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चौधराईन की दरबार (भाग-2)

by dimpii4u©

चौधराईन जब उन्हें भेजकर उठी तो उनके बदन का जोड़ जोड़ चुदायी की कसरत के मारे दर्द कर रहा था । रोजमर्रा के काम खत्म करते करते दोपहर हो गयी। दोपहर के खाने के बाद चौधराईन ने सोचा कि थोड़ा आराम करले क्योंकि बदन का जोड़ जोड़ टूट रहा था।
लेटते ही आँख लग गयी । चौधराईन करीब सात बजे तक सोती रहीं जब उठी तब भी बदन टूट रहा था । सोचा अब तो मालिश करवानी पड़ेगी । कमरे से बाहर आयीं नौकर को आवाज दी-
“बल्लू जा बेला मालिन को बुला ला बोलना मालकिन ने मालिश के लिए बुलाया है।”

बेला मालिन आयी और आंगन में खुलने वाले सारे दर्वाजे बन्द कर चौधराइन को धूप में बैठा आंगन में मालिश करवाने लगीं । बेला एक हरामिन थी । चौधराईन के लिए रोज चुत का बन्दोवस्त करती थी । जिस दिन कोई नहीं मिलती तो खुद ही माया देवी की लंड की हवस मिटाती थी....। उसकी नजरें चौधराइन की नजरों ताड़ रही थी और खूब पहचान रही थीं सो उसने फिर से बाते छेड़नी शुरु
कर दी-
“मालकिन अब क्या बोलु, पंडिताईन भी कम उस्ताद नहीं है !!!! ।"

बेला को घूरते हुए माया देवी ने पुछा-
“क्यों, क्या किया पंडिताईन ने तेरे साथ।”

“अरे मेरे साथ नहीं पर…।"

चौधराइन चौकन्नी हो गई-
“हाँ हाँ बोल ना क्या बोलना है”

“मालकिन अपने पंडिताईन ... एकदम मस्त .... माल...।"

“ऐसा कैसे बोल रही है तु”

“ऐसा इसलिये बोल रही हुं क्यों की, मैनी पंडिताईन को पेटीकोट में हाथ घुसेड़ चुत दबाते हुए देखा है।”

कहते हुए चौधराइन की दोनों टांगो को फैला कर उनके बीच
में बैठ गई । बेला ने मुस्कुराते हुए चौधराइन के पेटीकोट के ऊपर से उनकी मुरझे हुए लंड पर हाथ फ़ेरते हुए
कहा-
"अभी आपको मेरी बाते तो बकवास ही लगेगी मगर मालकिन सच बोलुं तो आपने अभी पंडिताईन की बुर
नहीं देखी ... क्या मस्त चुत है मालकीन, अधेड हो गई है पर चुत एकदम लौंडिया जैसी... एकदम कसा हुआ ।"

“दूर हट कुतिया, क्या बोल रही है बेशरम ।”

बेला ने चौधराइन की तन रही लंड के साथ बडा सा अंडकोष को पेटीकोट के उपर से दबाने लगी । चौधराइन ने
अपनी जांघो को और ज्यादा फैला दिया, बेला के पास अनुभव था अपने हाथों से मर्दों और औरतों के जिस्म में जादु जगाने का । माया देवी के मुंह से बार-बार
सिसकारियां फुटने लगी । बेला ने जब देखा मालकिन अब पूरे उबाल पर आ गई है तो फिर से बातों का सिलसिला शुरु कर दिया-
“मेरी बात मान लो मालकिन, कुछ जुगाड़ कर लो।”

“क्या मतलब है री तेरा”

“मतलब तो बड़ा सीधा सादा है मालकिन, आपकी लंड मांगती है चुत और आप हो की इस ......।"

“चुप साली, अब कोई उमर रही है उसकी, ये सब काम करवाने की, अब तो बुढिया हो गई है व ।”

“ आप क्या जानो गाँव के सारे जवान पंडिताईन को देख आहे भरते हैं ।"

“छी रण्डी कैसी कैसी बाते करती है! सदानन्द मेरे गाँव के हैं मैं भाई कहती हूँ उन्हें और उनकी पत्नी को.. ।"

“अरे छोड़िये मालकिन कौन से आपके सगे भाई हैं । मैं आपकी जगह होती तो सबसे पहले पंडिताईन को टाँगों के बीच लाती और जमकर चोदाई करती उसकी बुर में ।"

"क्या पागलों की तरह अनाप-सनाप बके जा रही है...।"

“हाय मालकिन पंडिताईन की टाईट चुत देख के तो मैं सब कुछ भुल जाती हुँ । आपकी तरह अगर मेरा भी लंड
होता तो कब का चोद देती उसकी दोनों छेद में.. हाय !”

