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प्यासी शबाना (भाग - ६)

by Anjaan©

प्यासी शबाना
लेखक: अन्जान
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भाग - ६

एक दिन सुबह परवेज़ अभी निकला ही था कि फोन की घंटी घनघना उठी। अशरफ़ का फोन था। अशरफ़ शबाना का छोटा भाई था। उसका फोन कभी आता नहीं था - हमेशा उसके अम्मी-अब्बा ही फोन करते थे।

“हैलो, बोलो अशरफ़, सब ठीक तो है?” शबाना ने पूछा।

“ठीक है आपा! आप सुनाओ!” अशरफ़ शबाना से आठ साल छोटा था और उसे आपा ही बुलाता था।

“मेरी सगाई तय हुई है और आपको लड़की देखने आना है। परसों सुबह से पहले पहुँचना है!” अशरफ़ ने जल्दी से बात पूरी की।

“इतनी जल्दी कैसे आऊँ...? और परवेज़ नहीं आ सकेंगे इतनी जल्दी में!” शबाना को पता था कि परवेज़ अगले दिन काम से बाहर जाने वाला था, तो उसे अकेले ही जाना पड़ेगा। दूसरी परेशानी यह थी कि परवेज़ की गैर-हाज़री में उसने प्रताप और जगबीर दोनों को अगली रात अपने यहाँ चुदाई के मज़े लूटने के बुला रखा था।

“क्या शब्बो आपा! इसमें क्या प्रॉब्लम है? आप कोई बच्ची तो हो नहीं कि अकेली नहीं आ सकती... सीधी बस है और कोई बदली भी करनी है नहीं - सीधे वहाँ से बैठ जाओ और यहाँ पर मैं लेने आ ही जाऊँगा!” अशरफ़ ने आराम से कहा।

“लेकिन शाम की ही बस लेनी पड़ेगी अब!” शबाना तय नहीं कर पा रही थी, इस हालात से कैसे निपटा जाये!

“प्लीज़ आपा! सफ़र है ही कितना... सात-आठ घंटे में यहाँ पर पहुँच जाओगी और मैं बस स्टैंड से ले आऊँगा!” अशरफ़ ने ज़ोर दिया।

“देखो अशरफ़, बस रात को दो बजे पहुँचेगी... तुम लेने आ जाना... कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिये... इतनी रात को कोई रिक्शा वगैरह भी नहीं मिलती वहाँ और सब कितना सुनसान होता है!”

“आप चिंता ना करो आपा! कोई गड़बड़ नहीं होगी!” अशरफ़ ने उसे यकीन दिलाया। खैर बहुत इल्तज़ा करने के बाद शबाना राज़ी हो गयी।

परवेज़ को तो बाहर जाना था तो उसने तो जाने से मना कर दिया, मगर शबाना के अकेले जाने में उसने कोई एतराज़ नहीं दिखाया। शबाना को आटो-रिक्शा से बस स्टैंड जाने की सलाह देकर परवेज़ तो अगले दिन दोपहर को ही निकल गया। शबाना ने उदास मन से प्रताप और जगबीर को भी बता दिया कि चुदाई का प्रोग्राम रद्द करना पड़ेगा।

