Category: Loving Wives Stories

चोली के नीचे क्या है ?

by raviram69©

चोली के नीचे क्या है ?
प्रेषक : रविराम69 © "लॅंडधारी" (मस्तराम मुसाफिर)

Note:
All characters in this story are 18+. This story has adult and incest contents. Please do not read who are under 18 age or not like incest contents. This is a sex story in hindi font, adult story in hindi font, gandi kahani in hindi font, family sex stories


पटकथा: (कहानी के बारे में) :
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रवि “भैया” कि “सैंया” का मोटा लंड

“आपकी सुन्दरता मुझे आपकी ओर खींच रही है, बस एक बार चूमने दो !” और उसके अधर मेरे गालों से चिपक गये। मुझे अहसास हुआ कि मेरे गुलाबी गाल जैसे फ़ट जायेंगे … तभी उसकी बाहें मेरी कमर से लिपट गई। उसके अधर मेरे अधरों से मिल गये। सिर्फ़ मिल ही नहीं गये जोर से चिपक भी गये।
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Tags:
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Story : कहानी:
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मैं कामिनी, दिन को घर में अकेली होती हूँ। बस घर का काम करती रहती हूँ, मेरा दिल तो यूँ साफ़ है, मेरे दिल में भी कोई बुरे विचार नहीं आते हैं। मेरे पति प्रातः नौ बजे कर्यालय चले जाते हैं फिर संध्या को छः बजे तक लौटते हैं। स्वभाव से मैं बहुत डरपोक और शर्मीली हूँ, थोड़ी थोड़ी बात पर घबरा जाती हूँ।

मेरे पड़ोस में रहने वाला लड़का रवि अक्सर मुझे घूरता रहता था। यूँ तो वो मुझसे काफ़ी छोटा था। कोई 20 साल का रहा होगा और मैं 28 साल कि भरपूर जवान स्त्री थी। कभी कभी मैं उसे देख कर सशंकित हो उठती थी कि यह मुझे ऐसे क्यूँ घूरता रहता है। इसका असर यह हुआ कि मैं भी कभी कभी उसे यहाँ-वहाँ से झांक कर देखने लगी थी कि वो अब क्या कर रहा है। पर हाँ, उसकी जवानी मुझे अपनी तरफ़ खींचती अवश्य थी। आखिर एक मर्द में और एक औरत में आकर्षण तो स्वाभाविक है ना। फिर अगर वो मर्द सुन्दर, कम उम्र का हो तो आकर्षण और ही बढ़ जाता है।

एक दिन रवि दिन को मेरे घर ही आ धमका। मैं उसे देख कर नर्वस सी हो गई, दिल धड़क गया। पर उसके मृदु बोलों पर सामान्य हो गई। वो एक सुलझा हुआ लड़का था, उसमें लड़कियों से बात करने की तमीज थी।

वो एक पैकेट लेकर आया था, उसने बताया कि मेरे पति ने वो पैकेट भेजा था। मैंने तुरन्त मोबाईल से पति को पूछा तो उन्होंने बताया कि उस पैकेट में उनकी कुछ पुस्तकें हैं, रवि एक बहुत भला लड़का है, उसे जलपान कराए बिना मत भेजना।

मैंने रवि को बैठक में बुला लिया और उसे चाय भी पिलाई। वो एक खुश मिज़ाज़ लड़का था, हंसमुख था और सबसे अच्छी बात यह थी उसमें कि वो बहुत सुन्दर भी था। उसकी सदैव चेहरे पर विराजती मुस्कान मुझे भा गई थी। मुझे तो आरम्भ से ही उसमें आकर्षण नजर आता था। मेरे खुशनुमा व्यवहार के कारण धीरे धीरे वो मेरे घर आने जाने लगा। कुछ ही दिनों में वो मेरा अच्छा दोस्त बन गया था।

