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प्यासी शबाना (भाग - ४)

by Anjaan©

प्यासी शबाना
लेखक: अन्जान
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(भाग - ४)

रात के आठ बजे डोर बेल बजी। शबाना ने दरवाज़ा खोला तो प्रताप और जगबीर ही थे। जगबीर के हाथ में एक बोतल थी, व्हिस्की की। शबाना ने दरवाज़ा बंद किया और दोनों को ड्राइंग रूम में बिठा दिया। जगबीर ने शबाना को देखा तो देखता ही रह गया - उसने आसमानी नीले रंग की नेट वाली साड़ी पहन रखी थी और साथ में बहुत ही छोटा सा ब्लाउज़ पहना था और उसकी पीठ बिल्कुल नंगी थी। उसके पैरों में सफेद रंग के बहुत ही ऊँची पेन्सिल हील के पट्टियों वाले सैंडल उसके हुस्न में चार चाँद लगा रहे थे।

तभी ताज़ीन भी बाहर आ गयी। उसने तो घुटनों तक की मिनी स्कर्ट पहन रखी थी और छोटा सा टॉप जिससे कि उसका जिस्म छुपा कम और दिख ज्यादा रहा था। उसने भी काले रंग के ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहन रखे थे। जगबीर भी फोटो में जितना दिख रहा था उससे कहीं ज़्यादा दिलकश था। पक्का सरदार - कसरती बदन और पूरा मर्दाना था। काफी बाल थे उसके जिस्म पर। वहीं दूसरी ओर पच्चीस साल का जवान मर्द प्रताप भी बिकुल वैसा ही था - सिर्फ़ पगड़ी नहीं बंधी थी और क्लीन शेव था। कौन ज्यादा दिलकश है कहना मुश्किल था।

शबाना इतने में दो ग्लास और बर्फ़ और पानी ले आयी। प्रताप ने बता दिया था कि जगबीर रात को हर रोज़ तीन-चार पैग पिये बिना नहीं रहता। व्हिस्की पीने का मन तो उसका भी बहुत था लेकिन ताज़ीन की वजह से वो अपने लिये ग्लास नहीं लायी।

प्रताप और जगबीर पीने लगे तो ताज़ीन जगबीर के पास आकर बैठ गयी और उसकी जाँघों पर हाथ फिराने लगी अंदर की तरफ़। जगबीर का भी लण्ड उठने लगा था और ताज़ीन बाकायदा उसके घुटनों से लेकर उसकी ज़िप तक अपने हाथ घुमा रही थी। जगबीर अपना दूसरा पैग बनाने लगा।

“अकेले ही पियोगे क्या... हमें नहीं पूछोगे?” ताज़ीन ने अपनी टाँग जगबीर की जाँघ पर रखते हुए पूछा।

“ये क्या कह रही हो ताज़ीन आपा? आप शराब पियोगी... आप भी पीती हो क्या?” शबाना ने किचन से बाहर निकलते हुए जगबीर के कुछ बोलने से पहले ही पूछ लिया।

“शबाना ये तो चलता है, मैं अक्सर शराब-सिगरेट पी लेती हूँ, जब किसी मर्द का साथ होता है और वो हिजड़ा जावेद कहीं बाहर होता है!” ऐसा कहकर उसने जगबीर का पैग उठाया और सीधे एक साँस में अपने मुँह में उड़ेल लिया। “आ जा तू भी लगा ले एक-दो पैग! बहुत मज़ा आयेगा!”

“पता है मुझे तज़ीन आपा! मैं तो बेकार ही आपका लिहाज कर रही थी वरना मैं भी बेहद शौक से प्रताप के साथ अक्सर पीती हूँ... !” शबाना भी किचन में से दो ग्लास और ले आयी और उनके पास आकर बैठ गयी और एक ग्लास में शराब उडेल कर ताज़ीन के अंदाज़ में एक ही साँस में पी गयी।