इतनी देर से ये सब सुन-सुन के माया देवी के मन में भी उत्सुकता जाग उठी थी। बदन टूट रहा था। सोचा अब
तो जरूर लंड की मालिश करवानी ही पडेगी ।
चौधराईन चहकी-
“ ड्रेसिंग टेबिल पर तेल क्रीम व पाउडर रखे उन्हें उठा ला और अलमारी से एक बड़ा तौलिया निकाल के उधर आंगन के कोने में पडे उस गद्दे पर बिछा दे।”

बेला बोली-"बहुत अच्छा मालकिन।"

बेला ने वैसा ही किया । चौधराईन ने साड़ी उतार दी और खाली पेटीकोट ब्लाउज में आकर गद्दे पर बिछे तौलिये पर बैठ गयी और बोली-
"पहले मेरी कमर की मालिश कर दे।"

बेला दोनों हथेलियों में तेल लेकर पीठ की ओर बैठ गयी और गद्देदार चूतड़ों के ऊपर कमर पर दोनों हाथों से मालिश करने लगी । वो बार बार चौधराईन की कमर पर
हाथ फेरती हुई पेटीकोट के नारे से टकरा देती, चार-छ बार
ऐसा करने के बाद वो बोली-
“मालकिन इस तरह बार बार हाथ नारे से टकरा जाते हैं ठीक से मालिश करते नहीं बनता अगर नारा खोल दें तो ठीक से मालिश कर पाऊँगी ।”

चौधराईन समझ गयी और बोली-
“तू ही खोल दे ना।”

बेला ने नारा खोल दिया । पेटीकोट नीचे सरक गया था और चौधराईन के उभरे हुए गद्देदार चूतड़ आधे नंगे हो गए थे । उन्हें भी बेला बीच बीच में हाथों दबोच लेता था । थोड़ी देर में चौधराईन के मुंह से सिसकारियॉं छूटने लगी वो अपने ब्लाउज के बटन खोलते हुए बोली -
"अब थोड़ा पीठ पर मालिश कर ।"

बटन खोल के व पेट के बल बिस्तर लेट गयीं । लेटने में उनके उभरे हुए बड़े बड़े गुलाबी गद्देदार चूतड़ और भी नंगे
हो गए। इतने में चौधराईन पलटी और बेला उनकी दोनों मांसल टांगो के बीच में बैठ गयी और पैरों मालिस करना शुरू किया । मालिस करते-करते बेला अपनी चूंची और उभार देती थी, और देखा की चौधराईन की नज़र
उसकी चूंचियों पर ही थी । अब बेला अपना हाथ उनकी पेल्हड़ तक ले गयी और लंड के ऊपर जहाँ पर झांटे
उगती है वहां तक तेल लगा कर हाथ नीचे ले आई ।
चौधराईन होंठ दबाती हुई बोली-
"हाय.... बेला एक बार फिर वहीँ पर तेल लगा ...ना।"

"अरे मालकीन यह पेटीकोट हटा दो न तब तो अच्छी तरह तेल लगा दुंगी ।"

"बेला, तु ही हटा दे यार ।"

बस यह सुनकर बेला चौधराईन की पेटीकोट निकाल कर कोने में फेक दिया चौधराईन बिल्कुल नंगी हो गईं । बेला झट से चौधराईन की लंड पकड़ा और उस पर तेल की मालिस करने लगी । लंड के सुपाडे पर तेल डाला और उँगलियों से रगड़ने लगी फिर नीचे से ऊपर और ऊपर से
नीचे मलती रही । इससे चौधराईन की लंड चौगुना तनतना उठा । फिर बेला चौधराईन की लंड की चमडी नीचे की और लाल सुपाड़े को सहलाया ।

