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प्यासी शबाना (भाग - ५)

by Anjaan©

प्यासी शबाना
लेखक: अन्जान
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भाग - ५

“हाय जगबीर!”

“हाय! कौन?”

“अच्छा, तो अब आवाज़ भी नहीं पहचानते हैं जनाब!”

“ओहो! शबाना जी! बड़े दिनों बाद याद किया?” बड़े अदब से चुटकी ली जगबीर ने।

“क्या करें! तुम तो याद करते नहीं... सो मैंने ही फोन कर लिया... एक महीने तुम्हारे फोन की राह देखी है!” शिकायत भरे लहज़े में कहा शबाना ने।

“आप बुला लेती तो मैं हाज़िर हो जाता!” जगबीर के पास जवाब तैयार था।

“अभी आ सकते हो?”

“अभी नहीं... कल आ जाता हूँ अगर आपको आपत्ति ना हो तो!”

“ठीक है... तो कल ग्यारह बजे?”

“ओके शबाना जी!” और फिर शबाना के जवाब का इंतज़ार किये बिना फोन काट दिया जगबीर ने।

“सरदार बहुत तेज़ है... लेकिन साला है बहुत ही दिलचस्प!” शबाना ने मन ही मन खुद से कहा।

उसने दोबारा फोन लगाया “हाँ ज़रीना, मैं घर पर ही हूँ, तुम ज़ीनत को भेज सकती हो!”

ज़रीना शबाना से उम्र में पंद्रह साल बड़ी थी लेकिन सबसे अच्छी सहेली थी और थोड़ी ही दूरी पर रहती थी। इसलिये कभी-कभी आ जाती थी। उसकी बेटी ज़ीनत के बी-एस-सी फर्स्ट ईयर के इग़्ज़ैम थे और उसने शबाना से रिक्वेस्ट की थी थोड़ी मदद कर देने के लिये क्योंकि शबाना कैमिस्ट्री में एम-एस-सी थी। दरवाज़े की दस्तक से शबाना का ध्यान भंग हुआ। कोई था शायद बाहर।

ज़ीनत आयी थी। उसे अंदर बुला कर उसने दरवाज़ा बंद कर लिया। ज़ीनत काफी खूबसूरत थी और उसके मम्मे उसकी उम्र को काफी पीछे छोड़ चुके थे। उसका जिस्म देखकर कोई भी यही सोचेगा कि तेईस-चौबीस की है। पहनावा भी काफी मॉडर्न किस्म का था। कॉनवेंट में पढ़ी-लिखी ज़ीनत रोज़ घुटनों के ऊपर तक की स्कर्ट पहन कर कॉलेज जाती थी और ज़रीना ने काफी छूट दे रखी थी उसे। आखिर इकलौती औलाद थी वो।

“आपा! कल कैमिस्ट्री की इग़्ज़ैम है और मुझे तो कुछ समझ नहीं आता है! ये टेबल और कैमिकल फोर्मुले तो मेरी जान ले लेंगे!” काफी झुंझलायी हुई थी ज़ीनत।

“कोई बात नहीं, मैं समझा दुँगी!” शबाना ने प्यार से कहा।

तीन घंटे की पढ़ाई के बाद ज़ीनत काफी खुश थी। उसका लगभग सारा पोर्शन खत्म हो चुका था। “थैंक यू आपा! मुझे तो लगा था मैं गयी इस बार! आपने बचा लिया!” कहते हुए उसने शबाना को गले लगा लिया।

अगले दिन परवेज़ के जाने के बाद, वो जगबीर का इंतज़ार करने लगी थी। बहुत अच्छे से सजधज कर तैयार हुई वो। हरे रंग की नेट वाली झीनी साड़ी पहनी... वो भी बिना पेटीकोट के, जिससे उसकी टाँगें साफ झलक रही थीं। उसका ब्लाऊज़ भी इतना छोटा था कि उसके नीचे ब्रा की जरूरत ही नहीं थी। पैरों में चॉकलेट ब्राऊन रंग के ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल उसके फिगर को और ज्यादा सैक्सी बना रहे थे।