अब मुझे कोई काम होता तो वो अपनी बाईक पर बाज़ार भी ले जाता था। वो मुझे कामिनी दीदी कहता था। रवि की नजर अक्सर मेरी चूचियों पर रहती थी या वो मेरे सुडौल चूतड़ों की बाटियों को घूरता रहता था।

आप बाटियाँ समझते हैं ना … ? अरे वही गाण्ड के सुन्दर सुडौल उभरे हुए दो गोले …।

मुझे पता था कि मैं जब मेरी पीठ उसकी ओर होगी तो उसकी निगाहें पीछे मेरे चूतड़ों का साड़ी के अन्दर तक जायजा ले रही होंगी और सामने से मेरे झुकते ही उसकी नजर वर्जित क्षेत्र ब्लाऊज के अन्दर सीने के उभारो को टटोल रही होती होंगी। ये सब हरकतें मेरे शरीर में सिरहन सी पैदा कर देती थी। कभी कभी उसका लण्ड भी पैंट के भीतर हल्का सा उठा हुआ मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लेता था।

शायद उसकी यही अदायें मुझे भाने लगी थी इसलिये जब भी वो मेरे घर आता तो मेरा मन उल्लासित हो उठता था। मुझे तो लगता था कि वो रोज आये और फिर वापस नहीं जाये। लालसा शायद यह थी कि शायद वो कभी मेरे पर मेहबान हो जाये और अपना लण्ड मुझे सौंप दे।

छीः छीः ! मैं यह क्या सोचने लगी?

या फिर वो ऐसा कुछ कर दे कि दिल आनन्द की हिलौरें लेने लगे।

एक दिन वो ऐसे समय में आ गया जब मैं नहा रही थी। जब मैं नहा कर बाहर आई तो मैंने देखा रवि मुझे ऊपर से नीचे तक निहार रहा था। मैं शरमा गई और भाग कर अपने शयनकक्ष में आ गई।

“कामिनी दीदी, आप तो गजब की सुन्दर हैं !” मुझे अपने पीछे से ही आवाज आई तो मैं सिहर उठी।

अरे! यह तो बेड रूम में ही आ गया? फिर भी उसके मुख से ये शब्द सुन कर मैं और शरमा गई पर अपनी तारीफ़ मुझे अच्छी लगी।

“तुम उधर जाओ ना, मैं अभी आती हूँ !” मैंने सिर झुका कर शरमाते हुये कहा।

“दीदी, ऐसा गजब का फ़िगर? तुम्हें तो मिस इन्डिया होना चाहिये था !” वो बोलता ही चला गया।

उसके मुख से अपनी तारीफ़ सुन कर मैं भोली सी लड़की इतरा उठी।

“आपने ऐसा क्या देख लिया मुझ में भैया?” मैं कुछ ऐसी ही और बातें सुनने के लिये मचल उठी।

“गजब के उभार, सुडौल तन, पीछे की मस्त पहाड़ियाँ … किसी को भी पागल कर देंगी !”

मेरा दिल धड़कने लगा। मेरे मन में उसके लिये प्यार भी उमड़ आया। मैं तो स्वभाव से शर्मीली थी, शर्म के मारे जैसे जमीन में गड़ी जा रही थी। पर अपनी तारीफ़ सुनना मेरी कमजोरी थी।

“भैया… उधर बैठक में जाओ ना … मुझे शरम आ रही है…” मैंने शर्म से पानी पानी होते हुये कहा।