उसने बे-काबू होते लंड को पकड़ी और ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया । दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली पर थोड़ा सा तेल लगाकर धीरे से चौधराईन की भारी गांड के छेद पर लगा दी । पहले अपनी अंगुली उस छेद पर घुमाई फिर दो तीन बार थोड़ा सा अन्दर की ओर पेल दिया । चौधराईन अपनी गांड सिकोड़ ली फिर बेला की पूरी की पूरी अंगुली उनकी मांसल गांड के अन्दर बिना किसी रुकावट और दर्द के चली गई । चौधराईन तो अनोखे
रोमांच से जैसे भर उठी । दूसरे हाथ की नाज़ुक अँगुलियों से बेला चौधराईन की लंड की चमड़ी को ऊपर नीचे
करती जा रही थी ।

माया देवी तो बस आँखें बंद किये आनंद में सीत्कार किये जा रही थी । बेला ने अपना हाथ रोक लिया ।
"ओह … बेला, अबह रुक मत जोर -जोर से
कर… जल्दी …हईई ।... ओह …"

"क्यों मालकीन… मज़ा आया ना.. ?" बेला की आँखों में भी एक अनोखी चमक थी ।

"हाँ … बहुत मज़ा .....आ रहा है रुक मत !!!!! ।"

बेला फिर शुरु हो गई । चौधराईन की मूषल लंड तो झटके पर झटके खा रहा था । बेला ने अब ढेर सारा तेल लगा दी, चौधराईन की लंड को जैसे नहला ही दिया । अब एक हाथ से बेला ने चौधराईन की अंडकोष पकड़ लिए और दूसरे हाथ से लंड को मुठियाने लगी । माया देवी तो -
"आ … उन्ह … ओईईइ … करती मीठी सित्कारें मारने लगी और चुचीयों को मसलने लगी ।

बेला तेजी से हाथ चलाने लगी और चौधराईन की अंडकोष जल्दी-जल्दी हाथ से मसलते हुए लंड को ऊपर नीचे करने लगी । चौधराईन जोर से अपनी चौडी गांड
उछली और उसके साथ ही उनकी लंड से पिचकारी फूट गई । सारा वीर्य बेला के हाथों और जाँघों और उनकी पेट पर फ़ैल गया ।

कुछ देर तक आंख बंद किए माया देवी आराम से लेटी रही और फिर बेला से पूछा-
"तु जो कुछ भी मुझे बता रही है क्या व हो सकता हौ.. पंडिताईन मान जाएगी ?"

बला ने पास पडे तौलिए से उनकी लंड और अंडकोषों पर लगे वीर्य को साफ करती हुई बोली-
"हां मालकिन, एक बार आपकी लंड लेगी तो... फिर आपकी लंड की दिवानी बन जाएगी । ईनकार तो तब करती न जब पराई मर्द हो, आप थोडे न मर्द हो । आप तो हम सब की मालकीन हैं.... हमारी मां हैं .... फिर
आपकी औरती लंड से चुदने में भला कैसी बदनामी । एक औरत दुसरी औरत ती चोदाई करेगी । क्या उसे सन्तुष्टी देना आपकी जिम्मेदारी नहीं बनती ।”

चौधराइन कुछ सोचने सी लगी और उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया । चालाक बेला समझ गई कि लोहा गरम है
तो उसने आखरी चोट की-
“हाय मालकिन जब मैं रात में बिस्तर पर लेट, पंडिताईन की लाल चुत में घुसते आपके इस मूसल लंड की कल्पना करती हूँ तो मेरी चूत पनिया जाती है ।”

अब चौधराइन चौंकी उन्होंने बेला से पूछा-
"तेरी पनिया जाती है ! अच्छा एक बात बता तू मुझे ये सब करने के लिए क्यों उकसा रही है इसमें तेरा क्या फ़ायदा है !"