ठीक ग्यारह बजे जगबीर आ गया।

“क्यों डार्लिंग बड़े दिनों बाद याद किया... वो भी जब प्रताप बाहर गया है.... जब तक वो था... आपने तो मुझे याद ही नहीं किया!” जगबीर ने सवाल में ही जवाब दाग दिया था।

“लगता है कि तुम उसके बिना कुछ कर नहीं सकते! हर बार उसकी मदद चाहिये क्या?” शबाना ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया।

“पता चल जायेगा जानेमन!” कहते हुए जगबीर ने उसे बाँहों में उठा लिया।

“क्यों आज शराब नहीं लाये?” शबाना ने पूछा।

“मैं दिन में नहीं पीता!” अब जगबीर उसके जिस्म को हर जगह से दबा रहा था।

“दिन में शबाब का मज़ा तो लेते हो लेकिन शराब नहीं पीते...?” शबाना ने हंसते हुए कहा।

“काम पर भी तो जाना है बाद में... आपको पीनी है तो ले आता हूँ... जीप में ही रखी है!”

“अब तुम्हारे इस लज़ीज़ क़बाब के साथ शराब पीना तो बनता ही है...!” पैंट के ऊपर से जगबीर के लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भींचते हुए शबाना ने कहा।

फिर जगबीर अपनी जीप में से व्हिस्की की बोतल ले आया और शबाना अपने लिये पैग बना कर जगबीर की गोद में बैठ कर पीने लगी। जगबीर ने शबाना की साड़ी का पल्लू हटाया और उसके ब्लाऊज़ के ऊपर से ही उसके मम्मों को दबाने लगा। उसके होंठों को अपने होंठों में दबाते हुए उसने एक हाथ उसके मम्मों पर रख दिया और दूसरे हाथ से उसकी साड़ी को ऊँचा उठा कर उसकी गाँड को ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा। उसने शबाना को एक दम जकड़ लिया। शबाना उसके लण्ड को अपनी चूत पर महसूस कर सकती थी और उसकी तो जैसे साँस अटक रही थी। इसी दौरान शबाना शराब के तीन पैग जल्दी-जल्दी गटक चुकी थी और काफी नशे में थी और बेहद मस्ती में भर गयी थी। शबाना का छोटा सा ब्लाऊज़ भी ज़मीन पर एक तरफ पड़ा था और जगबीर उसके नंगे भरे-भरे मम्मों को भींचते हुए उसके निप्पल चूसते हुए दाँतों से काट रहा था।

जगबीर फिर उसे बेडरूम में ले गया और खड़े-खड़े ही उसकी साड़ी को खींच कर निकाल दिया। पेटीकोट तो शबाना ने पहना ही नहीं था। जगबीर उसकी टाँगों के बीच बैठ गया और उसकी पैंटी उतार दी। अब उसका मुँह शबाना की नाभि को चूस रहा था और उसका एक हाथ शबाना की दोनों टाँगों के बीच उसकी जाँघों पर सैर कर रहा था। उसने शबाना की जाँघ पर दबाव बनाया और शबाना ने अपने पैर फ़ैला दिये। अब वो जगबीर को अपनी चूत खिलाने के लिये तैयार थी। उसने अपनी चूत आगे की तरफ़ ढकेल दी। ऊँची हील की सैंडल में खड़ी शबाना नशे और मस्ती में झूम रही थी। जगबीर ने अपने दोनों हाथों को उसकी टाँगों के बीच से लेकर उसकी गाँड पर रख दिये। शबाना की टाँगें और फ़ैल गयीं और उसकी आगे की तरफ़ निकली हुई चूत अब जगबीर के मुँह के ठीक सामने थी। “ससीसीईईऽऽऽ!” सिसकरी छूट गयी शबाना की जब जगबीर की जीभ ने उसकी चूत को चाटा और उसके किनारों पर ज़ोर से जीभ रगड़ दी। जगबीर की जीभ शबाना की चूत में घुसती जा रही थी और शबाना के पैर जैसे उखड़ने को थे। जगबीर के हाथ जो शबाना की टाँगों के बीच से पीछे की तरफ़ थे, उनसे शबाना के हाथों की कलाइयों को पकड़ लिया। अब शबाना की चूत और आगे की तरफ़ निकल आयी और जगबीर की जीभ उसकी चूत में और अंदर धंस गयी।