वो मुझे निहारता हुआ वापस बैठक में आ गया। पर मेरे दिल को जैसे धक्का लगा, अरे ! वो तो मेरी बात बहुत जल्दी ही मान गया ? मान गया … बेकार ही कहा … अब मेरी सुन्दरता की तारीफ़ कौन करेगा? मैंने हल्के फ़ुल्के कपड़े पहने और जान कर ब्रा और चड्डी नहीं पहनी, ताकि उसे मेरी ऊँचाइयाँ और स्पष्ट आ नजर आ सके और वो मेरी मस्त तारीफ़ करता ही जाये। बस एक सफ़ेद पाजामा और सफ़ेद टॉप पहन लिया, ताकि उसे पता चले कि मेरे उरोज बिना ब्रा के ही कैसे सुडौल और उभरे हुये हैं और मेरे पीछे का नक्शा उभर कर बिना चड्डी के कितना मस्त लगता है। पर मुझे नहीं पता था कि मेरा यह जलवा उस पर कहर बन कर टूट पड़ेगा।

मैं जैसे ही बैठक में आई, वो मुझे देखते ही खड़ा हो गया।

उफ़्फ़्फ़ !

यह क्या?

उसके साथ उसका लण्ड भी तन कर खड़ा हो गया था। मुझे एक क्षण में पता चल गया कि मैंने यह क्या कर दिया है? पर तब तक देर हो चुकी थी, वो मेरे पास आ गया था।

“दीदी, आह्ह्ह ये उभार, ये तो ईश्वर की महान कलाकृति हैं …” उसके हाथ अनजाने में मेरे सीने पर चले गये और सहला कर उभारों का जायजा ले लिया। मेरे जिस्म में जैसे हजारों पावर के तड़ तड़ करके झटके लग गये। उसके स्पर्श से मानो मुझे नशा सा आ गया। मेरे गालों पर लालिमा छा गई, मेरी बड़ी बड़ी आँखें धीरे से नीचे झुक गई। तभी मैंने उसके हाथों को धीरे से थाम लिया और अपने गोल गोल उरोजों से हटाने लगी।

“मुझे छोड़ दो रवि, मैं मर जाऊंगी… मेरी जान निकल जायेगी … आह्ह !”

“आपकी सुन्दरता मुझे आपकी ओर खींच रही है, बस एक बार चूमने दो !” और उसके अधर मेरे गालों से चिपक गये। मुझे अहसास हुआ कि मेरे गुलाबी गाल जैसे फ़ट जायेंगे … तभी उसकी बाहें मेरी कमर से लिपट गई। उसके अधर मेरे अधरों से मिल गये। सिर्फ़ मिल ही नहीं गये जोर से चिपक भी गये।

मुझे जैसे होश ही नहीं रहा। यह कैसी सिरहन थी, यह कैसा नशा था, तन में जैसे आग सी लग गई थी।

उसका मोटा लण्ड नीचे से तन कर मेरी योनि को छू कर अपनी खुशी का अहसास दिला रहा था। मुझे लगा कि मेरी योनि भी मोटा लण्ड का स्पर्श पा कर खिल उठी थी। इन दो प्रेमियों को मिलने से भला कोई रोक पाया है क्या ?

मेरा पजामा नीचे से गीला हो उठा था। दिल में एक प्यारी सी हूक उठ गई। तभी जैसे मैं हकीकत की दुनिया में लौटने लगी। मुझे अहसास हुआ कि हाय रे ! मुझे यह क्या हो गया था? मैंने अपने जिस्म को उसे कैसे छूने दिया… ।

“रवि, तुम मुझे बहका रहे हो …” मैंने उसे तिरछी मुस्कान भरी निगाह से देखा। वो भी जैसे होश में आ गया। उसने एक बार अपनी और मेरी हालत देखी … और उसकी बाहों का कमर में से दबाव हट गया। पर मैं जान कर के उससे चिपकी ही रही। आनन्द जो आ रहा था।

“ओह ! नहीं दीदी, मैं खुद बहक गया था … मैंने आपके अंग अनजाने में छू लिये … सॉरी !”