“पंडिताईन अगर आपके लंड के आकर्षण में फ़ंस यहाँ आने लगे तो कभी-कभी मुझे भी आप की जूठन मिल
जाया करेगी ।”

अपनी बात का असर होते देख बेला झोंक में बोल गई फ़िर सकपका के बात सम्हालने कि कोशिश करने लगी –
“मेरा मतलब है…………।"

तब तक चौधराइन ने हँसते हुए लात जमायी और बेला हँसते हुए वहाँ से भाग गई । पर बेला की बात थोड़ी बहुत
चौधराइन के भेजे में भी घुस गई थी । और शायद दिल के किसी कोने में पंडिताईन की चुत चोदने की उत्सुकता भी पैदा हो गई थी ।

चौधराइन कुछ देर तक सोचती रही कैसे सदानन्द की पत्नी को अपनी पकड़ में लाया जाये । प्यासी औरत
की खोपड़ी तो शैतानी थी ही । तरकीब सुझ गई। सबेरे उठ कर सीधी आम के बगीचे की ओर चल दीं ।

चौधराइन जानती थीं कि उनके जितने भी बगीचे हैं, सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मैंनेजर करते ही हैं, पर
अनदेखा करती थीं क्योंकि अन्य बड़े आदमियों कि तरह
वो भी सोचती थीं कि चौधरी की इतनी जमीन जायदाद है गरीब थोड़ा बहुत चुरा भी लेंगे तो कौन सा फ़रक पड़
जायेगा । आम के बगीचे में तो कोई झांकने भी नहीं जाता । जब फल पक जाते तभी चौधराइन एक बार चक्कर
लगाती थी।

मई महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था । बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मैंनेजर बैठा हुआ, दो लड़कियों
की टोकरियों में अधपके और कच्चे आम गिन-गिन कर रख रहे थे । चौधराइन एकदम से उसके सामने जा कर
खड़ी हो गयी । मैंनेजर हडबड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हो गया ।

“क्या हो रहा है, ?,,,ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो ।"

मैंनेजर की तो घिग्घी बन्ध गई, समझ में नही आ रहा था क्या बोले ।

“ऐसे ही हर रोज एक दो टोकरी बेच देते हो क्या,,,,,,,,,।"

“मालकिन,,,,मालकिन,,,वो तो ये बेचारी ऐसे ही,,,,,बड़ी गरीब बच्चीयां है. अचार बनाने के लिये मांग रही थी ,,।"
दोनो लड़कियां तब तक भाग चुकी थी।

“खूब अचार बना रहे हो ।"

मैंनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा । चौधराइन ने अपने पैर पीछे खींच लिए, और वहाँ ज्यादा बात न कर तेजी से घर आ गयीं । घर आ कर चौधराइन ने तुरन्त मैंनेजर और रखवाले को बुलवा भेजा, खूब झाड़ लगाई और बगीचे से
उनकी ड्युटी हटा दी और चौधरी को बोला कि उसने बगीचे से मैंनेजर और रखवाले की ड्युटी हटा दी है
। दीनू को रखवाली के लिये बगीचे में भेज दे और पंडित सदानन्द से आग्रह करके पंडिताईन राजेश्वरी देवी को दीनू और बाकी रखवालों की निगरानी करने के लिये भेज दें । नहीं तो खुद जाकर देखभाल करें ।

दोपहर को अपने सदानन्द भाई से उनकी पत्नी राजेश्वरी को बगीचे का काम देखने के लिए पूछी तो उनकी एहसानों के तले डूबे सदानन्द ने तुरन्त हाँ कर दी, कि पंडिताईन कुछ सीखेगी और उसका बोर होना भी खत्म हो जायेगी ।

आम के बगीचे में खलिहान के साथ जो मकान बना था वो वास्तव में चौधरी पहले की ऐशगाह थी । वहां वो रण्डियां नचवाता और मौज- मस्ती करता था । जब चौधराईन की नजर उस मकान पर पडी । चौधरी घबड़ाया कि ऐसे तो उसकी सारी आजादी खत्म हो जायेगी सो उसने दूसरे दिन सुबह सुबह ही सदानन्द के घर जा पंडिताईन को बड़े प्यार मनुहार से इस काम के लिये
राजी कर लिया और सब रखवालों को हिदायत कर
दी कि पंडिताईन के आदेश पर काम करें और पंडिताईन कहीं इनकार न कर दे इस डर से गाहे बगाहे आराम के लिये बगीचे वाले मकान की चाबी भी उन्हें दे दी ।