अब जगबीर चारों ग्लासों में पैग बनाने लगा और ताज़ीन के लिये ग्लास में शराब उड़ेलने लगा तो ताज़ीन ने रोक दिया, “एक से ही पी लेंगे, तुम अपने मुँह से पिलाओ मुझे!” वो उठ कर जगबीर की गोद में बैठ गयी। उसकी स्कर्ट और ऊपर हो गयी। उसने अपनी चूत जगबीर के लण्ड के उभार पर रगड़ी और उसके गले में बाँहें डालकर उसके होंठों को चूम लिया। “पहली बार कोई सरदार मिला है, मज़ा आ जायेगा!” उसने ग्लास उठाया और जगबीर को पिलाया। फिर जगबीर के होंठों को चूमने लगी। जगबीर ने अपने मुँह की शराब उसके मुँह में डाल दी।

इधर शबाना भी प्रताप की गोद में बैठी उसे शराब पिला रही थी और खुद भी अपनी ननद की तरह ही अपने आशिक प्रताप के मुँह में से शराब पी रही थी। इस तरह चारों ही तीन-चार पैग पी गये। अब ताज़ीन और शबाना नशे में धुत्त थीं और उनके असली रंग बाहर आने वाले थे।

प्रताप और शबाना उठ कर बेडरूम में चले गये। शबाना तो नशे में ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। ऊँची हील के सैंडल में वो प्रताप के सहारे नशे में झूमती हुई वो अंदर गयी।

इधर जगबीर की उंगलियाँ ताज़ीन की स्कर्ट में घुस कर उसकी चूत का जायज़ा ले रही थी। उसके होंठ ताज़ीन के होंठों से जैसे चिपक गये थे और उसकी जीभ ताज़ीन की जीभ को जैसे मसल कर रख देना चाहती थी। ताज़ीन भी बेकाबू हो रही थी और उसने जगबीर की शर्ट के सारे बटन खोल दिये थे। जगबीर ने उसकी टॉप में हाथ घुसा दिये और उसके मम्मों को रौंदना शुरू कर दिया। उसके निप्पलों को अपनी उंगलियों में दबाकर उनको कड़क कर रहा था। ताज़ीन ने ब्रा नहीं पहनी थी। फिर ताज़ीन ने अपने हाथ ऊपर उठा दिये और जगबीर ने उसकी टॉप को निकाल फेंका।

अब जगबीर ने उसके गोरे मुलायम मम्मों को चूमना चाटना और काटना शुरू कर दिया। “और काट जग्गू... बहुत दिनों से आग लगी हुई है... मज़ा आ गया!” जगबीर ने अपना हाथ उसकी स्कर्ट में घुसाकर पैंटी को साइड में किया और चूत पर उंगली रगड़ने लगा। ताज़ीन मदहोश हो रही थी। उसने जगबीर के होंठों को कस कर अपने होंठों में दबा लिया और अपनी जीभ उसके मुँह में घुसा दी। फिर जगबीर ने उसे वहीं सोफ़े पर लिटा दिया और उसकी स्कर्ट और पैंटी एक झटके से खींच कर नीचे फेंक दीं। ताज़ीन की दोनों टाँगों के बीच जगबीर की उंगलियों में होड़ लगी हुई थी, चूत में घुसने और बाहर निकलने की। उसकी उंगलियाँ सीधी चूत में घुसती और बाहर निकल जाती। जगबीर की उंगलियाँ एक दम अंदर तक जाकर ताज़ीन को पागल कर रही थी।

“अब उंगली ही करेगा य चूसेगा भी... आग लगी हुई है चूत में... जग्गू खा ले इसे... मेरी चूत को आज फाड़ कर रख दे जग्गू!” तभी जगबीर ने उसकी चूत को फैलाया और उसके दाने को अपने मुँह में भर लिया और नीचे से अंगुठा घुसा दिया। ऊपर जीभ घुसा कर चूत को अपनी जीभ से मसल कर रख दिया। पागल हो गयी ताज़ीन - उसने अपनी टाँगें जगबीर की गर्दन में लपेट ली और अपनी गाँड उठा कर चूत उसके मुँह में ठूँस दी। जगबीर भी पक्का सयाना था। उसने चूत चूसना ज़ारी रखा और अब अंगुठा चूत से निकाल कर उसकी गाँड में घुसा दिया, जिससे ताज़ीन की पकड़ थोड़ी ढीली हो गयी। जगबीर फिर चूत का रस पीने लगा - और ताज़ीन की गाँड फिर उछलने लगी। उसकी गाँड में जगबीर का अंगुठा आराम से जा रहा था। फिर जगबीर ने उसकी चूत को छोड़ा और ताज़ीन को सोफ़े पर बिठा दिया और उसके सामने खड़ा हो गया। ताज़ीन ने जल्दी से उसकी पैंट कि ज़िप खोली और पैंट निकाल दी और फिर अंडरवीयर भी। अब जगबीर बिल्कुल नंगा खड़ा था ताज़ीन के सामने।