उसकी नजरें अब शर्म से नीचे होने लगी थी।

“रवि, यह तो पाप है, पति के होते हुये कोई दूसरा मुझे छुए !” उसके भोलेपन पर मैंने इतराते हुये कहा।

अन्दर ही अन्दर मेरा मन कुछ करने को तड़पने लग गया था। शायद मुझे एक मर्द की… ना ना … रवि की आवश्यकता थी … जो मुझे आनन्दित कर सके, मस्त कर सके। इतना खुल जाने के बाद मैं रवि को छोड़ देना नहीं चाह रही थी।

“पर दीदी, यह तो बस हो गया, आपको देख कर मन काबू में नहीं रहा… मुझे माफ़ करना !” कुछ हकलाते हुये वो बोला।

“अच्छा, अब तुम जाओ …” मेरा मन तो नहीं कर रहा था कि वो जाये, पर शराफ़त का जामा पहनना एक तकाजा था कि वो मुझे कही चालू, छिनाल या रण्डी ना समझ ले। मैं मुड़ कर अपने शयनकक्ष में आ गई। मुझे घोर निराशा हुई कि वो मेरे पीछे पीछे नहीं आया।

फिर जैसे एक झटके में सब कुछ हो गया। वो वास्तव में कमरे में आ गया था और मेरी तरफ़ बढ़ने लगा और वास्तव में जैसा होना चाहिये था वैसा होने लगा। मुझे अपनी जवानी पर गर्व हो उठा कि मैंने एक जवां मर्द को मजबूर कर दिया वो मुझे छोड़ ना सके। मैं धीरे धीरे पीछे हटती गई और अपने बिस्तर से टकरा गई, वो मेरे समीप आ गया।

“दीदी, आज मैं आपको नहीं छोड़ूंगा … मेरी हालत आपने ही ऐसी कर दी है…” रवि की आँखों में एक नशा सा था।

“नहीं रवि, प्लीज दूर रहो … मैं एक पतिव्रता नारी हूँ … मुझे पति के अलावा किसी ने नहीं छुआ है।” मन में मैं खुश होती हुई उसे ऐसा करने मजबूर करते हुये उसे लुभाने लगी। पर मुझे पता था कि अब मेरी चुदाई बस होने ही वाली है। बस मेरे नखरे देख कर कहीं यह चला ना जाये। उसकी वासना भरी गुलाबी आँखें यह बता रही थी कि वो अब मुझे चोदे बिना कहीं नहीं जाने वाला है।

उसने अपनी बाहें मेरी कमर में डाल कर मुझे दबा लिया और अपने अधरों से मेरे अधर दबा लिये। मैं जान करके घू घू करती रही। उसने मेरे होंठ काट लिये और अधरपान करने लगा। एक क्षण को तो

मैं सुध बुध भूल गई और उसका साथ देने लगी।

उसके हाथ मेरे ब्लाऊज को खोलने में लगे थे … मैंने अपने होंठ झटक दिये।

“यह क्या कर रहे हो …? प्लीज ! बस अब बहुत हो गया … अब जाओ तुम !”

उसने अपनी बाहें मेरी कमर में डाल कर मुझे दबा लिया और अपने अधरों से मेरे अधर दबा लिये। मैं जान करके घू घू करती रही। उसने मेरे होंठ काट लिये और अधरपान करने लगा। एक क्षण को तो मैं सुध बुध भूल गई और उसका साथ देने लगी।

उसके हाथ मेरे ब्लाऊज को खोलने में लगे थे ... मैंने अपने होंठ झटक दिये।

"यह क्या कर रहे हो ...? प्लीज ! बस अब बहुत हो गया ... अब जाओ तुम !" मेरे नखरे और बढ़ने लगे।

पर मेरे दोनों बड़े बड़े कबूतर उसकी गिरफ़्त में थे। वो उसे सहला सहला कर दबा रहा था। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मेरे दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। बस जुबान पर इन्कार था, मैंने उसके हाथ अपने बड़े-बड़े नर्म कबूतरों से हटाने की कोशिश नहीं की।