माया देवी कमरे में वापस आ कर, आंखो को बन्द कर बिस्तर पर लेट गई । पंडिताईन के बारे में सोचते ही उसके
दिमाग में एक नंग्धड़ंग औरत की तसवीर उभर आती थी । उसकी कल्पना में पंडिताईन एक नंगी औरत के रुप में नजर आ रहा था । शरीर में लंड आने के बाद व एकदम से औरतों के नंगी बदन की शौकीन बन गईं था । और अपनी ईस मर्दानी हवस को पुरा करने में बेला उन्हें भरपूर सहयोग दे रही थी ।

माया देवी बेचैनी से करवटे बदल रही थी । बेला ठीक कहती है पंडिताईन को फ़ाँस लेने से किसी को शक तक नहीं होगा, क्योंकि दो औरतों को भला कौन शक करेगा । अपना काम भी हो जायेगा और पंडिताईन की इज्जत भी बची रहेगी । इस तरह विचार कर चौधराइन ने पंडिताईन की शिकार करने का पक्का फ़ैसला कर लिया ।

फ़िर सोचने लगी, क्या सच में पंडिताईन की चुत मस्त है ?.. पर व एक जवान लडके की मां है, फिर भी दिखती एकदम जवान लौंडिया जैसी । पंडिताईन ती चूत की कल्पना कर उनकी लंड में एक सिहरन सी दौड़ गई, साथ ही साथ उसके गाल भी लाल हो गये । करीब घंटा भर व
बिस्तर पर वैसे ही लेटी हुई पंडिताईन की चुत और पिछली बार बेला की सुनाई चुदाई की कहानियों को याद करती, अपनी जांघों के मध्य लंड को भींचती करवटें बदलती रही ।

माया देवी ने सदानन्द के यहाँ नौकर भेज कर पंडिताईन को बुलवाया । पंडिताईन हड़बड़ाया सा वैसे ही चली आयी । माया देवी ने पंडिताईन को हड़बड़ाया हुआ देखा तो मन ही मन मुस्कुराई और पुछा, –
“आम के बगीचे पर नहीं जाना क्या आज। तू जाती भी है या योंही ।

“हाँ जाती हूँ मालकीन । अभी आपने बुलाया इसलिए बगैर कपड़े बदले जल्दी से चली आयी अभी घर जा के बदल लूँगी तब जाऊँगी ।”

“जब तू जाती है तो इतने आम कैसे चोरी हो रहे हैं ?” इसी तरह जमीन- जायदाद की देखभाल की जाती है ? तुझसे अकेले नहीं सम्हलती तो नौकरों की मदद ले लेती…।"

“नौकर ही तो सबसे ज्यादा चोरी करवाते हैं …सब चोर है । इसीलिए तो मैं वहां अकेली ही जाती हूँ ।”

माया देवी गम्भीरता से बोली-
“तो ये बात तूने मुझे पहले क्यों नही बताई…? कोई बात नही, मगर मुझे बता देती तो कोई भरोसे का आदमी साथ कर देती…।”

“अरे नहीं मालकीन, उसकी कोई जरुरत नहीं, मैं सब सम्भाल लूँगी ।”

कहते हुए पंडिताईन उठने लगी । माया देवी पंडिताईन की सुडौल भारी बदन को घूरती हुई बोली-
“ना ना, अकेले तो जाना ही नहीं है…। मैं चलती हूँ तेरे साथ… मैं देखती हुँ चोरों को ।”

“नहीं मालकीन, आप वहां क्या करने जाओगी ?… मुझे अभी कपड़े भी बदलने हैं । …मैं अकेला ही …।”

“नहीं, मैं भी चलती हुं और तेरे कपड़े ऐसे ही ठीक हैं । …बहुत टाईम हो गया… बहुत पहले गर्मीयों में कई बार
चौधरी साहिब के साथ वहां पर जाती थी यहाँ तक कि सोती भी थी… कई बार तो रात में ही हमने आम तोड़
के भी खाये थे…चल मैं चलती हूँ ।"

राजेश्वरी विरोध नही कर पायी ।
“ठहर जा, जरा टार्च तो ले लुं...।"

फिर माया देवी टार्च लेकर पंडिताईन के साथ निकल पड़ी । माया देवी ने अपनी साड़ी बदल ली थी, और अपने आप को संवार लिया था । चौधराईन ने पंडिताईन को नजर भर कर देखा एकदम बनी ठनी, बहुत खूबसुरत लग रही थी ।