शबाना की बस शाम को छः बजे थी। जगबीर उसे बस स्टैंड तक अपनी जीप में छोड़ने के लिये आने वाला था। शबाना चार बजे तक बिल्कुल तैयार हो गयी और जगबीर का इंतज़ार करने लगी। आज उसने चमकीली सुनहरी कढ़ाई की हुई लाल रंग की नेट वाली साड़ी और छोटा सा सैक्सी ब्लाऊज़ पहन रखा था। साथ में उसने ऊँची पेंसिल हील वाले सुनहरी रंग के स्ट्रैपी सैंडल पहने हुए थे। जगबीर आया तो शबाना से रहा नहीं गया और वो जगबीर से लिपट कर उसके होंठ चूमते हुए उसका लण्ड सहलाने लगी। वक्त ज्यादा नहीं था तो जगबीर ने शबाना को डायनिंग टेबल पर हाथ राख कर आगे झुकाते हुए खड़ा करके पीछे से उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊठा दिये। फिर उसकी पैंटी खींच कर जाँघों से नीचे खिसका दी जो अगले ही पल उसके पैरों में गिर पड़ी। फिर उसने शबाना की कमर में हाथ डाल कर उसकी चूत में अपना लण्ड घुसेड़ दिया और खड़े- खड़े ही उसे दनादन चोदने लगा। जब दोनों का पानी छूट गया तो शबाना घूम कर नीचे बैठ गयी और जगबीर का लण्ड चाट-चाट कर चूसते हुए साफ किया। उसकी साड़ी थोड़ी बेतरतीब सी हो गयी थी लेकिन अब बदलने का वक्त नहीं था क्योंकि देर होने की वजह से बस छूटने का डर था। वैसे भी वो ऊपर बुऱका ही तो पहनने वाली थी। जल्दी में उसने पैंटी भी नहीं पहनी और साड़ी के नीचे उसकी जाँघों पर जगबीर के लंड का पानी और उसकी खुद की चूत का पानी भी बह रहा था।

शबाना ने फटाफट अपना बुऱका पहना और जगबीर ने उसे बस छूटने के ठीक पहले बस तक पहुँचा दिया। रात को पौने दो बजे शबाना ने बस से उतरकर चारों तरफ़ देखा। उसके अलावा और कोई नहीं उतरा था। गुप अंधेरे में तेज़ हवा की साँय-साँय की आवाज़ के अलावा पूरा सन्नाटा था। अशरफ़ का दूर-दूर तक कोई पता नहीं था। उसने अशरफ़ को फोन लगाया। “अशरफ़ कहाँ है तू?” वो थोड़ी घबरायी हुई थी। “शब्बो आपा! मेरी गाड़ी खराब हो गयी है... आप बस थोड़ी दूर पैदल चल कर आ जाइये! गाड़ी को ऐसे ही छोड़ने में खतरा है... यहाँ पर गाड़ी चोरी होने में देर नहीं लगेगी। मैं यहीं पर पनवाड़ी चौंक पर खड़ा हूँ!” अशरफ़ ने ऐसे जवाब दिया जैसे वो तैयार था इस हालत के लिये।

“मैं अकेले नहीं आ सकती! तू जानता है कि वहाँ तक पैदल आने के लिये उस सुनसान रास्ते से आना होगा!” शबाना के दिल की धड़कने तेज़ हो गयी थी। वो जानती थी पगडंडी बिल्कुल सुनसान होती है। “आपा कुछ नहीं होगा! आप आ जाओ!” अशरफ़ ने बिना उसका जवाब सुने फोन काट दिया।

शबाना ने अपना बैग और पर्स उठाया और पगडंडी की तरफ़ चल पड़ी। गनिमत ये थी कि बैग हल्का ही था क्योंकि उसमें दो जोड़ी कपड़े, सैंडल और ब्रा पैंटी वगैरह ही थी। अभी दस मिनट ही चली थी कि उसे लगा कोई उसके पीछे है। वो बिल्कुल डर गयी और अपनी चलने की रफ्तार तेज़ कर दी। उसने अपने आपको बुऱके में पूरी तरह से ढक रखा था - सर से पैर तक। तभी उसे अपने पीछे से कदमों की आवाज़ तेज़ होती महसूस हुई। वो अभी अपनी रफ्तार और बढ़ाने वाली ही थी कि उसे सामने एक परछांयी नज़र आयी। वो उसी की तरफ़ आ रही थी। अब शबाना की डर के मारे बुरी हालत थी। तभी उसे अपनी कमर पर किसी का हाथ महसूस हुआ। उसे पता ही नहीं चला कब वो पीछे वाला आदमी इतना करीब आ गया। उसने झट से उसका हाथ झटक दिया और पगडंडी से उतर कर खेतों की तरफ़ भागी जहाँ उसे थोड़ी रोश्नी नज़र आ रही थी। उसका बैग और पर्स वहीं छूट गया। वो दोनों परछांइयाँ अब उसका पीछा कर रही थी। “पकड़ रंडी को! हाथ से निकाल ना जाये! देख साली की गाँड देख कैसे हिल रही है आज तो मज़ा आ जायेगा छेद्दीलाल!” शबाना के कानों में ये आवाज़ें साफ़ सुनायी दे रही थीं और अचानक उसकी पीठ पर एक धक्का लगा और वो सीधे मुँह के बल घास के ढेर पर गिर गयी। घास की वजह से उसे चोट नहीं आयी।