उसने मेरा टॉप ऊपर खींच दिया, मैं ऊपर से नंगी हो चुकी थी। मेरे बड़े-बड़े सुडौल स्तन तन कर बाहर उभर आये। उनमें कठोरता बढ़ती जा रही थी। मेरे चुचूक सीधे होकर कड़े हो गये थे। मैं अपने हाथों से अपना तन छिपाने की कोशिश करने लगी।

तभी उसने बेशर्म होकर अपनी पैंट उतार दी और साथ ही अपनी चड्डी भी। यह मेरे मादक जोबन की जीत थी। उसका लण्ड 120 डिग्री पर तना हुआ था और उसके ऊपर उसके पेट को छू रहा था। बेताबी का मस्त आलम था। उसका लण्ड लम्बा मोटा था । मेरा मन हुआ कि उसे अपने मुख में दबा लूँ और चुसक चुसक कर उसका माल निकाल दूँ।

उसने एक झटके में मुझे खींच कर मेरी पीठ अपने से चिपका ली। मेरे चूतड़ों के मध्य में पजामे के ऊपर से ही लण्ड घुसाने लगा। आह्ह ! कैसा मधुर स्पर्श था ... घुसा दे मेरे राजा जी ... मैंने सामने से अपनी भारी भारी चूचियाँ और उभार दी। उसका कड़क बड़ा बड़ा लण्ड गाण्ड में घुस कर अपनी मौजूदगी दर्शा रहा था।

"वो क्या है? ... उसमें क्या तेल है ...?"

"हाँ है ... पर ये ऐसे क्या घुसाये जा रहा है ... ?"

उसने मेरी गर्दन पकड़ी और मुझे बिस्तर पर उल्टा लेटा दिया। एक हाथ बढ़ा कर उसने तेल की शीशी उठा ली। एक ही झटके में मेरा पाजामा उसने उतार दिया,

"बस अब ऐसे ही पड़े रहना ... नहीं तो ध्यान रहे मेरे पास चाकू है ... पूरा घुसेड़ दूँगा।"

मैं उसकी बात से सन्न रह गई। यह क्या ... उसने मेरे चूतड़ों को खींच कर खोल दिया और तेल मेरे गाण्ड के फ़ूल पर लगाने लगा। उसने धीरे से अंगुली दबाई और अन्दर सरका दी। वो बार बार तेल लेकर मेरी गाण्ड के छेद में अपनी अंगुली घुमा रहा था। मेरे पति ने तो ऐसा कभी नहीं किया था। उफ़्फ़्फ़्... कितना मजा आ रहा था।

"रवि, देख चाकू मत घुसेड़ना, लग जायेगी ..." मैंने मस्ती में, पर सशंकित होकर कहा।

पर उसने मेरी एक ना सुनी और दो तकिये नीचे रख दिये। मेरी टांगें खोल कर मेरे छेद को ऊपर उठा दिया और अपना मोटा सुपाड़ा उसमें दबा दिया।

"देख चाकू गया ना अन्दर ..."

"आह, यह तो तुम्हारा वो है, चाकू थोड़े ही है?"

"तो तुम क्या समझी थी सचमुच का चाकू है मेरे पास ... देखो यह भी तो अन्दर घुस गया ना ?"

उसका लण्ड मेरी गाण्ड में उतर गया था।

"देख भैया, अब बहुत हो गया ना ... तूने मुझे नहीं छोड़ा तो मैं चिल्लाऊँगी ..." मैंने अब जानबूझ कर उसे छेड़ा।

पर उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये थे, लण्ड अन्दर बाहर आ जा रहा था, उसका लण्ड मेरी चूत को भी गुदगुदा रहा था। मेरी चूत की मांसपेशियाँ भी सम्भोग के तैयार हो कर अन्दर से खिंच कर कड़ी हो गई थी।

"नहीं दीदी चिल्लाना नहीं ... नहीं तो मर जाऊँगा .."