दोनों बगीचे पर पहुंच कर खलिहान या मकान जो भी कहिये उसका दरवाजा ही खोला था, दोनों अंदर दाखिल हुए । अन्धेरा तो बहुत ज्यादा था, मगर फिर भी किसी बिजली के खम्भे की रोशनी बगीचे में आ रही थी।
चौधराइन ने देख लिया बाहर गेट पर दो औरतें टहल रही थी और चौधराइन माया देवी की आवाज गूँजी,
“कौन घुस रहा है बगीचे में,,,,,…?।”

पंडिताईन ने भी पलट कर देखा, इस से पहले की कुछ बोल पाती, कि चौधराइन की कड़कती आवाज इस बार पूरे बगीचे में गुंज गई,
“कौन है, रे ?!!!…ठहर. अभी बताती हूँ ।"

इसके साथ ही माया देवी ने दौड़ लगा दी ।
“ साली, आम चोर कुतिया,,,,,! ठहर वहीं पर…!।”

भागते-भागते एक डन्डा भी हाथ में उठा लिया था । दोनों औरतें बेतहाशा भागी । पीछे चौधराइन हाथ में डन्डा लिये गालियों की बौछार कर रही थी । दोनों जब बाउन्ड्री के गेट के बाहर भाग गई तो माया देवी रुक गई । गेट को ठीक से बन्द किया और वापस लौटी । पंडिताईन खलिहान के बाहर ही खड़ी थी ।

माया देवी की सांसे फुल रही थी । डन्डे को एक तरफ फेंक कर, अन्दर जा कर धम से बिस्तर पर बैठ गई और लम्बी-लम्बी सांसे लेते हुए बोली,-
“साली हरामजादियाँ,,,,,, देखो तो कितनी हिम्मत है !?? शाम होते ही आ गई चोरी करने !,,,,,अगर हाथ आ जाती तो सुअरनियों की चूतड़ों में डन्डा पेल देती…हरामखोर साली, तभी तो इस बगीचे से उतनी कमाई नहीं होती, जितनी पहले होती थी…। मादरचोदियां, अपनी चूत में आम भर-भर के ले जाती है… रण्डियों का चेहरा नहीं देख पाई…।”

पंडिताईन माया देवी के मुंह से ऐसी मोटी-मोटी भद्दी गालियों को सुन कर सन्न रह गयी । हालांकि व जानती थी कि चौधराइन कड़क स्वभाव की है, और नौकर चाकरो को गरि याती रहती है । मगर ऐसी गन्दी-गन्दी गालियां उसके मुंह से पहली बार सुनी थी, हिम्मत करके बोली-
“अरे मालकीन, छोड़ो ना आप भी… भगा तो दिया…अब मैं रोज इसी समय आया करूँगी ना , देखना इस बार
अच्छी कमाई…।"

“ना ना,,,,,ऐसे इनकी आदत नहीं छुटने वाली…जब तक पकड़ के इनकी चूत में मिर्ची ना डालोगे बेटा, तब तक ये सब भोसड़चोदीयां ऐसे ही चोरी करने आती रहेंगी…। माल किसी का, खा कोई और रहा है…।”

पंडिताईन ने कभी चौधराइन को ऐसे गालियां देते नहीं सुना था । बोल तो कुछ सकती नही थी, मगर जब गन्दी-
गन्दी बातजब माया देवी ने दो-चार और मोटी गालियां निकाली तो उनके इस छिनालपन को देख पंडिताईन की मन में वासना जाग उठी । फिर इस घबराहट को छुपाने के लिये जल्दी से बिस्तर पर चौधराइन के सामने बैठ गयी ।

माया देवी की सांसे अभी काफ़ी तेज चल रही थी, उसने साड़ी खोल एक ओर फेंक दिया, और फिर पेटिकोट को फिर से घुटने के थोड़ा ऊपर तक खींच कर बैठ गई, और खिड़की के तरफ मुंह घुमा कर बोली,-
“लगता है, आज बारिश होगी ।"

पंडिताईन कुछ नहीं बोली उसकी नजरे तो माया देवी की गोरी-गठीली पिन्डलियों का मुआयना कर रही थी । घुमती नजरे जांघो तक पहुंच गई और व उसी में खोयी रहती, अगर अचानक माया देवी ना बोल पड़ती,
“राजेश्वरी, आम खाओगी …!!?”

