प्यासी शबाना (भाग - ३)
by Anjaan©
प्यासी शबाना
लेखक: अन्जान
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(भाग - ३)
शबाना के दरवाज़ा खोलते ही प्रताप उसपर टूट पड़ा। उसने शबाना को गोद में उठाया और उसके होंठों को चूसते हुए उसे अंदर बेडरूम में बिस्तर पर ले गया। शबाना ने सिर्फ़ एक गाऊन और ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहन रखे थे। वो प्रताप का ही इंतज़ार रही थी और पिछले पंद्रह दिनों से चुदाई ना करने की वजह से जल्दी में भी थी... चुदाई करवाने की जल्दी!
प्रताप ने उसे बिस्तर पर लिटाया और सीधे नीचे से उसके गाऊन में घुस गया। अब शबाना आहें भर रही थी... उसकी चूत पर तो जैसे चींटियाँ चल रही थीं उसे अपना गाऊन उठा हुआ दिख रहा था और वो प्रताप के सिर और हाथों के हिसाब से ऊपर नीचे हो रहा था। प्रताप ने उसकी चूत को अपने मुँह में दबा रखा था और उसकी जीभ ने शबाना की चूत में घमासान मचा दिया था। अचानक शबाना की गाँड ऊपर उठ गयी, और उसने अपने गाऊन को खींचा और अपने सिर पर से उसे निकाल कर फ़र्श पर फेंक दिया। उसकी टाँगें अब भी बेड से नीचे लटक रही थीं और उसके ऊँची हील के सैंडल वाले पैर भी फर्श तक नहीं पहुँच रहे थे। प्रताप बेड से नीचे बैठा हुआ उसकी चूत खा रहा था। शबाना उठ कर बैठ गयी और प्रताप ने अब उसकी चूत में उंगली घुसा दी - जैसे वो शबाना की चूत को खाली रहने ही नहीं देना चाहता था। साथ ही वो शबाना के मम्मों को बेतहाशा चूसने और चूमने लगा। शबाना की आँखें बंद थी और वो मज़े ले रही थी। उसकी गाँड रह-रह कर हिल जाती जैसे प्रताप की उंगली को अपनी चूत से खा जाना चाहती थी।
फिर उसने प्रताप के मुँह को ऊपर उठाया और अपने होंठ प्रताप के होंठों पर रख दिये। उसे प्रताप के मुँह का स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था। उसकी ज़ुबान को अपने मुँह में दबाकर वो उसे चूसे जा रही थी। फिर प्रताप खड़ा हो गया। अब शबाना की बैठा थी। उसने बेड पर बैठे हुए ही प्रताप की बेल्ट उतारी। प्रताप की पैंट पर उसके लण्ड का उभार साफ़ नज़र आ रहा था। शबाना ने उस उभार को मुँह में ले लिया और पैंट की हुक और बटन खोल दी। फिर जैसे ही ज़िप खोली तो प्रताप की पैंट सीधे ज़मीन पर आ गिरी जिसे प्रताप ने अपने पैरों से निकाल कर दूर ढकेल दिया। प्रताप ने वी-कट वाली अंडरवीयर पहन रखी थी। शबाना ने उसकी अंडरवीयर नहीं निकाली। उसने प्रताप की अंडरवीयर के साइड में से अंदर हाथ डाल कर उसके लण्ड को अंडरवीयर के बाहर खींच लिया। फिर उसने हमेशा की तरह अपनी आँखें बंद की और लण्ड को अपने चेहरे पर सब जगह घुमाया फिराया और उसे अपनी नाक के पास ले जाकर अच्छी तरह सूँघने लगी। उसे प्रताप के लण्ड की महक मादक लग रही थी और वो मदहोश हुए जा रही थी। उसके चेहरे पर सब जगह प्रताप के लण्ड से निकाल रहा प्री-कम (पानी) लग रहा था। शबाना को ऐसा करना अच्छा लगता था। फिर उसने अपना मुँह खोला और लण्ड को अंदर ले लिया। फिर बाहर निकाला और अपने चेहरे पर एक बार फिर उसे घुमाया।
शबाना ने अपने मुँह में काफी थूक भर लिया था और फिर उसने लण्ड के सुपाड़े पर से चमड़ी पीछे की और उसे मुँह में ले लिया। प्रताप का लण्ड शबाना के मुँह में था और शबाना अपनी जीभ में लपेट-लपेट कर उसे चूसे जा रही थी ऊपर से नीचे तक... सुपाड़े से जड़ तक! उसके होंठों से लेकर गले तक सिर्फ़ एक ही चीज़ थी… लण्ड! और वो मस्त हो चुकी थी... उसके एक हाथ की उंगलियाँ उसकी चूत पर थिरक रही थी और दूसरा हाथ प्रताप के लण्ड को पकड़ कर उसे मुँह में खींच रहा था। फिर शबाना ने प्रताप की गोटियों को खींचा जो कि इक्साइटमेंट की वजह से अंदर घुस गयी थी। अब गोटियाँ बाहर आ गयी थी और शबाना ने अपने मुँह से लण्ड को निकाला और उसे ऊपर कर दिया। फिर प्रताप की गोटियों को मुँह में लिया और बेतहाशा चूमने लगी।