“यार इस पूरे लण्ड का मज़ा ही कुछ और है!” नशे में धुत्त ताज़ीन ने जगबीर के लण्ड को आगे पीछे करते हुए कहा। जैसे-जैसे वो उसे आगे पीछे करती उसके ऊपर की चमड़ी आगे आकर सुपाड़े को ढक देती। फिर वो उसे फिर से खोल देती, जैसे कोई साँप अंदर बाहर हो रहा हो। “मज़ा आ जायेगा लण्ड खाने में!” तभी जगबीर ने उसके सर को पकड़ा और अपना लण्ड ज़ोर से उसके मुँह पर हर जगह रगड़ने लगा। ताज़ीन की आँखें बंद हो गयी और जगबीर अपना लण्ड उसके मुँह पर यहाँ-वहाँ सब जगह रगड़े जा रहा था। ताज़ीन ने लण्ड मुँह में लेने के लिये अपना मुँह खोल दिया। मगर जगबीर ने सीधे अपनी गोटियाँ उसके मुँह में डाल दी, और ताज़ीन उन गोटियों को चूसने लगी और उन्हें अपने मुँह में भरकर दाँतों में दबाकर खींचने लगी। फिर गोलियो से होती हुई वो जगबीर के लण्ड की जड़ को मुँह में लेने लगी। उसके बाद जड़ से होती हुई वो टोपी पर पहुँच गयी और लण्ड को मुँह में खींच लिया। अब वो बेतहाशा लण्ड चूसे जा रही थी। ग़ज़ब का तजुर्बा था उसे लण्ड चूसने का... जगबीर की तो सिसकारियाँ निकल रही थी।

फिर ताज़ीन अचानक उठी और नशे में झूमती हुई सोफ़े पर खड़ी हो गयी और जगबीर के गले में बाँहें डाल कर झूल गयी। उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर जगबीर का लण्ड अपनी चूत में घुसाकर अपनी टाँगें उसकी कमर के चारों ओर कस कर लपेट ली। अब वो जगबीर की गोद में थी और जगबीर का लण्ड उसकी चूत में घुसा हुआ था। जगबीर उसी अंदाज़ में उसे धक्के लगाने लगा। ताज़ीन की चूत पानी छोड़ रही थी जो ज़मीन पर टपक रहा था। जगबीर का लण्ड भी पूरी तरह से भीग गया था। जगबीर के धक्कों की लय में ही ताज़ीन के ऊँची हील के सैंडल जगबीर के चूतड़ों पर तबला बजा रहे थे।

फिर जगबीर उसी हालत में उसे बेडरूम में ले गया और बिस्तर पर पटक दिया। “ओह जग्गू! आज मेरी चूत तेरा लण्ड खा जायेगी... पीस डालेगी तेरे लण्ड को मेरी जान!” ताज़ीन की गाँड उछल रही थी और नशे में ज़ुबान फिसल रही थी... कुछ शराब और कुछ चुदाई का असर था। अचानक जगबीर ने उसकी चूत से लण्ड को बाहर निकाला और उसकी टाँगें एक दम से उठा दी और अपना लण्ड सीधे ताज़ीन की गाँड में घुसा दिया। एक बार तो ताज़ीन की चींख निकल गयी लेकिन उसने अपने आप को संभाल लिया। फिर जगबीर ने उसकी गाँड मारनी शुरू कर दी। कुछ देर बाद ताज़ीन की सिसकारियाँ फिर कमरे में गूँजने लगी, “ओहह जग्गू! मज़ा आ गया गाँड मरवाने का... मेरे जिस्म में जितने भी छेद हैं... सब में अपना लण्ड घुसा दे जग्गू! मेरी चूत तेरे लण्ड की प्यासी है जग्गू और मेरी गाँड तेरा लण्ड खाने के लिये भूखी है.... मेरी जान आज की चुदाई ज़िंदगी भर याद रहनी चाहिये!”