पंडिताईन ने चौंक कर हड़बडाते हुए तुरंत बोली-
"आम,,,,? कहाँ है, आम…? अभी कहाँ से…?”

“आम के बगीचे में बैठ कर…आम नहीं दिख रहे…!!!! बावला हो रही है क्या?” कह कर मुस्कुराई…...।

“पर, रात में,,,,,,आम !?”,

"चल बाहर चलते हैं।”,
कहती हुई, पंडिताईन को एक तरफ धकेलती बिस्तर से उतरने लगी ।

“क्या मालकीन आपको भी इतनी रात में क्या-क्या सूझ रहा है… इतनी रात में आम कहाँ दिखोगे !"

“ये टार्च है ना,,,,,,बारिश आने वाली है…नहीं तोड़ेंगे तो जितने भी पके हुए आम है, गिर कर खराब हो जायेंगे…।”

मजबुरन पंडिताईन भी अपनी साडी खोल केवल पेटीकोट में टार्च उठा कर बाहर की ओर चल दी और उसके पिछे चौधराईन । चौधराईन की ध्यान बराबर उसकी मटकती, गुदाज कमर और मांसल हिलते चूतड़ों की ओर चली गयी । एकदम गदराये-गठीले चूतड़, पेटिकोट के ऊपर से
देखने से लग रहा था की हाथ लगा कर अगर पकड़े, तो मोटे मांसल चूतड़ों को रगड़ने का मजा आ जायेगा । ऐसे ठोस चूतड़ की, उसके दोनों भागों को अलग करने के लिये
भी मेहनत करनी पड़ेगी । फिर उसके बीच चूतड़ों के बीच की नाली बस मजा आ जायेगा ।

पेटीकोट के अन्दर चौधराईन की लण्ड फनफाना रहा था । पंडिताईन की हिलते चूतड़ों को देखती हुई, पीछे चलते हुए आम के पेड़ों के बीच पहुंच गयी । वहां माया देवी फ्लेश-लाईट (टार्च) जला कर, ऊपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ों पर रोशनी डाल रही थी ।

“इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक-आध ही पके हुए दिख रहे…।”

“इस तरफ टार्च दिखाओ तो मालकीन इस पेड़ पर …पके हुए आम…।”

“कहाँ है,,,? इस पेड़ पर भी नही है, पके हुए…तु क्या करती थी, यहां पर…?? तुझे तो ये भी नहीं पता, किस पेड़ पर पके हुए आम है…???”

पंडिताईन ने माया देवी की ओर देखते हुए कहा-
“पता तो है, मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नहीं दोगी…!।"

“क्यों नही तोड़ने दूँगी,,?…तु बता तो सही, मैं खुद तोड़ कर खिलाऊँगी..।” -फिर एक पेड़ के पास रुक गई ।

“हां,,,!! देख, ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमों से,चल ले, टार्च पकड़ के दिखा, मैं जरा आम तोड़ती हूँ…।”

कहते हुए माया देवी ने पंडिताईन को टार्च पकड़ा दिया ।
पंडिताईन ने उसे रोकते हुए कहा,-
“क्या करती हैं…?, कहीं गिर गई तो..…? आप रहने दो मैं तोड़ देती हुं…।”

“चल बड़ी आयी…आम तोड़ने वाली, मैं गांव में ही बड़ी हुई हुं…जब मैं छोटी थी तो अपनी सहेलियों में मुझसे
ज्यादा तेज कोई नही था, पेड़ पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हुं…।"

“अरे, तब की बात और थी…”

पर पंडिताईन की बाते उसके मुंह में ही रहगई, और माया देवी ने अपने पेटिकोट को एकदम जाघों के ऊपर कर अपनी कमर में खोस लिया, और पेड़ पर चढ़ना शुरु कर दिया । पंडिताईन ने भी टार्च की रोशनी उसकी तरफ कर दी । जैसे ही चौधराइन एक पैर उपर के डाल पर रखा उनकी पेटीकोट अपने-आप कमर तक सरक गया और माया देवी की भारी गांड साफ दिखाई देने लगा ।