वो जल्दी जल्दी मेरी गाण्ड चोदने लगा पर मैंने अपने नखरे जारी रखे,"तो फिर हट जा ... मेरे ऊपर से... आह्ह ... मर गई मैं तो !" मैंने उसे बड़ी मस्त नजर से पीछे मुड़ कर देखा।

"बस हो गया दीदी ... दो मिनट और ..." वो हांफ़ता हुआ बोला।

"आह्ह ... हट ना ... क्या भीतर ही अपना माल निकाल देगा? " मुझे अब चुदने की लग रही थी। चूत बहुत ही गीली हो गई थी और पानी भी टपकाने लगी। इस बार वो सच में डर गया और रुक गया। मुझे नहीं मालूम था कि गाण्ड मारते मारते सच में हट जायेगा।

"अच्छा दीदी ... पर किसी को बताना नहीं..." वो हांफ़ते हुये बोला।

अरे यह क्या ... यह तो सच में पागल है ... यह तो डर गया... ओह... कैसा आशिक है ये?

"अच्छा, चल पूरा कर ले ... अब नहीं चिल्लाऊंगी..." मैंने उसे नरमाई से कहा। मैंने बात बनाने की कोशिश की- साला ! हरामजादा ... भला ऐसे भी कोई चोदना छोड़ देता है ... मेरी सारी मस्ती रह जाती ना !

उसने खुशी से उत्साहित होकर फिर से लण्ड पूरा घुसा दिया और चोदने लगा। आनन्द के मारे मेरी चूत से पानी और ही निकलने लगा। उसमे भी जोर की खुजली होने लगी ... अचानक वो चिल्ला उठा और उसका लण्ड पूरा तले तक घुस पड़ा और उसका वीर्य निकलने को होने लगा। उसने अपना लण्ड बाहर खींच लिया और अपने मुठ में भर लिया। फिर एक जोर से पिचकारी निकाल दी, उसका पूरा वीर्य मेरी पीठ पर फ़ैलता जा रहा था। कुछ ही समय में वो पूरा झड़ चुका था।

"दीदी, थेन्क्स, और सॉरी भी ... मैंने ये सब कर दिया ..." उसकी नजरें झुकी हुई थी।

पर अब मेरा क्या होगा ? मेरी चूत में तो साले ने आग भर दी थी। वो तो जाने को होने लगा, मैं तड़प सी उठी।

"रुक जाओ रवि ... दूध पी कर जाना !" मैंने उसे रोका। वो कपड़े पहन कर वही बैठ गया। मैं अन्दर से दूध गरम करके ले आई। उसने दूध पी लिया और जाने लगा।

"अभी यहीं बिस्तर पर लेट जाओ, थोड़ा आराम कर लो ... फिर चले जाना !" मैंने उसे उलझाये रखने की कोशिश की। मैंने उसे वही लेटा दिया। उसकी नजरें शरम से झुकी हुई थी। इसके विपरीत मैं वासना की आग में जली जा रही थी। ऐसे कैसे मुझे छोड़ कर चला जायेगा। मेरी पनियाती चूत का क्या होगा।

दीदी अब कपड़े तो पहन लूँ ... ऐसे तो शरम आ रही है।" वो बनियान पहनता हुआ बोला।

"क्यूँ भैया ... मेरी मारते समय शरम नहीं आई ?... मेरी तो बजा कर रख दी..." मैंने अपनी आँखें तरेरी।

"दीदी, ऐसा मत बोलो ... वो तो बस हो गया !" वो और भी शरमा गया।

"और अब ... ये फिर से खड़ा हो रहा है तो अब क्या करोगे..." उसका लंबा मोटा लण्ड एक बार फिर से मेरे यौवन को देख कर पुलकित होने लगा था।

"ओह, नहीं दीदी इस बार नहीं होने दूंगा..." उसने अपना लण्ड दबा लिया पर वो तो दूने जोर से अकड़ गया।