“बचाओ, बचाओ, अशरफ़!” वो ज़ोर से चिल्लायी। तभी एक आदमी ने उसके बुरक़े को ज़ोर से खींच दिया और वो फर्रर्र की आवाज़ के साथ फट गया। उसकी साड़ी तो पहले से ही बे-तरतीब सी थी और इस भाग-दौड़ की वजह से और भी खुल सी गयी थी। उस आदमी ने उसकी साड़ी भी पकड़ कर खींच के उतार दी। शबाना की पूरी जवानी जैसे कैद से बाहर निकाल आयी। अब उसने सिर्फ़ पेटीकोट, ब्लाऊज़ और सैंडल पहन रखे थे। फिर एक आदमी उसपर झपट पड़ा तो शबाना ने उसे ज़ोर से धक्का दिया और एक लात जमायी। वो अब भी अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये कशाकश कर रही थी। तभी एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा और उसकी आँखों के आगे जैसे तारे नाचने लगे और कानों में सीटियाँ बजने लगी। वो ज़ोर से चींख पड़ी। तभी उन दोनों में से एक ने उसके पेटीकोट को ऊपर उठाया और उसकी जाँघों को पकड़ लिया। पैंटी तो शबाना ने जगबीर से चुदाई के बाद घर से निकलते हुए पहनी ही नहीं थी। उसने अपनी दोनों जाँघों को मज़बूती से भींच लिया। उस आदमी का हाथ उसकी जाँघों के बीच उसकी नंगी चूत पर था, और शबाना उस आदमी के बाल पकड़ कर उसे ज़ोर से पीछे धकेलने लगी। तभी उसे एक और ज़ोरदार थप्पड़ पड़ा। ये उस दूसरे आदमी ने मारा था। शबाना के पैर खुल गये और उसके हाथों की पकड़ ढीली हो गयी। तभी पहला आदमी, छेद्दीलाल खुश होते हुए बोला, “शम्भू! साली की चूत एक दम साफ़ है, आज तो मज़ा आ जायेगा! क्या माल हाथ लगा है!’ ये कहते हुए छेद्दीलाल ने शबाना के ब्लाऊज़ को पकड़ कर फाड़ दिया और शबाना के मम्मे एक झटके से बाहर झूल गये। ब्रा जैसा छोटा सा ब्लाउज़ फटते ही शबना के गोल-गोल मम्मे नंगे हो गये और पेटीकोट उसकी कमर तक उठा हुआ था। ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं हुई थी क्योंकि ब्लाऊज़ खुद ही किसी ब्रा के साइज़ का ही था।