थोड़ी ही देर में काफी ऊपर चढ़ गई, और पेर की दो डालो के ऊपर पैर जमा कर खड़ी हो गई, और टार्च की रोशनी में
हाथ बढ़ा कर आम तोड़ने लगी । तभी टार्च फिसल कर पंडिताईन की हाथों से नीचे गिर गयी ।

“ अरे,,,,, क्या करती है तु …? ठीक से टार्च भी नहीं दिखा सकती क्या ?”-

पंडिताईन ने जल्दी से नीचे झुक कर टार्च उठायी और फिर ऊपर की …।

“ ठीक से दिखा ,,, इधर की तरफ …”

टार्च की रोशनी चौधराइन जहां आम तोड़ रही थी, वहां ले जाने के क्रम में ही रोशनी माया देवी के पैरो के पास
पड़ी तो पंडिताईन के होश उड़ गये । माया देवी ने अपने दोनो पैर दो डालो पर टिका के रखे हुए थे । उनकी पेटिकोट दो भागो में बट गया था । और टार्च की रोशनी सीधी उनकी दोनों पैरो के बीच के अन्धेरे को चीरती हुई पेटिकोट के अन्दर के माल को रोशनी से जगमगा दिया । पेटिकोट के अन्दर के नजारे ने मदन की तो आंखो को चौंधिया दिया ।

टार्च की रोशनी में पेटिकोट के अन्दर कैद, चमचमाती मखमली चौड़ी- चकली जांघो के बीच एक मर्द जैसा ढाई
इंच मोटा लण्ड लटका हुआ था । पंडिताईन की तो होश ही उड गया चौघराइन की लंड देख कर । उसने पहली बार किसी औरत के बदन में लंड देख रही थी । पर ये कैसा हो सकता है, चौधराईन तो बेहद खुबसुरत महिला थीं । तो फिर उनकी शरीर में चुत की वजाय ये मर्दाना लंड कैसे ?
चौधराईन की ये अनोखी रुप देख कर पंडिताईन का सर चकराने लगा था । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था... कि महिलाओं की भी लंड होती हैं ......?????

फिर पंडिताईन ने उनकी मखमली जांघों में रोशनी जमाए
रखा । चौधराइन की लंड अभी पूरा खड़ा नही था ।पेड़ पर चढ़ने की मेहनत ने चौधराइन की लंड को ढीला कर दिया था, मगर अभी भी काफी लम्बा और मोटा दिख रहा था । रोशनी पूरी ऊपर तक चौधराइन की काली काली झाँटों को भी दिखा रही थी । टार्च की रोशनी में कन्दली के खम्भे जैसी चिकनी मोटी जाघों के साथ-साथ उनकी लंड और झांटों को देख लगा की उसकी चुत पानी फेंक देगी, उसकी गला सुख गया और हाथ-पैर कांपने लगे ।

तभी माया देवी की आवाज सुनाई दी,
“ अरे, कहाँ दिखा रहा है ? यहां ऊपर दिखा ना…!! ।"

हकलाते हुए पंडिताईन बोली-
“ हां,,,! हां,,, अभी दिखाती … वो टार्च गिर गयी थी।”

फिर टार्च की रोशनी चौधराइन के जांघों पर फोकस कर दी । चौधराइन ने दो आम तोड़ लिये फिर बोली-
“ ले, केच कर तो जरा …”

और नीचे की तरफ फेंके , पंडिताईन ने जल्दी से टार्च को कांख में दबा , दोनो आम बारी-बारी से केच कर लिये और एक तरफ रख कर , फिर से टार्च ऊपर की तरफ दिखाने लगी । और इस बार सीधा उनकी दोनो टांगो के बीच में रोशनी फेंकी । इतनी देर में माया देवी की टांगे कुछ और फैल गई थी । पेटिकोट अब पुरा ऊपर उठ गया था और
उनकी लंड और बडे-बडे अंडकोष ज्यादा साफ दिख रही थी । नीचे से चौधराइन की लंड लाल लग रहा था, शायद सुपाड़े पर से चमड़ी हटी हुई थी ।

पंडिताईन की ये भ्रम थी या सच्चाई पर माया देवी के हिलने पर उसे ऐसा लगा , जैसे उनकी लंड के लाल सुपाडी ने हल्का सा अपना मुंह खोला था ।

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