काफी देर उसकी गाँड मारने के बाद जगबीर ने अपना लण्ड निकाला और ताज़ीन की चूत पर मसलने लगा। “और कितना तड़पायेगा मेरे यार!” ऐसा कहकर ताज़ीन झटके से उठी और जगबीर को नीचे गिरा लिया और उसपर चढ़ बैठी। उसने जगबीर के लण्ड को अपनी चूत में घुसाया और जोर-जोर से उछलने लगी। शराब और चुदाई के नशे में पागल जैसे हो गयी थी वो। “जग्गू देख मेरी चूत तेरे लण्ड का क्या हाल करेगी! पीस कर रख देगी ये तेरे लण्ड को... खा जायेगी तेरा लण्ड!” ऐसा कहते-कहते उसकी रफ्तार तेज़ हो गयी और वो एक दम से जगबीर पर झुक गयी और अपनी गाँड को और ज़ोरों से हिलाने लगी। जगबीर समझ गया कि ये जाने वाली है। उसने भी नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिये। “हाँ जग्गू ऐसे ही... मेरी चूत के पानी में डूबने वाला है तेरा लण्ड! बस ऐसे ही और थोड़े झटके लगा... मैं तेरे लण्ड को नहला दूँगी अपनी चूत के रस से... मेरी चूत में तू भी अपने लण्ड का पानी पिला दे!” तभी वो ज़ोर से उछली और फिर धीरे-धीरे आखिरी दो झटके दिये और जगबीर पर गिर पड़ी। उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया था और जगबीर ने भी। वो दोनों ऐसे ही लेटे रहे कुछ देर।

फिर तज़ीन ने जगबीर के लण्ड को चूम चाटकर साफ़ कर दिया।

“मैं भी बाथरूम में जाकर थोड़ा फ्रेश होकर आती हूँ... तब तक शायद शबाना और प्रताप का भी काम हो जायेगा!” ये सुनकर जगबीर को ध्यान आया कि वो दोनों भी दूसरे कमरे में मज़े ले रहे हैं। ताज़ीन नशे में झूमती हुई बाथरूम की तरफ ऊँची हील की सैंडल में लड़खड़ाती चली गयी। जगबीर उठ कर सीधे दूसरे कमरे में गया। दरवाज़ा बंद था लेकिन उसने दरवाज़े को धक्का दिया तो वो खुल गया।

शबाना की दोनों टाँगें हवा में तैर रही थी और उसके सफेद सैंडलों की ऊँची ऐड़ियाँ और तलवे छत्त की तरफ थे। प्रताप उसके ऊपर चढ़कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारते हुए चोद रहा था। शबाना की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थी और प्रताप के धक्के रफ्तार पकड़ रहे थे। अचानक शबाना ने अपनी टाँगें नीचे करके घुटने मोड़ते हुए अपने पैर बेड पर रखे और बिस्तर में अपनी सैंडल गड़ाते हुए ज़ोर से अपनी गाँड हवा में उठा दी। उसकी मस्ती परवान पर पहुँच रही थी और वो झड़ने वाली थी। उसने नीचे से प्रताप के लण्ड पर ज़ोरों से झटके देने शुरू कर दिये, जैसे उस लण्ड को अपनी चूत में दबाकर खा जायेगी। उधर प्रताप के भी धक्के तेज़ होने लगे।