शबाना ने फिर हिम्मत जुटायी और ज़ोर से छेद्दीलाल को धक्का दिया। तभी शम्भू ने उसके दोनों हाथों को पकड़ कर उन्हें उसके सिर के ऊपर तक उठा दिया और नीचे छेद्दी ने उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और अपना पायजामा भी। उसने अंडरवीयर नहीं पहनी थी और शबाना की नज़र सीधे उसके लण्ड पर गयी और उसने अपनी टाँगें फिर से जोड़ लीं। वो सिर्फ अब ऊँची ऐड़ी के सुनहरी सैंडल पहने बिल्कुल नंगी घास के ढेर पर पीठ के बल लेटी हुई थी। उसके हाथ उसके सर के ऊपर से शम्भू ने पकड़ रखे थे और नीचे छेद्दीलाल उसकी चुदाई की तैयारी में था। शबाना इस चुदाई के लिये बिल्कुल तैयार नहीं थी और वो अब भी चींख रही थी। “और चींख रंडी! यहाँ कौन सुनने वाला है तेरी...? आराम से चुदाई करवा ले तो तुझे भी मज़ा आयेगा!” शम्भू ने उसके हाथों को ज़ोर से दबाते हुए कहा। शबाना को शम्भू कर सिर्फ़ चेहरा नज़र आ रहा था क्योंकि वो उसके सिर के पीछे बिठा हुआ था। “छेद्दी! ये मुआ लखनपाल कहाँ मर गया?” “आता ही होगा!” अब शबाना समझ गयी कि इनका एक और साथी भी है।

तभी किसी ने उसकी चूचियों को ज़ोर से मसल दिया। ये लखन था। “क्या माल मिला है... आज तो खूब चुदाई होगी!” लखन ने उसकी एक टाँग पकड़ी और ज़ोर से खींच कर दूसरी टाँग से अलग कर दी। छेद्दीलाल तो जैसे मौके की ताक में था। उसने झट से शबाना की दूसरी टाँग को उठाया और सीधे शबाना की चूत में लण्ड घुसेड़ दिया और शबाना के ऊपर लेट गया। शबाना की चूत बिल्कुल सूखी थी क्योंकि वो चुदाई के लिये बिल्कुल तैयार नहीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि आज उसका बलात्कार हो रहा है, और वो भी तीन-तीन मर्द उसको चोदने वाले हैं... वो भी ज़बरदस्ती। वैसे तो चुदाई के लिये वो खुद हमेशा तैयार रहती थी लेकिन ये हालात और इन लोगों का तबका और रवैया उसे गवारा नहीं हो रहा था। इन जानवरों को तो सिर्फ अपनी इशरत और तसल्ली से मतलब था और उसकी खुशी या खैरियत की ज़रा भी परवाह नहीं थी।

तभी उसकी चूत पर एक ज़ोरदार वार हुआ और उसकी चींख निकाल गयी। उसकी सूखी हुई चूत में जैसे किसी ने मिर्च रगड़ दी हो। छेद्दीलाल एक दम ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने लगा था। शबाना की एक टाँग लखन ने इतनी बाहर की तरफ खींच दी थी कि उसे लग रहा था कि वो टूट जायेगी। उसके दोनों हाथ शम्भू ने कस कर पकड़ रखे थे और वो हिल भी नहीं पा रही थी। अब छेद्दीलाल उसे चोदे जा रहा था और उसके धक्कों की रफ़्तार तेज़ हो गयी थी। हालात कितने भी नागवार थे लेकिन शबाना थी तो असल में एक नम्बर की चुदासी। इसलिये ना चाहते हुए भी शबाना को भी अब धीरे-धीरे मज़ा आने लगा था और उसकी गाँड उठने लगी थी। उसकी चूत भी अब पहले की तरह सूखी नहीं थी और भीगने लगी थी। तभी छेद्दीलाल ने ज़ोर से तीन-चार ज़ोर के धक्के लगाये और अपना लण्ड बाहर खींच लिया। अब लखन ने उसे उलटा लिटा दिया।

शबाना समझ गयी उसकी गाँड मरने वाली है। लखन ने उसकी गाँड पर अपना लण्ड रगड़ना शुरू कर दिया। शबाना ने अपने घुटने अंदर की तरफ़ मोड़ लिये और अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी और एक ज़ोरदार लात पीछे लखन के पेट पेर दे मारी। लखन इस आकस्मिक हमले से संभल नहीं पाया और गिरते-गिरते बचा। शबाना के ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल की चोट काफी दमदार थी और कुछ पलों के लिये तो उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। तभी छेद्दीलाल ने परिस्थिति समझते हुए शबाना की टाँग और पैर पकड़ कर बाहर खींच लिया। तब तक लखन भी संभल चुका था। उसने शबाना की दूसरी टाँग खींच कर चौड़ी कर दी और एक झटके से अपना लण्ड उसकी गाँड के अंदर घुसा दिया।