प्रताप की सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थी और अब उसके लण्ड को शबाना की चूत में घुसना था। उसने अब शबाना का मुँह अपने लण्ड पर से हटाया और उसे बेड पर लिटा दिया। फिर उसने शबाना की दोनों टाँगों को पकड़ा और ऊपर उठा दिया। फिर प्रताप ने उसकी दोनों जाँघों को पकड़ कर फैलाया और उठा दिया। अब प्रताप का लण्ड शबाना की चूत पर था और धीरे-धीरे अपनी जगह बन रहा था। शबाना ने अपनी आँखें बंद कर लीं और लेट गयी... यही अंदाज़ था उसका। आराम से लेटो और चुदाई का मज़ा लो - जन्नत की सैर करो - लण्ड को खा जाओ - अपनी चूत में अंदर बाहर होते हुए लण्ड को अच्छी तरह महसूस करो - कुछ मत सोचो, दुनिया भुला दो - कुछ रहे दिमाग में तो सिर्फ़ चुदाई, लण्ड, चूत - और जोरदार ज़बरदस्त चुदाई। प्रताप की सबसे अच्छी बात ये थी कि वो जानता था कि कौनसी औरत कैसे चुदाई करवाना पसंद करती है... और उसके पास वो सब कुछ था जो किसी भी औरत को खुश कर सकता था।
अब शबाना की चूत में लण्ड घुस चुका था। प्रताप ने धक्कों की शुरुआत कर दी थी। बिल्कुल धीरे-धीरे... कुछ इस तरह कि लण्ड की हर हरकत शबाना अच्छी तरह महसूस कर सके। लण्ड उसकी चूत के आखिरी सिरे तक जाता और बहुत धीरे-धीरे वापस उसकी चूत के मुँह तक आ जाता। जैसे कि वो चूत में सैर कर रहा हो - हल्के-हल्के धीरे-धीरे। प्रताप को शबाना की चूत के अंदर का एक-एक हिस्सा महसूस हो रहा था। चूत का पानी, उसके अंदर की नर्म, मुलायम माँसपेशियाँ! और शबाना - वो तो बस अपनी आँखें बंद किये मज़े लूट रही थी। उसकी गाँड ने भी अब ऊपर उठना शुरू कर दिया था। मतलब कि अब शबाना को रफ्तार चाहिये थी और अब प्रताप को अपनी रफ्तार बढ़ाते जानी थी... और बिना रुके तब तक चोदना था जब तक कि शबाना की चूत उसके लण्ड को अपने रस में नहीं डुबा दे। प्रताप ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी और अब वो तेज़ धक्के लगा रहा था। शबाना की सिसकारियाँ कमरे में गूँजने लगी थी। उसकी टाँगें अकड़ रही थीं और अब उसने प्रताप को कसकर पकड़ लिया और गाँड उठा दी। इसका मतलब अब उसका काम होने वाला था। जब भी उसका स्खलन होने वाला होता था वो बिल्कुल मदमस्त होकर अपनी गाँड उठा देती थी, जैसे वो लण्ड को खा जाना चाहती हो। फिर जब उसकी चूत बरसात कर देती तो वो धम से बेड पर गाँड पटक देती। आज भी ऐसा ही हुआ शबाना बिल्कुल मदमस्त होकर पड़ी थी। उसकी चूत पानी छोड़ चुकी थी लेकिन प्रताप अभी नहीं झड़ा था। प्रताप को पता था कि शबाना को पूरा मज़ा देने के लिये अपने लण्ड का सारा पानी उसकी चूत में उड़ेलना होगा... मतलब अभी और एक बार चोदना होगा और अपने लण्ड के पानी में भिगो देना होगा शबाना की चूत को।
प्रताप ने अपना लण्ड बाहर निकाला और बेड से नीचे आ गया। नीचे बैठ कर उसने शबाना कि टाँगों को उठाया और उसकी चूत का पानी चाटने लगा। तभी प्रताप को अपने लण्ड पर कुछ गीलापन महसूस हुआ जैसे किसी ने उसके लण्ड को मुँह में ले लिया हो। उसने चौंक कर नीचे देखा। ना जाने कब ताज़ीन कमरे में आ गयी थी और उसने प्रताप का लण्ड मुँह में ले लिया था। ताज़ीन पूरी नंगी थी उसने कुछ नहीं पहन रखा था - शबाना की तरह ही बस उसके पैरों में भी ऊँची पेंसिल हील के सैंडल मौजूद थे। प्रताप को कुछ समझ नहीं आ रहा था। शबाना तब तक बैठ चुकी थी और वो मुस्कुरा रही थी। “आज तुम्हें इन्हें भी खुश करना है प्रताप! ये मेरी ननद है ताज़ीन आपा!”