तभी प्रताप ने धक्के मारने बंद कर दिये और शबाना को उठाकर अपने ऊपर बिठा लिया। शबाना की चूत में लण्ड घुसा हुआ था और वो प्रताप के ऊपर बैठी थी। प्रताप ने उसकी गाँड के नीचे अपने हाथ रखे और उसे उठाकर उसकी चूत में लण्ड के धक्के लगाने लगा। शबाना का पूरा वज़न प्रताप के लण्ड और हाथों पर था और उसकी चूत में जैसे हथौड़े चल रहे थे। उसकी सिसकारियाँ और तेज़ हो गयी और अब वो आवाज़ों में बदल गयी थी। प्रताप ने उसे ऐसे वक्त में पलट कर अपने ऊपर बिठा लिया था जब उसकी चूत में बरसात होने वाली थी। शबाना को ऐसा लगा था जैसे रेगिस्तान में बारिश वाले बादल आये और अचानक छंट गये। इसलिये शबाना की उत्तेजना अब बिल्कुल परवान पर थी।

ये सब देख कर जगबीर का लण्ड फिर खड़ा हो गया और वो सीधे अंदर घुस गया। प्रताप ने उसे देख लिया पर वो रुका नहीं। शबाना को तो शराब के नशे और चुदाई की मस्ती में होश ही नहीं था कि जगबीर अंदर आ चुका है। जगबीर सीधे शबाना के पीछे जाकर खड़ा हो गया और शबाना के गले को चूमने लगा। शबाना बिल्कुल चौंक गयी, मगर इस वक्त उसकी हालत ऐसी नहीं थी कि वो कुछ कर पाती। तभी जगबीर ने पीछे से हाथ डालकर उसके मम्मे पकड़ लिये और पीछे से उसकी पीठ को बेतहाशा चूमते हुए उसके मम्मों को दबाने लगा। फिर शबाना को उसने प्यार से धक्का दिया और वो सीधे प्रताप की छाती से चिपक गयी। उसकी चूत में प्रताप का लण्ड घुसा हुआ था और अब भी प्रताप उसे उछाल रहा था। तभी जगबीर नीचे झुका और शबाना की गाँड चाटने लगा। शबाना को जैसे करंट सा लगा, लेकिन एक अजीब सी चमक आ गयी उसकी आँखों में। जगबीर उसकी गाँड को चाटे जा रहा था। शबाना की चूत का पानी गाँड तक आ चुका था और जगबीर ने उसकी गाँड में उंगली डालना शुरू कर दिया।

शबाना तो जैसे एक दम पागल हो गयी। अब वो डबल मज़ा लेने के पूरे मूड में आ गयी थी। यूँ तो प्रताप भी कईं दफा उसकी गाँड मार चुका था, लेकिन गाँड और चूत दोनों में एक साथ लण्ड लेने की बात सोचकर ही उसकी उत्तेजना और परवान चढ़ गयी। अब जगबीर ने अपना मुँह हटाया और अपना लण्ड शबाना की गाँड पर रख दिया और धीरे-धीरे दबाव बढ़ाने लगा। शबाना ने प्रताप को रुकने का इशारा किया। वो महसूस करना चाहती थी - जगबीर के लण्ड को अपनी गाँड में घुसते हुए। हर चीज़ का पूरा मज़ा लेती थी वो... आराम से... हर चीज़ का पूरे इत्तमिनान से इस्तेमाल करती थी। बहुत मज़ा आ रहा था उसे, चूत में लण्ड घुसा हुआ था, और गाँड में भी लण्ड घुसने वाला था। शबाना ने प्रताप को इशारा किया तो प्रताप ने कहा – “जगबीर आराम से धीरे-धीरे डालना, पूरा मज़ा लेकर - पूरे इत्तमिनान से!” शबाना को चुदाई करवाते वक्त बोलना पसंद नहीं था.... वो सिर्फ़ आँखें बंद करके मज़े लेना चाहती थी! वो भी आराम से! यही वजह थी कि वो काफी देर तक चुदाई करती थी।