"भैया, मेरी सुनो ... तुम कहो तो मैं इसकी अकड़ दो मिनट में निकाल दूंगी..." मैंने उसे आँख मारते हुये कहा।

"वो कैसे भला ...?" उसने प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखा।

"वो ऐसे ... हाथ तो हटाओ..." मैं मुस्करा उठी।

मैंने बड़े ही प्यार से उसे थाम लिया, उसकी चमड़ी हटा कर सुपाड़ा खोल दिया। उसकी गर्दन पकड़ ली। मैंने झुक कर मोटे सुपाड़े को अपने मुख में भर लिया और उसकी गर्दन दबाने लगी। अब रवि की बारी थी चिल्लाने की। बीच बीच में उसकी गोलियों को भी खींच खींच कर दबा रही थी। उसने चादर को अपनी मुठ्ठी में भर कर कस लिया था और अपने दांत भीच कर कमर को उछालने लगा था।

"दीदी, यह क्या कर रही हो ...?" उसका सुपाड़ा मेरे मुख में दब रहा था, मैं दांतों से उसे काट रही थी। उसके लण्ड के मोटे डण्डे को जोर से झटक झटक कर मुठ मार रही थी।

"भैया , यह तो मानता ही नहीं है ... एक इलाज और है मेरे पास..." मैंने उसके तड़पते हुये लण्ड को और मसलते हुये कहा। मैं उछल कर उसके लण्ड के पास बैठ गई। उसका तगड़ा लण्ड जो कि टेढा खड़ा हुआ था, उसे पकड़ लिया और उसे चूत के निशाने पर ले लिया। उसका लम्बा टेढा लण्ड बहुत खूबसूरत था। जैसे ही योनि ने सुपाड़े का स्पर्श पाया वो लपलपा उठी ... मचल उठी, उसका साथी जो जाने कब से उसकी राह देख रहा था ... प्यार से सुपाड़े को अपनी गोद में छुपा लिया और उसकी एक इन्च के कटे हुये अधर में से दो बूंद बाहर चू पड़ी।

आनन्द भरा मिलन था। योनि जैसे अपने प्रीतम को कस के अपने में समाहित करना चाह रही थी, उसे अन्दर ही अन्दर समाती जा रही थी यहा तक कि पूरा ही समेट लिया। रवि ने अपने चूतड़ों को मेरी चूत की तरफ़ जोर लगा कर उठा दिया।

मेरी चूत लण्ड को पूरी लील चुकी थी। दोनों ही अब खेल रहे थे। लण्ड कभी बाहर आता तो चूत उसे फिर से अन्दर खींच लेती। यह मधुर लण्ड चूत का घर्षण तेज हो उठा। उसका लंड मेरी चूत के अंदर जा कर और भी लंबा और मोटा हो चुका था। मैं उत्तेजना से सरोबार अपनी चूत लण्ड पर जोर जोर पटकने लगी।

दोनो मस्त हो कर चीखने-चिल्लाने लगे थे। मस्ती का भरपूर आलम था। मेरी लटकती हुई चूचियाँ उसके कठोर मर्दाने हाथों में मचली जा रही थी, मसली जा रही थी, लाल सुर्ख हो उठी थी। चुचूक जैसे कड़कने लगे थे। उन्हें तो रवि ने खींच खींच कर जैसे तड़का दिये थे। मैंने बालों को बार बार झटक कर उसके चेहरे पर मार रही थी। उसकी हाथ के एक अंगुली मेरी गाण्ड के छेद में गोल गोल घूम रही थी। जो मुझे और तेज उत्तेजना से भर रही थी। मैं रवि पर लेटी अपनी कमर से उसके लण्ड को दबाये जा रही थी। उसे चोदे जा रही थी। हाय, शानदार चुदाई हो रही थी।