अब तक प्रताप भी संभल चुका था और ताज़ीन को गौर से देख रहा था। शबाना जितनी खूबसूरत नहीं थी मगर फिर भी काफी खूबसूरत थी। उसका जिस्म थोड़ा ज्यादा भरा हुआ लेकिन काफी कसा हुआ था। उसके मम्मे भी बड़े-बड़े और शानदार थे। एक दम गुलाबी चूचियाँ... गाँड एक दम भरी हुई और चौड़ी थी। उसके घुंघराले बाल कंधों से थोड़े नीचे तक आ रहे थे जिन्हें उसने एक बक्कल में बाँध कर रखा था। प्रताप अब भी ज़मीन पर बैठा था और उसका लण्ड ताज़ीन के मुँह में था। प्रताप अब तक सिर्फ़ बैठा हुआ था और जो कुछ भी हो रहा था ताज़ीन कर रही थी। वो शबाना के बिल्कुल उलट थी - उसके मज़े लेने का मतलब था मर्द को चोद कर रख दो। कुछ वैसा ही हो रहा था प्रताप के साथ। ताज़ीन जैसे उसका बलात्कार कर रही थी।
तभी ताज़ीन ने उसे धक्का दिया और उसे ज़मीन पर लिटा कर उसके ऊपर आ गयी। वो प्रताप के ऊपर चढ़ बैठी और अपने हाथों से उसने प्रताप के लण्ड को पकड़ा और अपनी चूत में घुसा लिया। अब वो ज़ोर-ज़ोर से प्रताप के लण्ड पर उछल रही थी। उसके मम्मे किसी रबड़ की गेंद की तरह प्रताप की आँखों के सामने उछल रहे थे। फिर ताज़ीन झुकी और उसने प्रताप के मुँह को चूमना शुरू कर दिया। प्रताप के लण्ड को अपनी चूत में दबोचे हुए वो अब भी बुरी तरह उसे चोदे जा रही थी। फिर अचानक वो उठी और प्रताप के मुँह पर बैठ गयी और अपनी चूत प्रताप के मुँह पर रगड़ने लगी जैसे कि प्रताप के मुँह में खाना ठूँस रही हो।
अब तक प्रताप भी संभल चुका था। उसने ताज़ीन को उठाया और वहीं ज़मीन पर गिरा लिया - और उसकी चूत में उंगली घुसा कर उसपर अपना मुँह रख दिया। अब प्रताप की जीभ और उंगली ताज़ीन की चूत को बेहाल कर रही थी। ताज़ीन भी मस्त होने लगी थी उसने प्रताप के बालों को पकड़ा और ज़ोर से उसके चेहरे को अपनी चूत पे दबाने लगी और साथ ही उसने घुटने मोड़ कर अपनी गाँड भी पूरी उठा दी। प्रताप ने अब अपनी उंगली उसकी चूत से निकाल ली। ताज़ीन की चूत के पानी से भीगी हुई उस उंगली को उसने ताज़ीन की गाँड में घुसा दिया। ताज़ीन को बेहद मज़ा आया, गाँड मरवाने का उसे बेहद शौक था।
अब प्रताप ने अपनी उंगली उसकी गाँड के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया और चूत को चूसना ज़ारी रखा। फिर उसने ताज़ीन की चूत को छोड़ दिया और सिर्फ़ गाँड में तेज़ी के साथ तीन उंगलियाँ चलाने लगा। ताज़ीन भी मस्त होकर ज़ोर-ज़ोर से सिसकारियाँ भर रही थी। फिर ताज़ीन ने उसके हाथ को एक झटके से हटाया और उठ कर प्रताप को बेड पर खींच लिया। प्रताप ने उसकी दोनों टाँगें फैला दी और उसकी चूत में लण्ड डाल दिया। जैसे ही लण्ड अंदर घुसा ताज़ीन ने प्रताप को कसकर पकड़ा और नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिये। प्रताप ने भी ताबड़तोड़ धक्के लगाने शुरू कर दिये। तभी ताज़ीन ने प्रताप को एक झटके से नीचे गिरा लिया और उसपर चढ़ बैठी। इस बार हाई हील की सैंडल वाला उसका एक पैर बेड पर था और दूसरा ज़मीन पर और दोनों टाँगों के बीच उसकी चूत ने प्रताप के लण्ड को जकड़ रखा था। फिर वो प्रताप से लिपट गयी और जोर-जोर से प्रताप की चुदाई करने लगी और फिर उसके मुँह से अजीब आवाज़ें निकलने लगी। वो झड़ने वाली थी और प्रताप भी नीचे से अपना लण्ड उसकी चूत में ढकेल रहा था। तभी प्रताप के लण्ड का फुव्वारा छूट गया और उसने अपने पानी से ताज़ीन की चूत को भर दिया। उधर ताज़ीन भी शाँत हो चुकी थी और उसकी चूत भी प्रताप के लण्ड को नहला चुकी थी।
कुछ देर में ताज़ीन खड़ी हुई तो प्रताप ने पहली बार उसे ऊपर से नीचे तक देखा। ताज़ीन ने झुक कर उसे चूम लिया। उसके होंठों को अपनी जीभ से चाटा और मुस्कुरा कर बाहर निकल गयी। प्रताप ने इधर उधर देखा लेकिन शबाना भी कमरे में नहीं थी। वो भी उठ कर बाहर आया तो शबाना और ताज़ीन सोफे पर नंगी बैठी थीं।
“क्यों प्रताप कैसी रही?”