अब जगबीर का लण्ड पूरा शबाना की गाँड में घुस चुका था और उसने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिये। उसके धक्कों के साथ ही शबाना भी आगे पीछे होने लगी और उसकी चूत में घुसा लण्ड भी अपने आप अंदर बाहर होने लगा। शबाना जैसे जन्नत में पहुँच गयी थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि वो एक साथ दो लण्ड खायेगी और उसमें इस कदर इतना शानदार मज़ा आयेगा। प्रताप ने भी नीचे से धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिये। अब शबाना की गाँड और लण्ड दोनों में लण्ड घुसे हुए थे और वो चुदाई के आसमान पर थी। उसकी आँखें बंद हो गयी और उसकी सिसकारियाँ फिर शुरू हो गयी। वो अपनी कोहनी का सहारा लेकर झुक गयी और अपनी गाँड धीरे धीरे हिलाने लगी। अब प्रताप और जगबीर ने अपने धक्के तेज़ कर दिये और शबाना जैसे दो लौड़ों पर बैठी उछल रही थी- सी-सॉ झूले के खेल की तरह कभी पालड़ा यहाँ भारी तो कभी वहाँ भारी। उसे तो ज्यादा हिलने की भी ज़रूरत नहीं थी। अब उसकी आवाज़ें तेज़ होने लगी और उसकी चूत और गाँड में फिर हथौड़े चलने लगे। तभी उसकी चींख सी निकली और उसकी चूत से सैलाब फूट पड़ा और उसकी गाँड में जैसे किसी ने गरम गरम चाशनी भर दी हो। जगबीर भी छूट गया था - और प्रताप भी। जगबीर भी शबाना के ऊपर ही झुककर निढाल हो गया। उसका लण्ड अब भी शबाना की गाँड में ही था।

कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद शबाना ने अपने कंधे उचकाये। जगबीर ने अपना लण्ड उसकी गाँड से निकाला और बाथरूम में घुस गया। शबाना ने प्रताप का लण्ड चाट कर साफ़ किया और उसके पास ही लेट गयी। रात के ग्यारह बज रहे थे।

“कैसा लगा शब्बो जान?”

“एक पर एक तुम्हें नहीं, मुझे फ्री मिला है!” फिर दोनों हंसने लगे।

“लेकिन, जगबीर भरोसे का आदमी तो है ना?”

“जानू… एक दम पक्का भरोसे का है... और वो सरदार है... तुम बिल्कुल बेफ़िक्र रहो... वो उनमें से नहीं है जो तुम्हें परेशान य बदनाम करेगा!”

“बस मैं यही चाहती हूँ!”

तभी जगबीर बाहर आ गया. शबाना उठी और अपनी सैंडल खटखटाती हुई बाथरूम में घुस गयी। वो भी तज़ीन की तरह ही नशे में झूम रही थी और कदम बहक रहे थे।

“यार ये तो उम्मीद से दुगना हो गया!”

“हाँ लेकिन ध्यान रहे किसी को पता ना चले! अच्छे घर की हैं ये दोनों!”

“जानता हूँ यार! किसी को बताकर क्या मुझे अपना ही खाना बिगाड़ना है? और मेरी बीवी को पता चलेगा तो मेरी खुद शामत आ जायेगी! वाहे गुरू की कृपा है... हम क्यों किसी को तकलीफ़ में डालेंगे यार! सब कुछ तो है अपने पास!” बाथरूम में मूतती हुई शबाना ये सुनकर इत्तमिनान भी हुआ और खुश भी।

“क्या कर रहे हो दोनों? शबाना कहाँ है? और जगबीर तूने क्या यहाँ भी मज़े कर लिये क्या?” ताज़ीन की आवाज़ थी ये। नशे में झूमती हूई वो उस कमरे में दाखिल हुई। अभी भी उसने सिर्फ सैंडल ही पहने हुए थे और बिल्कुल नंगी ही थी।

“अब आप तो बाथरूम में घुस गयी थीं और बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रही थीं तो क्या करता... सोचा आपकी भाभी को डबल मज़ा दे दिया जाये?”

“अब तो आ गयी हूँ मैं... मुझे डबल मज़ा नहीं दोगे क्या?”

शबाना की गाँड और चूत दोनों की खुजली एक साथ शाँत हो गयी थी। वो अब भी मस्तिया रही थी और उसे लग रहा था जैसे अब भी उसकी चूत में प्रताप का और गाँड में जगबीर का लण्ड घुसा हुआ है और वो चुदाई करवा रही है। उसने झटपट अपनी चूत और गाँड की खबर ली, गाऊन पहना और बाहर आ गयी। ब्रा और फैंटी पहन कर उसे अपना मूड नहीं खराब करना था और फिर चूत और गाँड को भी तो खुला रखना था... आखिर इतनी मेहनत जो की थी दोनों ने!