जगबीर ने इसी स्थिति में उसे उठा लिया और एक धक्का देकर बेड के बिल्कुल किनारे पर पटक दिया और खुद बेड के नीचे घुटनों के बल बैठ गया। शबाना की गाँड के नीचे से निकले हुए जगबीर के हाथों की वजह से उसकी चूत एक दम उठ गयी थी और ब्राऊन सैंडलों वाले पैर हवा में लहरा रहे थे और उसकी टाँगें एक दम फ़ैली हुई थीं। उसकी चूत में जगबीर की जीभ धंसती जा रही थी। जगबीर ने उसकी चूत में छुपे गुलाबी दाने को अपने होंठों में जकड़ लिया और उसपर बेतहाशा अपनी जीभ रगड़ कर चूमने लगा। शबाना की सिसकारियाँ फूट गयी और उसकी चूत में खलबली मच गयी। उसकी मस्ती पूरे परवान पर थी और वो हिल भी नहीं सकती थी। उसकी कलाइयों को जगबीर ने पूरी ताकत से पकड़ रखा था और उसकी गाँड बिस्तर से हवा में पूरी उठी हुई थी। उसकी गाँड ने एक ज़ोर का झटका दिया और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। अब जगबीर ने उसकी कलाइयों को छोड़ा और अपने हाथ उसकी टाँगों के बीच से निकाल लिये। अब वो बिल्कुल धाराशायी हो गयी बिस्तर पर। “ओह गॉड...मज़ा आ गया जगबीर!”

जगबीर ऊपर चढ़ गया और उसके होंठों को चूमने लगा। शबाना ने जगबीर की बालों से भरी छाती पर हाथ फिराने शुरू कर दिये। अच्छा लगता था उसे जब जगबीर की बालों से भरी छाती उसके चिकने और भरे हुए मम्मों को रगड़ती थी। अजीब तरह की गुदगुदी सी होती थी उसे। अब शबाना बैठ गयी और उसने जगबीर की पैंट के बटन खोले और उसकी पैंट और अंडरवीयर निकाल कर फेंक दिये। उसने जगबीर के लण्ड को अपने हाथों में लिया और उसकी जड़ से टोपी तक अपना हाथ ऊपर नीचे करने लगी। उसके लण्ड की चमड़ी के पीछे होते ही उसका लाल-लाल गोल सुपाड़ा जैसे हमले की तैयारी में नज़र आता था। शबाना झुकी और जगबीर का लण्ड चूसना शुरू कर दिया। उसने जगबीर के लण्ड के सुपाड़े को मुँह में लिया और उसका स्वाद अपनी जीभ पर महसूस करने लगी। उसकी जीभ जगबीर के लण्ड के मूतने वाले छेद में घुसने की कोशिश कर रही थी। उसके सुपाड़े को अपनी जीभ में लपेट कर शबाना उसके हर हिस्से का मज़ा ले रही थी। जगबीर उसके सर पर हाथ रख कर उसे दबाने लगा। अब शबाना जगबीर के पूरे लण्ड को अपने मुँह में ले रही थी। जगबीर का लण्ड उसके गले तक जा रहा था और उसकी आँखें जैसे बाहर आने को हो गयीं। उसने लण्ड को थोड़ा बाहर निकाला और फिर थोड़ी कोशिश के बाद वो अब उसके लण्ड को अपने मुँह में एडजस्ट कर चुकी थी। अब जगबीर को पूरा मज़ा मिल रहा था। शबाना बिल्कुल रंडी की तरह अच्छी तरीके से उसका लण्ड चूस रही थी - नीचे से ऊपर... ऊपर से नीचे। फिर जगबीर ने उसे बिस्तर से नीचे उतरने को कहा।