“साली रंडी! गाँड देख कर ही पता लगता है कि पहले कईं दफा गाँड मरवा चुकी है... फिर भी इतना नाटक कर रही है!” कहते हुए लखन ने एक थप्पड़ शबाना के कान के नीचे जमा दिया। शबाना चकरा गयी। लखन का लण्ड धीरे-धीरे उसकी गाँड में घुस गया था। शबाना फिर ज़ोर से चिल्लायी और मदद की गुहार लगाने लगी। “अबे शम्भू! क्या हाथ पकड़े खड़ा है... मुँह बंद कर कुत्तिया का!” शम्भू ने जैसे इशारा समझ लिया। उसने अपनी धोती हटायी और अपना लण्ड उलटी पड़ी हुई शबाना के मुँह में जबरदस्ती घुसाने लगा। शबाना ने पूरी ताकत से अपना मुँह बंद कर लिया। तभी शम्भू ने उसके दोनों गालों को अपनी उंगली और अंगूठे से दबा दिया। दर्द की वजह से शबाना का मुँह खुल गया और शम्भू का लण्ड उसके मुँह से होता हुआ उसके गले तक घुसता चला गया। शबाना की तो जैसे साँस बंद हो गयी और उसकी आँखें बाहर आने लगीं। शम्भू ने अपना लण्ड एक झटके से उसके मुँह से बाहर निकाला और फिर से घुसा दिया।

अब शबाना भी संभल गयी थी। उसे शम्भू के पेशाब का तीखापन और उसकी गन्ध साफ़ महसूस हो रही थी। शम्भू का लण्ड उसके मुँह की चुदाई कर रहा था और उसके गले तक जा रहा था और नीचे लखन उसकी गाँड में लण्ड के हथौड़े चला रहा था। काफी देर तक उसकी गाँड मारने के बाद लखन ने उसकी गाँड से लण्ड निकाला और उसकी कमर को पकड़ कर उसकी गाँड ऊँची उठा दी। फिर पीछे से ही लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया। कुछ दस मिनट की चुदाई के बाद लखन ने अपने लण्ड का पानी शबाना की चूत में छोड़ दिया और शम्भू को इशारा किया। शम्भू ने अपना लण्ड शबाना के मुँह से निकाल कर उसका हाथ छोड़ दिया। शबाना एक दम निढाल होकर घास के ढेर पर औंधे मुँह गिर गयी। उसकी हालत खराब हो चुकी थी और उसकी गाँड और चूत और मुँह में भी भयंकर दर्द हो रहा था। तभी शम्भू ने उसे सीधा कर दिया। “मुझे छोड़ दो, प्लीज़, अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा... बहुत दर्द हो रहा है...!” अब शबाना में चिल्लाने की चींखने की या प्रतिरोध करने की ताकत नहीं थी।