जब वो बाहर आयी तो ज़मीन पर उसकी ननद ताज़ीन की डबल चुदाई चल रही थी। ताज़ीन जगबीर के ऊपर बैठ कर झुकी हुई अपनी चूत में उसका लण्ड लेकर चुदवा रही थी और उसके पीछे प्रताप उसकी कमर पर झुका हुआ उसकी गाँड में दनादन अपना लण्ड अंदर-बाहर चोद रहा था। कमरे में ताज़ीन की सिसकरियाँ और आहें गूँज रही थीं।

बाद में चारों फ्रेश होकर ड्राइंग रूम में फिर से बैठ कर व्हिस्की के पैग पीने लगे!

तभी एक तसवीर देख कर जगबीर ने कहा, “तो इन हज़रत की बीवी हैं आप?”

“जी हाँ! यही परवेज़ हैं! क्या आप जानते हैं इन्हें?”

“नहीं बस ऐसे ही पूछ लिया, क्या वो शहर से बाहर गये हैं?”

“हाँ, कल शाम को आ जायेंगे!”

शराब का ग्लास रखते हुए जगबीर ने अपने कपड़े पहनते हुए कहा, “ठीक है तो हम चलते हैं, फिर मिलेंगे... अगर आपने याद किया तो!”

“अरे इतनी जल्दी क्या है... रात का एक ही बज रहा है!” ताज़ीन ने कहा, “परवेज़ तो कल शाम को आयेगा... सुबह यहीं से नहा धोकर चले जाना... तब तक एक और राऊँड हो जाये चुदाई का...!”

“अरे मोहतर्मा! जिनकी बीवी इतनी खूबसूरत हो, वो जितनी जल्दी हो घर पहुँचना चाहेगा!” कहकर हँस दिया जगबीर।

“अच्छा तो वो क्या ऐसे ही काम छोड़ कर आ जायेगा... शहर से बाहर ही नहीं जायेगा?” शबाना ने बीच में चुटकी ली। शराब का नशा बरकरार था उसपर।

“अरे भाई, वो शहर से बाहर जायेगा तो भी यही कहेगा कि शहर में ही है... हो सकता है परवेज़ सुबह छः बजे आ जाये, रिस्क क्यों लेना?”

“चलो ठीक है! वैसे भी सुबह जल्दी ऑफिस जाना है!” प्रताप ने सोफ़े पर से उठते हुए कहा और कपड़े पहनने लगा।

शबाना और ताज़ीन ने भी ज़्यादा ज़िद्द नहीं की। प्रताप और जगबीर दोनों निकाल गये।

शबाना और ताज़ीन ने अपने बिस्तर ठीक किये और दोनों एक दम तस्कीन से खुश होकर सो गयी।

सुबह छः बजे घंटी बजने पर शबाना ने दरवाज़ा खोला दूध लेने के लिये। “परवेज़ तुम? इतनी जल्दी? तुम तो शाम को आने वाले थे ना?” एक दम चौंक गयी थी शबाना।

“क्यों मेरा जल्दी आना अच्छा नहीं लगा तुम्हें?”

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं, यूँ ही पूछ लिया!”

शबाना ने चैन की साँस ली। वो आज मरते-मरते बची थी। अगर जगबीर ने जाने के लिये ज़ोर नहीं दिया होता तो प्रताप भी वहीं होता और आज उसकी शामत ही आने वाली थी। ये सोचकर उसका दिमाग एक दम घूम गया। उसके कानों में जगबीर के अल्फाज़ गूँजने लगे “हो सकता है सुबह छः बजे ही आ जायें।” उसका दिमाग चक्कर घिन्नी की तरह घूम गया। उसे शक होने लगा कि जगबीर को पहले ही पता था कि परवेज़ सुबह आने वाला है।

सुबह छः बजे आने के बावजूद परवेज़ नौ बजे ही घर से फिर निकल गया।

“ताज़ीन आपा, आपको जगबीर की बात याद है?”