तभी मैंने प्यासी निगाहों से रवि को देखा और उसके लण्ड पर पूरा जोर लगा दिया। ... और आह्ह्ह ... मेरा पानी निकल पड़ा ... मैं झड़ने लगी। झड़ने का सुहाना अहसास ... उसका लण्ड तना हुआ मुझे झड़ने में सहायता कर रहा था। उसका कड़ापन मुझे गुदगुदी के साथ सन्तुष्टि की ओर ले जा रहा था। मैं शनैः शनैः ढीली पड़ती जा रही थी। उस पर अपना भार बढ़ाती जा रही थी। उसके लण्ड अब तेजी से नहीं चल रहा था। मैंने धीरे से अपनी चूत ऊँची करके लण्ड को बाहर निकाल दिया।

"रवि, तेरे इस अकड़ू ने तो मेरी ही अकड़ निकाल दी..."

फिर मैंने उसके लण्ड की एक बार फिर से गर्दन पकड़ ली, उसके सुपाड़े की जैसे नसें तन गई। जैसे उसे फ़ांसी देने वाली थी। उसे फिर एक बार अपने मुख के हवाले किया और सुपाड़े की जैसे शामत आ गई। मेरे हाथ उसे घुमा घुमा कर मुठ मारने लगे। सुपाड़े को दांतों से कुचल कुचल कर उसे लाल कर दिया। डण्डा बहुत ही कड़क लोहे जैसा हो चुका था।

रवि की आनन्द के मारे जैसे जान निकली जा रही थी। तभी उसके लौड़े की सारी अकड़ निकल गई। उसका रस निकल पड़ा ... मैंने इस बार वीर्य का जायजा पहली बार लिया। उसका चिकना रस रह रह कर मेरे मुख में भरता रहा। मैं उसे स्वाद ले ले कर पीती रही। लन्ड को निचोड़ निचोड़ कर सारा रस निकाल लिया और उसे पूरा साफ़ कर दिया।

"देखा निकल गई ना अकड़......... साला बहुत इतरा रहा था ..." मैंने तमक कर कहा।

"दीदी, आप तो मना कर रही थी और फिर ... दो बार चुद ली?" उसने प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखा।

"क्या भैया ... लण्ड की अकड़ भी तो निकालनी थी ना ... घुस गई ना सारी अकड़ मेरी चूत में !"

"दीदी आपने तो लण्ड की नहीं मेरी अकड़ भी निकाल दी ... बस अब मैं जाऊँ ...?"

"अब कभी अकड़ निकालनी हो तो अपनी दीदी को जरूर बताना ... अभी और अकड़ निकालनी है क्या ?"

"ओह दीदी ... ऐसा मत कहो ... उफ़्फ़्फ़ ये तो फिर अकड़ गया ..." रवि अपने खड़े हुए लण्ड को दबा कर बैठाता हुआ बोला। तो अब देर किस बात की थी, हम दोनों इस बार शरम छोड़ कर फिर से भिड़ गये। भैया और दीदी के रिश्तों के चीथड़े उड़ने लगे ... मेरा कहना था कि वो तो मेरा मात्र एक पड़ोसी था ना कि कोई भैया। अरे कोई भी मुझे क्या ऐसे ही दीदी कहने लग जायेगा, आप ही कहें, तो क्या मैं उसे भैया मान लूँ? फिर तो चुद ली मैं ?

ये साले दीदी बना कर घर तक पहुँच तो जाते है और अन्त होता है इस बेचारी दीदी की चुदाई से। सभी अगर मुझे दीदी कहेंगे तो फिर मुझे चोदेगा कौन ? क्या मेरा सचमुच का भैया ... !!! फिर वो कहेंगे ना कि 'सैंया मेरे राखी के बन्धन को निभाना ...'

~~~ समाप्त ~~~

दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,

कहानी पड़ने के बाद अपना विचार ज़रुरू दीजिएगा ...

आपके जवाब के इंतेज़ार में ...

आपका अपना

रविराम69 (c) "लॅंडधारी" (मस्तराम - मुसाफिर)
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Written by: raviram69

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