शबाना नशे और मस्ती में झूमती हुई बिस्तर से उतर कर नीचे खड़ी होकर झुक गयी और अपने हाथ बेड पर रख दिये। अब वो बेड का सहारा लेकर गाँड उठाये खड़ी थी। जगबीर उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। ऊँची ऐड़ी की सैंडल की वजह से शबाना की गाँड उठ कर उघड़ी हुई थी और वो गाँड मटकाते हुए आराम से जगबीर के लण्ड का अपनी चूत में घुस जाने का इंतज़ार करने लगी। जगबीर ने शबाना के पैरों को और फैलाया और अपने लण्ड को पकड़ कर शबाना कि उठी गाँड पर रगड़ने लगा। वो उसके पीछे खड़ा होकर उसकी उठी हुई गाँड से लेकर उसकी चूत तक अपने लण्ड को रगड़ रहा था। शबाना की सिसकारियों से कमरा गूँज रहा था। शबाना की चूत के मुँह पर उसने अपने लण्ड को एडजस्ट किया और धीरे-धीरे बड़े प्यार से लण्ड के सुपाड़े को उसकी चूत में पहुँचा दिया।

शबाना ने मदहोश होकर अपनी गाँड और उठा दी और जगबीर ने अपना लण्ड एक झटके से पूरा का पूरा शबाना की चूत में ढकेल दिया। शबाना को एक झटका सा लगा और उसकी सिसकारियाँ फूटने लगीं। जगबीर ने दोनों हाथों से उसकी कमर को पकड़ा और नीचे से जोर-जोर से झटके मारने शुरू कर दिये और शबाना की कमर को पकड़ कर एक लय में उसके जिस्म को हिलाने लगा। शबाना का पूरा जिस्म हिल रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी चूत को कोई उठा-उठा कर जगबीर के लण्ड पर पटक रहा था, और जगबीर का लण्ड उसकी चूत को चीरते हुए उसके पेट में घुस रहा था।

शबाना की सिसकारियाँ अब मदहोशी की चीखों में बदल चुकी थी। उसकी चूत के थपेड़े जगबीर के लण्ड पर बेतहाशा पड़ रहे थे। जगबीर ने उसकी कमर को कस कर पकड़ रखा था और शबाना की गाँड से लेकर उसके कंधों तक उसके जिस्म को झकझोर कर रख दिया था। जगबीर उसे बुरी तरह चोदे जा रहा था और शबाना के सैंडल वाले पैर ज़मीन से उठने लगे थे। जगबीर ने उसकी कमर को छोड़ दिया और उसकी जाँघों को अंदर की तरफ़ से पकड़ कर उसे ऊपर उठा लिया। अब शबाना अपने हाथों को बेड पर टिकाये हवा में लहरा रही थी और जगबीर उसकी चूत में बेतहाशा धक्के लगाये जा रहा था। जगबीर के धक्के एक दम तेज़ हो गये और शबाना की चूत में जैसे ज्वालामुखी फट गया। पता नहीं किसका पानी कब गिरा, दोनों के जिस्म अब शाँत पड़ने लगे। जगबीर ने शबाना की जाँघें छोड़ दीं तो खटाक की आवाज़ के साथ शाबाना के पैरों में बंधे सैंडल ज़मीन पर पड़े। शबाना घूमी और धड़ाम से बेड पर गिर गयी। “जगबीर मज़ा आ गया.. लव यू डार्लिंग!” जगबीर भी उसकी बगल में लेट गया और शबाना ने उसके होंठों को चूम लिया।

शबाना की मौज हो चली थी। अच्छे दिन निकाल रहे थे चुदाई में। कभी जगबीर तो कभी प्रताप और कभी दोनों से खूब ज़ोरों में चुदाई करवा रही थी शबाना! या यूँ कहें चुदाई के पूरे मज़े लूट रही थी वो!

क्रमशः

Written by: Anjaan

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