“मज़ा आ गया, एक के साथ एक फ़्री!” प्रताप ने हंसते हुए कहा तो शबाना भी मुस्कुरा दी।
ताज़ीन ने भी चुटकी ली, “साली तेरे तो मज़े हैं, प्रताप जैस लण्ड मिल गया है चुदाई के लिये... मन तो करता है मैं भी यहीं रह जाऊँ और रोज चुदाई करवाऊँ... बहुत दमदार लण्ड वाला यार मिला है तुझे!”
“अभी पंद्रह दिन और हैं ताज़ीन आपा... जितने चाहे मज़े ले लो.... और हाँ कल आपका भाई आ जायेगा तो थोड़ा एहतियात से सब करना होगा.... फिर तो आपको जाना ही है... जहाँ आपके कईं यार आपको चोदने के लिये बेताब हो रहे होंगे!”
तभी ताज़ीन ने कहा, “प्रताप तेरा कोई दोस्त है तो उसे भी ले आओ! दोनों तरफ़ दो-दो होंगे तो मज़ा भी ज़्यादा आयेगा!”
“ये क्या बक रही हो ताज़ीन आपा! तुम तो चली जाओगी... मुझे तो यहीं रहना है... किसी को पता चल गया तो मैं तो गयी काम से!”
“आज तक किसी को पता चला क्या? और प्रताप का दोस्त होगा तो भरोसेमंद ही होगा... इस पर तो भरोसा है ना तुझे? और मुझे मौका है तो मैं दो तीन के साथ मज़े करना चाहती हूँ! प्लीज़ शबाना मान जाओ ना, मज़ा आयेगा! फिर मेरे जाने के बाद तेरे लिये भी तो एक से ज्यादा लंड का इंतज़ाम हो जायेगा!”
थोड़ी ना-नुक्कर के बाद शबाना मान गयी।
प्रताप ने अपना फोन निकाला और उन दोनों को फोन में अपने दोस्तों के साथ की कुछ तसवीरें दिखायीं। इरादा पक्का हुआ ‘जगबीर सिंघ’ पर। वो एक सत्ताईस साल का सरदार था और ये भी एक प्लस प्वाइंट था। क्योंकि सरदार आमतौर पर भरोसे के काबिल होते ही हैं। फिर उसकी खुद की भी शादी हो चुकी थी, तो वो किसी को क्यों बताने लगा, वो खुद मुसीबत में आ जाता अगर किसी को पता चल जाता तो!
“हाय जगबीर! प्रताप बोल रहा हूँ...!”
“बोल प्रताप! आज कैसे याद कर लिया?” एक रौबदार आवाज़ ने जवाब दिया।
इधर-उधर की बातें करने के बाद प्रताप सीधे मुद्दे पर आ गया। “आज रात क्या कर रहा है?”
“कुछ नहीं यार... बीवी तो मायके गयी है... घर पर ही हूँ! पार्टी दे रहा है क्या?”
“पार्टी ही समझ ले, शराब और शबाब दोनों की!”
“यार तू तो जानता है कि मैं इन रंडियों के चक्कर में नहीं पड़ता, बिमारियाँ फैली हुई हैं!”
“अबे रंडियों के पास तो मैं भी नहीं जाता... भाभियाँ हैं अच्छे घरों की... इंट्रस्ट है तो बोल... वो आज रात घर पर अकेली हैं, उनके घर पर ही जाना है... बोल क्या बोलता है?”
“नेकी और पूछ पूछ, बता कहाँ आना है?”
प्रताप ने पता वगैरह और समय बता दिया!
क्रमशः