“बस साली कुत्तिया! मेरा लण्ड भी खा ले, फिर छोड़ देंगे!” कहते हुए शम्भू ने उसकी दोनों टाँगों को उठा कर उसके पैरों को अपने कंधों पर रखा और उसकी चूत में लण्ड घुसा दिया। दर्द के मरे शबाना की आँखें फैल गयीं मगर मुँह से आवाज़ नहीं निकाली। शम्भू ने ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिये। शबाना की चूत जैसे फैलती जा रही थी और शम्भू का लण्ड उसे किसी खंबे की तरह महसूस हो रहा था। शबाना ने इतना मोटा लण्ड पहले कभी नहीं लिया था। फिर शम्भू ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। शबाना एक मुर्दे की तरह उसके नीचे लेटी हुई पिस रही थी और शम्भू का पानी गिर जाने का इंतज़ार कर रही थी। उसका अंग-अंग दुख रहा था और वो बिल्कुल बेबस लेटी हुई थी। शम्भू उसे लण्ड खिलाये जा रहा था। फिर शबाना को महसूस हुआ कि इतने दर्द के बावजूद उसकी चूत में से पानी बह रहा था और मज़ा भी आने लगा था। तभी शम्भू ने ज़ोरदार झटके मारने शुरू कर दिये और शबाना की आँखों में आँसू आ गये और उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि उसकी चुदी चुदाई चूत जो कि कईं लण्ड खा चुकी थी, जैसे फट गयी थी। फिर भी इतना दर्द झेलते हुए भी उसकी चूत ने अपना पानी छोड़ दिया और झड़ गयी। शम्भू का पानी भी उसके चूत के पानी में मिला गया। इतनी दर्द भरी चुदाई के बाद किसी तरह से शबाना अभी भी होश में थी।

वो बुरी तरह हाँफ रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि इतनी बेरहम और दर्दनाक वहशियाना चुदाई के बावजूद कहीं ना कहीं उसे मज़ा भी ज़रूर आया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी फटी हुई चूत ने भी कैसे झड़ते हुए अपना पानी छोड़ दिया था जिसमें कि इस वक्त भी बे-इंतेहा दर्द हो रहा था। थोड़ी देर के बाद किसी तरह वो बैठ सकी थी। “मैं घर कैसे जाऊँगी? मेरा सामान तो ढूँढने में मेरी मदद करो!”

“तेरा सामान यहीं है… और हाँ मैंने फोन भी बंद कर दिया था!” कहते हुए लखन ने घास के धेर के पास रखे हुए सामान की तरफ़ इशारा किया। यही वजह थी लखन के देर से आने की।

छेद्दीलाल और शम्भू उसे सहारा देकर खेत में ही पास में एक छोटे से मकान में ले गये - जो कि छेद्दीलाल का था। वहाँ पर शबाना ने खुद को थोड़ा साफ किया और कपड़े बदले। शबाना से ठीक तरह से खड़े भी नहीं हुआ जा रहा था। उसने एक ग्लास दूध पिया, थोड़े बिस्कुट खाये। फिर उसकी हालत थोड़ी ठीक हुई। जो लोग कुछ देर पहले दरिंदों की तरह उसका बलात्कार कर रहे थे वो ही अब उसकी खातिरदारी भी कर रहे थे। फिर शम्भू ने उसे चौंक तक छोड़ दिया, लेकिन दूर से ही।

“आपा! इतनी देर कैसे लग गयी आने में? मैं कब से आपका फोन ट्राई कर रहा था लेकिन स्विच ऑफ आ रहा था!”

“ऐसे ही ज़रा रास्ता भटक गयी थी... अब जल्दी से चल!” शबाना ने कुछ भी बताना ठीक नहीं समझा।

“ये आपके चेहरे पर निशान कैसे हैं? क्या हुआ?”

“कुछ नहीं हुआ! तू चल अब!”

अशरफ़ ने गाड़ी स्टार्ट की और वो घर आ गये। अगले दिन अशरफ़ की सगाई हो गयी और तीसरे दिन उसने घर लौटना था। इन दोनों रातों को शबाना को बस शम्भू, लखन और छेद्दीलाल से चुदाई के ही ख्वाब आते थे और उसकी चूत भीग जाती। जागते हुए भी अक्सर उसी वाकये का ख्याल आ जाता और उसके होंठों पर शरारत भरी मुस्कुराहट फैल जाती और गाल लाल हो जाते। उस का मन होता कि कब अपने घर वापस जाये और प्रताप और जगबीर के साथ चुदाई के मज़े लूटे। तीसरे दिन रात की नौ बजे उसने बस पकड़नी थी। पूरी रात का सफ़र था और अगले दिन परवेज़ उसे लेने आने वाले थे।

क्रमशः

Written by: Anjaan

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