईन को होश आया, तो खुद को नंगी लेटी देख हडबड़ा कर उठ गई । बाहर बारिश अपने पूरे शबाब पर थी। बगल में चौधराइन भी नंगी लेटी हुई थी । चौधराइन की लटकी हुई बडा लण्ड और उसका लाल सुपाड़ा, उसके मन में फिर से गुद-गुदी पैदा कर गया और हाथ बढा कर चौधराइन की मुरझे हुए लन्ड को मुठ्ठी में भर कर हिलाने लगी ।

लन्ड पर दबाव पडने पर चौधराइन की आंखें खुल गई । पंडिताईन को लन्ड मसलते देख चौधराइन मन ही मन बोली लो पंडित सदानन्द आज मैंने तेरे पत्नी की टाईट चुत को भी निबटा दी , देख बारिश भी हमारी चुदाई की खुशी मना रही आज से गाँव के पण्डिताईन भी मेरी लन्ड से बंधे गई । मन ही मन ऐसी ऊल जलूल बातें सोचती मुस्कुराती चौधराइन ने आहिस्ते से राजेश्वरी की हाथ से अपनी लन्ड छुडा कर बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउज को फिर से पहन लिया और राजेश्वरी की नंगी चुत के ऊपर पेटीकोट डाल दी ।

जैसे ही चौधराइन फिर से लेटने को हुई की राजेश्वरी अपने ऊपर रखी पेटीकोट को ठीक से पहन ली । थोड़ी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोली पर, फिर पंडिताईन धीरे से सरक कर माया देवी की ओर घुम गयी, और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे-धीरे हाथ चला कर सहलाने लगी । फिर धीरे से बोली-
“कैसी हो चौधराइन ,,,,, ,,,,?

चौधराइन– "एक एक जोड़ दुख रहा है ।"

“इधर देखो ना…।”

माया देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घुम गई। राजेश्वरी उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए, धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नाड़े के साथ खेलने लगी । नाड़ा जहां पर बांधा जाता है, वहां पर पेटिकोट आम तौर पर थोड़ा सा फटा हुआ होता है । नाड़े से खेलते-खेलते पंडिताईन ने अपना हाथ धीरे से अन्दर सरकाकर
उनकी मुरझी लन्ड जो अभी घिरे-घिरे तन रही थी हाथ फ़ेर दिया, तो चौधराइन गुदगुदी होने पर उसके हाथ
को हटाती बोली-
“क्या करती है,,,,,? हाथ हटा…”

राजेश्वरी ने हाथ वहां से हटा, कमर पर रख दी और थोड़ा और उपर सरका कर उभारों को मसलते हुए उनकी आंखो में झांकते हुए बोली-
“,,,,,,मजा आया…!!!???”

झेंप से चौधराइन का चेहरा लाल हो गया ... और बोली-

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