“कौनसी?” बेफ़िक्र ताज़ीन ने जवाब दिया।

“वही जो उसने जाने से पहले कही थी...!” शबाना ने ताज़ीन की आँखों में झाँकते हुए पूछा।

“जिसकी बीवी इतनी सुन्दर हो... वो वाली? वो तो उसने सच ही कहा था!”

“वो नहीं...! सुबह छः बजे वाली... परवेज़ सुबह छः बजे ही आये थे... ठीक उसी वक्त जो जगबीर ने बताया था।” शबाना की आवाज़ में डर और चिंता दोनों साफ़ झलक रही थी।

“ऐसे ही तुक्का लगा दिया होगा!” ताज़ीन अब भी बेफ़िक्र थी।

जगबीर ने उससे ये क्यों कहा कि वो शहर से बाहर जायेगा तो भी यही कहेगा शहर में ही है! तो क्या जगबीर सच्चाई से उलटा बोल रहा था? मतलब कि परवेज़ शहर में ही था लेकिन उसे कहकर गया कि वो बाहर जा रहा है? लेकिन परवेज़ झूठ क्यों बोलेगा? और जगबीर ने उलटा क्यों कहा अगर वो जानता था कि परवेज़ शहर में ही है! जहाँ तक जगबीर का सवाल है... सरदार ना सिर्फ़ चालाक और होशियार था बल्कि काफी सुलझा हुआ और इन्टेलिजेन्ट भी था। जो भी थोड़ी बहुत वो उसे समझी थी, उससे यही ज़ाहिर होता था कि वो बिना मतलब के इतनी बातें करने वालों में से नहीं था। कईं सवाल शबाना के ज़हन में गूँज रहे थे लेकिन उसके पास कोई जवाब नहीं था।

दोपहर में एक बजे के करीब शबाना ने प्रताप को फोन लगाया।

“हैलो, प्रताप कहाँ हो?”

“ऑफिस में! कहो कैसे याद किया?” प्रताप ने पूछा।

“प्रताप, ये जगबीर क्या करता है?” शबाना ने सीधे-सीधे सवाल किया।

“क्यों जान अब पीछे से वार करने वाले पसंद आ गये... हम तो लुट जायेंगे... जानेमन!” प्रताप ने रोमांटिक होते हुए कहा।

“धत्त, ऐसी कोई बात नहीं है... ऐसे ही पूछ रही हूँ!” शबाना ने शरमाते हुए कहा।

“वो आसिस्टेंट कमिशनर ऑफ पुलीस है! तीन साल पहले ही आई-पी-एस में टॉप किया था उसने। काफी ऊँची चीज़ है वो... काम है क्या कुछ? कहो तो हम ही आ जाते हैं!”

“चुपचाप काम करो अपना! हर वक्त यही सूझता है तुम्हें!” शबाना ने प्यार से डाँटते हुए कहा। “वैसे एक दो दिन में फोन करके बताऊँगी.... ताज़ीन आपा भी बेताब हैं तुमसे फिर मिलने के लिये!”

फोन रखने पर शबाना की परेशानी अब बढ़ गयी थी। मतलब कि जगबीर सचमुच काफी पहुँचा हुआ आदमी था... और उसने जो भी कहा था... वो बात जितनी सीधी दिख रही थी... उतनी थी नहीं.... ज़रूर कुछ वजह रही होगी!

“शबाना क्या सोच रही हो?” ताज़ीन के सवाल ने उसका ध्यान तोड़ा।

“कुछ नहीं, आपका भाई अचानक आज जल्दी आ गया!”

“हाँ! आज तो हुम बाल बाल बच गये! अगर मेरे कहने पर जग्गू और प्रताप रुक जाते तो आज तो गये ही थे काम से!”

अगले पंद्रह दिनों के दौरान ताज़िन के जाने से पहले प्रताप चार बार आया दिन के वक्त और तीनों ने मिलकर काफी ऐश करी। प्रताप ने बताया कि जगबीर किसी केस में उलझा हुआ है और दिन के वक्त वो समय नहीं निकाल पायेगा।

क्रमशः

Written by: Anjaan

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